यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। दोस्तो, यहाँ बीजींग में हर जगह क्रिसमस की धूम मची हुई है। हमारे दफ्तर से लेकर बाज़ारों में, शॉपिंग मॉलस, दुकानें क्रिसमस थीम से सजी हुई है, क्रिसमस सेल लगी हुईं हैं, सेंटा क्लास की पोशाकों और लाल टोपियों की हर जगह भर-मार है, सड़कों पर रंग-बिरंगी बत्तियाँ जगमगा रही हैं, लंबे-लंबे क्रिसमस-ट्री, उन पर ढेर सारी सजावट की गई हैं। शॉपिंग मॉलस में अगर आप जाएँ तो वहाँ घूमते हुए सेंटा क्लास आकर हाथ मिलाते हैं और छोटे बच्चों को उपहार देते हैं। अपनी गोद में उठाकर उन्हें प्यार करते हैं, जिसे बच्चे बेहद पसंद करते हैं।सर्दियों के मौसम में आने वाला क्रिसमस का त्योहार बुझे-उदास मन में फिर से नई ताज़गी भर देता है।हालांकि, यहाँ अभी तक बर्फ नहीं पड़ी है जो कि यहाँ के लोगों के अनुसार बहुत असामान्य मौसम है। फिर भी हर जगह क्रिसमस और नए साल के इंतज़ार ने सबके अंदर नया जोश और उत्साह भर दिया है। चलिए, इसी जोश और उत्साह के साथ हम भी आज का कार्यक्रम शुरू करते हैं। दोस्तो, एक बड़ा ही पुराना जोक है कि 'शादी एक रेस्तरां में बाहर जाकर खाने की तरह है! दूसरे की मेज पर रखा भोजन हमेशा अधिक स्वादिष्ट दिखता है।' कभी-कभी हमें अपना जीवन भी इसी तरह लगता है। हम किसी की जीवन शैली को देखकर चाहते हैं कि हमारी जीवन शैली भी ऐसी हो, हमें यदि कोई खुश और दुनिया की परवाह किए बिना, बिंदास जीवन बिताते हुए नज़र आता है तो हम भी वैसे ही बनना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि ऐसे बने, वैसे बने और यह सूची यू हीं बढ़ती जाती है और कभी खत्म नहीं होती। ऐसा सोचने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि क्यों आप उस व्यक्ति की जगह नहीं ले सकते? शायद आप हैं। शायद कोई है जिसे आप की तुलना में कम विशेषाधिकार प्राप्त किए हैं और आप से ईर्ष्या करता है, आपकी जीवन शैली चाहता है, और आप की ही तरह बनना चाहता है। लेकिन आप को अभी भी लग रहा है क्यों आप उस व्यक्ति की तरह नहीं हैं। तो....... इस स्थिति में आप क्या कर सकते हैं? चलिए, ज़रा सोचिए कि आप इस तरह की स्थिति में हैं- जहाँ आप सड़क के बीच में हैं और एक वाहन तेजी से आप की ओर दौड़ा चला आ रहा है। आप क्या करेंगे? उस रास्ते से हट जाएँगे न, ठीक? ठीक उसी तरह क्या आप को अपने जीवन के साथ भी यही नहीं करना चाहिए? कई बार हम स्वयं इतने क्रिटीकल हो जाते हैं, इतने आलोचनात्मक हो जाते हैं, हमें अपना जीवन या हमारी जीवन शैली अपूर्ण लगती है, या गलत महसूस होती है। हम इतने लंबे समय से इन नकारात्मक भावनाओं पर इतना ध्यान केन्द्रित कर देते हैं कि हम अपने आप को आगे बढ़ने से रोक देते हैं या हम अपने खुद के रास्ते में खड़े हो जाते हैं! "अतीत नहीं बदला जा सकता है, भविष्य अभी भी हमारे हाथों में है, उसमें अभी तक अपनी शक्ति है।" अपने आप से इतना कठोर मत बनिए - कोई भी पूरी तरह सही नहीं है। अगर आप ने असफलता का स्वाद नहीं चखा तो आप सफलता की मिठास का स्वाद चखने में भी सक्षम नहीं हो सकते।जो कुछ भी करके जब आप सफलता पाते हैं और पुरस्कृत किए जाते हैं, वह आपको पूर्णता का एहसास दिलाती है और अमूल्य है आपके लिए। पिछले, या बीते हुए दिनों में आपके द्वारा किए गए व्यवहार का औचित्य साबित करने की कोशिश मत करें। शायद उस समय आपने जो व्यवहार किया वह उस समय के लिए सही था। अब यह अप्रासंगिक हो सकता है। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हम परिपक्व होते जाते हैं, हम अपने अतीत के विश्वासों और व्यवहार को भूल के वर्तमान के साथ घुल-मिल जाते हैं। अपने आप को कभी कम या कमज़ोर मत समझें। स्वयं को लायक महसूस करें। आप अपनी क्षमताओं और अक्षमताओं के सबसे अच्छे निर्णनायक हैं। " जिस क्षण आप अपनी क्षमता से कम के लिए समझौता करते हैं, जिसके आप लायक हैं, तब आप को उससे भी कम मिलता है।" अपनी कमजोरियों और कमियों पर ध्यान केन्द्रित मत करें। अपनी ताकत पर ध्यान लगाएँ। उन दिनों के बारे में सोचें जब आप मुश्किल स्थिति से एक विजेता की तरह बाहर आए थे। तब किसने आप को शक्ति दी? अपने अंतर्ज्ञान पर ट्रस्ट करें और जोखिम लें। यदि आप हमेशा वहीं करते हैं जो आपने हमेशा किया है तो आपको वहीं हमेशा मिलता है जो मिलता आया है – यही जीवन की सच्चाई है। इसे जीवन कोचिंग ट्रूइसम कहते हैं। कुछ अलग करो या अलग तरह से करो। हर कोई स्पष्ट देख सकता है, कुछ अलग करो जो कम स्पष्ट दिखे। दृष्टि की यह शैली शायद एक रमणीय परिणाम लाएगी। अंत में, अपनी सोच में बदलाव लाएँ। परिवर्तन अनिवार्य है -जिस तरह की घटनाएँ जीवन में घटती है या प्रकृति में। कभी-कभी पलक झपकते ही पूरे जीवन में परिवर्तन हो जाता है! परिवर्तन को स्वीकार करें, लेकिन आप को अपने बारे में सब कुछ नहीं बदलना। यदि आपने यह परिवर्तन किया है तो इसमें विश्वास करें, सक्रिय बनें और जिम्मेदारी ले उस हिस्से की जिसे आप ने बदला है। तो चलिए उठिए, अपने रास्ते से आप खुद हटें ... और स्वयं को नए रुप में जानें! इनेमुरी है जरूरी काम के बीच थोड़े समय के लिए झपकियां लेना या सुस्ताने की क्रिया को जापान में 'इनेमुरी' कहते हैं। मजेदार बात यह है कि वहां 'इनेमुरी' लेने वाले लोग आदर के पात्र होते हैं।दरअसल, जापान में लोग अपने वर्क-कमिटमेंट को दर्शाने के लिए इनेमुरी का प्रयोग करते हैं। वास्तव में यदि लंबे समय से कड़ी मेहनत कर रहे हैं, तो काम करते-करते उसी मुद्रा में थोड़ा समय सुस्ताने की क्रिया ही है 'इनेमुरी'। काम के बीच झपकियां लेने या सुस्ताने वाले लोगों को दूसरे कल्चर में आम तौर पर बुरी नजरों से देखा जाता है, लेकिन जापान में नहीं। इसकी छवि एक मेहनती देश के रूप में है, जहां मेहनतकश लोगों को खूब मोटिवेट किया जाता है। वैसे, काम के बीच झपकियां लेने यानी 'पॉवर नैप' की महत्ता को आज कॉरपोरेट वर्ल्ड भी स्वीकार कर रहा है। काम के बीच झपकियां लेने के संबंध में कई वैज्ञानिक अध्ययन भी हुए हैं। इनके मुताबिक, यदि हम काम से थके होने के बाद थोड़ी देर के लिए झपकियां लें, तो इससे ताजगी आती है। न केवल बॉडी, बल्कि हमारा माइंड भी छोटी-सी झपकी से बिल्कुल रिफ्रेश हो जाता है। अब जबकि झपकियों के फायदे जान गए हैं, आप भी इसे अपना सकते हो। पर हां, इनेमुरी लेते समय यह जरूर ध्यान रखना कि नींद आपको अपने आगोश में न ले ले। दरअसल, जागते हुए सोने की प्रक्रिया को ही इनेमुरी कहते हैं, जिसमें आपको सीधे बैठकर या खड़े होकर झपकी लेना होता है। डॉक्टर वर्सेज दादी! बेशक मेडिकल साइंस कितनी भी तरक्की कर ले, लेकिन आज की मॉडर्न विमिन भी प्रेग्नेंट होने पर अपनी डॉक्टर की बजाय बड़े-बूढ़ों की सलाह को ज्यादा तव्वजो देती हैं। ये बात हाल ही में एक रिसर्च में भी सामने आई है। हाल ही में की गई एक स्टडी में बताया गया है कि प्रेग्नेंट विमिन को डॉक्टर की सलाह से ज्यादा मां और दादी मां की सलाह पर विश्वास होता है। लंदन यूनिवसिर्टी के हेल्थ और सोशल केयर डिपार्टमेंट के प्रो. पोला निकोलसन और रेबेकाह फोक्स ने तीन पीढि़यों की महिलाओं के अनुभवों पर रिसर्च की। उन्होंने 1970, 1980 और 2,000 के दशक में मां बनने वाली महिलाओं से कुछ सवाल पूछे। तमाम महिलाओं ने माना कि उनकी मां और दादी मां दिल से उनका हित चाहते हुए सलाह देती हैं। 1980 और 2000 के दशक में महिलाओं ने डॉक्टरों, मिडवाइफ, हेल्थ विजिटर्स, वेब और दूसरे सोर्स से मिली जानकारियों में सामंजस्य बिठाया। निकोलसन कहते हैं कि आज की आधुनिक महिलाएं इतने सारे सोर्स से इंफर्मेशन मिलने के बाद भी अपने लिए सही जानकारी का चुनाव कर लेती हैं। तीनों पीढ़ियों की महिलाओं ने मां या दादी मां द्वारा दी गई एडवाइस को ही माना। कई केसों में तो यहां तक देखा गया कि मां की सलाह डॉक्टर की सलाह से एकदम अलग थी, बावजूद इसके महिलाओं ने इसे ही माना। श्रोताओ, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह उनतालीसवा क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें,या फोन पर बताएँ ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। जो हुआ वह अच्छा हुआ और जो नहीं हुआ वह और भी अच्छा है। इसी विचार के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओं, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे। तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार