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10-10-21
2010-10-21 11:00:19

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम में मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ।आज का कार्यक्रम शुरू करने से पहले मैं सभी श्रोताओं को बहुत-बहुत धन्यवाद, कहना चाहती हूँ कि आपको न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम अच्छा लग रहा है। विशेषकर रहमतुन्नीसा बहनजी का धन्यवाद। हम आपको बता दें कि आपके दिए सुझावों पर हम काम कर रहे हैं। यह बहुत दुख की बात है लेकिन आप सही कहती है कि हमारे समाज में आज भी महिलाओं को दहेज जैसी समस्याओं के कारण प्रताड़नाएँ सहनी पड़ती हैं।अभी भी भेदभाव किया जाता है और वे हिंसा और जुल्म का शिकार बनती हैं। मैं चाहूँगी कि आप इसी तरह अपनी राय हमें भेजते रहें ताकि न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम को बेहतर से बेहतर बना सकें। इसी के साथ हम अपना कार्यक्रम शुरू करते हुए एक बार फिर बता दें कि इस कार्यक्रम में हम आपको महिलाओं से जुड़े हुए विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी देंगे। चीन की जीवन शैली से लेकर, सेहत-सौंदर्य, शापिंग, सैर-सपाटा, सजावट, पाक-कला इत्यादि के साथ-साथ हम आपको मौका मिलने पर एक महिला अतिथि के साथ हुआ हमारा वार्तालाप भी आपको सुनाएँगे जिससे आपको यहाँ के जीवन के बारे में और अधिक जानने को मिले। दोस्तो, आज हम मम्मी श्रोताओं से जुड़े एक खास मुद्दे पर बातचीत करेंगे। जिन के बच्चे बहुत छोटे हैं और छोटे बच्चों के साथ जुड़ी होती हैं कई परेशानियाँ। आज हम बात करेंगे शिशुओं को सुलाने की समस्या के बारे में। शिशुओं में नींद की समस्या बहुत आम है।हालांकि छोटे बच्चों में कई प्रकार की नींद के मुद्दों की समस्याएँ होती हैं और इस कारण वे अपने माता-पिता के जीवन में गड़बड़ी पैदा करने की वजह से "समस्या" बन जाते हैं। अलग-अलग आयु वर्ग के सब बच्चे अलग- अलग कारणों से नींद के मुद्दों से पीड़ित हो सकते हैं। वयस्कों की तुलना में बच्चों के सोने की आदतों में बहुत अंतर होता है। एक नवजात शिशु को प्रतिदिन 18 घंटे नींद की ज़रूरत होती है। 6 महीने की उम्र में बच्चे को दिन में तीन बार नेप के अलावा प्रतिदिन 12 घंटे नींद की ज़रूरत होती है। जबकि एक 12 माह के बच्चे को दिन में दो बार नेप की ज़रूरत होती है। यदि बच्चे को पर्याप्त नींद नहीं मिल रही है तो वह अस्थिर, चिड़चिड़ा हो जाता है और अधिक रोता है। यदि हम बात करें कि बच्चों में अनिद्रा के क्या कारण होते हैं। तो हम आपको बताएँ उनके तीन कारण होते हैं। पहला है – तकनीकी, जिसे अंग्रेज़ी में "accidental parenting,आकस्मिक" कहते हैं। जहां अभिभावकों ने अचानक से ही किसी तकनीक की खोज की, क्योंकि यह किसी विशेष अवसर पर काम करती है। यही तकनीक, हालांकि, लंबी अवधि में काम नहीं करेगी। दूसरा है व्यक्तित्व और अपेक्षाएँ, कुछ अभिभावक और बच्चे इस विषय में अधिक नहीं सोचते, जबकि दूसरे अधिक चिंतित रहते हैं। जबकि कुछ माता पिता अपने बच्चों से उनके सोने के पैटर्न से अवास्तविक उम्मीदें रखते हैं।और आखिरी में है चांस की बात।उदाहरण के लिए यदि जन्म के समय बच्चे का वजन कम हुआ तो उससे नींद प्रभावित हो सकती है। हालांकि माता-पिता को इन सब बातों पर ज्यादा ज़ोर नहीं डालना चाहिए क्योंकि यह एक आम मिथक है कि या तो आप "भाग्यशाली" हैं कि आपका बच्चा एक अच्छा स्लीपर पैदा हुआ है, या तो आप "भाग्यशाली" नहीं हैं। अब सवाल उठता है कि नींद की कमी से माता-पिता और बच्चे पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है। तो इसका जवाब है, दोनों शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से इसका असर पड़ता है।एकाग्रता की कमी, चिड़चिड़ापन, याददाश्त कमज़ोर पड़ना, मूड का हर समय बदलना और कुछ भी नया सीखने में कठिनाइयों का सामना करना। इसके अलावा बच्चों में नींद की समस्याओं के कारण माता-पिता के वैवाहिक जीवन पर असर पड़ता है। वे अपने माता-पिता (parenthood) का आनंद नहीं प्राप्त कर सकते। साथ-ही-साथ परिवार में अन्य बच्चे, भाई-बहन और सदस्यों पर भी इसका असर पड़ता है। माता-पिता इसका सामना करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो इस रूप में यह एक गंभीर बीमारी का रूप ले लेती है। तो कैसे उस बच्चे का उपचार किया जाए जिसे नींद की समस्या है या जिसे सुलाने में तकलीफ होती है। सबसे पहले मुख्य समस्या को पहचानने का प्रयास करें। बच्चों की नींद को लेकर आपके जो भी मिथ हो या गलतफहमियाँ हो उन्हें सबसे पहले दूर करें। उदाहरण के लिए यदि बच्चा गहरी नींद सोता है तो वह आसानी से जगता नहीं, या नींद आने पर जाग नहीं पाता। या किसी बच्चे के देर तक जगे रहने में कोई समस्या नहीं जब तक की वह अपने आप सो सके। समस्या वहाँ आती है जब बच्चा देर तक जागता रहे और स्वयं आसानी से न सो सके। वहाँ उसे मदद की ज़रूरत है। एक बच्चे की नींद के पैटर्न की दूसरे बच्चे से तुलना न करें। हर बच्चे की नींद का पैटर्न अलग होता है। यदि समस्या काफी गंभीर हो तो किसी विशेषज्ञ से सलाह लें और उनसे सुलाने की तकनीक सीखें।अब बात करते हैं उन आम गलतियों की जो माता-पिता अपने बच्चों को सुलाने के लिए करते हैं जिन्हें नींद की समस्या है। सबसे पहली गलती जो वे करते हैं - यह सोचना कि नींद की समस्या अपने आप समय से ठीक हो जाएगी। यह सोचना एक मिथ है कि उनके बच्चे का अपने आप अच्छी नींद सोना उसके जीवन में एक माइलस्टोन है। इसलिए वे उस जादुई क्षण का इंतजार करते हैं जब उनके बच्चे अचानक से एक अच्छे स्लीपर बन जाएँगे। दूसरा, कई माता-पिता का मानना है कि एक ऐसा बच्चा पैदा होना जो अच्छा स्लीपर है यह सिर्फ किस्मत की बात है। तीसरा, उन्हें कई स्रोतों से बहुत ज्यादा सलाह मिलती है और अंत में कुछ माता-पिता शॉर्ट टर्म समाधान ढ़ूँढ़ते है बजाय दीर्घकालिक समाधान के। अब आप के मन में सवाल उठ रहा होगा कि बच्चों की अच्छी नींद के लिए दिनचर्या कैसी होनी चाहिए और इसे कैसे स्थापित करते हैं? अच्छी नींद के लिए दिनचर्या कठोर नहीं होनी चाहिए लेकिन यह आवश्यक है कि बच्चों के लिए नियमित दिनचर्या हो। दो चीज़ें बच्चों की नींद में मदद करती हैं।वे हैं नींद के संकेत और नींद के प्रॉप्स यानि नींद लाने वाले सहारे। नींद संकेत बच्चों को यह बताते हैं कि अब सोने का समय हो गया है, इसमें बच्चा कहाँ और कब सोएगा शामिल है। बच्चे के लिए 24 घंटे के पैटर्न के बजाय रात और दिन की नींद के पैटर्न की स्थापना करना ज्यादा बेहतर रहेगा। नींद के प्रॉप्स यानि नींद लाने वाले सहारे एक प्रकार की तकनीक है जिससे बच्चों को व्यवस्थित किया जाता है। उदाहरण के लिए कुछ बच्चों को सोने से पहले खिलाया जा सकता है या हाथों में लेकर सुलाया जाता है। अच्छी नींद के प्रॉप्स यानि नींद लाने वाले सहारे के लिए तीन नियमों का पालन करने की ज़रूरत है। क्या यह कोई और कर सकता है, क्या यह पोरटेबल है और क्या इसे बार-बार किया जा सकता है। एक बच्चे को नींद की नई दिनचर्या में व्यवस्थित होने में कितना समय लगता है। सामान्य रूप से दस से 14 दिन तक लगते हैं क्योंकि इसमें बच्चे के व्यवहार से उसकी बाड़ी क्लाक यानि शरीर को यह जानने में कि कब सोने का समय है भी शामिल है। यह हमें लगता है कि बहुत कम समय है लेकिन बच्चों के लिए किसी बुरी आदत को भूलाना बहुत आसान होता है जितना कि हम सोचते हैं। हालांकि, अगर एक तकनीक काम नहीं कर रही है, जो अधिकांश ऐसा ही होता है उसकी वजह तकनीक किस तरह लागू की गई होता है ना कि तकनीक में कोई खराबी है। एक तकनीक को लगातार और बारबार लागू किया जाना चाहिए। अक्सर माता पिता कम समय में बहुत कुछ करने की कोशिश करते हैं या उसके कुछ अन्य कारण हो सकते हैं। उदाहरण के लिए बच्चे की देखभाल दिन के समय कोई और करता है और वे बच्चों को गोद में लेकर या खुद से लगा कर बच्चों को सुलाते हो जब तक कि बच्चा सो न जाएँ। अब एक ज़रूरी सवाल बच्चों को सोने की बुरी आदतों से कैसे बचाएँ। तो माता-पिता को अपने बच्चे को अच्छी, सुखदायक थपथपी, लोरी या कोई अन्य तरीका जिससे बच्चा आराम से सो सके से परिचित होना चाहिए। इसके अलावा इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें कि आप ऐसी किसी तरह की आदत न डालें जिसे आप लंबे समय तक जारी नहीं रख सकते।और ध्यान रखें कि बच्चों की नींद का मुद्दा व्यवहार से संबंधित है इसे व्यवहार थेरेपी के साथ प्रबंधित किया जाना चाहिए न की दवाओं से। श्रोताओ, चलिए फैशन की दुनिया पर एक नज़र डालते हैं और जानते हैं कि यहाँ चीन में क्या चल रहा है। यहाँ बीजींग में ठंड शुरू हो गई है। दिन का तापमान तो ठीक रहता है पर रात के समय ठंड बढ़ जाती है। इन गर्मियों में जींस, कैपरी, मिनी और शार्ट्स का खूब चलन रहा पर अब जब हल्की-हल्की ठंड शुरू हो गई है तो सबने अपनी स्ट्रेट टाइट जींस, ट्राउज़र्स, लेग्गिंगस बाहर निकाल ली है। इनके साथ मैचिंग हल्के-पतले गरम टॉप, पतले जैकेट-कोट खूब जचते हैं। जैकेट-कोट टॉप से लंबे या छोटे दोनों ही साइज में पहने हुए अच्छे लगते हैं। साथ में अगर किसी ने मैचिंग स्कार्फ भी लिया हो तो क्या बात है। खुले जूते-चप्पलों की जगह अब बंद और कपड़े के जूतों ने ले ली हैं। दोस्तो, कहने को तो यहाँ 6 महीनों की लंबी सर्दियाँ होती हैं पर सज-धज कर, खुद को पैक करके चलने में, ठंड से बचाने के लिए फैशनबल कपड़े पहनकर घर से बाहर निकलने का मज़ा ही कुछ और होता है। यहाँ की सड़कों पर खास कर सर्दियों में आपको लगेगा की आप फैशन शो देखते हुए चल रहे हैं। सबने एक दूसरे से बढ़कर बढ़िया जैकेट-कोट, टॉप, स्कार्फ पहने होते हैं। जिन्हें देख आपका मन भी बाज़ार जाकर वैसी ही चीज़े खरीदकर आने को करेगा चाहे आपकी अलमारी में बिल्कुल जगह न बची हो। और सबसे अच्छी बात ये कपड़े हर आयु की महिलाओं और युवतियों पर खूब फबते हैं। अपनी पसंद के रंग, रूप, आकार ,स्टाइल और साइज में आसानी से मिल जाते हैं और तो और इनके दाम भी जेब पर भारी नहीं पड़ते। देखा आपने ऐसी है, चीन में फैशन की दुनिया। श्रोताओ आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह उनतीसवां क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। जीवन में कभी समझौता करना पड़े तो कतराइगा नहीं, क्योंकि झुकता वही है जिसमें जान होती है, अकड़ मुरदों की पहचान होती है। इसी विचार के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन, पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे। तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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