यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। आपने पिछले दिनों हमारे कार्यक्रमों में क्वांगचो के बारे में बहुत कुछ सुना होगा। एशियन गेम्स का पूरा ब्यौरा हमारा रेडियो आपको दे रहा था। पर आज मैं आपको गेम्स के बाद क्वांगचो में क्या हो रहा है बताने जा रही हूँ क्योंकि जब उत्सव होता है तो सब सुन्दर, सजीला,उजला, चमकीला लगता है। क्या होता है, जब उत्सव खत्म हो जाता है, जब सब अपने घर वापस लौट जाते हैं। चलिए, मेरे साथ क्वांगचो शहर के वर्चुअल टूअर पर। कुछ दिन पहले मुझे दक्षिण चीन के क्वांगचो शहर जाने का अवसर मिला। दो शहर एक–दूसरे से इतने भिन्न हो सकते हैं, यह मुझे वहाँ जाकर समझ आया। हालांकि, एशियन गेम्स को खत्म हुए काफी दिन बीत चुके हैं पर गार्डन सीटी के नाम से विख्यात क्वांगचो शहर सही मायने में एक रंग-बिरंगे गार्डन में तब्दील हो गया है। बीजींग से करीब 3 घंटों का हवाई सफर तय कर हम पहुँचे क्वांगचो जिसे केन्टोन नाम से भी जाना जाता है। हवाई-अड्डे से बाहर निकलते ही हमने देखा कि हर जगह पर हरे-भरे पेड़, रंग-बिरंगे फूल हमारा स्वागत कर रहे थे और हल्की-हल्की बहती हवा में हिलते-ढुलते मानो कह रहे हो – हुआन यंग लाए दाओ वो मन द चंग श यानि चीनी भाषा में आपका हमारे शहर में स्वागत है। इतने मोहक स्वागत मिलने के बाद तो मैं और भी उत्सुक थी यह जानने के लिए कि इस रंगीन शहर के गर्भ में कितने रहस्य छुपे हैं। जहाँ हम ठहरे थे वहाँ के कमरे की खिड़की से एशियन गेम्स का स्टेडियम साफ नज़र आ रहा था।हालांकि, एशियन गेम्स खत्म हो गए हैं लेकिन वहाँ की चकाचौंध अब भी जस की तस बनी है।। स्टेडियम के आसपास गंगनचुंबी इमारतें, विशाल शॉपिंग माल्स, आने-जाने वाले लोगों की भीड़, लंबी-चौड़ी सड़कें, सड़कों पर सरपट दौड़ती बड़े-बड़े ब्रेंडस की गाड़ियाँ।यह सब साफ दर्शाता है कि दक्षिण चीन का यह शहर कितना समृद्ध और संपन्न हैं।अंग्रेज़ी के सरल शब्दों में कहे तो उसे एक कमप्लीट कोस्मोपोलिटन सीटी या डिवेलपड सीटी कहना बिल्कुल सही होगा। पुराने समय से यह चीन का समुद्री रास्ते से व्यापार करने का मश्हूर पोर्ट रहा है।इसलिए यह व्यापारी-ट्रेडर्स व मरचेंटस प्रधान शहर है।केवल स्टेडियम के आसपास का इलाका ही नहीं बल्कि पूरा क्वांगचो शहर बेहद सुन्दर है।न ज्यादा सर्दी और न ज्यादा गर्मी वाले सुहावना मौसम ने हमें सबसे पहले भारी-भरकम कोट-जैकेट से कुछ दिनों के लिए छुटकारा दिलवाया। जिस दिन हम पहुँचे उसी दिन हमने जल-जहाज से पर्ल रिवर का सैर करने का निर्णय लिया। तो, जी, रात के करीब सात-सवा सात बजे हम ने जहाज की टिकट ली और जहाज की छत पर बैठकर हमारी शुरू हुई एक बेहद एक्साइटिंक, रोमांच से भरी सैर। करीब एक घंटे की रिवर क्रूस में हम लगभग पूरे शहर को देख सकते हैं। सूरज की रोशनी में जितने रंगों का आनंद हमने दिन में लिया था यकिन मानिए रात को सूरज की जगह ले ली थी चकम-धमक से भरपूर पूरे शहर को यह एहसास तक न दिलाना की सूरज ढल गया है, एक नई-नवेली दूल्हन की तरह सजा दिया था रंग-बिरंगी बत्तियों ने। क्रूस के दौरान हम ने आसमान को चीरती लंबी-लंबी जगमगाती इमारतें देखीं जिन्होंने केवल ऊपर बढ़ना सीखा है। पूरे शहर को रात के समय एल.ई.डी लाइटों ने आसमान को रोशनी से भर दिया था। जिसे देख सूरज को भी ईर्ष्या होने लगे। कहीं भी रात के अंधेरे का नामोनिशान तक नहीं था। जैसे-जैसे हमारा शिप आगे बढ़ने लगा वैसे-वैसे कई और चमचमाती हुई, आँखों को चौंधिया देने वाली बड़ी-बड़ी बोट्स के आकार वाली आकृतियाँ नज़र आने लगी। हमारा शिप जब उनके बेहद करीब पहुँचा तो हमने जाना कि ये तो वही बोट्स हैं जिनमें एशियन गेम्स के उद्घाटन-समारोह के दौरान खिलाड़ियों को स्टेडियम लाया गया था। वे सारी जगमगाती बोट्स एक कतार में खड़ी थी मानो हम से कह रही हो कि जिसे टी.वी पर देख आपका मन मोह लिया था आज अपनी आँखों से देख उन पलों को दुबारा जी लो। मन में यह मलाल नहीं रहा कि, काश हम भी एशियन गेम्स के उद्घाटन-समारोह में भाग ले पाते। एक और खासियत है इस देश की जिसका उल्लेख यदि नहीं किया तो बात पूरी नहीं होगी, वह है यहाँ के लोगों में दूसरों के प्रति स्नेह। शिप में हमारे साथ हमारे टेबल पर एक चीनी परिवार भी बैठा था। शुरुआत में केवल हम एक–दूसरे को देख मुस्कुराए उस के बाद वे अपने परिवार के साथ और हम अपने में, लेकिन चीनी परिवार में एक बुजुर्ग महिला भी थी जिन्होंने मुझसे पूछा- इन दू रन मा, यानि तुम भारतीय हो, मैंने हाँ कहा तो वे मुझसे बातें करने लगी, ये अलग बात है कि मुझे कुछ समझ आ रहा था और कुछ नहीं। कुछ देर बाद जैसे-जैसे शिप बढ़ता जाता वे कभी मेरे हाथ पर या कंधे पर अपना हाथ रख इशारा कर बताती जा रही थी कि तुम जो देख रही हो यह वो है, तुम्हारे पीछे क्या है आदि आदि। उसके बाद वे अपने परिवार से हमारा परिचय करवाने लगीं। फिर हम बढ़ने लगे विशाल केन्टोन टॉवर की तरफ जिसका निर्माण एशियन गेम्स से कुछ दिन पहले ही पूरा किया गया था और गेम्स के दौरान यहाँ से आतिशबाजी शो भी किया गया था। 108 मंजिला ऊँची इमारत, 430 मीटर लंबी, रात की रोशनी में जगमगाती, जिसका आकार बिल्कुल ऐसा जैसे मड़ोड़ा हुआ कपड़ा। बेहद आकर्षक, अद्भुत, सुन्दर शब्द कम पड़ सकते हैं उसके व्याख्यान में। यह टॉवर इतना लंबा है कि आप इसे शहर में कहीं से भी देख सकते हैं। केन्टोन टॉवर की तरफ इशारा करते हुए उस बुजुर्ग महिला के चेहरे पर गर्व दिख रहा था, छोटी-छोटी आँखों में चमक आ गई थी।मानो वे हमारा परिचय अपने शहर से इस तरह करवा रही थी कि जैसे हम उनके घर में आए मेहमान हो। अपने देश, अपने शहर पर इतना गर्व, उससे इतना प्यार देख हमें बहुत कुछ सीखने को मिला।यहीं नहीं उसके बाद उन्होंने हमें अपने परिवार के सदस्यों से भी मिलवाया और हम सब एक-दूसरे के साथ ऐसे फोटो खिंचवाने लगे जैसे हम सब एक-ही परिवार के हो और साथ मिलकर क्वांगचो की सैर करने निकले हों। क्रूस पर बिताए वह बेइंतहा खूबसूरत पल हमें हमेशा याद रहेंगे। इससे पहले भी कई खूबसूरत जगहों पर जाने का मौका मिला था पर यहाँ प्राकृतिक सुन्दरता, बत्तियों की चमक-धमक के साथ अपनों की तरह प्यार देने वाले प्यारे लोग मिले जिन्होंने इसे एक्सट्रा-आडोनिरी(अति असाधारण), सुपर स्पेशल बना दिया हमारे लिए। और नए साल की शुरूआत इतनी अच्छी रही कि बस मज़ा आ गया।मेरी यह बात सुन आप सब का भी मन ज़रूर चाह रहा होगा कि एक बार क्वांगचो की सैर करने जाए। ऐसा ही एक और किस्सा याद आया जिसे मैं आपके साथ बाँटना चाहूँगी। कुछ दिन पहले मेरे मोबाइल फोन में कुछ परेशानी आने के कारण मैंने मोबाइल फोन ऑपरेटर से बात की, बात बहुत औपचारिक थी और फोन रखते समय उस ऑपरेटर ने मुझ से पूछा कि क्या आपका गला खराब है, आपको सर्दी-जुकाम है, तो मैं उनका प्रश्न सुन मन-ही-मन शब्दों को खोजने लगी और मेरे मुँह से एकदम हाँ निकला तो उन्होंने आगे कहा – डिड यू टेक मेडिसिन, यू मस्ट टेक गुड केयर ऑफ योअरसेल्फ। मैं फिर मुश्किल में पड़ गई और खोई हुई सी आवाज़ में कहा- येस। सामने से फिर आवाज़ आई- बॉय, हेव अ गुड डे। और फोन कट गया। पर फोन कट जाने के बाद भी मैं उसे पकड़ कर निहारने लगी।इतने मामूली प्रश्न का उत्तर देना पता नहीं क्यों मुझे कठिन लगा।शायद इसलिए कि एक अनजान महिला जो दिन में लाखों लोगों से बात करती हैं, उनका इतना अपनापन, एक अनजान के लिए इतना कन्सर्न।मेरे दिल को छू गया। मैं उनके प्रश्न को सुन इतना खो गई कि खोई हुई सी आवाज़ में उसका जवाब देने लगी। आपको यह सब सुन कुछ अटपटा ज़रुर लग रहा होगा कि ऐसी कौन-सी बड़ी बात हो गई।पर इस छोटे से किस्से ने इस बात का एहसास हमारे जैसे विदेशियों को जो यहाँ रह रहे हैं, करवा दिया कि हम ही अपने आपको यहाँ पराया महसूस करते हैं, हम ही अपने आप को अलग महसूस करते हैं, पर सच तो ये हैं कि यहाँ के लोगों के दिलों में प्यार बसा है, इनके दिल बहुत बड़े हैं, बस हमें कदम बढ़ाना है, हम ही कदम बढ़ाने में देर कर रहे हैं, ये तो बाँहें फैलाए हमें प्यार से अपने गले लगा लेंगे, अपना बना लेंगे। अपनों से दूर अगर हमें अपने मिल जाएँ तो जीवन आसान लगने लगता है।
श्रोताओं, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह इकतालीसवा क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें,या फोन पर बताएँ ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। अपने पैरों से चल हम अपने लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं लेकिन अपने दिमाग से चलकर हम अपने भाग्य तक पहुँच सकते हैं। इसी विचार के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओं, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।
तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार