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दिनांक 2011-04-20
2011-04-21 16:07:14

चाइना रेडियो इंटरनेशनल के प्रतिनिधित्व में सम्मोहक चियांग शी का दौरा आयोजित हुआ। सौभाग्य से मुझे इस दौरे में शामिल होने का मौका मिला। इसके लिए सी आर आई और हमारे हिन्दी विभाग को बहुत-बहुत धन्यवाद।

हमारा दौरा 20 अप्रैल को शुरू हुआ। हमारे दल में विभिन्न भाषा विभाग के लगभग नौ विदेशी विशेषज्ञ और लगभग 20 चीनी सहकर्मी शामिल हैं। आज सुबह 8 बजकर 50 मिनट पर हमलोग सी आर आई के पूर्वी द्वार पर इकट्ठा हुए वहां से 9 बजकर 10 मिनट पर हमारा बस पेइचिंग अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा के लिए रवाना हुआ। हमलोग नियत समय पर हवाई अड्डा पहुंच गए लेकिन विमान में कुछ देरी होने से हमारा विमान चियांग शी प्रांत के राधजानी शहर नान छांग के लिए कुछ देर से रवाना हुआ।

हमलोग शाम के लगभग ढाई बजे नान छांग हवाई अड्डा पर पहुंच गए। वहाँ नान छांग के स्थानीय प्रतिनिधि दल के नेता द्वारा हमारा जोरदार स्वागत हुआ। वहाँ से हमलोग उनके द्वारा व्यवस्था किए गए बस से अपने गंतव्य स्थान यानी चिया ल च्वी होटल के लिए रवाना हुए। बस में हमलोगों को नान छांग शहर के बारे में सामान्य परिचय दिया गया।

नान छांग शहर प्रकृति की गोद में बसा एक छोटा सा शहर है लेकिन बहुत ही सुंदर शहर है। हमारा बस जैसे ही हवाई अड्डे से बाहर निकला वैसे प्रकृति ने अपने सुंदर रंग को बिखेरना शुरू कर दिया। चारों तरफ जैसे हरियाली का साम्राज्य फैला हुआ था। मन को अति प्रसन्नता हुई। पेइचिंग से नानछांग की लगभग पाँच घंटों का सफर का थकान जैसे छूमंतर में गायब हो गया।

नान छांग शहर ऐसे तो काफी विकसित शहर नहीं है लेकिन यहाँ पर सभी प्रकार के आधुनिक सुविधाएं उपलब्ध है। यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती करना है क्योंकि चारों तरफ खेत ही खेत नजर आ रहे थे और खेतों में तैयार तरह-तरह की फसलें। कहीं पर लोग खेत में धान की रोपनी के लिए उसे तैयार कर रहे थे तो कहीं पर गाय और भैंस खेतों में जुगाली कर रहे थे। कुछ दूर आगे बढने पर हमें एक बहुत बड़ी नदी दिखाई पड़ी। मैनें हो वेई से उस नदी का नाम पूछा तो उसने बताया कि यह कान नदी है और इसके दो छोटी-छोटी शाखा नदी है जो नान छांग शहर के चारों तरफ फैली हुई है। इससे मुझे लगा कि नदी यहाँ पर सिंचाई का मुख्य श्रोत हैं वहीं यह नदी इस छोटे से शहर का व्यापारिक मार्ग भी है क्योंकि नदी में बहुत सारे जहाज भी नजर आ रहे थे। कुछ आगे जाने पर हमें एक बहुत बड़ा झील भी नजुर आया। हो वेई ने इस झील का नाम याओ झील बताया। मैनें अपने जिंदगी में हांग चो के शी हू के बाद इतना बड़ा झील देखा था। ऐसे तो चीन में कई प्रसिद्ध झीलें हैं लेकिन यह झील भी बहुत बड़ा है जिसका मुख्य रूप से खेतों की सिंचाई में उपयोग किया जाता है। मेरा ख्याल है कि भविष्य में यह झील यहाँ के पयर्टन को बढावा देने में मुख्य भूमिका निभायेगा।

कुछ दूर आगे चलने पर हमें एक और नदी दिखाई पड़ा जिसका नाम फू नदी है। यह नदी छोटी है और कान नदी की सहायक नदी है, जिसका उपयोग खेती के लिए किया जाता है। अभी तक तो मैं यहाँ की नदियों के बारे में बात कर रहा था लेकिन यहाँ पर छोटे-छोटे पहाड़ भी बहुत हैं जिसके उपर हरे-हरे पेड़ बरबस लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता है। चीन में शहरों में अक्सर लोगों को कहते हुए देखा गया है कि ऐसा जगह जहाँ जल, पेड़ और पहाड़ हो वह जगह काफी सुंदर होती है। मेरा ख्याल है कि उनका कहना बिल्कुल सही है। इस छोटे से शहर के चारों तरफ पहाड़, नदी, और पेड़ ही पेड़ हैं। जिससे इस स्थल की सुंदरता में चार चाँद लग जाते हैं।

कुछ दूर आगे जाने के बाद हमारा बस लगभग दस मिनट के लिए आराम करने कि लिए रूकी। जिनलोगों के पेट में चूहे उछल-कूद मचा रहे थे उनलोगों ने चूहों को पेट से निकाला और जिनलोगों को बस में बैठने में परेशानी हो रही थी उनलोगों ने भी अपनी परेशानियों से छुटकारा पाया। आप मेरा इशारा समझ ही गये होंगे विस्तार से कहने की जरूरत नहीं है। मैनें और हो वेई ने भी अपने परेशानियों से निजात पाया। वहाँ से फिर हमारा बस गंतव्य स्थान के लिए रवाना हो गया।

हमलोग 5 बजकर 40 मिनट पर होटल पहुंच गये। वहाँ पर श्री मति यू ने हमलोगों के कमरे का आबंटन किया और 6 बजकर 10 मिनट पर खाने का समय तय हुआ। मेरे मन में जितनी प्रसन्नता कमरे को लेकर नहीं हुई उससे ज्यादा खुशी खाने के समय को लेकर हुई। मेरे ख्याल से और भी लोगों के मन में यही बात हुई होगी।

खाने के टेबल पर तरह-तरह के चियांग शी का स्थानीय व्यंजन परोसा गया। मैनें जब चोपस्टिक का पहला निवाला उठाया तो वह गाय का मांस था। हो वेई को बहुत-बहुत शुक्रिया मैं गाय का मांस खाने से बच गया। जब दूसरा निवाला उठाया तो वह भी गाय के मांस का ही एक व्यंजन था इस बार भी हो वेई को बहुत-बहुत धन्यवाद क्योंकि मैं फिर से गाय का मांस खाने से बच गया। खानें में मुझे सबसे ज्यादा कुन मछली पसंद आया और जब एक व्यक्ति ने पूछा कि किसी को मछली और चाहिए तो मैनें बिना किसी हिचक के बताया मुझे चाहिए। ऐसे तो मेरे टेबल पर सभी लोगों को पसंद था लेकिन शर्म के मारे किसी ने नहीं बोला। मैने सोचा चलो सभी लोगों के खातिर मैं ही बेशर्म बन जाता हूँ। भारत में कहते हैं कि अतिथी देवोभवः लेकिन चीन में यह देखने को मिलता है कि अतिथी सचमुच देवता ही होते हैं। हमलोगों ने लगभग 9 बजे तक खाना खत्म किया।

अब आराम करने की बारी है क्योंकि कल बहुत सारे जगह का दौरा करना है। कल की कहानी कल तबतक के लिए शुभरात्री।

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