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दक्षिण एशिया पर आधारित कार्यक्रम पत्रिका-0318
2011-04-13 21:23:03

सुश्री नलिनी

तनेजाप्रोफेसर और महिलाओं के बारे में जागरुक लेखक व सक्रिय कार्यकर्ता

महिलाएं हमारे समाज का आधा भाग है। इस सच्चाई के बावजूद कई समाजों में महिलाओं को उन के इस अधिकार को हासिल करने के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है। पुरुष वर्चस्व वाले समाजों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा न देने के पीछे पारंपरिक पिछड़ी सोच वाली मानसिकता और पुरुष वर्ग की इजारेदारी काम करती है। दक्षिण एशिया के कई देशों में पिछले पचास साठ सालों में अनेक महिलाएं राजनीति के शीर्ष पदों तक पहुंची है। भारत,पाकिस्तान,श्रीलंका व बंगलादेश में वे प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति के पद को शौभाए मान करती रही हैं और अब भी कर रही हैं। महिलाओं ने सामाजिक क्षेत्रों में भी अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज कराई है। लेकिन क्या व्यापक रूप से महिलाओं के समाज में बराबरी का दर्जा मिला है या केवल वे महिलाएं जिन्हें अन्य के मुकाबले अधिक सुविधाएं व सुरक्षा मिली है, ही आगे बढ़ पा रही हैं। भारत व दक्षिण एशिया में महिलाओं की पुरुषों की तुलना में घटती जन्म दर, जन्म से पहले ही उस की भ्रुण हत्या अभी भी व्यापक रूप से परंपरा का हिस्सा है। महिलाएं कैसे अपनी इस स्थिति के प्रति संघर्ष कर रही हैं और कैसे वे समाज में अपनी बराबर की जगह पाएं, इस पर हम ने दिल्ली में प्रोफेसर और महिलाओं के बारे में जागरुक लेखक व सक्रिय कार्यकर्ता सुश्री नलिनी तनेजा से बात की।

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