प्रोफेसर सलिल मिश्रा
भारत के दिल्ली में इगनों में कार्यरत प्रोफेसर व इतिहासकार
कुछ दशक पहले दुनिया में आतंकवाद का विस्तार और आतंक ऐसा नहीं था जैसा वह आज है। आज आतंकवाद के प्रभाव से दुनिया का शायद ही कोई देश बचा हो, विशेष कर आतंकवाद की काली छाया दक्षिण एशिया में काफी गहरी है। यह भी सच है कि आम तौर पर आतंकवाद का शिकार होने वालों में वह आम जन होते हैं, जिन का राजनीति से कोई लेना देना नहीं होता, बसों में ट्रेन में, भीड़भाड़ वाली जगहों पर बाजार में होटल में जब बम विस्फोट होते हैं तो मरने वालों में आम जन ही होते हैं। लगभग सभी सरकारें आतंकवाद से लड़ने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन यह कोशिश किस हद तक कारगर हुई है। यह हम देख ही सकते हैं। आतंकवाद को यदि जड़ से खत्म करना हो तो सब से पहले आतंकवाद को, आतंकवाद के कारणों को समझ कर उस की जड़ पहचानना जरूरी है। आतंकवादियों को मार कर आतंकवाद को खत्म नहीं किया जा सकता। जरूरत उस विचार को खत्म करने की है या जीतने की है जो आतंकवाद का कारण बनता है। वास्तव में आतंकवाद क्या केवल कुछ ऐसे लोगों की इच्छाओं की हिंसक अभिव्यक्ति है जो अपनी इच्छाओं को उपलब्ध सिस्टम में पूरा होने की प्रति आशावान नहीं है या आतंकवाद एक पुष्ट विचारधारा से प्रेरित होता है और धर्म राजनीति से भी ताकत ग्रहण करता है। आतंकवाद और इसके अन्य पहलुओं को समझने के लिये हम ने भारत के दिल्ली में इगनों में कार्यरत प्रोफेसर व इतिहासकार सलिल मिश्रा से बात की।