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चीन-भारत राजनयिक संबंध की 60वीं जयंति की ज्ञान प्रतियोगिता----राजनीति
2010-03-30 15:43:44

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। श्रोता दोस्तो, चीन व भारत दोनों विश्व की पुरानी सभ्यता वाले देश हैं। पुराने समय से दोनों देशों के बीच परम्परागत मैत्री चलती आयी है। इस वर्ष चीन व भारत के बीच राजनयिक संबंध की स्थापना की 60वीं वर्षगांठ है। इस मौके पर सी आर आई हिन्दी सेवा चीन भारत राजनयिक संबंध की 60वीं जयंति के उपलक्ष्य में ज्ञान प्रतियोगिता कर रहा है और इस के लिए तीन परिचयात्मक आलेख प्रसारित कर रहे हैं, जिस में हरेक आलेख के लिए एक प्रश्न रखा जाएगा । आज के इस कार्यक्रम में चीन भारत राजनीतिक संबंध के बारे में परिचयात्मक आलेख प्रस्तुत होगा और इस के लिए जो सवाल रखा गया है वह है कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत किन तीनों देशों द्वारा प्रस्तुत हुआ था?

दोल्तो, चीन व भारत के बीच कई हजार वर्षों का मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान का इतिहास है। जैसा कि चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने कहा था कि चीन व भारत के बीच आदान-प्रदान के पिछले 2000 से ज्यादा वर्षों में 99.9 प्रतिशत समय में मैत्रीपूर्ण सहयोग का इतिहास रहा है। पुराने समय में चीन व भारत ने बौद्ध धर्म के जरिये ऐतिहासिक आवाजाही की। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में चीन व भारत की जनता ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता व जन-मुक्ति के संघर्ष में एक दूसरे का समर्थन किया और दोनों देशों को क्रमशः स्वतंत्रता व मुक्ति हासिल हुई। उस वक्त, हिन्दी-चीनी भाई-भाई का नारा दोनों देशों की जनता के दिल में गूंजता रहता था। दोनों देशों की कई पीढ़ियों के नेताओं ने रणनीतिक ऊंचाई पर चीन-भारत संबंध के विकास को बड़ा महत्व दिया और ऐतिहासिक योगदान भी किया था। वैदेशिक राजनीति में चीन व भारत एक बहुध्रुवीकरण व बहु-केंद्रीय दुनिया की स्थापना करने का पक्ष लेते हैं, प्रभुत्ववाद व बल राजनीति का विरोध करने, एक देश या ईने-गिने देशों द्वारा दुनिया का नेतृत्व करने का विरोध करते हैं। वर्ष 1954 के जून माह में चीन , भारत व म्यांमार ने संयुक्त रुप से पंचशील यानी शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत प्रस्तुत किये। ये सिद्धांत इतिहास के रुझान के अनुकूल प्रस्तुत किये गये थे, और अभी तक लोगों की जुबान पर हैं। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की अभी भी प्रासंगिकता है। भूतपूर्व चीनी उप विदेश मंत्री ल्यू शू छींग ने कहा, इतिहास व अंतर्राष्ट्रीय तथ्यों से यह साबित हुआ है कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत हमेशा ही प्रासंगिक हैं, उन की मजबूत जीवन-शक्ति है। विचारधारा व सामाजिक व्यवस्था को पारकर विश्व के व्यापक देशों व उन की जनता द्वारा ये स्वीकार्य हैं।

शांति व विकास की खोज करना वर्तमान दुनिया की जनता की समान अभिलाषा है। शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों से प्रेरित शांति विकास की विचारधारा ने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के स्वस्थ विकास, शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण व उचित नयी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। लम्बे अरसे से, पंचशील विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के दस्तावेजों में लिखा गया है और दुनिया के विभिन्न देशों व देशों के बीच संबंधों का निपटारा करने का बुनियादी मापदंड भी बन गया है। पंचशील विभिन्न सामाजिक व्यवस्था वाले देशों के बीच के संबंधों का निपटारा करने में भी कारगर बन सकते हैं।

21वीं शताब्दी की शुरूआत के बाद, चीन व भारत का संबंध चतुर्मुखी विकास की प्रवृत्ति पर रहा है। इधर के वर्षों में चीन व भारत के संबंधों का निरंतर आगे विकास होता जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्रों में दोनों ने सलाह-मश्विरे व सहयोग को मजबूत किया है, दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच आपसी यात्रा भी हो रही हैं। 2005 चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने भारत की औपचारिक मैत्रीपूर्ण यात्रा की और स्थिर रणनीतिक साझेदारी संबंधों की स्थापना की। 2006 चीनी राष्ट्रपति हू चिन थाओ भी भारत की राजकीय यात्रा की। ये महत्वपूर्ण यात्राएं अवश्य ही आपसी समझ , आपसी विश्वास को मजबूत करेंगी और सहयोग का विकास भी करेंगी। चीन का शांतिपूर्ण विकास किसी के लिए खतरा नहीं है, यह विचार अब अधिक से अधिक भारतीय अधिकारियों व जनता को स्वीकृत हुआ है। कहा जा सकता है कि यह सब दोनों देशों के बीच दिन ब दिन घनिष्ठ, बहुपक्षीय आवाजाही व सहयोग पर निर्भर हुआ है। केवल आपसी आवाजाही से ही समझ को मजबूत किया जा सकेगा, मतभेदों को दूर किया जा सकेगा और सहयोग का विकास किया जा सकेगा।

दोनों देशों के बीच मौजूद इतिहास द्वारा छोड़ी गईं कुछ समस्याओं के समाधान के लिए दोनों देशों ने सक्रिय प्रयास किया है। 80 के दशक से 90 के दशक तक, दोनों पक्षों ने सीमा समस्या पर अनेक चरणों की वार्ताएं की हैं, जिन में अधिकारी स्तरीय वार्ता तथा राजनीति व सैन्य विशेषज्ञों के दल की वार्ताएं शामिल हैं और कुछ प्रगतियां भी हासिल हुई हैं। वर्ष 2003 में भारतीय प्रधान मंत्री वाजपेई की चीन यात्रा के दौरान, उन्होंने चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ के साथ सीमा समस्या पर समझदारी प्राप्त की। दोनों देशों के प्रधान मंत्रियों के बीच संपन्न मेमोरेडम के अनुसार, दोनों देशों की सरकारों ने साहसपूर्ण निर्णय लेकर सीमा समस्या के विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किये और विशेष प्रतिनिधियों की भेंटवार्ता की व्यवस्था की स्थापना भी की। भारत स्थित भूतपूर्व चीनी राजदूत श्री च्यो कांग को चीन व भारत के बीच ऐतिहासिक समस्या का समाधान होने का पक्का विश्वास है। उन के अनुसार, दोनों के बीच मौजूद ऐतिहासिक समस्या के प्रति हमें भविष्य की ओर आगे देखने का रुख अपनाना चाहिए। चीन सरकार सीमा समस्या का समाधान करने में हमेशा ही सक्रिय रुख अपनाती रही है। चीन आशा करता है कि आपसी समझ व रियायत देने की भावना से मैत्रीपूर्ण वार्ता के जरिये दोनों के लिए स्वीकार्य न्यायपूर्ण व उचित तरीकों की खोज की जा सकेगी। मुझे विश्वास है कि जब चीन व भारत इस अभिलाषा से सीमा समस्या का हल करने की कोशिश करेंगे, तो वे अवश्य ही अच्छे तरीकों की खोज कर सकेंगे। श्रोताओ, चीन व भारत में अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय समस्या पर संपर्क बरकरार रहता है। दोनों के बीच व्यापक समान विचार हैं। दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों के तेज़ विकास ने दोनों को रणनीतिक वार्तालाप के लिए ऐतिहासिक मौका दिया है। दोनों देशों के संबंधों को आगे विकसित करने के लिए, दोनों देशों की सरकारों की पुष्टि में चीन-भारत के जाने-माने व्यक्तियों के मंच की स्थापना हुई। मंच के सदस्यों में राजनीति, अर्थतंत्र, समाज, विज्ञान, तकनीक व संस्कृति के जगत से दोनों देशों के जाने-माने व्यक्ति शामिल हैं। चीन-भारत नामी व्यक्ति मंच का प्रमुख मिशन गैरसरकारी प्लेटफार्म पर द्विपक्षीय संबंधों का विकास करने के लिए सुझाव पेश करना है, और सरकार को परामर्श देना है। वह दोनों देशों की सरकारों की परामर्श संस्था है, और गैरसरकारी क्षेत्रों में की गयी एक गतिविधि है।

21वीं शताब्दी में चीन व भारत प्रतिद्वंदी नहीं हैं,तो सहयोग के साझेदार हैं। अंतर्राष्ट्रीय मामलों में दोनों के बीच व्यापक सहमतियां व समान हितों की भावना है। आंकड़ों के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र संघ के विभिन्न सवालों के मतदान में अधिकांश मामलों में भारत व चीन का रुख एक जैसा है। अब दोनों देशों के सामने आर्थिक-विकास और जनता के जीवन स्तर को उन्नत करने के समान कार्य हैं। दोनों के बीच सहयोग करने की आवश्यक्ता व संभावना है। दोनों को एक दूसरे से सीखना और सहयोग करना चाहिए। चीन व भारत के संबंधों के भविष्य के प्रति चीनी आधुनिक अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की अनुसंधान संस्था के प्रोफेसर मा जा ली बहुत आशावान हैं। उन्होंने कहा कि समय के गुजरने के साथ-साथ इतिहास द्वारा छोड़ी गयी कुछ समस्याओं का धीरे-धीरे हल किया जा सकेगा। चीन व भारत के बीच राजनीतिक संबंध और घनिष्ठ होगा। चीन व भारत विश्व व क्षेत्र की स्थिरता की खोज करने, राष्ट्रीय स्वतंत्रता की रक्षा करने और आर्थिक वृद्धि को साकार करने में ज़रुर सफल होंगे। दो आर्थिक समृद्ध बड़े विकासमान देश होने के नाते, उन के बीच सहयोग इस क्षेत्र के लिए, यहां तक कि सारी दुनिया की शांति व विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

चीन व भारत के भविष्य के प्रति प्रोफेसर मा जा ली को पक्का विश्वास है। उन्हों ने कहा कि मेरा विचार है कि चीन व भारत के बीच एक स्वस्थ व अच्छे पड़ोसी जैसे मैत्रीपूर्ण द्विपक्षीय संबंध स्थापित किये जा सकते हैं। चीन व भारत के संबंध स्वस्थ व सुभीतापूर्ण रुप से आगे विकसित होंगे।

अब चीन दक्षेस का पर्यवेक्षक देश बन चुका है, जबकि भारत भी शांगहाई सहयोग संगठन का पर्यवेक्षक देश बना है। दोनों देशों की सेना ने आवाजाही व सीमांत बलों ने भी एक दूसरे के यहां यात्रा की है। आपसी कल्याण व सहयोग चीन व भारत के संबंध के विकास की प्रमुख धारा बन गयी है। चीन व भारत विश्व में सब से बड़ी आबादी वाले देशों में से दो हैं। दोनों देशों की आबादी विश्व की आबादी का एक तिहाई से ज्यादा है। यदि दोनों देशों की जनता एक स्वर में आवाज उठाती है, तो वह विश्व में सब से शक्तिशाली आवाज़ होगी। दोनों देश आर्थिक विकास और जनता के जीवन को सुधारने का भारी मिशन निभा रहे हैं। दोनों देशों के तेज़ विकास से न केवल एशिया का पुनरुत्थान हुआ है, बल्कि अवश्य ही यह विश्व के विकास को भी आगे बढ़ा सकेगा। चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने चीन के एन पी सी और सी पी पी सी सी के वार्षिक पूर्णाधिवेशन में कहा कि चीन व भारत के संबंधों का विकास अब एक नये काल में प्रवेश कर गया है। उन्होंने विश्वास प्रकट किया, जब चीन व भारत सच्चे माइने में शक्तिशाली हो गए हैं, और अपनी भावना को अच्छी तरह प्रकट कर सकते हैं, तो वह सच्चे माइने में एशियाई शताब्दी का आगमन ही है।

दोस्तो, चीन भारत राजनयिक संबंध की 60वीं जयंति के बारे में परिचयात्मक आलेख यहीं तक। अब आप इस के लिए रखा गया सवाल फिर से ध्यान से सुनिए शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांत यानी पंचशील सिद्धांत किन तीन देशों द्वारा प्रस्तुत हुआ था?

श्रोता दोस्तो, चीन भारत राजनयिक संबंध की 60वीं जयंति के बारे में ज्ञान प्रतियोगिता के साथ साथ सी आर आई हिन्दी सेवा चीन से रिश्ता शीर्षक लेखन प्रतियोगिता का भी आयोजन कर रही है, जिस में आप लेख, कविता लिखकर चीन के प्रति अपना अनुभव या चीन से आप के किस प्रकार के रिश्ते के बारे में लिख सकते हैं। आप अपने लेख या कविता जैसी रचनाओं को ई-मेल या डाक द्वारा हमें भेज सकते हैं। हम उन में से श्रेष्ठ वाला चुन कर इनाम देते हैं। आशा है कि आप इस में भी सक्रिय रूप से हिस्सा लेंगे। हम आप की रचनाओं का इंतजार कर रहे हैं। अच्छा, दोस्तो अब आप से आज्ञा चाहते हैं, नमस्ते।

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