हर वर्ष अप्रैल माह में चीन के भीतरी इलाके के कुछ क्षेत्र वसंत ऋतु में प्रवेश करते हैं, लेकिन छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित छिंगहाई झील बर्फीली दुनिया में होता है। इस झील के उत्तर में बीस या तीस किलोमीटर दूर स्थित नारन दलदल भूमि पर सैकड़ों सफेद जंगली हंस यहां से साइबेरिया व सिनच्यांग आदि क्षेत्रों तक जाते हैं। साथ ही काली गर्दन वाले सारस, सफ़ेद बगुले दूसरी जगहों से यहां वापस लौटते हैं। इन पक्षियों के आने से नारन दलदल भूमि में चहचहाट होने लगी, दूर से लाए घास की सुगंध से यहां ताज़गी पैदा हो गई है।
इन दिनों छिंगहाई झील के पास रहने वाला तिब्बती चरवाहा च्यावू छाईरांग कभी कभार कैलेंडर देखता है और उंगलियों से गणित करता है, साथ ही वह नारन दलदल भूमि जाकर एक कंक्रीट के स्तंभ पर चढ़कर दक्षिण की ओर देख रहा है। क्या वह दूर अपने परिजनों का इन्तज़ार कर रहा है?नहीं। वह एक-एक पक्षी की वापसी के इंतज़ार में है। तिब्बती बंधु च्यावू छाईरांग ने कहा:
"मैंने देखा कि पहला सफ़ेद बगुला आ रहा है, पहला फ़िशगाल आ गया है। उन्होंने मुझ से कहा कि काली गर्दन वाले सारस भी आने वाले हैं और जाहिर है कि छिंगहाई झील की बर्फ़ जल्द ही पिघलने लगेगी। पिछले साल मैंने देखा कि काली गर्दन वाले सारसों के बालों का रंग नया नहीं था, इससे पता चलता है कि उन्होंने अच्छा जीवन नहीं बिताया। आशा है कि इस वर्ष मैं एकदम नए बालों वाले काली गर्दन के सारस देख सकूंगा।"
42 वर्षीय च्यावू छाईरांग पशुपालन करता है। पीढ़ी दर पीढ़ी छिंगहाई झील के पास स्थित कांगछा कांउटी के नारन क्षेत्र में स्थित है, जो नारन दलदल भूमि के आसपास है।
नारन मंगोलियाई भाषा का शब्द है, मतलब है कि लम्बी व छोटी नदी। नारन दलदल भूमि का क्षेत्रफल 120 हैक्टेयर से अधिक है, जहां साल भर तीन झरने बहते हैं। इस तरह यहां जल घास व प्लवक यानी प्लांक्टन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं और विशेष दलदल भूमि है। वसंत और शरत ऋतु में यहां पहले राष्ट्र स्तरीय संरक्षित पक्षी काली गर्दन वाले सारस रहते हैं , जबकि सर्दियों में महा राजहंस रहते हैं। साल भर इस भूमि में बड़ी मात्रा में सुर्ख बतख और जंगली हंस आदि मौसमी पक्षी यहां आते हैं।
च्यावू छाईरांग एक सीधे सादे तिब्बती पुरूष हैं। उनकी आंखों में महा राजहंस, काली गर्दन वाले सारस छिंगहाई झील की आत्मा हैं, जिनकी रक्षा की जानी चाहिए। लेकिन नब्बे के दशक के पूर्व प्रबंधन व सुरक्षा न होने से कई शिकारी यहां जल पक्षियों का शिकार करने आते थे।
उस वक्त पक्षियों की चीख सुनकर च्यावू छाईरांग को बहुत दुख लगता था। वर्ष 1985 से उन्होंने स्वेच्छे से आर्द्रभूमि के पक्षियों के संरक्षण का कार्य शुरू किया, तब से आज तक बीस से ज्यादा वर्ष बीत चुके हैं। वह यहां आने वाले शिकारियों से जल पक्षियों को न मारने का आग्रह करता है। अगर कोई शिकारी जबरन जल पक्षियों को मारता है तो च्यावू छाईरांग उनकी गाड़ियों के नंबर रजिस्टर कर पुलिस को बताता है। कई साल बाद यहां कम संख्या में शिकारी आते हैं और आर्द्रभूमि में ज्यादा पक्षी आते हैं। पक्षियों की आर्द्रभूमि में आनंदमय आवाज़ सुनकर च्यावू छाईरांग को बहुत खुशी होती है, उसने कहा:
"मुझे जंगली हंस और जंगली बत्तख मारने आए शिकारियों को देखकर बहुत गुस्सा आता है और मैं उन्हें रोकने की कोशिश करता हूँ। आजकल इन पक्षियों की संख्या बढ़ गयी है। मैंने देखा कि वर्ष 2007 में काली गर्दन वाले सारसों की संख्या सिर्फ़ 36 थी, जबकि 2008 में 44 थी और 2009 में 71 तक बढ़ गई। दुनिया भर में सिर्फ 15 तरह के सारस पाए जाते हैं। नारन आर्द्रभूमि में मैंने तीन प्रकार के सारस देखे हैं। गत वर्ष मैंने और दो प्रकार के दुर्लभ जंगली पक्षियों को देखा, वे यहां आकर अंडा देते हैं, यह जानकर भी मुझे बड़ी खुशी हुई है।"
वर्ष 1997 में छिंगहाई झील प्राकृतिक संरक्षण केंद्र राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण केंद्र बना, जिससे झील के पास नारन आर्द्रभूमि में रहने वाले पक्षियों का अच्छी तरह संरक्षण होता है, लेकिन च्यावू छाईरांग आराम नहीं करता, वह ज्यादा समय पक्षियों की देखभाल में लगाता है।
च्यावू छाईरांग पक्षियों के साथ अपने परिजनों की तरह देखभाल करता है। अगर समय होता है, तो वह कॉर्न भर कर थैली को पीठ पर लादकर आर्द्रभूमि जाकर उन्हें खिलाता है, और वापस लौटकर स्वनिर्मित पक्षी निगरानी फ़ार्म में पक्षियों की संख्या, उनकी संबंधित कार्रवाई और आराम स्थल के बदलाव आदि को पंजीकृत करता है।
गत वर्ष दिसंबर में एक दिन च्यावू छाईरांग छिंगहाई झील आकर अवैध रूप से मछली पकड़ने वाले कई मछुआरों को देखा। उसने सोचा कि मछलियां पक्षियों का प्रमुख खाद्य पदार्थ हैं। इस तरह उसने उन मछुआरों के पास खड़े होकर उनका इन्तज़ार किया और उन्हें समझाया। अंत में वे मछुआरा चले गये और च्यावू छाईरांग भी वापस लौटा। इसकी याद करते हुए च्यावू छाईरांग ने कहा:
"उस दिन मौसम बहुत ठंडा था। मैंने वहां लम्बे समय तक खड़े होकर उनका इन्तज़ार किया। रात दस बजे के बाद वापस लौटा।"
पड़ोसियों का कहना है कि च्यावू छाईरांग नारन आर्द्रभूमि की जलीय पक्षियों को बहुत प्यार करता है। अगर किसी ने एक ही जलीय पक्षी के साथ दुर्व्यवहार किया, तो उसे एकदम गुस्सा आ जाता है। एक बार कई दोस्त जंगली हंस के फोटो लेने के लिए आर्द्रभूमि जाना चाहते थे, लेकिन च्यावू छाईरांग ने उन्हें रोकने की कोशिश की। उसने कहा:
"मैंने दोस्तों से कहा था कि अगर वे जलीय पक्षियों को परेशान करेंगे तो यह पक्षियों के शारीरिक विकास के लिए ठीक नहीं होगा।"
इस वर्ष मार्च में घास के मैदान में भारी बर्फ पड़ी। ठंडी हवा एक घंटे से ज्यादा समय बहती थी। बाहर से बर्फ़ देखते ही च्यांवू छाईरांग को जलीय पक्षियों की चिंता सताने लगी। वह मोटर साइकिल से उतरकर सीधे आर्द्रभूमि गए। वे दूसरी जगह न जाने वाले महा राजहंसों के लिए चिंतित हैं। उसने कहा:
"इस वर्ष हमारे यहां तीन महा राजहंसों की मौत हो गयी। एक बार मैंने एक लोमड़ी को एक महा राजहंस को काटते देखा, लेकिन हंस को कोई चोट नहीं आयी और अब वह बिल्कुल ठीक है। उस समय मैं वहां जाकर उन्हें देखना चाहता था।"
हवा बर्फ़ में च्यावू छाईरांग ने आर्द्रभूमि जाकर महा राजहंस की सहायता की। जब उनकी स्थिति सही सलामत हो गई, तो वह आराम से घर वापस लौटा।
इधर के वर्षों में च्यावू छाईरांग की देखरेख में नारन आर्द्रभूमि के जलीय पक्षी शिकारियों का शिकार नहीं बन पाए और पक्षियों के अंडे भी अच्छी तरह सुरक्षित रहते हैं। बीस से ज्यादा वर्षों में च्यावू छाईरांग ने दस से अधिक घायल जलीय पक्षियों का इलाज किया। च्यावू छाईरांग ने कहा कि पक्षियों की अपनी-अपनी भाषा होती है। इधर के सालों में वह यहां के जंगली जानवरों के साथ अच्छा दोस्त बन गया। सुबह महा राजहंस झील में नम्रता के साथ गाते हैं, शाम को काली गर्दन वाले सारस सूर्यास्त में खुशी के साथ नाचते हैं। इस प्रकार का दृश्य देखर च्यावू छाईरांग को बहुत आनंद होता है। उसने कहा:
"पक्षियों की अपनी-अपनी भाषा होती है। मैं कभी कभार उनकी भाषा की नकल कर उनके साथ आदान प्रदान करता हूँ। अब हम ज्यादा परिपक्व हो गए हैं और पक्षियों को मुझसे डर नहीं लगता। इसके लिए मैं बहुत खुश हूँ। सुबह मैं काली गर्दन वाले सारसों को देखता हूँ, वे आपस में नाचते हुए दूसरे का पीछा करते हैं। इतने नज़दीक से उन्हें देखते हुए मुझे बहुत गर्व लगता है। मानो मैं एक देव हूँ।"
इधर के वर्षों में नारन आर्द्रभूमि में रहने वाले जंगली पक्षियों के संरक्षण के लिए च्यावू छाईरांग ने बड़ी मेहनत की। वह कभी कभार आसपास के स्कूल जाकर विद्यार्थियों में संबंधित प्रसार कार्य करता है। अब वह बच्चों के दिल में पक्षियों का संरक्षण वाले देव बन गया है। कांगछा कांउटी के चोंगयांग जातीय स्कूल के कुलपति ली शूच्यान ने उस का मूल्यांकन करते हुए कहा:
"च्यावू को जंगली जानवर बहुत पसंद हैं। वह कभी कभार हमारे स्कूल के विद्यार्थियों को अखबार बनाने के लिए संबंधित सामग्रियां देते हैं, जिसके विषयों में हमारे घर का संरक्षण, जंगली जानवरों का संरक्षण आदि शामिल है। उसका मकसद है कि जंगली जानवरों के संरक्षण के लिए विद्यार्थियों की विचारधारा को मज़बूत करना है। अब च्यावू हमारे स्कूल के विद्यार्थियों के बीच बहुत मशहूर हो गए हैं।
छिंगहाई झील राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण केंद्र का प्रबंधन ब्यूरो द्वारा हाल में जारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक छिंगहाई झील व झील के आसपास के क्षेत्र में पक्षियों की किस्में गत नब्बे के दशक के 164 से बढ़कर अब 191 तक पहुंच गयी हैं। विभिन्न प्रकार के पक्षियों की कुल संख्या सबसे अधिक समय एक लाख से अधिक हो गई है। अब पवित्र छिंगहाई झील पक्षियों का स्वर्ग बन गया है। इस पर च्यावू छाईरांग को बहुत संतोष है।
छिंगहाई झील के राष्ट्र स्तरीय प्राकृतिक संरक्षण केंद्र के प्रबंधन ब्यूरो ने च्यावू छाईरांग को नारन आर्द्रभूमि के जंगली जानवर के संरक्षण व निगरानी कार्य के स्वयं सेवक के रूप में आमंत्रण किया। इसी आर्द्रभूमि में च्यावू छाईरांग जलीय पक्षियों के वास्तविक संरक्षण देव बन गया है।