चीनी समयानुसार 6 बजे प्रातः सोकर उठा, जब कि मैं घर यानि भारत में 7 बजे सोकर उठता हूं। चीन के लुशान होटल में सुखमय रात ने मुझे शीघ्र उठा दिया। क्योंकि हृदय में वो बैचेनी थी और सुबह 9 बजकर 30 मिनट लुशान पहाड़ पर पुरस्कार वितरण समारोह देखने का यह सुनहरा दृश्य बार बार मेरे दिमाग में आ रहा था। लेकिन 9 बजकर 30 मिनट का समय होने में करीब 3 बजकर 30 मिनट बाकी थे। जब तक मैं होटल के कमरे में अपनी तैयारी कर दी। किसी तरह दो घंटे का समय और व्यतीत हुआ। उसी समय नाश्ता का समय हुआ। करीब 8 से 8 बजकर 30 मिनट तक भोजन की तरह नाश्ता हुआ। नाश्ता के बाद होटल के कमरे में आये और फौरन लूशान पहाड़ पर पुरस्कार वितरण समारोह की तैयारी हुई। और सी.आर.आई. के समस्त स्टाफ और च्यांगशी ज्ञान प्रतियोगिता के सभी विजेता होटल के द्वार पर पहुंचे। खड़ी बस पर सवार होकर लुशान पहाड़ पर पुरस्कार वितरण समारोह के स्थल तक पहुंची। वहां देखा तो चीनी रीति रिवाज के अनुसार वादन हो रहा था। वहां उन के साथ फोटो खींचवाया। थोड़ा आगे बढ़े तो कुर्सियां लगी हुईं थीं। सभी कुर्सियों पर च्यांगशी ज्ञान प्रतियोगिता के विजेताओं के नाम लिखे हुए थे। अपना अपना नाम देखकर कुर्सियों पर बैठा गया। वहां सभी का स्वागत हुआ। और स्टेज पर फोटो भी खींचा गया। सी.आर.आई. के नेता मा बो ह्वेई व च्यांगशी पर्यटन ब्यूरो के अधिकारी मौजूद थे। और भाषण दिये। उसी का अनुवाद चंद्रिमा जी लगातार मुझे बताती रही। उन की कही बातों से अवगत कराती रही। थोड़ी देर बाद पुरस्कार वितरण हुआ, और सभी श्रोताओं ने पुरस्कार का स्वागत किया। और हमारी बस वापस उस स्थान पर गयी। जहां पांच धर्मों के लोग आबाद हैं। वहां देखा तो जगह जगह ऐसे निशान बनाये गये हैं, जिस को देखने के पश्चात् तुरंत जाना जा सकता है कि ताओ धर्म, इसाई धर्म, यहूदी धर्म, इस्लाम, बौद्ध धर्म आबाद हैं। हर धर्म के निशान पर फोटो खींचा गया। ताकि ऐसे लोगों को यकीन हो सके, जो अभी च्यांगशी की यात्रा पर नहीं आये। उस स्थान से बस अब होटल की तरफ़ चलने लगी। क्योंकि समय दोपहर के भोजन का हो चुका था। और 15 मिनट में बस होटल में आ ही गयी। सभी लोग अपने अपने रूम में गये, और फौरन वापस भोजनालय में पहुंचे, लगभग एक घंटे तक भोजन हुआ। और थोड़ा सा आराम किया गया। 1 बजकर 30 मिनट पर बस पर सभी लोग सवार हुए। मेइ लु विला संग्रहालय पहुंचा गया, जहां चांग काई शिक के अनेक फोटो व उन की पत्नी के फोटो देखे गये। और पुरी तरह उन के इतिहास को चंद्रिमा जी ने पढ़कर हिन्दी में मुझे बताया। जानकर मैं बहुत प्रभावित हुआ। उस के बाद उस स्थान पर चंद्रिमा जी ने लिवाकर गयी, जहां चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का अधिवेशन हाल मौजूद है। वहां अधिवेशन में स्वागत के लिये चाय के कप और प्याला सैड़कों कुर्सियों पर सजाकर रखा गया है। यह सुन्दर दृश्य देखने का अवसर मिलने से मैं वापस भारत पहुंचकर अपने विभाग व दोस्तों के बीच प्रचार-प्रसार करूंगा, ताकि जो भी दोस्त, चीन की यात्रा करें, वह च्यांगशी के सुन्दर लुशान की यात्रा से वंचित न हों। इस के बाद लुशान पर्तव का नजारा दिखने लगा। ऐसा उतार-चढाव वाला रास्ता जैसे लग रहा था कि हम ताड़ के पेड़ पर चढ़ उतर रहे हैं। रास्ते में एक सुन्दर झील दिखायी दी। जब वहां बस से उतर कर देखा तो अनेक तरह की रंगबिरंगी मछलियां तैर रही थीं। वहां एक फोटो चंद्रिमा जी ने तुरंत लिया। और बस लुशान पर्वत पर चढ़ने लगी। इस तरह करीब 45 निमट में लुशान की वह जगह आयी, जहां सुन्दर घाटी के नाम से जानी जाती है। बस स्टैंड पर खड़ा हुआ और हम लोग पैदल घाटी में चढ़ने लगे। 302 वर्ग किलोमीटर भूभाग में घिरा लूशान पर्वत का मुख्य शिखर समुद्र सतह से 1400 की.मी. ऊंचा दिखाया दिया। अच्छा जल प्रपात, हरे भरे देवदार के पेड़ विभिन्न रूपों में हरे भरे लूशान की सुन्दरता में चार चांद लगा देता है। पैदल चलते लचले फोटो खींचते खींचते पर्वत की चोटी से निचले हिस्से तक आये। इस आनन्दमय दिन ने थकावट का एहसास ही नहीं होने दिया, लुशान की घाटी में इतनी अधिक विशेषता देखी, जिस का वर्णन करने में कई दिन लग सकता है। भारत में उत्तर प्रदेश के चुनार, हैदराबाद आंध्रप्रदेश का जुबली हिल, बनजारा हिल, केरल का कालीकट मिला दिया जाए, तो लुशान पर्वत की अपेक्षा सुन्दरता कम पड़ जाएगी। लुशान पर्वत के सौदर्य देखने व फोटो खींचने के बाद बस होटल की तरफ़ रवाना हुई। और 15 मिनट में हम सभी लोगों ने लुशान के पांच तारा होटल में प्रवेश किया। कमरे में पहुंचकर थोड़ा आराम किया, उस के बाद शाम का भोजन हुआ। उस दौरान डांस, गाना भी करना पड़ा। वापस कमरे में लौटे, रात का समय नौ हो चुका था।