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दिनांक 2011-04-23
2011-04-24 17:08:21

गाँवों में सबसे सुंदर वू युवान गाँव

आज कितने सालों के बाद मुझे पहली बार मुर्गे की बाग की आवाज सुनाई दिया। पहले तो कानों को विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब बार-बार एक ही आवाज सुनाई दिया तो पता चल गया कि यह तो शहर की गूँज में खो गई मुर्गा के बांग देने की आवाज है। जब मैं छोटा था तो गाँव में अक्सर यह आवाज सुनाई देती थी। आज सुबह लगभग 5 बजे जब वही जानी-पहचानी आवाज कानों में पड़ी तो मैं जग गया, और मुँह-हाथ धोकर आवाज कि दिशा में चल पड़ा। कुछ दूर आगे जाने पर मुर्गों को एक झुंड दिखाई पड़ा जो अपनी आवाज से लोगों को सुबह होने का एहसास करा रहा था। पहले के जमाने में जब लोगों के पास घड़ी नहीं हुआ करता था तो सभी लोग मुर्गा पर ही आश्रित होते थे।

यह अच्छा ही हुआ कि मैं इतनी सुबह जग गया और बाहर निकल पड़ा। बाहर मौसम बहुत सुहावना था। हवा में ताजगी का एहसास था और मिट्टी से सोंधी-सोंधी खुशबु आ रही थी। अबतक तो आपको पता चल ही गया होगा कि मैं एक गाँव में था। यह गाँव न केवल अपनी सुंदरता के लिए जाना जाता है बल्कि साफ-सफाई के लिए भी जाना जाता है। हमारा होटल एक छोटी सी नदी के किनारे है। हमारे होटल से सटे ही एक बहुत बड़ा और लंबा बाग है। जब मैं बाग में टहल रहा था तो मुझे बहुत सारे ऐसे दृश्य दिखे जो कि मैं कभी बचपन में देखा करता था। नदी के पानी के उपर धुँआ जमा हुआ था और कहें तो पानी से भाप निकल रहा था ऐसे में नदी के पानी की सुंदरता और बढ़ गई थी। ऐसा लग रहा था मानों किसी ने नदी के उपर सफेद चादर लटका दिया हो, और उस चादर को चिरते हुए सूर्य की रोशनी नदी के पानी पर पड़ने से एक बहुत ही मनोरम दृश्य बन गया था।

मैनें वहाँ पर कई फोटो भी खिंचे जिसमें नदी में सूर्य की परछाईं और नदी के किनारे खड़े पेड़ों की परछाईयां साफ नजर आ रही थी। कुछ दूरी पर नदी में कुछ महिलाएं कपड़ा साफ कर रहीं थीं और आपस में बातचीत भी कर रहीं थी। अगर कहा जाए तो नदी को महिलाओं का मिटिंग हॉल कहा जा सकता है जहाँ पर वे तमाम तरह के सुख-दुख को एक दूसरे के साथ बाँटती है। कुछ दूरी पर मुझे कुछ बुजुर्ग लोग दिखे जो कि नदी के किनारे मछली पकड़ रहे थे। जब मैनें उनसे पूछा तो उन्होनें कहा कि अब तो उनकी आदत बन गई है रोज सवेरे नदी के किनारे मछली पकड़ना और साथ में व्यायाम भी करना। उन्हीं में से एक बूढ़े बाबा ने कहा कि मछली पकड़ना तो एक बहाना है ज्यादातर लोग यहाँ पर करसत करने और एक-दूसरे का हाल-चाल जानने के लिए आते हैं। यह सब सुनकर मेरे मन में विचार आया कि शहर और गाँव में कितना अंतर है। शहर में आपकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है, जबकि गाँव में आपके दुख-दर्द को बाँटने के लिए सभी लोग तैयार होते हैं। वहाँ से वापस मैं अपने होटल नाश्ता करने पहुँचा। हमलोगों ने नाश्ता खत्म करने के बाद वू युवान गाँव का विस्तार से दौरा शुरू किया। वू युवान गाँव, चीन के चियांश शी प्रांत का प्राचीन गाँव है। इस गाँव को वू युवान क्यों कहा जाता है इसके बारे में भी एक कहावत है। चीनी में वू शब्द तीन चीनी लिपि से मिलकर बना है, जिसमें पहले लिपि का मतलब एक हथियार से है, दूसरे लिपि का मतलब सभ्यता से है और तीसरे लिपि का मतलब सुंदर लड़कियाँ है। तो कहा जा सकता है कि इस गाँव के लोग बलवान, गुणवान और रूपवान होते हैं। इसीलिए इस गाँव को वू युवान कहा जाता है। चीन के दक्षिणी भाग के गाँव नदियों के किनारे बसे होते हैं। इस गाँव के बगल से भी एक छोटी नदी बहती है। लेकिन यहाँ पर गाँव एक नहर के किनारे बसा हुआ है। नहर के दोनों तरफ गाँव है और बीच से होकर नहर बहती हुई नदी में जाकर मिल जाती है।

नहर के दोनों किनारों पर मकान व्यवस्थित रूप से बनें हैं। प्रत्येक मकान का पिछला द्वार नहर की तरफ खुला होता है, जिसमें आज भी लोग बर्तन और कपड़े साफ करते हुए नजर आते हैं। मकानों की संरचना ह्वी शैली की है। इस शैली के मकान में चौखट सबसे महत्वपूर्ण होता है। जिस घर का चौखट जितना उँचा होता है उस घर में रहने वाले व्यक्ति की पदवी या इज्जत उतनी ही ज्यादा होती है। यहाँ के मकानों की एक विशेषता है कि मकान अक्सर दो मंजिला होता है और वह इँट का बना होता है। प्राचीन काल में लकड़ी का बना होता था लेकिन आप कह सकते हैं कि आधुनिक काल के मकान इंटो से बने होते थे और उपर का छत खपरैल होता है जिस मामले में चीन की संरचना भारत से मेल खाती है। छत के उपर मेहराब पर अक्सर ड्रैगन या सिंह का मुखौटा होता है। चीन के सभ्यता में 12 जानवर प्रमुख भूमिका निभाते हैं उनमें ड्रैगन और सिंह सबसे महत्वपूर्ण है। हमलोगों ने वु युवान गाँव देखने के बाद, जब गाँव से बाहर आए तो मैं दो चीनी बच्चों से मिला जो वहीं के पास के बगीचे में खेल रहे थे। सौभाग्य से मुझे चीनी भाषा आती है जिसके वजह से मैं उन बच्चों से बात कर सका। वे दोनों बच्चे लगभग चार साल के होंगे। उन्होनें मुझसे कहा कि आज शनिवार है इसलिए वे लोग यहाँ पर खेल रहे हैं। जब मैने उनसे कहा कि मैं उनके घर जाना चाहता हूँ और खाना खाना चाहता हूँ तो वे बिना किसी झिझक के तैयार हो गये और उन्होनें मुझे खाने पर आमंत्रित भी किया। आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि चीन के लोग कितने आवभगत प्रिय होते हैं। चार साल के बच्चों में भी इतनी समझ है कि वे मेहमानों को अपने घर खाने पर आमंत्रित करते हैं।

लेकिन हमलोगों को दूसरे जगह पर भी जाना था इसलिए मैं उनलोगों का आग्रह स्वीकार नहीं कर सका। हमलोगों ने वहाँ से याओ ली प्राचीन काउंटी के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में जब हम दोपहर का भोजन के लिए रूके तो हमें एक लगभग 90 वर्षिय व्यक्ति से मुलाकात हुई और हमने उनका साक्षात्कार भी किया। इस यात्रा के दौरान पहली बार मुझे किसी बुजुर्ग व्यक्ति से साक्षात्कार करने का मौका मिला था। मैने उनसे बहुत सारे प्रश्न किए और चीन के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त किया।

वहाँ से हमलोग याओ ली काउंटी पहुँचे। यहाँ का वातावरण बहुत सुंदर और स्वच्छ है। सभी लोग ग्रामीण हैं। इस जगह का इतिहास भी लगभग 200 साल पुराना है। यहाँ पर मुझे सबसे आश्चर्यचकित करने वाली जो बात दिखी वह था, यहाँ के लोगों का मछली के प्रति प्रेम। एैसे तो चीनी लोग सबकुछ खा सकते हैं लेकिन यहाँ के लोग उनके काउंटी से होकर बहने वाली नदी याओ नदी की मछली नहीं खाते हैं। उनका कहना है कि मछली पानी को साफ रखने में मदद करती है, इसलिए पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए यहाँ के लोग इस नदी की मछळी नहीं खाते हैं।

जानकारी के अनुसार मुझे पता चला कि इस जगह पर हरियाली का प्रसार लगभग 98 प्रतिशत तक है यानि लगभग सभी जगह पेड़ ही पेड़ हैं। इसलिए न केवल यहाँ का वातावरण स्वच्छ होता है बल्कि यहाँ का हवा का शुद्ध होता है। मेरा मन तो जैसे इन लोगों के बीच ही खो गया है। अगर मुझे यहाँ रहने का मौका मिला तो मैं यहाँ से वापस नहीं जाना चाहूँगा इसलिए मैं आशा करता हूँ कि अगर आप लोगों को भी मौका मिले तो इस जगह का जरूर भ्रमण करें।

आज हमलोगों के स्वागत में एक भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। लेकिन सबकुछ आपको आज ही नहीं बता देंगे। इसलिए आप थोड़ा सब्र किजिए, कल के लिए बहुत मिर्च-मसाला है। तबतक के लिए शुभरात्री।

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