सुबह बस पर सवार होकर पहले हम थ्येन आन मन चौक पहुंचे, वहां पहुंचते ही, साफ़ सफ़ाई दूर तक मैदान बगल में एन.पी.सी. व सी.पी.पी.सी.सी. का बड़ा दफ्तर जिस में हर वर्ष मार्च में सभा आयोजित होता है। जो चीन के विकास के लिये महत्वपूर्ण योजना बनाए जाता है। जिस को देखकर बहुत अच्छा लगा। और वहां पर मैं फ़ोटो भी खींचवाया। थोड़ा आगे बढ़े मैदान के बीच में एक लंबा सा चीन का राष्ट्रीय झंडा लहर रहा था। उस के बारे में जानकारी हुई कि यह झंडा हर दिन सुर्य उगते समय हर दिन इस झंडे को फैहराया जाता है। यह बहुत ज़रूरी है। देखा तो सच में चीन का राष्ट्रीय झंडा पूरी तरह नया और हवा में दिखाई दिया। मुझे लगा कि हर दिन फैहराया जाता होगा। उसी आगे बढ़े तो द्वार पर माओ त्से तुङ का बहुत बड़ा फोटो लगा हुआ है। उन की अगल बगल में चीनी भाषा में लिखा है उस के बारे में मैं चंद्रिमा जी से पूछा तो मालूम हुआ कि दायीं तरफ़ लिखा है विश्व जनता की मित्रता की दीर्घायु, और दूसरी तरफ़ चीन लोक गणराज्य की दीर्घायु। यह मुझे बहुत अच्छा लगा। लेकिन वहां पे अग्रेजी भाषा में भी लिखा होना चाहिए। क्योंकि विदेशी प्रयटकों के लिये चीनी भाषा में लिखा नारा जानना मुश्किल है। क्योंकि कोई चीनी भाषा जानने वाले ही उस का अनुवाद करके उन की भाषा में बता सकते हैं। फिर आगे बढ़े त्वान मन द्वार आया, उस के उपर पुराने समय में बादशाह रहते थे। उन का चित्र दर्शाया गया है। देखकर बहुत आकर्षित हुआ। त्वान मन द्वार के अंदर पहुंचे, एक बड़ा पार्क जैसा मैदान आया। वहां बादशाह व उन की पत्नी के बारे में कुछ प्रदर्शनी होती हैं। और आगे बढ़े तो उमन द्वार है। जहां मालूम हुआ अभियुक्तों को मृत्यु की सज़ा दिया जाता था। उस के बाद थाएहो द्वार आया। थाएहो द्वार के अंदर जब गये, तो एक आलीशान महल आया। वह महल मिंग राजवंश के दौर का बना। महल आज भी उस की सुन्दरता उसी समय जैसी है। उस की विशेषता मैंने देखी, अगल बगल सीढ़ी बनी हुई थी। बीच में पत्थर का रोड,जिस पर ड्रेकन के चित्र बने हुए थे। मालूम हुआ इस पर से बादशाह जाते थे, तो मैंने पूछा चंद्रिमा से कि ड्रेकन का चित्र क्यों बना है। तो उन्होंने मुझे बताया ड्रेकन चीन का एक द्योतक जानवर है। जिस को चित्र के रुप में चीन के बादशाह अपने महल में ड्रेकन का चित्र अवश्य बनवाये थे। फिर और आगे बढ़े तो एक और सुन्दर महल आया। उस के बारे में मैंने पूछा तो मालूम हुआ इस भवन में बादशाद राजनीतिक चर्चाएं करते थे। योजनाएं बनाते थे। इस में जगह जगह ड्रेकन के चित्र बने हुए हैं। उसी महल के बाहरी हिस्से में एक बड़ा पीतल का बड़ा कढ़ा रखा हुआ है। उस के बारे में जानकारी के अनुसार उस में पानी रखा जाता था, ताकि आग लगने पर बुताया जा सके। भवन के उपर ड्रेकन के जगह जगह चित्र बने हुए हैं। तो मुझे लगा यह सोने का है। लेकिन मालूम हुआ कि नहीं, उस समय सोने का रहा होगा, आज इस की मरम्मत की गयी है। चोंग हो महल, यह महल बादशाद और महत्वपूर्ण व्यक्तियों को आराम करने योग्य बनाया गया था। पावख महल यहां बादशाह सुयोग्य व्यक्तियों की परीक्षा के लिये आते थे। यहां ऐसी व्यवस्था देखी, जो वर्षा में पानी गिरने के लिये एक नये तरीके का ड्रेकन जगह जगह पत्थर के बनाये गये हैं। देखने में लगता है कि यह सुन्दर के लिये डिजाइन की गयी है। लेकिन उन ड्रेकन के मुंह में बारीक छेत होने से वर्षा का पानी एक दूसरे ड्रेकन में जाकर बाहर गिर जाता है। यह एक नया अनुभव मुझे मिला। छेनछिंग महल 1420 – 1798 में मिंग राजवंश में बनाया गया। यह महल बहुत ही सुन्दर आकार का मुझे लगा। और बहुत आकर्षित हुआ। क्योंकि मुझे देखने में ऐसा महसूस हुआ कि उस समय बादशाह होने योग्य लोग रहते थे। अपने चरित्र और स्वभाव को ऊंचे स्तर का बनाकर रखते थे। आज के लोगों में ऐसा कम ही पाया जाता है। जो अपने चरित्र को पूरी तरह सुरक्षित जीवन भर रख ले। खुननिंग महल इस में बादशाह की पत्नी रहती थी। जहां एक छीलिंग जानवर की मूर्ती बनायी गयी है। उस के बारे में मैंने पूछा तो मालूम हुआ यह सच में जानवर नहीं है। यह एक कल्पना की गयी है। उसी में एक पेड़ देखा, जिस का नाम है फ़ाइट्रे जो छोटा छोटा अलग अलग जगहों पर हैं, एक जगह फाइट्रे के दो वृक्ष आपस में जुड़े हुए हैं। उस का मतलब यह हुआ कि यह वृक्ष बड़े होकर पति पत्नि का रुप लिये हैं। इस तरह थ्येन आन मन व शाही महल संग्रहालय का दौरा समाप्त हुआ। और दोपहर भोजन के बाद करीब दो बजे इस दस दिनों का दौरान पहले दिन सी.आर.आई. हिन्दी विभाग में जानने और सब लोगों से मिलने का एक सुअवसर मिला। और बीस वर्ष का सपना पूरा हुआ। सी.आर.आई. के दफ्तर में चंद्रिमा जी ने साथ लिवाकर गयीं, और वहां हिन्दी में कार्यरत लोगों से परिचय कराया। सभी सदस्यों से बातचीत हुई। और मेरे सोचने से कहीं ज्यादा स्वागत किया गया। वहां मैंने देखा हर कम्प्यूटर पर हिन्दी में काम हो रहा था। मुझे ऐसा लगा कि मैं भारत नहीं हूं। थोड़ा भी मुझे एहसास नहीं हुआ कि मैं विदेश में होकर हिन्दी में बातें कर रहा हूं। यह सब बातें मुझे अत्यधिक प्रभावित किया और मैं सी.आर.आई. से करीब हुआ। मैं आशा करता हूं कि अब मैं सी.आर.आई. को और ज्यादा पत्र भेजूंगा। और हर तरह का प्रयास करूंगा, ताकि भारत में अधिक से अधिक लोग सी.आर.आई. से जुड़े और उन्हें पत्र ई-मेल से अवगत कराएं। मैं उन लोगों का आभार व्यक्त करता हूं। जिन लोगों ने मुझे चीन आने का निमंत्रण दिया और मेरा स्वागत किया। उन का मैं भी भारत आने का स्वागत करता हूं। और उन लोगों को मैं भारत में अपने यहां ठहराऊंगा। और साथ साथ सुन्दर स्थानों का भ्रमण कराऊंगा। इसी के साथ आज का दौरा समाप्त करता हूं। धन्यवाद।
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