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तिब्बती संस्कृति के संरक्षण व लगातार विकास
2011-04-22 16:03:31

यह चाइना रेडियो इन्टरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, "तिब्बत का काया-पलट"नामक सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आप का स्वागत है। दोस्तो, अभी आप ने जो आवाज़ सुनी, वह तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के न्यांगरे लोक कलात्मक मंडल के अभिनेता व अभिनेत्री द्वारा गाए गए तिब्बती ऑपेरा《चोवा सांगमू》का एक अंश है। आज के इस कार्यक्रम में मैं आप को परिचय दूंगी शांतिमुक्ति के पिछले साठ वर्षों में तिब्बत में परम्परागत संस्कृति के संरक्षण व विकास के बारे। आज का सवाल है कि तिब्बतियों की मशहूर महाकाव्य का नाम क्या है?

दोस्तो, तिब्बती ऑपेरा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश समेत तिब्बती बहुल क्षेत्रों में प्रचलित नाच-गान के जरिए प्रदर्शित एक मिश्रित किस्म वाली कला है। इधर के वर्षों में तिब्बत के आर्थिक व सामाजिक प्रगति के चलते तिब्बत में खुलेपन का कदम दिन ब दिन तेज़ विकास हो रहा है । तिब्बती ऑपेरा जैसी प्राचीन सांस्कृतिक वस्तुओं पर एक बार फिर लोगों का ध्यान केंद्रित हुआ है। तिब्बती ऑपेरा की अनेक कहानियां पुनः दर्शकों के सामने आ रही हैं । तिब्बती बंधु ची च्या एक अभिनेत्री हैं, जो 30 वर्ष से तिब्बती ऑपेरा गाने का कार्य कर रही हैं । उन्होंने कहा कि अब वे बहुत जोश से तिब्बती ऑपेरा गाती हैं, पहले ऐसा कभी नहीं हुआ । उन का कहना है:

"बचपन से ही मुझे तिब्बती ऑपेरा गाना पसंद है । लेकिन पहले मैं सिर्फ़ अपने लिए गाती थी । इस कलात्मक मंडल में भागीदारी के बाद हम अच्छे तिब्बती ऑपेराओं का चुनाव कर कार्यक्रम पेश करते हैं । आज चाहे स्थानीय लोग हों या देशी-विदेशी पर्यटक हों, हमारे कार्यक्रम देखने वालों की संख्या बहुत ज्यादा है। इस तरह हमारा मंडल लगातार व्यापक हो रहा है और आर्थिक आय भी बढ़ रही है । मुझे लगता है कि इस का श्रेय सरकार के प्रशिक्षण व प्रेरणा को जाता है ।"

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थानीय सरकार प्राचीन सांस्कृतिक वस्तुओं की खोज, संकलन और विकास में संलग्न है । तिब्बती बंधु चीच्या जैसे कलाकार अपनी पसंदीदा परम्परागत कला में कार्यरत हैं, उन्हें स्थानीय सरकार का संरक्षण भी मिला हुआ है ।

अब आप सुन रहे हैं तिब्बती कथा वाचक द्वारा गाया गया《राजा केसर》की प्रस्तुति का एक अंश। तिब्बती बूढ़े सांगचू तिब्बती महाकाव्य《राजा केसर》के गायन वाचक हैं ।《राजा केसर》तिब्बती जाति का एक महत्वपूर्ण महाकाव्य है , जिस में पौराणिक कथा, लोक काव्य तथा लोककथा आदि के विषय शामिल हैं । इस महाकाव्य में प्राचीन तिब्बत में दसियों स्थानीय राज्यों के बीच जटिल संबंधों व घमासान लड़ाइयों का वर्णन किया गया है, जिस से प्राचीन तिब्बती जाति का जीवन उजागर हुआ है । इस महाकाव्य से तिब्बती जाति के शांतिपूर्ण व सुखमय जीवन की खोज करने की अभिलाषा तथा तिब्बती और हान जाति व अन्य विभिन्न जातियों के बीच घनिष्ठ संपर्क भी जाहिर हुआ है ।

तिब्बती जाति के श्रेष्ठ ऐतिहासिक महाकाव्य《राजा केसर》का विकास वा संरक्षण करने के लिए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने बड़ी कोशिश की है। तिब्बत विश्वविद्यालय, तिब्बत सामाजिक विज्ञान अकादमी आदि अकादमिक संस्थाओं ने भी तिब्बती कथा वाचक सांगचू को आमंत्रित किया है । उन्होंने भाषण दिए हैं और राजा केसर की कहानियां गा कर सुनाईं हैं । इस के साथ ही तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के संबंधित विभागों ने सांगचू जैसे कलाकारों के लिए रिहायशी मकान का बंदोबस्त किया और उन्हें जीवन भत्ता प्रदान किया है ।

वर्ष 1980 से ही तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के संबंधित विभाग हर साल योजनानुसार महाकाव्य《राजा केसर》से जुड़ी एक या दो कहानियां प्रकाशित करते हैं, अब तक ऐसी कुल 30 कहानियां प्रकाशित की जा चुकी हैं ।《राजा केसर》एक ऐसा महाकाव्य है, जिस का विकास कथा वाचक के गायन से किया जाता है, वर्तमान में अधिकांश कथा वाचकों की उम्र ज्यादा है और वे बूढ़े हो गए हैं, यहां तक कि कुछ लोगों का देहांत भी हो गया है। इस तरह《राजा केसर》के बचाव, संकलन कार्य के सामने भारी कठिनाइयां व दबाव मौजूद हैं । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के अधीन जाति अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ श्री रन जंङ ने इस की चर्चा में कहा:

"वर्तमान में हम ने कथा वाचक सांगचू आदि कलाकारों द्वारा सुनाई गई कहानियों को रिकॉर्ड किया है और इन्हें प्रकाशित किया है। यह वर्तमान में हमारा फौरी कार्य है । योजनानुसार पांच से आठ वर्षों के भीतर हम कथा वाचक सांगचू द्वारा सुनाई गईं साठ से ज्यादा कहानियों को प्रकाशित करेंगे।"

लम्बे समय में ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया में तिब्बती जाति ने अपनी बुद्धि से रंगबिरंगी संस्कृति की रचना की है। उक्त तिब्बती ऑपेरा और महाकाव्य《राजा केसर》के अलावा तिब्बत के लोक नृत्य, लोक कथाएं और दूसरी किस्मों वाले ऑपेराओं का इतिहास भी बहुत पुराना है। आज ज्यादा से ज्यादा लोग तिब्बती परम्परागत संस्कृति व कला के संकलन, संग्रहण व प्रकाशन कार्य में भाग ले रहे हैं । वे तिब्बत की प्राचीन व शानदार संस्कृति के संरक्षण व विकास के लिए अपना योगदान दे रहे हैं ।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के अधीन लोक रीति रिवाज़ केंद्र के अनुसंधानकर्ता श्री त्सेरन फिंगत्सो इधर के 20 वर्षों से तिब्बती लोक साहित्य व कला के बचाव कार्य में लगे हुए हैं । उन्होंने कहा कि 20 वर्षों काम करते हुए उन्हें अनुभव हुआ कि देश ने तिब्बती लोक साहित्य व कला के बचाव, संरक्षण को भारी महत्व दिया है। उन का कहना है:

"गत शताब्दी के अस्सी वाले दशक के अंत और नब्बे वाले दशक के शुरू में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में प्राचीन प्रम्परागत संस्कृति बचाव कार्य शुरू किया गया । विभिन्न स्थलों, शहरों व कांउटियों में जातीय सांस्कृति अवशेष बचाव, संकलन व अनुसंधान संस्थाओं की स्थापना हुई । तिब्बती लोक साहित्य व कला की विरासत का बचाव, संकलन, संग्रहण, अनुसंधान, संपादन और प्रकाशन कार्य पर जोर दिया जा रहा है, और इतिहास में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल हुईँ हैं।"

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में पोटाला महल, नार्बुलिंगका भवन और सागा मठ आदि स्थानीय परम्परागत संस्कृति व धार्मिक विश्वास को प्रतिबिंबित करने वाली सांस्कृतिक विरासत ज्यादा हैं । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सांस्कृतिक विभाग के उप प्रधान श्री शिन काओसो ने संवाददाता से कहा कि इधर के वर्षों में चीन की केंद्र सरकार और स्थानीय सरकार ने तिब्बत के मठों के संरक्षण व मरम्मत के लिए भारी धन राशि लगाई है। उन्होंने कहा:

"चीन की मुक्ति के बाद से लेकर पंद्रहवीं पंचवर्षीय योजना यानि वर्ष 1949 से वर्ष 2005 तक सांस्कृतिक विरासतों की मरम्मत के लिए कुल पचास करोड़ चीनी मुद्रा रन मिन बी का अनुदान किया गया है। ग्यारहवीं पंच वर्षीय योजना यानि वर्ष 2006 से 2010 तक देश ने तिब्बत के अनेक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक अवशेषों का और जीर्णोद्धार करने का फैसला किया, जिस के लिए 60 करोड़ य्वान की राशि लगाई जाएगी । इस के साथ ही देश में गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेष से जुड़े सर्वेक्षण व संरक्षण परियोजना लागू की जाने के बाद हम ने क्रमशः देश को दो खेपों में गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासतों को पेश किया है। जिन में देश ने प्रथम खेप वाले विरासतों में से 14 की पुष्टि की है। उन का राष्ट्र स्तरीय विरासतों के रूप में पूंजी लगाकर संरक्षण किया जा रहा है।"

इधर के वर्षों में तिब्बत में आर्थिक व सामाजिक प्रगति व ज्यादा खुलेपन के चलते अंतरराष्ट्रीय समुदाय में तिब्बती संस्कृति दिन ब दिन प्रभावशाली हो रही है। ज्यादा से ज्यादा विदेशी पर्यटक तिब्बत आने लगे हैं। इस के साथ ही तिब्बती संस्कृति के आदान-प्रदान की गतिविधियां भी दिन प्रति दिन सक्रिय हो रही हैं, जिस का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है । विदेशों में सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने कई दल स्थापित किए हैं । मसलन जर्मनी में《चीनी तिब्बती सांस्कृतिक विरासत प्रदर्शनी》और अमरीका में《बर्फीले पठार का मूल्य—तिब्बती सांस्कृति अवशेष प्रदर्शनी》आयोजित की गईं हैं।

प्रिय श्रोताओ, बड़ी मात्रा में तथ्यों से जाहिर है कि तिब्बत की शांतिपूण मुक्ति के बाद से लेकर अब तक पिछले साठ वर्षों में चीन सरकार ने बड़ी तादाद में मानव शक्ति, वित्तीय शक्ति व साज सामान लगाया, जिस से तिब्बत की परम्परागत संस्कृति व जातीय विशेषता का संरक्षण किया गया और इस में बहुत विकास हुआ है। आज के कार्यक्रम समाप्त होने के पूर्व आप से एक बार फिर सवाल पूंछूंगा:तिब्बतियों की मशहूर महाकाव्य का नाम क्या है?अच्छा हमारी सामान्य ज्ञान प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आपका स्वागत है। अच्छा, अब श्याओ थांग को आज्ञा दें, नमस्कार।

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