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चीन में स्कूली शिक्षा
2011-04-29 16:56:50
पृष्ठभूमि

दोस्तो,हर समाज के चहुंमुखी विकास में शिक्षा की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है यह तो आप जानते ही हैं,तो आप यह जानने के लिए भी उत्सुक होंगे कि दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक ताकत के रुप में उभर कर सामने आने वाले चीन में शिक्षा की क्या स्थिति है। तो आएं, चीन में सब से पहले स्कूली शिक्षा के बारे में कुछ जानकारी हासिल करें।लेकिन इस से पहले यह देखें कि चीन में शिक्षा का व्यापक परिदृश्य कैसा है।

सन 1949 में चीनी जन लोक गणराज्य की स्थापना से पहले चीन में सामंती व्यवस्था थी जिस में किसानों,मजदूरों और महिलाओं को शिक्षा से पूरी तरह दूर रखा गया था।नए चीन की स्थापना के बाद सर्वजन को शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य चीन ने सामने रखा।शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रयोग किए गए।यह तो आप जानते ही हैं कि हर प्रयोग हमेशा सफल नहीं होता....आगे बढऩे वाले के रास्तों में रुकावटें भी आती हैं और पहाड़,गडडे भी ...इसी तरह चीन में भी 1966 से 1976 की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रयोग किए गए उन का नुकसान उस समय की पीढ़ी को उठाना पड़ा जब सब स्कूल कालिज और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए और यह माना गया कि बुद्दिजीवियों को गांव में जा कर किसानों से शिक्षा हासिल कर जमीनी सच्चाईयों को जानना चाहिए।इस प्रयोग की खामियां भी तुरंत ही सामने आ गईं और इस का परिणाम यह हुआ कि देश में आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के लिए जरुरी तकनीशियनों,प्रोफेशनलों,अध्यापकों और पढ़ेलिखे लोगों का अकाल सा पड़ गया।

लेकिन चीनी शिक्षा में सुधार जारी रहा। तंग श्याओ पिंग के नेतृत्व में चीन ने शिक्षा में उदार दृष्टि से सुधार किए और आज स्थिति यह है कि चीन में सारी जनता तक शिक्षा पहुंचाने का लक्ष्य लगभग पूरा हो गया है।

1986 में शुरु हुई 6 से 15 वर्ष तक के आयु वाले विद्यार्थियों के लिए नौ वर्ष की अनिवार्य शिक्षा की दर छह साल पहले 96 प्रतिशत थी।चीन में साक्षरता दर 92 प्रतिशत है जिस में महिलाओं की साक्षरता दर 88 प्रतिशत और पुरुषों की 96 प्रतिशत है।चीन में प्राथमिक स्कूलों की संख्या 4 लाख है जिन में कोई 1 करोड़ 80 लाख छात्र पढ़ते हैं।जूनियर स्कूलों की संख्या 62431 है जिन में 1 करोड़ 90 लाख छात्र पढ़ते हैं,और सीनियर स्कूलों की संख्या 31 685 है जिन में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 90 लाख है। इस के अलावा वोकेशनल संस्थानों की संख्या 32000 है जिन में प्रशिक्षण पाने वाले छात्रों की संख्या 30 लाख है।

शिक्षा पद्धति: ; व्यापक जनता तक शिक्षा पहुंचाने के लिए चीन में कई तरह के स्कूलों की योजना बनाई गई है।यहां प्री-स्कूल हैं,किंडरगार्टन हैं,ऐसे विद्यार्थियों के लिए जो देख सुन नहीं पाते या जिन में विशेष योग्यता है उन के लिए विशेष स्कूल हैं,। इस के अलावा प्राथमिक स्कूल हैं,सैकेंडरी स्कूल हैं,जिन में जूनियर और सीनियर माध्यमिक स्कूल, सैंकेडरी टीचर स्कूल,सैकेंडरी तकनीकी स्कूल,वोकेशनल स्कूल और सैकेंडरी प्रोफेशनल स्कूल शामिल हैं।

विशेष स्कूल...चीन में विशेष स्कूल भी हैं जहां मेरिट के आधार पर छात्रों को भर्ती किया जाता है और इन स्कूलों को सरकार की ओर से अधिक सुविधाएं मिलती हैं और यहां से निकलने वाले छात्रों को अच्छे उच्च स्कूलों में प्रवेश मिलना आसान होता है। लेकिन विशेशज्ञों ने इन स्कूलों की स्थापना पर प्रश्नचिंह भी लगाए हैं और बहुत से प्रांतों ने जैसे छांगछुन,शनयान,शनचन,श्यामन आदि ने विशेष स्कूलों को खत्म कर दिया है। अंग्रेजी की शिक्षा तीसरी कक्षा से दी जाने लगती है।लगभग हर स्कूल में सप्ताह में एक दिन विद्यार्थियों को सामुदायिक कार्य भी करना होता है। विद्यार्थियों को अक्सर समूहों में बंट कर काम करना होता है ताकि वह मिल जुल कर रहना और काम करना सीख सकें।जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए स्कूल और कक्षा की आम सफाई का काम छात्रों को ही बारी-बारी से करने को दिया जाता है।नौ साल की अनिवार्य शिक्षा में शहर और गांव में दी जाने वाली शिक्षा में फर्क को कम करने के प्रयास किए गए हैं।गावों में दी जाने वाली शिक्षा में फसल के मौसम को ध्यान में रखा जाता है,छुटिटयों को,कक्षाओं को आगे-पीछे खिसकाया जा सकता है।वोकेशनल और तकनीकी शिक्षा को इस में शामिल किया गया है।

आप यह जानने कि लिए भी इच्छुक होंगे कि आम स्कूलों में एक टिपीकल दिन कैसा होता है......

आम तौर पर स्कूल सुबह सात बजे शुरु हो जाता है,हर कक्षा 45 मिनट की होती है और खाने की छुटटी के अलावा शाम तक कक्षाएं लगती है.वैसे तो कक्षाएँ केवल पांच दिन लगती हैं लेकिन बच्चों को सप्ताह की छुटटी होने पर भी छुटटी नहीं होती......परिवार में केवल एक बच्चा होने के कारण और चीन में तेजी से विकास होने के कारण नौकरी पाने,अच्छी नौकरी पाने के लिए अच्छे स्कूलों में उन के बच्चे शिक्षा पाएं,यह चिंता हर मां बाप को, विशेष कर शहरों में रहने वाले मां बाप को अधिक रहती है।माध्यमिक स्कूल पहला ऐसा एक पड़ाव है जिस में प्रवेश पाने के लिए विद्यार्थियों को प्रवेश परीक्षा में ,से गुजरना पड़ता है,हर शहर में कुछ स्कूल अन्य स्कूलों की अपेक्षा अधिक अच्छे माने जाते हैं और उन में प्रवेश लेने के लिए प्रतियोगिता भी बहुत कड़ी होती है।अच्छे माध्यमिक स्कूल में उन के बच्चे प्रवेश लें इस के लिए चूहा दौड़ लगी रहती है जिस का खामियाजा बच्चों को झेलना पड़ता है,उन के सप्ताहांत खेल,आराम,की जगह निजी कक्षाएं ले लेती है।....

ऐसे ही एक बच्चे से हम ने पूछा तो उस ने बताया कि शनिवार को उसे स्कूल तो नहीं जाना पड़ता लेकिन सुबह दो घंटे के लिए प्यानों सीखने के लिए जाना पड़ता है,और दोपहर बाद एक घंटे के लिए अंग्रेजी की क्लास लगानी पड़ती है और रविवार को तीन घंटे गणित पढ़ने के लिए जाना पड़ता है,और बाकी समय स्कूल से मिला घर का काम करना होता है।

और जब हम ने एक बच्चे के माता पिता से पूछा कि क्या उन्हें नहीं लगता कि वे अपने बच्चे पर बहुत अधिक बोझ डाल रहे हैं तो उन्होंने कहा कि जीवन में प्रतियोगिता बहुत कठिन है और बच्चा यदि खेल कूद में ही समय बिताता रहा तो आगे जीवन में पिछड़ जाएगा।शहरी जीवन में और तेजी से विकास कर रहे समाज के सामने ऐसी स्थितियां आती ही हैं,जिन्हें अच्छे बुरे की कसौटी पर रख कर परखना संभव नहीं है,शायद यदि हमारा अपना बच्चा हो तो हम भी वही करेंगे जिसे हम गलत मान रहे हैं।

बच्चों को अच्छे स्कूलों में डालने की चूहा दौड़ के अलावा एक और बुखार ने शहरी चीनी समाज को अपनी चपेट में ले रखा है।वह है अंग्रेजी सीखने की दौड़।अंग्रेजी सिखाने के स्कूल शहरों में कुकरमुत्तों की तरह उग आए हैं।अंग्रेजी सीख कर रोजगार के अवसर बढेंगे और अच्छी नौकरी मिलेगी,यह सोच कर हर व्यक्ति अंग्रेजी सीखने में लगा है।इस तरह के स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापक एक लाख रुपए तक की तनख्वाह पा रहे हैं,जब कि उन की तुलना में चीनी अध्यापक जो मेहनत भी अधिक करते हैं और उन की तनख्वाह भी कम होती है।लेकिन जो बच्चे अब हाई स्कूल में और विश्वविद्यालय में पहुंचे हैं उन के सामने ऐसी समस्या नहीं है,पिछले दस साल से अंग्रेजी पर जो ध्यान दिया गया है उस का परिणाम यह है कि स्कूलों,कालिजों और विश्वविद्यालय में पढऩे वाले छात्रों की अंग्रेजी बहुत अच्छी है। गांवों में स्थिति जरुर ऐसी नहीं है।..............

दोस्तो,इस के अलावा शिक्षा की बात करते हुए हम उन की भी बात करें ऐसे बच्चों की,जिन पर कुदरत की खास मेहरबानी होती है,कुदरत उन की मेहनत,हिम्मत और सहनशीलता की परख के लिए उन्हें जीवन में हम से कुछ अलग,कुछ विशेष बना कर भेजती है या उन की परीक्षा लेने के लिए उन के सामने ऐसी दीवार खड़ी कर देती है जिसे तोड़ कर उन्हें आगे बढ़ना पढ़ता है और हम उन्हें अपनी नादानी में समाज के हाशिए पर रख कर भूलने की गुस्ताखी करने से पीछे नहीं हटते और यह भूल जाते हैं कि वे हम में से ही एक हैं,हम से कुछ अधिक संवेदनशील,कुछ अधिक मानवीय,कुछ अधिक खूबसूरत और कुछ अधिक शक्तिशाली।

ऐसे विशेष बच्चों को भी शिक्षा की जरुरत होती है,उसी तरह जैसे हमें होती है।ऐसे बच्चों के लिए चीन में 1600 से अधिक स्कूल हैं जहां 4 लाख से अधिक ऐसे छात्र शिक्षा पा रहे हैं।ऐसे बच्चों के लिए 1800 से अधिक वोकेशनल प्रशिक्षण केंद्र हैं,3000 से अधिक मानक वोकेशनल प्रशिक्षण और शैक्षिक संस्थान हैं जहां ऐसे बच्चों को भर्ती किया जाता है।और 1700 से अधिक प्रशिक्षण देने वाली ऐसी संस्थाएं हैं जहां सुन बोल न सकने वाले बच्चों को प्रशिक्षण दिया जाता है।ऐसी ही एक छात्रा से हम ने बात करके जानने की कोशिश की कि उस का जीवन कैसा है,किस तरह की शिक्षा वह हासिल कर रही है.......

श्यु छंग 22 साल की एक खूबसूरत लड़की है,आज से नौ साल पहले उस की आंखों की रोशनी धीरे-धीरे पूरी तरह चली गई।किसी भी व्यक्ति के लिए यह घटना सिर पर पहाड़ टूटने जैसी हो सकती है।लेकिन श्यु छंग ने इस दुर्भाग्य को बड़ी हिम्मत के साथ और मन को चट्टान बना कर झेलते हुए जीवन का सामना करने का फैसला किया।स्कूल की पढ़ाई पूरी करके श्यु छंग ने ल्यन ह विश्वविद्यालय़ में दाखिला ले लिया और वह चिक्तिसा मालिश में पिछले एक साल से वह बेजिंग में अध्ययन कर रही है।ल्यन ह विश्वविद्यालय में हर तरह के ऐसे छात्रों के लिए शिक्षा की सुविधा उपलब्ध है जो शारीरिक रुप से किसी न किसी रुप से कमजोर हैं।श्यु छंग की रुचि पढ़ने में और संगीत सुनने में है। उस ने बताया कि जो छात्र देखने में सक्षम नहीं हैं उन के लिए मुख्य रुप से दो विषय होते हैं जिन में वे विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं।एक संगीत और दूसरा चीनी चिकित्सा मालिश।इन दोनों विषयों में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद उन्हें काम मिलना आसान होता है। श्यु छंग की आशा है कि बी ए करने के बाद वह किसी चीनी चिकित्सा अस्पताल में काम करेगी।मां बाप के बारे में पूछने पर उस ने बडे उत्साह से बताया कि मां बाप उसे बहुत प्यार करते हैं,वे दोनों मजदूरी करते हैं। श्यु छंग से बात करके पता चला कि हालांकि प्रकृति ने उस के साथ जरुर अन्याय किया है लेकिन अध्ययन करने की उस की चाह में कोई विशेष रुकावट नहीं आई।वह अन्य सामान्य छात्रों की तरह ही एक विश्वविद्यालय में शिक्षा हासिल कर रही है,जब कभी समय मिलता है तो साथियों के साथ वह भी घूमने बाहर जाती है,खाने में उसे तीखा खाना पसंद है,भारतीय संगीत भी उसे पसंद है लेकिन उस ने कहा कि वह समझ नहीं पाती गाने के बोल के क्या अर्थ हैं।जब मैंने उस से पूछा कि उस की अंग्रेजी कैसी है तो मुझे सचमुच यह जान कर आश्चर्य हुआ कि उस की अंग्रेजी काफी अच्छी है लेकिन उस ने कहा कि अभ्यास करने का मौका नहीं मिलता,यह समस्या आम तौर पर अंग्रेजी सीखने वाले सभी छात्रों के सामने आती है क्यों कि चीन में हर काम चीनी भाषा में ही होता है,चीनी भाषा में पढ़ाई,चीनी टीवी.चीनी फिल्में ,आपस में चीनी में ही बात की जाती है,तो अंग्रेजी बोलने का अवसर कहां और कैसे मिलेगा।

लेकिन शत प्रतिशत शिक्षा का विस्तार होने से हर व्यक्ति को जीवन में अपने सपने पूरे करने का अवसर जरुर मिल रहा है।क्या यह कम बड़ी बात है।

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