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11-04-14
2011-04-15 15:11:13
मैं पिछले पांच साल से सी आर आई की तमिल प्रसारण सेवा में काम कर रहा हूं।ये पिछले पांच साल मेरे लिए एक तरह से आंखें खोल देने वाले रहे हैं।क्योंकि चीन भी भारत की तरह एक विकासशील देश है।अगर हम एशिया के बारे में सोचें या बात करें तो चीन और भारत ये दो ऐसे देश हैं,जिन्हें पिछले कुछ दशकों से विशेष तौर पर एकस दशक से दो उभरते हुए शक्तिशाली देश ,दो आर्थिक शक्तियों के रुप मे देखा और माना जा रहा है।और यह बात सच भी है।क्योंकि आर्थिक मंदी के दौर में जब सारा विश्व उस की आंच में तप रहा था,केवल ये दो ऐसे देश थे जिन्होंने दुनिय़ा को दिखा दिया कि चाहे हम दुनिया के उस भाग में हैं जिसे विकासशील कहा जाता है लेकिन हम ऐसी चुनौतियां का सफलता से सामना कर सकते हैं।

दुबारा हम उस बात पर आते हैं कि चीन मेरी नज़र में क्या है। जब मैं छोटा था और बाद में भी जब मैंने पुस्तकों में चीन के बारे में पढ़ा और फिल्मों से चीन के बारे में जो जानकारी हासिल की और.....जब मुझे पहली बार 2003 में चीन आने का अवसर मिला तो मेरी जो अपोक्षाएं थीं,मेरे मन में चीन की जो तस्वीर थी,वह उस यथार्थ से बिलकुल अलग थी जो मैंने यहां बीजिंग में आ कर देखा।मुझे लगता था कि चीन एक बंद समाज होगा,एक पारंपरिक रुढिवादी समाज होगा,लेकिन मैंने जो देखा वह पूरी तरह से अलग था। मैंने यहां बहुत खुला समाज देखा,लोगों के पहनावे को देख कर मैं चकित रह गया।मैं एक विकसित संस्कृति और परंपरा के सामने था। पहले एक माह में यहां मैंने ज कुछ देखा वह एक तरह से आखें खोलने वाले अनुभव से कम नहीं था।आश्चर्यजनक और एक तरह से झटका देने वाला। झटका देने वाला इसलिए कि मुझे विश्वास नहीं हो रहा था....यह चीन मैंने जो सुना पढ़ा था उस से पूरी तरह अलग था।बड़ी-बड़ी इमारतें,चौड़ी सड़कें,....सचमुच सब कुछ हैरान करने वाला था।एक तरह से यह चीन में मेरा पहला अनुभव था।फिर बाद में जब मैंने चीन के बारे में और जानने की कोशिश की,तो मै सचमुच यह महसूस कर सका कि यह देश कितना अधिक बदला है और कितना अधिक विकसित हुआ है।पिछले बासठ साल में इस देश ने एक कृषिप्रधान समाज से एक विकसित और तेजी से आर्थिक रुप से विकास कर रहे समाज में प्रवेश किया है। पिछले साठ साल में चीन ने दुनिया को दिखा दिया हैकि समाजवाद यह मार्क्स वाद ये कोई ऐसे शब्द नहीं हैं जिन से नफरत की जाए,या जिन में केवल खतरे की लाल बत्ती ही देखी जाए।यहां समाजवाद या मार्क्सवाद के मैंने सकारात्मक रुप देखे.....लोगों का आधार अभी भी सांस्कृतिक रुप से मार्क्सवाद या समाजवाद में है लेकिन चीनी समाज ने जिस तेजी के साथ तरक्की की है, वह देखते ही बनता है।जो कोई भी चीन आता है,विशेष कर मुख्य शहरों में जैसे बिजिंग,शांगहाई,हांगकांग,तो वह खुद देखता है कि यह शहर किसी भी विकासशील देश के लिए एक माडल है। इसी तरह सब कठिनाईयों का सफलता से सामना करते हुए चीन आगे एक अतिशक्तिशाली समाज बनने के दिशा में आगे बढ़ रहा है।एक सुपर पावर बन रहा है....क्योंकि यह बल हमारी आखों के सामने हो रहा है और इसे हम अनुभव कर सकते हैं और सारी दुनिया चीन के इस स्टेटस को स्वीकार करने के लिए तैयार है।

पिछले अपने पांच साल के प्रवास में मुझे कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी बनने का मौका मिला।जैसे 2008 बीजिंग ऑलंपकि,2010 क्वांगचो एशियन गेम्स,और चीन की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ और पिछले साल शागंहाई एक्पो....चीन की 60वीं वर्षगांठ का चीनी लोगों के लिए बहुत खास महत्व है जैसे हम कहते हैं कि हमें भारतीय होने पर गर्व है,.चीनी लोगों को चीनी होने पर अत्धिक गर्व हैं। इस अवसर पर सारे बीजिंग को लाल रंग में रंगे हुए देखा जा सकता था,लाल रंग शुभ का द्योतक भी है।और शांगहाई एक्सपो मेरे लिए आंखें खोलने वाला अनुभव था....एक जगह पर सारी दुनिया का जमावड़ा जैसे संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा हो रही हो। लगभग ऐसी ही लग रहा था। मुझे वहां जाने का मौका मिला,काम के सिलसिले में मैं वहां गया,साक्षात्कार करने के लिए।मेरे लिए यह एक विलक्षण अनुभव था। और काम के सिलसिले में ही मुझे चीन के उत्तर-पूर्व में जाने का मौका भी मिला।जो चीन की एक अन्य धुर छोर है...दक्षिण कोरिया और रुस की सीमा से लगता हुआ।यह भी एक अदभुत अनुभव था। चीन के ल्योनिंग,चीलिंन प्रांतों का दौरा करते हुए मुझे चीनी संस्कृति की बहुलता और विभिन्नता का अनुभव हुआ ,लोगों के रीति रिवाजों को देखा और यह भी कि हर जगह चीनी लोग किस तरह बाहर से आने वाले लोगों का स्वागत करते हैं और कैसी खुशी महसूस करते हैं। अपने पिछले पांच साल के चीन प्रवास के सारे अनुभवों को सार के रुप में यदि मैं कहूं तो मैं केवल दो बातें कहना चाहूंगा।एक तो यह कि चीन जितनी तेजी से विकास कर रहा है.वह अदभुत है, इतने तेज विकास में फोकस या अपनी पहचान खोने का खतरा बना रहता है,लेकिन चीनी लोगों के बारे में मैं कह सकता हूं कि उन्होंने न तो अपनी पहचान खोई है और न ही अपनी सांस्कृतिक पहचान।वे अभी भी अपने रोजमर्रा के जीवन में मूल सांस्कृतिक तत्वों को उसी तरह अपनाए हुए हैं ।इस बात को उत्सवों के दौरान देखा जा सकता है,अभी भी चीनी लोग अपने त्योहारों को उसी तरह मनाते हैं ,मेरे लिए यह समझना इसलिए भी आसान हैं क्योंकि मैं भारत से हूं और भारत चीन की तरह एक पुरानी संस्कृति वाला देश है। और अब मैं भारत में भी देखता हूं कि विकास की गति तेजी पकड़ रही है। भारत में भी जिन मूल्यों को हम मानते हैं,परिवार को महत्व देते हैं ,आप बड़े लोगों की,मां-बाप की कैसे इज्जत करते हैं,चीन में भी उसी तरह के मूल्य हैं। कुल मिला कर मैं कहना चाहूंगा कि मैं चीन में जरुर रह रहा हूं लेकिन ऐसा अहसास मुझे कभी नहीं हुआ कि मैं चीन में हूं। अपने समाज और देश से बाहर रहने पर जो अकेलापन महसूस होता है,वह मुझे यहां कभी महसूस नहीं हुआ। भारत और चीन की संस्कृति,मूल्यों में समानता और चीनी लोगों का भारत के लोगों की ही तरह अतिथि की आवभगत करना भी इस का एक कारण है।जरुर यह एक विदेश है और यहां की भाषा अलग है.....लेकिन यह स्थिति भारत में रहते हुए भी महसूस होती है। भारत में मैं दक्षिण से हूं और यदि मुझे उत्तर भारत में जाने का मौका मिलता है तो वहां की भाषा भी मेरे लिए अजनबी होती है। यहां के लोगों का रंग अलग हो सकता है लेकिन मैं यहां रहते हुए बिलकुल भी पराया महसूस नहीं करता। धन्यवाद।

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