दोस्तो, 18 अगस्त की रात को शांगहाई विश्व मेले के केंद्रीय भवन में सिलसिलेवार भारतीय क्लासिक संगीत ने पर्यटकों को आकर्षित किया। भारतीय भवन दिवस की खुशी में नयी दिल्ली के कत्थक केंद्र से आए कलाकारों ने उत्तर भारत के क्लासिक नृत्य की सुन्दरता दिखाई।
महान भारतीय संस्कृति में क्लासिक नृत्य का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। भरतनाट्यम, ओडीसी, कत्थक व कथकली चार क्लासिक नृत्यों में कत्थक भावना की प्रस्तुति पर बड़ा ध्यान देती है। कत्थक का प्रलोभन विश्व में प्रसिद्ध है। हिन्दी में कत्थक का मतलब कहानी सुनाने वाला है। इसलिये कत्थक की प्रस्तुति में कलाकार भिन्न-भिन्न रवैयों व अभिव्यक्तियों से भारतीय परिकथा या लोककथा दिखाते हैं। और वे कहानियां मुख्य तौर पर दो महा ऐतिहासिक काव्य महाभारत व रामायण से चुनी गयीं हैं।
भारतीय नृत्य मंडल की अध्यक्षा सुश्री गीतांजली लाल नयी दिल्ली में स्थित कत्थक केंद्र की एक वरिष्ठ नृत्य अध्यापिका हैं। वे छः वर्ष से कत्थक सिखा रही हैं। दस वर्ष में वे सारे भारत में एक प्रसिद्ध कत्थक कलाकार बन गयीं। उन्होंने संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, कला श्री, व भारत गौरव आदि पुरस्कार हासिल किए हैं। उन के द्वारा प्रस्तुत या निर्देशित किया गया कत्थक बहुत सुन्दर है, जो देशी विदेशी दर्शकों का मन जीतता है। सुश्री गीतांजली ने कत्थक केंद्र के सदस्यों का नेतृत्व करके ब्रिटेन, अमरीका, रूस, थाइलैंड, चीनी हांगकांग, इराक, ईरान, नीदरलैंड, फ़्रांस, श्रीलंका, भूटान आदि देशों में प्रस्तुतियां दी हैं। उन के कार्यक्रम स्थानीय लोगों में बहुत लोकप्रिय हैं।
सुश्री गीतांजली ने कहा कि शांगहाई विश्व मेले में भारतीय भवन दिवस पर वे नृत्य केंद्र के कलाकारों के साथ चीन में कार्यक्रम प्रस्तुत कर रही हैं। यह उन के लिये एक बहुत गौरव की बात है, और वे बहुत खुश हैं।
शांगहाई की यह यात्रा सुश्री गीतांजली व नृत्य केंद्र के कलाकारों की पहली चीन यात्रा है। शांगहाई विश्व मेले के उद्यान में जहां से भी वे गुजरते हैं, वहां धूम मच जाती है। क्योंकि इतने भारतीय कलाकार एकसाथ हैं। पर्यटकों ने क्रमशः उन के साथ बातचीत की, और फ़ोटो खींची। चीनी लोगों की मैत्री व जोश ने भारतीय कलाकारों पर गहरी छाप छोड़ी है।
मंच पर कलाकारों की प्रस्तुति में दर्शक मानों भारत आ गये हैं, और वहां की रहस्यमय व विशेष संस्कृति को महसूस कर रहे हों। हपेइ प्रांत से आए श्री लुआन ने भारतीय कलाकारों की प्रस्तुति की खूब प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम देखकर भारत के प्रति उन का बड़ा शौक पैदा हुआ। वे भारतीय संस्कृति व रीति-रिवाज़ों को गहन रूप से महसूस करने के लिये भारत की यात्रा करने की प्रतीक्षा में भी हैं। श्री लुआन ने कहा कि, भारतीय नृत्य चीनी नृत्य से भिन्न है, लेकिन वह बहुत सुन्दर है। दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। भारतीय कलाकारों की प्रस्तुति से भारत के प्रति मेरा शौक बढ़ गया है। मैंने न सिर्फ़ भारतीय नृत्य बल्कि भारतीय संस्कृति व भारतीय जनता की भी समझ हासिल की है।
सच, कलाकारों के प्रति दर्शकों का स्वीकार सब से मूल्यवान् है। चीनी दर्शकों के हार्दिक स्वागत पर सुश्री गीतांजली बहुत प्रभावित हैं।
आजकल युग बदलने की वजह से ज्यादा से ज्यादा युवकों को पश्चिमी संगीत व नृत्य पसंद हैं। इसलिये क्लासिक नृत्य के विकास के सामने बड़ी चुनौती है। ज्यादा से ज्यादा युवकों को कैसे क्लासिक नृत्य पसंद आए ? भारतीय परंपरागत संस्कृति का कैसे विकास किया जाए? यह मामला वरिष्ठ कत्थक कलाकार सुश्री गीतांजली हमेशा सोचती हैं।
वास्तव में लंबे समय तक कत्थक की शिक्षा में सुश्री गीतांजली के विद्यार्थी इधर-उधर मिल सकते हैं। भारत के बहुत प्रसिद्ध कत्थक कलाकार उन के शिष्य हैं। इस के अलावा ब्रिटेन के दारटिंग्टन कला कॉलेज व मॉरिशस आदि देशों में भी उन्होंने कत्थक सिखाया है। सुश्री गीतांजली ने कुछ चीनी विद्यार्थियों को भी सिखाया है। लेकिन वे इस पर संतुष्ट नहीं हैं। वे ज्यादा से ज्यादा चीनी लोगों को कत्थक सिखाना चाहती हैं। और वे चीन में भारतीय क्लासिक नृत्य व संस्कृति का प्रसार-प्रचार करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा चीनी लोगों को भारतीय संस्कृति को समझना और दोनों देशों की जनता के बीच आपसी समझ को मजबूत करना उन का एक सपना है।(चंद्रिमा)