आज हमलोग 7 बजकर 30 मिनट पर नाश्ता खत्म कर सम्मोहक चियांग शी का भ्रमण आधिकारिक तौर पर शुरू हुआ। इस कार्यक्रम के आयोजन में चिय़ांग शी प्रांत के पर्यटन विभाग के नेता ने भाषण में सी आर आई के संवाददाताओं का हार्दिक स्वागत किया तथा चियांग शी के पर्यटन के विकास में योगदान देने का स्वागत किया।
हमलोग इस उदघाटन समारोह के बाद लुंग हू पहाड़ के भ्रमण के लिए रवाना हूए। लुंग और हू का मतलब ड्रैगन और बाघ है, इसलिए सटीक रूप से कहें तो ड्रैगन बाघ पहा़ड़ के लिए रवाना हुऐ। इस पहाड का नाम ड्रैगन बाघ पहाड़ इसके आकार से नहीं पड़ा बल्कि चीन के ताओ धर्म से संबंधित है।
इस पहाड़ के बारे में कहानी है कि एक व्यक्ति इस पहाड़ पर अमरत्व की दवा का खोज किया। वह व्यक्ति ताओ धर्म का था, इसलिए यह जगह ताओ धर्म के जन्मस्थली के रूप में भी जाना जाता है। जब उस व्यक्ति ने इस दवा की खोज की उस समय आकाश में बादल का रूप ड्रैगन और बाघ के आकार का था, इसलिए इस पहाड़ का नाम लुंग हू पहाड़ पड़ गया। यह एक ताओ धर्म का कहानी है। लोग इस कहानी को आज भी सच मानते हैं और इसे पीढी दर पीढी बयान किया जाता है।
ताओ धर्म का मुख्य रूप से दो धारा है, जिसमें चीन के दक्षिणी भाग के लोग चंग यी धारा को मानने वाले हैं जब कि उत्तरी भाग के लोग छुएन चेन धारा को मानने वाले हैं। चंग यी धारा के प्रथम गुरू का नाम चांग ताओ लिंग है।
लुंग हू पहाड़ का क्षेत्रफल लगभग 220 वर्ग किलोमीटर है और इसका इतिहास लगभग 2600 साल पुराना है। पहाड़ के इतिहास से मतलब है कि यहाँ के लोगों के जनजीवन का इतिहास लगभग 3000 साल पुराना है। यहाँ से एक नदी भी बहती है जिसका नाम लु शी नदी है। यह नदी लगभग 280 किलोमीटर लंबी है। यह नदी बहुत बड़ी नहीं है लेकिन इसका पानी बहुत स्वच्छ है और सर्दी में इसका पानी नहीं जमता है। इसलिए इसे जीवित नदी भी कहा जाता है। यहाँ पर बहुत सारे पहाड़ हैं जिनमें कुछ पहाड़ बंदर के आकार का है तो कुछ हाथी के आकार का है। हमलोग पहाड़ों से होते हुए ताओ धर्म के एक मंदिर में गये। वहाँ पर हमने बहुत सारे लोगों का साक्षात्कार किया और ताओ धर्म के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त की। वहाँ पर पता चला कि दक्षिणी भाग के ताओ धर्म के अनुयायी विवाह कर सकते थे जबकि उत्तरी भाग के ताओ धर्म के अनुयायी विवाह नहीं करते थे। वहाँ के मंदिर में एक सबसे रोचक चीज देखने को मिला। मैं चीन के बहुत सारे जगहों का भ्रमण कर चुका हूँ लेकिन किसी भी मंदिर में ऐसा दृश्य देखने को नहीं मिला। वहाँ पर दो पेड़ हैं जिसमें एक पेड़ पुरूष जाती का है जबकि दूसरा पेड़ स्त्री जाति का है। और उन दोनों पेड़ों के बीच पति-पत्नी का संबंध था। इसलिए बहुत सारे पर्यटक उस पेड़ को देखने के बाद उसके चारों तरफ ताला लगा देते हैं जिसका अर्थ है कि उनका पारिवारिक संबंध और वैवाहिक संबंध भी सुखमय हो।
उस मंदिर को देखने के बाद हमलोग नौका विहार के लिए गये। अगर आपको लुंग हू पहाड़ की सुंदरता देखना है तो नौका विहार अत्यंत आवश्यक है। वहाँ हमने विभिन्न प्रकार के पहाड़ो को देखा साथ ही हमने नौका विहार का आनंद भी लिया। वहीं हमने एक गाँव का भी भ्रमण किया जहाँ पर मच्छर नहीं पाया जाता है। क्योंकि उस गाँव में एक विशेष प्रकार का पेड़ पाया जाता है जिस पेड़ की सुगंध से मच्छर भाग जाते हैं, इसलिए उस गाँव का नाम मच्छर रहित गाँव है। वहाँ पर हमने चीन के परंपरागत तोउ फू का स्वाद लिया जिसका स्वाद हमें बहुत अच्छा लगा। कुछ लोगों ने तो तीन-तीन कटोरा तोउ फू खाया।
तोउ फू खाने के बाद हमने एक विशेष प्रकार के चिड़िया को भी देखा। कहा जाता है कि तीन चिड़िया कम से कम दो परिवारों का पालन-पोषण कर सकती है। आपको भी आश्चर्य हो रहा होगा कि चिड़िया भला कैसे किसी परिवार का पालन-पोषण कर सकती है। यह चिड़िया मछली पकड़ने में माहिर है और एक दिन में कम से कम 10 किलो मछली पकड़ सकती है। इस मछली को लोग बाद में बाजार मे बेच देते हैं इसलिए इस चिड़िया को बहुत सारे लोग बेटा का भी संज्ञा देते हैं।
वहाँ से हमलोग रस्सी कूद खेल का प्रदर्शन देखने गये। यह खेल सामान्य खेल नहीं है। प्राचीन समय में स्थानीय लोग शवों को दफनाने के बदले उसे लकड़ी के डब्बे में बंदकर पहाड़ों के अंदर डाल देते थे। बहुत सारे इतिहासकार अभी तक इसके बारे में खोज कर रहें हैं कि वे लोग शव को दफनाने के बदले पहाड़ के छेदों में क्यों डाल देते थे। साथ ही लोगों अभी तक पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उस समय लोग उतने उँचे पहाड़ों पर शवों को कैसे ले जाते थे। मुझे भी देखकर बहुत आश्चर्य हुआ कि लोग उतने उँचे पहाड़ों पर शवों को कैसे और क्यों ले जाते थे। हमने वहाँ पर आप कह सकते हैं कि आधुनिक तरिके से शवों को पहाड़ पर ले जाने के तरिके को देखा। इसी का नाम रस्सी कूद खेल है।
उसके बाद हमलोग वापस होटल दोपहर का खाना खाने वापस आ गये। खाना खाने के बाद हमलोग सान छिंग पहाड़ के लिए रवाना हो गये। हमलोग लगभग 4 घंटे की यात्रा के बाद सान छिंग शान पहुँचे। लगभग साढे छ बजे हमलोगों ने रात का खाना खाया और अगले दिन की तैयारी मे लग गये यानि आराम करने चले गये। कल आपको सान छिंग पहाड़ के बारे में सुनाएंगे। तबतक के लिए आप भी आराम किजिए।
शुभरात्री।