आज प्रातः 7 बजे वूय्वान होटल से नाश्ता करने के बाद होटल के पास खड़ी बस पर सवार हुए और कुछ घंटे बाद लिकेंग गांव पहुंचे। वहां प्रवेश द्वार पर एक वृक्ष देखा, जिस के बारे में चंद्रिमा जी ने बताया इस वृक्ष की आयू 500 वर्षों से अधिक है। यहां लोगों ने अपने बच्चों के स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हैं। वृक्ष देखने में 500 वर्ष का नहीं लग रहा था। इस से मुझे स्पष्ठ हुआ वृक्ष जिस का नाम है च्यांगशू पेड़ को मैं बहुत ध्यानपूर्वक देखा। क्योंकि वहां लिकेंग गांव में जाने का प्रवेश द्वार है। जब प्रवेश द्वार से अंदर गये, तो चंद्रिमा जी ने बताया ली एक परिवार का नाम है। केंग का मतलब है छोटी छोटी नदियां। इसलिये यहां का नाम लीकेंग है। जब गांव में अंदर जाकर देखा, तो सच में छोटी छोटी नदियां दिखायी दी। और उस में मछली भी तैर रही थीं। वहां के लोग उस में अपने कपड़े धो रहे थे। नदी के अगल बगल कतार में लड़की के बनने व समुद्र की मोती की बनी वस्तुओं को बेचा जा रहा था। वहां सभी वस्तु बहुत सन्दर आकार में बनाया गया था। और कम कीमत पर बेचा जा रहा था। वहां का दृश्य हमारे लिये नया व आकर्षक रहा है। उस गांव में आगे बढ़े, तो ली परिवार के मकान को देखा लकड़ी का बना वह मकान बहुत सुन्दर आकार व नक्काशी की गयी थी। चंद्रिमा जी ने बताया, यह मकान बहुत पुराना है। और देखने में पुराना भी लग रहा था। उस मकान की विशेषता को जाना तो मालूम हुआ। मकान में रहने वाली परिवार को बाहर से नहीं देखा जा सकता, लेकिन अंदर से परिवार के सदस्य सभी को देख सकते हैं। यह मुझे अच्छा लगा। क्योंकि परिवार के लिये पर्दा जरूरी है। पहले से चली आयी पर्दा करने की परंपरा आज लोगों के बीच से समाप्त हो रही है। उसी गांव में और बहुत से भवन हैं। जिस में एक भवन ऐसा है, जिस में खाद्य पदार्थ बहुत अधिक रहने से चुहों की संखया बहुत है, और उस भवन में महमानों के लिये विशेष द्वार भी है। जब महत्वपूर्ण महमान आते हैं, तो दोनों द्वार खोल दिया जाता है। चांगशी के वृक्ष के छोटे छोटे टुकड़े बेचे जाते हैं। और पर्यटक बहुत शौक से उसे खरीद रहे हैं। वूय्वान गांव में ही जहां देखा लकड़ी के बने घर जिस को आज बनवाने में बहुत मुश्किल हो सकता है। उस भवन पर नक्शा ऐसा बनाना गया है। आज के दौर में उस तरह का भवन बनवाने में बहुत खर्च आएगा। उस तरह की सफाई वाली कला मुश्किल से ही बन पाएगी। ऊंचा भवन केवल लड़की पर खड़ा है। मैं बहुत आकर्षित हुआ और फोटो भी खींचवाया। चंद्रिमा जी से मालूम हुआ, इस भवन में जो वूय़्वान गांव में है, योजना व सभा आयोजित होती थी। जब वूय्वान गांव के दौरे समाप्त हुए, तो होटल पहुंचे, और दोपहर का भोजन हुआ। मछली बिल्कुल भारत की भांति बनी थी। भोजन के बाद श्याओछी गांव पहुंचे। वहां तरह तरह के पर्यटक दिखायी गयी। और श्याओ छी शैली के बने वस्तुओं को देखा। जिस को बेचा जा रहा था। वस्तुओं की तरफ मैं बहुत आकर्षित हुआ। श्याओ छी गांव में सब से पुराने भवन पहुंचे। जिस का नाम है शकन, जहां मैं देखा अधिक आयू के व्यक्ति रहते हैं। और भवन की पुरानी व उसी शैली की बनी हुई थी। मुझे वहां कुछ देर के लिये अच्छा नहीं लगा, लेकिन थोड़ी देर बाद जब वहां के लोगों से बात की, तो उन्हें की तरह मैं भी मिल गया, और बहुत अच्छा लगने लगा। क्योंकि पुराने लोग पुराना भवन उन के इरादे नये हैं। वहां उसी समय का कुआं देखा कुआं में पानी का स्तर बहुत उपर था। पुराने समय में एक कुआं जिस में वहां के लोग कपड़े धुलते थे, और दूसरा जिस में पानी पीते थे। श्याओ छी गांव में ही मिन राजवंश में निर्माण किया गया भवन देखा। आज भी वह बहुत सुन्दर है। वह भवन दो भाईयों का है। जो चाय के बहुत बड़े व्यापारी थे। उन के भवन के आगन में ऐसी जगह बनायी गयी है जिस में बारिष का पानी संचय एकत्रित हो जाता है। इस के बारे में चंद्रिमा जी से पुछा, तो मालूम हुआ पानी आया है, नहीं छोड़ेंगे। चीन में पानी का बहुत ही महत्व है। पानी सम्पत्ती का द्योतक है। यह बात मेरे हृदय में बस गयी, पानी को उतना ही महत्व देना चाहिए, जितना की चीन में दिया जाता है। वूय्वान के इस दौरे से हमें जो सीखने को मिला, वह कभी भी भूलने योग्य बात नहीं है। हमारे जीवन के ब्योहार के लिये और मेरे इस सीख से दुसरों को थोड़ा बहुत ज़रूर ज्ञान होगा। और उस से लाभ उठायेंगे। अब हम चलें सान छिंगशान वूय्वान गांव से करीब 3 घंटे में पहुंचे। सान छिंगशान जहां बस पर बैठे बैठे पहाड़ों के सु्न्दर सुन्दर दृश्यों का नाजारा दिखा। जो बहुत ही सुन्दर है। बस कभी उपर कभी नीचे चलती रही। पहाड़ों के भीतर घुमती रही। कभी बीच से तो कभी बिल्कुल किनारे जो दिल को दहला देती थी। कुछ घंटों तक सान छिंगशान पहाड़ों के बीच में बस ने चक्कर मारा तो जाकर सान छिंगशान होटल आया, और जैसे ही होटल पहुंचे, चीनी समयानुसार शाम को 5 बजकर 30 मिनट हो गये थे। और शाम का भोजन आरंभ हुआ। भोजन करते समय दिल में खुशी थी कि भोजन करने के बाद हम अभी सान छिंगशान पहाड़ का नजारा लेंगे। लेकिन भोजन करने के बाद रात के करीब 8 बज गये, जिस के कारण होटल के कमरे में ही रहना पड़ा क्योंकि पहाड़ में और सड़क पर रोशनी नहीं है।