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तिब्बतविद च्यांगप्यान च्यात्सो की असाधारण कहानी
2011-06-01 10:29:50

चीन के तिब्बत शास्त्र जगत में च्यांगप्यान च्यात्सो का नाम बहुत मशहूर है। एक गरीब तिब्बती परिवार से निकले वे चीनी जन मुक्ति सेना में भाग लेने वाले प्रथम खेप के तिब्बतियों में से एक थे और चीनी जन मुक्ति सेना में सबसे छोटी उम्र वाला तिब्बती सैनिक थे। नए चीन की स्थापना के बाद तिब्बत से भीतरी इलाके में पढ़ने आए प्रथम खेप के तिब्बती युवाओं में से एक वो भी थे, चौदहवें दलाई लामा और दसवें पंचन लामा के दुभाषिया के रूप में वे अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के साक्षी बने। वे तिब्बती भाषा में उपन्यास रचने वाला पहला समाकालिक तिब्बती लेखक हैं और चीन में प्रथम उप अनुसंधानकर्ता उपाधि प्राप्त तिब्बती व प्रथम पीएचडी पढ़ाने वाले तिब्बती अध्यापक भी हैं। आज सत्तर से ज्यादा उम्र वाले च्यांगप्यान च्यात्सो एक योद्धा की तरह तिब्बती संस्कृति के मूल्यवान महाकाव्य राजा कैसर के अध्ययन व संरक्षण में लगे हुए हैं।

वर्ष 1938 में च्यांगप्यान च्यात्सो का जन्म भूतपूर्व शिखांग प्रांत की पाआन कांउटी में हुआ था, पाआन कांउटी स्छ्वान व तिब्बत के बीच स्थित है, जहां तिब्बती जाति, हान जाति, नाशी जाति और ह्वेई जाति आदि कई जातियां रहती हैं। एक बहुजातीय स्थल होने के रूप में आनपा कांउटी की विशेष भौगोलिक व सांस्कृतिक स्थिति होती थी और स्थानीय वासियों को दो या तीन भाषाएं आती हैं।

च्यांगप्यान च्यात्सो की याद में बचपन का जीवन बहुत दूभर था। उसका परिवार अन्य स्थान से आनपा कांउटी आ बसा था, इसलिए उस के पास अपना खेत नहीं था। इसतरह च्यांगप्यान परिवार जमीनदार के मकान व खेत को भाड़े पर लेकर जीवन बिताता था। गरीब जीवन के कारण पिता जी नौकरी ढूंढने के लिए बाहर चले गए और घर में माता जी सात बेटों व बेटियों को लेकर गुजारा करती थी।

वर्ष 1949 के दिसम्बर में शिखांग प्रांत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई और वर्ष 1950 के अप्रेल में चीनी जन मुक्ति सेना पाआन कांउटी आयी। शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद पाआन कांउटी का नाम अपने पुराने नाम पाथांग में बदला। इस साल च्यांगप्यान च्यात्सो 12 साल का था। प्राइमरी स्कूल से स्नातक होने के बाद वह आगे नहीं पढ़ा और चीनी मुक्ति सेना में भर्ती हुआ और सबसे छोटी उम्र वाला तिब्बती सैनिक बना। इस की याद करते हुए श्री च्यांगप्यान च्यात्सो ने कहा:

"उस समय, तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति भी नहीं हुई थी, चीनी जन मुक्ति सेना तिब्बत जाने के रास्ते में थी। मेरी जन्मभूमि से गुज़रते समय मैं ने जन मुक्ति सेना में भाग लिया और मेरी उम्र थी 12 साल की । हम जैसे छोटी उम्र वाले सैनिक आम तौर पर सेना के सांस्कृतिक कार्य दल या चिकित्सीय विभाग में भेजे जाते थे।"

च्यांगप्यान च्यात्सो की याद में अपनी जिन्दगी में पहली बार जो मूंगफली खायी, वह जन मुक्ति सेना ने दिया था। उन्होंने कहा कि उस समय जीवन बहुत कठोर था और खाद्यन्न की कमी थी। चीनी जन मुक्ति सेना में भर्ती होने से पूर्व उसने कभी रजाई का प्रयोग भी नहीं किया था। बीते समय की चर्चा करते हुए च्यांगप्यान च्यात्सो ने भाव विभोर होकर कहा:

"अतीत में आम नागरिकों का जीवन बहुत कठोर था। मेरे परिवार की बात ले, तो हम आधे कृषि व आधे पशुपालन वाले क्षेत्र में रहते थे। घर बहुत गरीब था। बारह की उम्र में चीनी मुक्ति सेना में दाखिला होने से पूर्व मैं सोने के समय कभी रज़ाई का प्रयोग नहीं कर पाता था। मेरे नेत्रहीन मामा थे, मैं उनके साथ सोता था, सोते समय हमारे शरीर पर सिर्फ़ एक तिब्बती पोशाक रखा जाता था, सर्दियों में बहुत ठंडा लगता था। चीनी मुक्ति सेना में भागीदारी के बाद मुझे सच्चे माइने में रज़ाई की सुविधा मिली थी।"

धीरे-धीरे च्यांगप्यान च्यात्सो का जीवन अच्छे से अच्छा होने लगा। उनकी याद में चीनी मुक्ति सेना में भर्ती होने के बाद प्रथम वर्ष के नए साल त्योहार के दौरान उन की टुकड़ी ने उनकी माता को देखने के लिए कुछ सैनिक भेजे और माता को कुछ पैसे भी दिये। उन्होंने कहा कि चीनी जन मुक्ति सेना तिब्बती सैनिकों का बहुत ख्याल रखती है।

चीनी मुक्ति सेना में भाग लेने के बाद च्यांगप्यान च्यात्सो विश्व की छत कहने वाले तिब्बत पठार पर राज मार्ग बनाने के कठोर काम के साझी भी बने। उन्होंने कहा कि पहले की तुलना में आज तिब्बत में दिन गुनी रात चौगुनी तरक्की हुई है। उनका कहना है:

"तिब्बत का विकास असाधारण बड़ा है। शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व वहां सदियों से सामंती भूदास व्यवस्था लागू की जाती थी और उस समय तिब्बत में एक किलोमीटर का राजमार्ग भी नहीं था। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व मैं ने सेना में भाग लिया, इसके बाद का प्रथम कार्य शिखांग तिब्बत राजमार्ग का निर्माण करना था। जन मुक्ति सेना जहां एक तरफ तिब्बत की ओर अभियान करती थी, वहीं दूसरी तरफ साथःसाथ राजमार्ग का निर्माण भी करती थी। कहा जाता था कि हम पीठ पर राजमार्ग लादे हुए तिब्बत जा रहे हैं।"

उम्र कम होने के कारण सेना में भर्ती होने के बाद च्यांगप्यान च्यात्सो सांस्कृतिक कार्य दल में चीनी भाषा सीखने केलिए भेजा गया। इस मुल्यवान अवसर का लाभ उठाकर च्यांगप्यान च्यात्सो कड़ी मेहनत से पढ़ता था। उन्होंने कहा कि पुराने तिब्बत में गरीब परिवार के बच्चों को स्कूल जाने का बहुत कम मौका मिलता था। उन्होंने कहा:

"तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व तिब्बत में कोई भी आधुनिक प्राइमरी स्कूल नहीं था। शिक्षा व संस्कृति चंद कुछ कुलीन लोगों के हाथ में थी। हमारे शिखांग क्षेत्र में मेरा परिवार बहुत गरीब होने के कारण मैं प्राइमरी स्कूल के बाद मीडिल स्कूल नहीं जा पाता। सच तो यह भी था कि हमारी कांउटी में मीडिल स्कूल की कोई चीज भी नहीं थी, अगर मीडिल स्कूल जाना था तो बहुत दूर स्थित खांगतिंग क्षेत्र में जाना पड़ता था।"

वर्ष 1951 में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई। च्यांगप्यान च्यात्सो ने चीनी मुक्ति सेना के साथ तिब्बत में प्रवेश किया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी व सरकार ने उन्हें दुभाषिया के रूप में प्रशिक्षित करने के उद्देश्य में उन्हें तिब्बती भाषा के अध्ययन के लिए तिब्बती फौजी स्कूल में भेजा। वहां उन्होंने बड़ी संख्या में मशहूर सांस्कृतिक रचनाएं पढ़ीं। वर्ष 1980 में च्यांगप्यान च्यात्सो का पहला लम्बा उपन्यास《केसांग मेतो》औपचारिक तौर पर प्रकाशित हुआ। यह आधुनिक तिब्बती लेखकों द्वारा लिखा पहला लम्बा उपन्यास माना जाता है। वर्ष 1982 में इस उपन्यास का तिब्बती भाषा का संस्करण भी निकला।

वास्तव में 12 की उम्र में ही च्यांगप्यान च्यात्सो ने दुभाषिया का जीवन शुरू किया था। चीनी मुक्ति सेना में भर्ती होने के बाद वह अन्य सैनिकों को स्थानीय तिब्बती लोगों से रोज़मर्रा की आवश्यक वस्तुओं को खरीदने के वक्त अनुवाद की मदद देता था, चीनी हान जाति के सैनिकों व तिब्बती बंधुओं के बीच तथा संबंधित नेताओं व तिब्बती लोगों के बीच बातचीत में भी अनुवाद का काम करता था। इसतरह वह चीनी हान जाति और तिब्बती जाति के बीच सांस्कृतिक आदान प्रदान व सूचनाओं के विनिमय का काम निभाता था। वर्ष 1954 में एक श्रेष्ठ विद्यार्थी के रूप में च्यांगप्यान च्यात्सो को तिब्बती फौजी स्कूल से विशेष तौर पर दक्षिण पश्चिमी जातीय कोलेज में भेजा गया और वहां वे राजनीति विभाग में पढ़ते थे। इस के दौरान वे चौदहवें दलाई लामा और दसवें पंचन लामा के दुभाषिया भी बने। इस की चर्चा में च्यांगप्यान च्यात्सो ने कहा:

"पहले मैं दलाई लामा की माता व बड़ी बहन का दुभाषिया बना था। बाद में बेहतरीन काम करने के कारण पार्टी ने मुझे अनुवाद के लिए दलाई लामा का दुभाषिया बनाया।"

च्यांगप्यान च्यात्सो की याद में वर्ष 1955 के मई माह में पहली चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के वार्षिक सम्मेलन में उपस्थित होने के बाद दलाई लामा ल्हासा वापस लौट रहे थे, रास्ते में वे छुंगछिंग पहुंचे, उसी समय 17 वर्षीय च्यांगप्यान च्यात्सो को दलाई लामा का दुभाषिया बनाया गया। इसके बाद उन्होंने दलाई लामा और पंचन लामा के दुभाषिया ही नहीं, भूतपूर्व चीनी प्रधानमंत्री चो एनलाइ समेत कई चीनी नेताओं के लिए भी अनुवाद का काम किया था। अपने दुभाषिया जीवन की चर्चा करते समय च्यांगप्यान च्यात्सो को बहुत गर्व लगता है। उन्होंने कहा कि उन की माता जी एक तिब्बती बौद्ध धर्म की अनुयायी थी, लेकिन जन्मभूमि आनपा कांउटी में उन्हें एक छोटे जीवित बुद्ध को भी नहीं देखने का मौका भी नहीं मिला। अब तो वे खुद दलाई लामा और पंचन लामा जैसे महा जीवित बुद्ध के पास बैठकर उनकी सेवा में अनुवाद का काम करता है। तो वह कितने गर्व की बात है।

वर्ष 1956 में च्यांगप्यान च्यात्सो दक्षिण पश्चिमी जातीय कोलेज से स्नातक होकर पेइचिंग आए और वे चीनी केंद्रीय जातीय समिति के अनुवाद विभाग में कार्य करते थे। वर्ष 1959 के शुरू में च्यांगप्यान च्यात्सो उसी साल अप्रेल में आयोजित होने वाले दूसरी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के वार्षिक पूर्णाधिवेशन में काम करने की तैयारी कर रहे थे, वे दलाई लामा के दुभाषिया बनने थे। लेकिन 10 मार्च को तिब्बत में उपद्रव पैदा हुआ, इसके सात दिन बाद दलाई लामा तिब्बत को छोड़कर भारत भागा। दसवें पंचन लामा ने दूसरी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के वार्षिक पूर्णाधिवेश में लम्बा भाषण किया, च्यांगप्यान च्यात्सो ने पंचन लामा की सेवा में अनुवाद का काम किया। इसके साथ ही उन्होंने दुभाषिया के रूप में प्रधानमंत्री चो एनलाइ और पंचन लामा की भेंट वार्ता में अनुवाद का काम किया। इस मुलाकात के बाद च्यांगप्यान च्यात्सो औपचारिक तौर पर दसवें पंचन लामा के दुभाषिया बन गए। उन की याद में दसवें पंचन लामा अपनी समान उम्र वाले युवा दुभाषिया च्यांगप्यान च्यात्सो को"पोला"कहकर संबोधित करते थे। तिब्बती भाषा में"पोला"का मतलब दोस्त ही है।

च्यांगप्यान च्यात्सो हमेशा कहते हैं कि उन का भाग्य देश के भाग्य से जुड़ा हुआ है। वर्ष 1981 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की ग्यारहवीं कांग्रेस के तीसरे पूर्णाधिवेशन के बाद 24 वर्षों तक दुभाषिया का काम कर चुके च्यांगप्यान च्यात्सो चीनी विज्ञान अकादमी के अधीनस्थ जातीय साहित्य अनुसंधान केंद्र में उप अनुसंधानकर्ता नियुक्त हुए और वे नए चीन के इतिहास में पहले तिब्बती उप अनुसंधानकर्ता हैं । उस समय से लेकर अब तक च्यांगप्या च्यात्सो तिब्बती महाकाव्य राजा कैसर के संकलन व संपादन में लगे रहे हैं। वर्तमान में वे राजा कैसर के चुनिंदा ग्रंथों के संकलन व संपादन में संलग्न हैं। उन्होंने कहा कि वयोवृद्धा अवस्था में भी वे इस महान तिब्बती महाकाव्य के प्रसार प्रचार के लिए भरपूर कोशिश करते रहेंगे। चीनी जन मुक्ति सेना के छोटी उम्र वाले तिब्बती सैनिक से विकसित होकर तिब्बती लेखक तक, दुभाषिया से तिब्बतविद तक, च्यांगप्यान च्यात्सो का जीवन रंगबिरंगा और गौरवपूर्ण रहा है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के जीवन पर उन्हें बहुत संतोष हुआ है।

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