आज प्रातः 8 बजकर 30 मिनट पर बस पर सवार होकर लंबी दीवार की तरफ़ चले। कई घंटे बाद दूर से ही ऊंचा पहाड़ जिस पर बनी सीढ़ियां जगह जगह सीढ़ियों के बीच में छोटा बड़ा घर दिखाई दिया, जिस के बारे में चंद्रिमा जी से पूछा, तो उन्होंने बताया इस का नाम है फ़ोन ह्वो थाए। तो मैंने पूछा कि इस का क्या मतलब?यह तो एक घर है, सीढ़ियों के बीच में जगह जगह बनाने की क्या आवश्यक थी?उन्होंने बताया उस जमाने में दूर संचार का कोई माध्यम नहीं था। यह सूचना का एक केंद्र माना जाता है। जब दुश्मन आक्रमण करने की कोशिश करते थे, यह कोई आकस्मिक घटना या कोई उस तरह की ज़रूरत बढ़ने पर एक घर में आग जलाती जाती थी, तो दूसरे घर तक वह आग दिखाई देती थी। इस प्रकार सभी घर में सूचना पहुंच सकती थी। यह चीज़ मैं देखकर गौर किया, तो सच मैं ऐसा लगा कि उस जमाने में दीवार बनाने वाले बहुत ही अनुभवी व ज्ञान रखते थे। क्योंकि 6300 से ज्यादा किलोमिटर की दीवार पर घर बनाकर एक दूसरे को सूचना देना यह कोई आसान काम नहीं था। इसलिये मैं देखा तो दीवार कहीं पर कुछ दूर तक सीढ़ियां बिल्कुल नीचे की तरफ़ कुछ दूर ऊपर की तरफ़ दिखाई देती थी। कहीं पर ऐसा लगता था जैसे हम किसी लंबी ट्रेन पर बैठकर सफर कर रहे हैं। और कोई ऐसा मोड़ आया है कि हम अगले डब्वे बैठकर पिछले डब्बा कुआं की तरह गोल। कोई वस्तु देख रहे हैं, इस तरह की जगह जगह दीवार प्रतीक हो रही थी। सच में उस पर घूमने का आनन्द ही बिल्कुल अलग थलग है। क्योंकि मैं भारत में बनी इमारत जैसे गोलकुन्डा, भूलभूलैया आदि को देखा है। अच्छा तो है, लेकिन दूरी बहुत कम है, जिस की वजह से सफर बहुत जल्द खत्म हो जाता है। लेकिन चीन की दीवार वह दीवार है कि हम विश्व प्राकृतिक धरोहर में शामिल ताजमहल, इफेलटावर, इस्टेचू आफ़ लिबरटी, लंदन का पुल आदि को कुछ समय में पूरी तरह देख सकते हैं, लेकिन चीन की दीवार को देखने के लिये हमें एक लंबा समय चाहिए। तभी हम पूरी तरह दीवार से आनन्दित हो पाएंगे। इसलिये मेरे अनुभव से ऐसा मालूम हो रहा है कि विश्व धरोहरों में शामिल की गयी चीन की दीवार का स्थान प्रथम होगा। इस के बारे में विश्व के अधिकांश लोग जानते हैं कि चीन की दीवार बहुत लंबी है। यह तो सच है लेकिन वहां पहुंचकर देखने का अनुभव अलग तरह का ऐहसास दिलाता है कि आधुनिक दौर में इस तरह की कोई चीज़ बनाने के लिये नहीं कोई जगह मिलेगी, नहीं कोई ऐसे वैज्ञानिक, इन्जिनियर है, जो कि इतनी लंबी दूरी का सही ढंग से सर्वे कर सकें। इसलिये उस दौर के लोगों के पास एक अलग तरह का अनुभव था, जिस की तुलना नहीं की जा सकती। उस दौर के बताए हुए और बनाए हुए बातों को लेकर आज के दौर में सब कुछ होता है। इसलिये हमें सच में उन लोगों की बताई बातों पर गौर करना चाहिये, और कुछ सीखना चाहिए। इतनी पूरानी दीवार पर मैं एक विशेषता और देखी कि कहीं किसी तरह का दरार नहीं देखने को आया। यह बात मुझे समझ में नहीं आई कि आखिर उस दौर में इस तरह का सामग्री प्रयोग में लाई जाती थी कि उस की आयु इतनी लंबी है। इतना कुछ देखने में हम बहुत दूर पहुंच गये थे। देर होने के कारण हम सब लोगों की वापसी हुई और भोजन किये। फिर हॉटल आये। उस के बाद फिर आराम करने के बाद हम सभी लोग पैदल बाजार करने निकले। जिस में सभी लोग अपने ज़रूरत के अनुसार सामान खरीदें। बाजार करते समय हम यहां देखे कि चाहें चीनी हूं, या विदेशी हूं, किसी से एक पैसा ज्यादा नहीं लिया जा सकता। क्योंकि छोटी दुकान से लेकर बड़ी दुकान तक हर सामान का कम्प्यूटर से बिल निकालकर दिया जाता है। जिस की जांच कहीं से भी कोई कर सकता है। यहां तक कि अगर आप किसी यातायात की टैक्सी पर बैठे हैं, तो भी कम्पयूटर से बिल दिया जाता है। चाहें वह सरकारी कार हो या प्राइवेट। यह इमानदारी और अच्छाई देखकर मैं बहुत आक्रशित हुआ। और ऐहसास हुआ कि चीन को विकसित होने का भविषय में पूरा पूरा मौका है। क्योंकि इमानदारी से ही देश की उन्नती है। इसी के साथ मैं अपना लेख समाप्त करता हूं। धन्यवाद।