कल रात हम ने चिनहुंग पहुंच कर रात वहीं गुजारी और आज सुबह नाश्ता करने के बाद लगभग 1 30 किलोमीटर दूर शीशुआंगबाना की काऊंटी मंगला पहुंचे.हालांकि चीन के इतिहास व संस्कृति में मंगला एक बहुत प्राचीन जगह है जहां विभिन्न अल्पसंख्यक जातियां हजारों सालों से एक साथ मिलजुल कर रहती आई हैं और चीन के छह प्रसिद्ध चाय के पर्वतों में से पांच मंगला काऊंटी में ही अवस्थित हैं.और प्रसिद्ध फु अर चाय का उदगम स्थल भी यहीं है ,और वर्तमान में भी मंगला अपने अतुलनीय वर्षा वनों ,कई सौ दुर्लभ वनस्पति,जीवजन्तु,दो राष्ट्रीय पोर्ट ,पर्यटन स्थल और एशियन के लिए चीन के मुख्य द्वार के रुप में प्रसिद्ध है,किंतु पहली नज़र में देखने पर मंगला शहर थोड़ा सा सुप्त,थोड़ा सा एक पुराना कस्बे जैसा,पुरानी संस्कृति और इतिहास के साथ-साथ पुरानी आदतों और गलियों को भी मानों सहेज कर रखे हुए प्रतीत होता है.यहां इस समय ताई,हानि,ई,याओ,म्याओ,चुआंग आदि जनजातियां रहती हैं जो यहां की कुल जनसंख्या 256.000 का लगभग 72% है.
पुराने समय में यदि हम बाहर कहीं घूमने जाते और वहां मौजूद डाक बंगले या गैस्ट हाऊस या होटल में यदि बिजली की सुविधा नहीं होती,तो हम मान लेते थे कि यह इलाका विकास की दृष्टि से पिछड़ा हुआ है.सन 2009 में चीन में विकास की स्थिति यह है कि यदि आप को किसी जगह होटल में इंटरनेट की सुविधा न मिले ,तो आप निश्चित रुप से सोचेंगे कि यह जगह अभी विकास की दृष्टि से पिछड़ी हुई है.मंगला आ कर ऐसा ही महसूस हुआ.होटल में न केवल इंटरनेट की सुविधा नहीं है बल्कि कमरे पुराने,और कार्पेट पर धब्बों कि निशान और सब से मजेदार बात कि बाथरुम में अर्धनग्न स्त्रियों की दीवार पर लगी तस्वीरें..ऐसा लगता है इस होटल में पुरुषों और महिलाओं और परिवार के लिए कमरे अलग-अलग हैं.लेकिन जिस गति से मंगला अब विकास की राह पर है उस से ऐसा लगता है कि यदि कभी अगली बार हम यहां आएंगे तो स्थिति बदल चुकी होगी.
कमरों में सामान रख कर पहले हम एक ताई जनजाति के रेस्तरां में गए जो वर्षावन के बीच में बना हुआ है.वहां दोपहर का खाना खा कर हम ने लानछांग नदी की एक सहायक नदी नौ किलोमीटर लम्बी नानला नदी की बोट से यात्रा की.नानला नदी वर्षो वन के बीचोंबीच हो कर गुजरती है इसलिए इस की छोटी-छोटी सहायक नदियों के स्रोतों का अभी तक पता नहीं चल पाया है ,वे वर्षावन के भीतर ही छुपे हुए हैं.रहस्यमयी नानला नदी और वर्षावन की सैर करने के बाद हम लोग लगभग दो घंटे तक वर्षावन में से पैदल चल कर वर्षावन के रहस्य को समझने की नाकाम कोशिश करते हुए वापिस रेस्तरां आए. बाद में पास ही में ताई जनजाति के एक गांव में गए,जहां रात का खाना खाया.ताई जनजाति के पारंपरिक घर देखे.ताई जाति के कुछ गांव के लोगों से बात की जो पिछले नौ साल में अपने जीवन की बदली स्थिति के प्रति खुश हैं.कल भी हम मंगला में रहेंगे और कुछ और जगहें देखेंगे.