हाल ही में चीनी भूविज्ञान विश्वविद्यालय ने देश में विद्यार्थियों के प्रथम चुमुलांगमा पर्वतारोही दल का गठन किया। फिलहाल, गत शताब्दी के अस्सी या नब्बे वाले दशक में जन्मे ये युवा विद्यार्थी कठोर ट्रेनिंग ले रहे हैं, उन का सपना है कि विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत मुमुलांगमा की चोटी पर चढ़ेंगे।
दोपहर बाद चार बजे, चीनी भूविज्ञान विश्वविद्यालय के व्यायाम मैदान में हमारे संवाददाता की मुलाकात दौड़ने की ट्रेनिंग ले रहे चुमुलांगमा पर्वतारोही छात्र दल के सदस्यों से हुई। दल के नेता चांगयू ने जानकारी देते हुए कहा कि हर वर्ष भूविज्ञान विश्वविद्यालय का पर्वतारोही संघ अपने सदस्यों को एक या दो ऊंचे पर्वतों पर चढ़ने के लिए संगठित करता है। अब तक पर्वतारोही संघ के सदस्य समुद्र सतह से 8201 मीटर ऊंची चोओयु चोटी पर चढ़ चुके है, जो चीन और नेपाल के सीमांत क्षेत्र में खड़ी है और विश्व की छठी ऊंची पर्वत-चोटी मानी जाती है। चोओयु चोटी का उत्तरी ढलान तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में है, जबकि दक्षिण ढलान नेपाल में। तिब्बती भाषा में चोओयु का मतलब है"महाचार्य"। यह पर्वत हिमालय पर्वत श्रृंखला के मध्य में स्थित है और पूर्व में चुमुलांगमा पर्वत से 30 किलोमीटर दूर।
चांगयू का जन्म गत शताब्दी के अस्सी वाले दशक में हुआ। विश्वविद्यालय में दाखिल हुए प्रथम वर्ष में उन्होंने पर्वतारोही संघ में भाग लिया, स्नातक होने के बाद वे विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर ऑउट डोर व्यायाम कोर्स का अध्ययन करते हैं और अब वे दूसरे वर्ष के स्नातकोत्तर बने हैं। इस तरह चांगयु विश्वविद्याल के पर्वतारोही संघ का एक पुराना सदस्य हैं। वर्ष 2007 और वर्ष 2008 में उन्होंने क्रमशः दो बार चुमुलांमा पर्वत की 8 हज़ार मीटर ऊंचाई तक चढ़े। विश्व के छठे ऊंचे पर्वत चोओयु समेत युन्नान प्रांत के हाबा बर्फीला पहाड़ तथा स्छ्वान के श्युबाओ पर्वत भी उन के चरणों तले आ चुके है। पर्वत की चोटी पर आरोहण के बारे में अपना पहला अनुभव बताते हुए श्री चांगयु ने उत्साहपूर्वक कहा:
"पर्वत की चोटी का दृश्य बहुत सुन्दर है, जिस का लुत्फ आम लोग नहीं ले सकते। बर्फीले पहाड़ की चोटी पर खड़े होकर सामने एक सफेद दुनिया का नज़ारा दिखता है। जब हम पर्वत की सब से ऊंची चोटी पर खड़े हुए तो अन्य पर्वत हमारे पांवों के नीचे झांकते से लगते हैं। प्रभात वक्त सूर्योदय अत्यन्त अद्भुत और मंत्रमुग्ध होता है। 360 डिग्री के कोण पर उभरा वह दृश्य बेहद आश्चर्यजनक है, जो हमें इतना अचंभित कर देता है कि हमारा दिल भी उल्लासित हो उठा हो।"
गौरतलब है कि पर्वतारोहण का खेल चीनी भूविज्ञान विश्वविद्यालय की अच्छी परम्परा है, पर्वतारोही दल में बड़ी संख्या में प्रतिभागी उभरे हैं। वर्ष 1960 में चुमुलांगमा चोटी पर उत्तरी ढलान से मानव के प्रथम सफल पर्वतारोहण अभियान में इस विश्वविद्याल के स्नातक विद्यार्थी वांग फ़ूचो और अन्य दो सदस्य शामिल थे। वर्ष 2005 में विश्वविद्यालय में चीन का प्रथम ऑउट डोर व्यायाम कोर्स खोला गया। अब चुमुलांगमा पर्वतारोही छात्र दल की स्थापना बीसवीं शताब्दी के 80 वाले दशक में जन्मे विद्यार्थियों के पर्वतारोहण खेल केलिए एक और प्रगति ही है, जिसे भूविज्ञान विश्वविद्यालय और चीनी पर्वतारोही संघ का समर्थन मिला है। दल के निर्देशक अध्यापक तोंगफ़ान ने जानकारी देते हुए कहा कि अब चुमुलांगमा पर्वत चोची पर आरोहण के लिए हमारे आवेदन को अनुमति प्राप्त हुई है, और पर्वतारोही विद्यार्थियों का वर्तमान प्रमुख कार्य ट्रेनिंग लेने में पूरी शक्ति लगाना है।
बर्फीले पहाड़ की चोटी पर चढ़ना कठोर अभ्यास, दृढ इच्छा-शक्ति और निपुर्ण पर्वतारोहण तकनीक की बड़ी आवश्यकता है। दल के तीस सदस्य दो सौ विद्यार्थियों में से चुने गए हैं। उनके जन्म ज्यादातर बीसवीं शताब्दी के अस्सी व नब्बे वाले दशकों में हुए हैं और घर के एकलौता बच्चा भी है। इन विद्यार्थियों को शारीरिक कष्ट सहने का जरा भी अनुभव नहीं है। इसलिए ट्रेनिंग के शुरू में उन्हें बहुत दिक्कत लगी थी, लेकिन अपने स्वप्न को साकार करने के लिए वे ट्रेनिंग पर डटे रहे। पर्वतारोही दल के नेता चांगयू ने जानकारी देते हुए कहा कि हर रोज़ सदस्य सुबह छह बजकर पंद्रह मिनट पर ट्रेनिंग शुरू करते हैं, जो दिन में दो बार कुल तीन घंटे लगते है। चाहे हवा चली या वर्षा गिरी, ट्रेनिंग कभी भी नहीं टूटती। अंत में शारीरिक गुणवत्ता संबंधी परीक्षा लेने के बाद तीस सदस्यों में से 20 छात्र चुमुलांगमा पर्वतारोही दल में शामिल हुए हैं।
पर्वत चोटी पर सफल आरोहण के लिए पर्वतारोही दल के युवा छात्र एक से बढ़ कर एक कड़ी मेहनत से ट्रेनिंग करते हैं। 19 वर्षीय हू छीमिंग ने कहा कि इस दल में भाग लेने का मकसद अपने को कठिन स्थिति में तपा देना और अपनी क्षमता को कठोर कसौती पर खरा उतरने देना है। उन्होंने कहा:
"पहले मैं घर का काम बहुत कम करता था और न ही सुबह छह बजे उठ सकता था। पर्वतारोही दल में हर दिन की ट्रेनिंग मुझे बहुत थकान देनी लगती है, लेकिन मैं ने बहुत कुछ सीखे है और अपना जीवन को बहुत सार्थक लगता है। मैं चुमुलांगमा चोटी पर चढ़ने के लिए ट्रेनिंग पर कायम रहूंगा।"
कठोर ट्रेनिंग से पर्वतारोही दल के सदस्यों को पेशेवर तकनीक और अच्छी शारीरिक गुणवत्ता प्राप्त हुई, लेकिन ऊंचे बर्फीले पहाड़ पर चढ़ना असामान्य मुश्किल बात है। इन युवा पर्वतारोहियों को बुरी प्राकृतिक स्थितियों, कठोर जीवन हालात और आकस्मिक घटनाओं का सामना करना पड़ता है। गत जनवरी माह में भूविज्ञान विश्वविद्यालय के पर्वतारोही संघ के 20 सदस्य दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत में स्थित समुद्र सतह से 5396 मीटर ऊंचे हाबा बर्फीले पहाड़ की चोटी पर चढ़े। छात्र चांग य्वे उन में से एक है, जो विश्वविद्यालय में चौथी कक्षा में पढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि उस बार हाबा बर्फीले पर्वत पर चढ़ने के वक्त मौसम अचानक बदला था, लेकिन हम सब लोग अपनी सुरक्षा की गारंटी के साथ ऊपर चढ़ने पर डटे रहे और अंत में सफलतापूर्वक चोटी पर चढ़ गए। उनका कहना है:
"उस समय मौसम बहुत खराब था, हवा तेज़ चल रही थी। सारा पर्वत बादलों से आच्छादित हुआ था। हवा के साथ बर्फ़ भंवर जैसा मारता था। आसपास का दृश्य एकदम दिखाई नहीं देता था। पहाड़ के ऊपर सफेद और हमारे पांवों के नीचे भी सफेद हिमकण उड़ रहे थे, ऐसे वक्त में बहुत अकेलापन और असहाय एहसास हुआ था। लेकिन हम मन कड़ा करके अपनी कोशिश पर डटे रहे और अंत में सफलतापूर्वक पर्वत की चोटी पर चढ़ गए।"
21 वर्षीय तिब्बती बंधु दछिंग ओचू इस पर्वतारोही दल में एक मात्र ऐसा सदस्य है, जो तीन बार चुमुलांगमा चोटी पर चढ़े थे। वर्ष 2006 में 18 की उम्र में वे सफलता के साथ विश्व के सब से ऊंचे पर्वत की चोटी पर चढ़े और देश में चुमुलांगमा चोटी पर सफल चढ़ने वाले सबसे युवा पर्वतारोही बन गए। वर्ष 2008 में पेइचिंग ओलंपिक खेल समारोह के दौरान उन्होंने चुमुलांगमा पर मशाल रिले में भाग लिया और अंत में उन्होंने अपने साथियों के साथ इस पर्वत की चोटी पर ओलंपिक मशाल पहुंचाया। चीनी भूविज्ञान विश्वविद्यालय में दाखिला होने के बाद दछिंग ओचू ने पर्वतारोही संघ में भाग लिया। अपने साथियों की चर्चा करते हुए उन्हें बहुत गर्व हुआ और उन्होंने कहा:
"मुझे लगता है कि मेरे सभी दोस्त बहुत ही श्रेष्ठ हैं। उन की पढ़ाई अच्छी है और मेहनत से काम करते हैं। हालांकि हमारा जन्म बीसवीं सदी के अस्सी व नब्बे वाले दशकों में हुआ, लेकिन आधुनिक युग के विश्वविद्यालय विद्यार्थी के रूप में हमें दृढ़ इच्छा-शक्ति और मनोबल होनी चाहिए, जिस के सहारे हम किसी भी कठिनाइयों को दूर कर सकते हैं। मुझे लगता है कि हमारी इस प्रकार की योग्यता ही है।"
वर्ष 2009 के अक्तुबर माह में दछिंग ओचू अपने एक सहपाठी के साथ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में समुद्र सतह से 6805 मीटर ऊंचे रोनी पर्वत पर चढ़े, जो विश्व में सबसे खतरनाक पर्वत माना जाता है। इन दोनों छात्रों ने मानव जाति के इतिहास में पहली बार इस पर्वत की चोटी पर पद-चिन्ह अंकित किया है।
ऐसी खतरनाक पर्वत चोटी जिस पर पहले किसी भी व्यक्ति ने चढ़ने की कोशिश नहीं की है, पर चढ़ने के लिए बड़ा जोखिम उठाना होगा, इसके लिए और ज्यादा साहस व अच्छा अनुभव होने की आवश्यकता है। रोनी पर्वत पर निम्नतम तापमान माइन्स 30 डिग्री सेल्सियस है, हवा की तेज़ गति प्रति सेकंड 90 मीटर तक पहुंचती है। पर्वत बहुत ऊंचा नहीं होने के बावजूद उस की भू-स्थिति अत्यन्त जटिल है। और इस पर चढ़ने का अनुकूल समय भी मात्र सुबह दस बजे से दोपहरबाद तीन बजे के बीच होता है।
रास्ता अपरिचित है, किसी भी समय में ढह हो सकने वाली हिमनदी पर चलते समय दछिंग ओचू और उस के साथी को असामान्य शक्ति लगानी पड़ी थी। उनकी याद में समुद्र सतह से 5600 मीटर के शिविर से 6100 मीटर ऊंचे स्थल तक चढ़ने के लिए उन्हें आठ घंटे लगे। उन्होंने याद करते हुए कहा:
"दोपहर बाद एक बजे और दो बजे के बीच हम इस पर्वत की चोटी पर पहुंचे। मुझे याद है कि पहाड़ पर बर्फ़ इतना मोटी है कि उसकी परत हमारी कमर तक पहुंचती है। यह पहाड़ आकार में मिस्र के पिरामिड की तरह है, हमारे आगे पीछे दोनों तरप सीधी खड़ी चट्टान है। इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए सिर्फ़ एकमात्र रास्ता है, यानी ऊपर चढ़ने का रास्ता। दूसरा कोई रास्ता नहीं है। इसके साथ ही मोटी बर्फ़ बिछने के कारण हमें अपना पद-चिन्ह भी साफ़ दिखाई नहीं पड़ता है। इसलिए नीचे आने में हमें बहुत सावधानी बरतनी पड़ी थी।"
आम तौर पर एक पर्वत की चोटी पर चढ़ने के लिए कम से कम एक सप्ताह लगता है। पुरूष पर्वतारोही की तुलना में महिला पर्वतारोही को ज्यादा मुश्किलों को दूर करना होगा। खाने और पीने की चीज़ सिमित होने के साथ-साथ नहाना एक दिवास्वपन बन जाता है। 21 वर्षीय महिला पर्वतारोही मा लिच्वान देखने में बहुत कमजो़र लगती है, लेकिन अब तक वे समुद्र सतह से 5 हज़ार मीटर ऊंचे दो पर्वतों की चोटी पर चढ़ जा चुकी है। उन्होंने कहा कि पर्वतारोहण के दौरान शरीर के कपड़े कभी गीले जाते है कभी सूखे, बहुत असुविधापूर्ण लगता है। लेकिन उन्होंने कहा कि किसी एक पर्वत पर विजय पाने के बाद उन के दिल में दूसरे पर्वत पर फतह फरमाने की तीव्र इच्छा पैदा होती है। सुश्री मा लीच्वान ने कहा:
"हम स्छ्वान प्रांत में स्थित श्वेपाओतिंग पर्वत पर चढ़े थे। उस समय उस पर भारी वर्षा गिरी, ओले हमारे शरीर पर जोर टपकने से बहुत दर्द लगती थी। वर्षा के बौछार में ऊपर चढ़ने से हम पसीनों से तरतर हो गए, इसी क्षण बहुत असुविधा का एहसास हुआ था। पहाड़ पर से नीचे आने के तुरंत बाद मैं ने खाना खाया और जल्द ही नहाया।"
भूविज्ञान विश्वविद्यालय के चुमुलांगमा पर्वतारोही दल के नेता चांग यू मौजूदा ट्रेनिंग के जिम्मेदार है। उनके कथन से इन युवा विद्यार्थियों के दिल की बात जाहिर हुई है:
"हर व्यक्ति को हर बार पर्वत पर चढ़ने का अलग-अलग अनुभव होता है। लेकिन इन में मुश्किलों को दूर करने का मनोबल और दृढसंकल्प समान होता है।"
दक्षिण मध्य चीन के वित्त व अर्थ विश्वविद्यलय के प्रोफैसर श्यु श्वांगमिन का कहना है कि ये युवा विद्यार्थी व्यवहारिक गतिविधियों के जरिए समाज को अपनी कर्तव्यपरायणता दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा:
"वर्तमान चीन में बीसवीं सदी के अस्सी व नब्बे वाले दशक में जन्मी युवा पीढ़ि बहुत सुविधापूर्ण वातावरण में पले-बढ़े हैं। उन्हें कष्ट झेलने का कम अनुभव होता है। उन की स्वेच्छे से इस प्रकार की चुनौतियों का सामना करने वाली भावना और कोशिश सराहनीय है। उन्होंने दूसरे युवा लोगों के लिए एक आदर्श मिसाल खड़ी की है। यह एक बहुत अच्छी बात है।"