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10-07-22
2010-07-22 10:24:27

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, मैं हेमा कृपलानी आप सब का हार्दिक स्वागत करती हूँ। श्रोता दोस्तो, यहाँ बीजिंग में अधिकतर लोग ट्रेन से यात्रा करते हैं। अब आप सोच सकते हैं कि किसी शहर की 17 करोड़ से भी ज़्यादा जनसंख्या हो तो ट्रेन में सफर करने वाले लोग भी उतने होंगे, तो कितनी भीड़ रहती होगी। क्या हाल होता होगा ट्रेनों का सुबह और शाम के समय। भीड़,धक्कम-धक्का,संघर्ष ट्रेन में चढ़ते समय, उतरते समय। जी नहीं, ऐसा कुछ नहीं होता यहाँ, हैरान हो गए न आप यह सुनकर। जी हाँ, सही सुना आपने ऐसा कुछ नहीं होता। दिल्ली में चलने वाली मेट्रो की तरह दिखने वाली ट्रेन को यहाँ सबवेय कहते हैं। साफ-सुथरी सबवेय पूरे बीजिंग से अच्छी तरह से जुड़ी हुई है। आप 2 युवान की टिकट में सबवेय से कहीं भी आ-जा सकते हैं।स्टेशन से लेकर सबवेय तक सब कुछ सुव्यवस्थित, अनुशासित है। लोग स्टेशन पर सबवेय के दरवाज़े की दाईं और बाईं ओर कतार में खड़े रहते हैं ताकि ट्रेन से लोग पहले उतरे फिर चढ़ने वाले चढ़ें। चाहे कितनी भीड़ हो धक्का-मुक्की नहीं होती। हाँ, महिलाओं और पुरूषों के लिए अलग-अलग डिब्बे नहीं होते। जिसकी आवश्यकता भी महसूस नहीं होती। यहाँ की सबसे अच्छी बात जो मुझे पसंद है, कि अगर सबवेय में छोटा बच्चा या कोई बुजुर्ग चढ़ता है तो लोग उठ-उठ कर उन्हें अपनी सीट देते हैं। या फिर मेरे जैसे विदेशी को देखकर बात करने की पहल करते हैं और अगर मैं कभी-कभी भारतीय कपड़े पहनकर सबवेय से यात्रा करती हूँ तो पूछते हैं-क्या तुम भारतीय हो और जवाब देने पर कहते हैं। प्याओलियांग यानि तुम सुंदर हो। एक बताऊँ, यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगता है।

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पडो़सन के पास मंहगे कपड़े हैं –मेरे पास नहीं, वह मुझसे ज्यादा खूबसूरत है, कलीग को हर साल प्रमोशन मिलता है-मुझे नहीं...या फिर मेरी सहेली स्मार्ट है-ज्यादा कमाती है, मेरे दोस्त पढा़ई में मुझसे अच्छे हैं, कोई मुझसे बात क्यों नहीं करता? लोग मुझे महत्व नहीं देते। बच्चों, युवाओं, पुरुषों-स्त्रियों सभी में हो सकती है ऐसी भावना। दरअसल ऐसे विचार पैदा होते हैं हीन भावना के कारण। किन्हीं खास स्थितियों में हम सभी खुद को हीन महसूस करते हैं। मगर जब यह भावना मनोरोग में बदल जाए, व्यक्ति अपने भीतर मौजूद तमाम सकारात्मक गुणों को भूल जाए तो जिंदगी नरक बन जाती है।

आज हम ऐसी ही भावनाओं के बारे में बात करते हैं। मैंने एक लेख में पढ़ा था।

मनोविज्ञान या मनोविश्लेषण की भाषा में हीन भावना वह है, जिसमें व्यक्ति खुद को दूसरे की तुलना में हीन महसूस करता है। इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले डॉ. अल्फ्रेड एडलर (1870-1937) ने किया, जो डॉ. सिगमंड फ्रायड के शिष्य थे। सामान्य स्थिति में इस भावना से ग्रस्त व्यक्ति को प्रोत्साहन दिया जाए तो वह बेहतर प्रदर्शन दे सकता है। बचपन में प्रोत्साहन या तारीफ पाने, थोडा़ हीन महसूस करने की भावना लगभग सभी में होती है। बढ़ती उम्र में माता-पिता, रिश्तेदारों, शिक्षकों और समाज का प्रोत्साहन व सहयोग आत्मविश्वास के लिए जरूरी होता है। नकारात्मक, आलोचनात्मक, तुलनात्मक दृष्टिकोण किशोरावस्था में हीन भावना पैदा कर सकता है। सामाजिक-आर्थिक-शैक्षिक और सांस्कृतिक परिवेश का भी व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है। यह सारी उम्र आपके साथ रहती हैं।

कुछ खास लक्षण देखे जा सकते हैं ऐसे लोगों में। हीन भावना से ग्रस्त लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है। वे शर्मीले, डरपोक, संकोची, अकेले रहने वाले या अति-संवेदनशील होने लगते हैं। कम उम्र के ऐसे बच्चे माता-पिता से चिपके रहते हैं या लोगों से दूर भागते हैं। दूसरी ओर कई बार हीन भावना आक्रामक बनाती है। इससे स्वभाव में चिड़चिडा़पन आने लगता है। व्यक्ति बहस या तर्क करता है, बात-बात पर झगडा़ कर सकता है। इस भावना से ग्रस्त बच्चे लोगों का ध्यान आकृषित करने के लिए बेवजह जिद करने, चीजें फेंकने, भीड़भाड़ वाली या फिर सार्वजनिक जगहों पर जोर-जोर से बोलने या चिल्लाने जैसी हरकतें भी करते हैं।

असुरक्षा की भावना, फोबिया, गुस्सा, हिंसा, ईर्ष्या, संदेह, अकेलापन जैसे कई लक्षण इस रोग के हो सकते हैं। इससे बचने के लिए आप इन बातों का ध्यान रख सकते हैं।

1. ऐसे माहौल, लोगों और स्थितियों से दूर रहने की कोशिश करें, जहां हीनता महसूस हो।

2. अपने सकारात्मक गुणों को एक डायरी में लिखें। उसे रोज पढें और अपनी सराहना करें।

3. अपनी सीमाएं पहचानें। जरूरी नहीं कि आपने अपने जीवन में बडी़ सफलता प्राप्त की हों। जहां पर हैं, वहां पहुंचने में भी बरसों की मेहनत लगी है। इसका महत्व समझें और अपनी योग्यता को पहचानें।

4. अपने दोस्तों-सहेलियों और सामाजिक परिवेश को देखें। कहीं उसमें हीन भावना के बीज तो नहीं छिपे हैं। अपने स्तर, समान रुचियों और स्थिति वाले लोगों से मेलजोल बढा़एँ।

5. यदि आपको लगता है कि लोग आपको नजरअंदाज करते हैं, या आप पर ध्यान नहीं देते तो इसका अर्थ है कि आप दूसरों से कुछ ज्यादा अपेक्षा रख रहे हैं। खुद से प्यार करें, खुद को महत्व दें और अपनी क्षमताओं पर भरोसा रखें। अपना सम्मान आप ही नहीं करेंगे तो फिर दूसरों से कैसे अपेक्षा रख सकते हैं!

श्रोताओ, ऐसे दिल के अनछुए तारों को छेड़ने का प्रयास कर रही हूँ। आशा करती हूँ कि आपको मेरा यह प्रयास अच्छा लग रहा है और आप भी सहमत होंगे मुझसे। ज़रूर लिख भेजे अपने विचार इस विषय पर।

श्रोताओ, एक भारतीय नारी का काफी समय रसोई में बितता है, तो रसोई के रखरखाव, साफ-सफाई का भी उतना ध्यान रखना बहुत ज़रूरी हो जाता है। यहाँ चीन में रसोई की बनावट पर खास ध्यान दिया जाता है। रसोई में रोशनी का पूरा प्रबंध किया जाता है, यह ध्यान रखा जाता है कि रसोई में अंधेरा न हो, जितनी हो सके प्राकृतिक रोशनी आनी चाहिए रसोई में। हर घर की रसोई में चिमनी लगी होती है ताकि धुएँ और भोजन में प्रयोग होने वाले तेल, मसालों के कारण पैदा होने वाली चिकनाई से रसोई की साफ सफाई पर असर न पड़े। तो, आज घर-संसार के सेक्शन में हम आपको रसोई की साफ-सफाई के बारे में कुछ जानकारियाँ देंगे।

1. रसोई में डस्टबिन की अलग जगह बनाएँ। डस्टबिन के नीचे अखबार बिछा दें। इससे डस्टबिन का तल साफ रहेगा।

2. जहाँ तक हो सके, रसोई में ढक्कनबंद कूड़ेदान रखें। उसमें गारबैज बैग लगाएँ, जिससे कूड़ा आसानी से फेंका जा सके और आपका कूड़ेदान साफ रहे।

3. कीड़े-मकोड़े कूड़ेदान को अपना घर ना बनाएँ, इसके लिए उसकी तली में थोड़ा-सा बोरेक्स पाउडर छिड़कें।

4. मक्खियों को रसोई से दूर रखने के लिए कड़ाही या लोहे का बर्तन गर्म करके उस पर कपूर की डली रख दें।

5. आम की सूखी पत्तियों को जलाने से भी रसोई में मक्खियाँ नहीं आतीं।

6. अंडा बनाने-खाने में प्रयुक्त बर्तनों को नींबू के छिलके या प्रयोग की गयी चाय की पत्तियों से साफ करें।

7. पानी में सिरका मिला कर धोने से भी अंडे की महक चली जाती है।

8. प्याज के रस में सिरका मिला कर धोने से भी बर्तनों के दाग साफ हो जाते हैं।

9. सिंक में खारे पानी से बननेवाली लाइनों, धब्बों को छुड़ाने के लिए किसी पुराने कपड़े में सिरका लगा कर इन निशानों पर रगड़े, सिंक साफ हो जाएगा।

10.रसोई में जहाँ अनाज के या अन्य खाने-पीने की चीज़ों के डिब्बे रखे हो वहाँ कोनों में कपूर की टिक्कियाँ रखिए, कीड़े-मकोड़े उस स्थान पर नहीं आएँगे।

11.सिंक हो या अन्य पानी वाले स्थान को जाली लगा कर बंद रखिए ताकि कीड़े-मकोड़े वहाँ अपना घर न बना सकें।

रसोई साफ हो गई, तो देर किस बात की, लग जाएँ काम पर। चलिए बनाते हैं-- सूप स्टिक्स

श्रोताओ, आज हम आपको सूप स्टिक्स बनाना सीखा रहे हैं। जिसे सूप के साथ सर्व करते हैं। सूप के साथ में यह बहुत स्वाद लगती हैं।

सामग्रीः

मैदा – ढाई कप

मक्खन – 2 बड़े चम्मच

चीनी – 1 छोटा चम्मच

नमक - 1 छोटा चम्मच

सूखा यीस्ट(खमीर) – 3 छोटे चम्मच

हल्का गरम दूध – 1/2 कप

लहसुन का पेस्ट - 1 छोटा चम्मच

विधि

1. सभी साम्रगी को मिलाकर दूध की सहायता से अच्छी तरह गूंध लें।

2. ढक कर एक गरम स्थान पर 1/2 घंटे के लिए रख दें।

3. अब छोटी-छोटी लोइयाँ ले कर हाथों से लंबा-लंबा रोल कर लें।

4. 15-20 मिनट के लिए गरम ओवन में बेक करें। अगर ओवन न हो तो तल लें।

5. गरम-गरम सूप मक्खन के साथ परोसें।

सूप को और स्वादिष्ट बनाने के 2 तरीके मैं आपको बताती हूँ।

1. सूप में कालीमिर्च तथा काला नमक डालने से वह चटपटा हो जाता है।

2. सूप में हाजमोला की 1-2 गोली डाल कर देखें। सूप लाजवाब बनेगा।

श्रोताओ, आशा करती हूँ कि हमारे द्वारा बताई गई रेस्पिस आपको पसंद आ रही होंगी। आप इन्हें बनाकर अपने परिवार के साथ मिलकर इनका मज़ा ले रही होंगी और तारीफें बटोर रही होंगी।

श्रोताओ, आपको हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम का यह सोलहवा क्रम कैसा लगा। हम आशा करते हैं कि आपको पसंद आया होगा। आप अपनी राय व सुझाव हमें ज़रूर लिख कर भेजें, ताकि हमें इस कार्यक्रम को और भी बेहतर बनाने में मदद मिल सकें। क्योंकि हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम आप से है, आप के लिए है, आप पर है। सफलता, इस दुनिया में आपकी पहचान बनाती है और असफलता या हार दुनिया से आपकी पहचान करवाती है। इसी संदेश के साथ हमारा न्यूशिंग स्पेशल कार्यक्रम यहीं समाप्त होता है। आप नोट करें हमारा ई-मेल पताः hindi@cri.com.cn । आप हमें इस पते पर पत्र भी लिख कर भेज सकते हैं। हमारा पता हैः हिन्दी विभाग, चाइना रेडियो इंटरनेशनल, पी .ओ. बॉक्स 4216, सी .आर .आई.—7, पेइचिंग, चीन , पिन कोड 100040 । हमारा नई दिल्ली का पता हैः सी .आर .आई ब्यूरो, फस्ट फ्लॉर, A—6/4 वसंत विहार, नई दिल्ली, 110057 । श्रोताओ, हमें ज़रूर लिखयेगा। अच्छा, इसी के साथ मैं हेमा कृपलानी आप से विदा लेती हूँ इस वादे के साथ कि अगले हफ्ते फिर मिलेंगे।

तब तक प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें। नमस्कार

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