ललिताः यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है। आप की पसंद कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को ललिता का प्यार भरा नमस्कार।
राकेशः राकेश का भी सभी श्रोताओं को प्यार भरा नमस्कार। आइए, श्रोताओ, कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं किशोर कुमार और लता के इस एक गीत से।
गीत के बोलः
किशोर: गोरी गोरी गाँव की गोरी रे
किस लिये बुन रही डोरी रे
लता: ओ पिया, डोरी से बाँध ले गोरी रे
भागे जो करिके तू चोरी रे
ऐ जिया
किशोर: गोरी गोरी गाँव की गोरी रे
कच्चे हैं तेरे ये रेशम के धागे
टूट जाये जो कोई तोड़के भागे
लता: जब से सैय्यन, तोसे नेहा लागे
पीछे पीछे मैं हूँ, तू आगे आगे
खिंचे चले आओगे, जाओगे जहाँ
जाके देखो तो बरजोरी रे
ओ पिया
किशोर: गोरी गोरी गाँव की गोरी रे
मैं तो उड़ जाऊँगा इक पंछी जैसे
मुझे तू बन्दी बना लेगी कैसे
लता: तुझे मैं बन्दी बना लूँगी कैसे
सैय्यन, बैंया में बैंया डाल के ऐसे
तोरे होंठों से लग जाऊँगी मैं
बनके बाँसुरिया तोरी रे
ओ पिया
किशोर: गोरी गोरी गाँव की गोरी रे
मैं हूँ परदेसी
मैं हूँ परदेसी, सुनले फिर ना कहना
चला जाना है, यहाँ नहीं रहना
लता: तेरा रस्ता देखेंगे मेरे नैना
यूँ ही दिन बीतेगा, बीतेगी रैना
चहे छुप जा तू घटाओं में चंदा
ढूँढ लेगी ये चकोरी रे
ओ पिया
किशोर: गोरी गोरी गाँव की गोरी रे
किस लिये बुन रही डोरी रे
लता: ओ पिया, डोरी से बाँध ले गोरी रे
भागे जो करिके तू चोरी रे
ऐ जिया
ललिताः श्रोताओ, आप को मालूम ही होगा कि हमने हिन्दी विभाग की स्थापना की 50वीं वर्षगांठ पर एक ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन किया था। जिला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ के ग्रीन पीस डी एक्स क्लब के हमारे श्रोता चुन्नीलाल कैवर्त जी ने इस ज्ञान प्रतियोगिता के विशेष पुरस्कार के विजेता के रूप में चीन की यात्रा की। अब वे भारत वापस लौट गए हैं।
राकेशः जी हां, चुन्नीलाल जी ने चीन के सबसे बड़े दो शहर पेइचिंग और शांगहाई की यात्रा की और भी बहुत से पर्यटन स्थलों का दौरा किया। चीन में उन्होंने बहुत आन्नद उठाया। भारत वापस के बाद चुन्नीलाल जी ने हमें एक ई-मेल भेजी है। ये लिखते हैं कि सी. आर. आई. हिंदी परिवार के सभी भाई बहनों को मेरा प्यार भरा सादर नमस्कार और हार्दिक शुभकामनाएं। चीन की अपनी सफल और यादगार यात्रा पूरी करके मैं सकुशल अपने गांव भारत लौट चुका हूं। मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूं, कि मुझे अपनी आंखों से चीन की महान धरती को देखने और चीनी लोगों के साथ कुछ दिन आनंद के साथ बिताने का स्वर्णिम अवसर मिला। इस सहयोग के लिए मैं सी. आर. आई. हिंदी परिवार का सदा आभारी रहूंगा। आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद। चीन एक महान और सुंदर देश है तथा यहां के भाई बहन भी बहुत अच्छे हैं। भारतीयों का बहुत आदर और बहुत प्रेम करते हैं। आगे चुन्नीलाल जी लिखते हैं जीवन में मैं एक बार फिर चीन जाना चाहता हूं। अगर इस जन्म में नहीं तो अगले जनम में। मुझे आप सबकी बहुत याद आती है। सी. आर. आई. हिंदी परिवार के साथ मेरा संबंध अटूट है। चीन की यात्रा से मेरे क्लब के सदस्य, मित्र परिजन और ग्रामीण जन बेहद खुश हैं और बधाई दे रहे हैं। अगर मुझसे कोई भूल हुई हो, तो क्षमा कर दीजिएगा।
ललिताः चुन्नीलाल जी, ई-मेल भेजने के लिए बहुत धन्यवाद। हम भी बहुत खुश हैं कि हमें आप के साथ अविस्मरणीय समय बिताने का अवसर मिला। आशा है आइंदा भी आप हमारे कार्यक्रम सुनते रहेंगे और हमें पत्र भेजते रहेंगे।
राकेशः और हमारी आशा है कि अन्य श्रोताओं को भी चुन्नीलाल जी की ही तरह कभी न कभी चीन आने का मौका मिलेगा। आप हमारे कार्यक्रम सुनते रहें और हमारी हौंसला अफजाई करते रहें।
ललिताः कार्यक्रम का दूसरा गीत पेश है "गाईड" फिल्म से और इसे गाया है आर. डी. बर्मन ने।
गीत के बोलः
काहे को रोये, चाहे जो होये
सफ़ल होगी तेरी आराधना
काहे को रोये
आँखे तेरी काहे नादान
छलक गयी गागर समान
समा जाये इस में तूफ़ान
जिया तेरा सागर समान
जाने क्यों तूने यूँ
असुवन से नैन भिगोये
काहे को रोये
कहीं पे है सुख की छाया
कहीं पे है दुखों का धूप
बुरा भला जैसा भी है
यही तो है बगिया का रूप
फूलों से, कांटों से
माली ने हार पिरोये
काहे को रोये
दिया टूटे तो है माटी
जले तो ये ज्योति बने
आँसू बहे तो है पानी
रुके तो ये मोती बने
ये मोती आँखों की
पूँजी है ये न खोये
काहे को रोये