तिब्बती नव वर्ष आम तौर पर चीनी राष्ट्र के परंपरागत त्योहार यानी वसंत त्योहार के बाद आता है। इसलिए चीन में तिब्बती लोग वसंतोत्सव मनाने के बाद फिर अपनी तिब्बती जाति का त्योहार मनाते हैं। तिब्बती कलेंडर के मुताबिक वर्ष 2011 में तिब्बती नव वर्ष का दिन पांच मार्च को पड़ेगा।
तिब्बती जाति में नव वर्ष मनाने में विशेष रिवाज होता है। आम तौर पर नव वर्ष के पूर्व एक महीने में लोग नव वर्ष मनाने की तैयारी करना शुरू कर देते हैं। घर घर में सफाई की जाती है और नए ढंग से घर को सजाया जाता है तथा त्योहार की वस्तुएं खरीद कर लायी जाती है। वे विशेष कर चिलमची के पानी में तिब्बती जौ के बीज विकसित करते हैं, जब नव वर्ष का पहला दिन आ पहुंचा, तो जौ का पौधा दो या तीन इंच लम्बा बढ़ सकता है और उसे बौद्ध आले पर रखा जाता है, इसतरह नए साल में शानदार फसल की प्रार्थना की जाती है।
तिब्बती नव वर्ष के दस दिन पूर्व तिब्बती लोग पेड़ की शाखाएं तोड़कर लाते हैं और उस पर विशेष शैली की झंडियां बांधकर घर की छतों पर लगायी जाती है, विभिन्न व्यापार स्टोलों पर घी चाय और ईंटनुमा चाय बिकती है तथा त्योहार मनाने के लिए वधित आधा बैल या बकरी जैसे पशु भी खरीददारों के इंतजार में है।
तिब्बती जाति के रिवाज के मुताबिक तिब्बती कलेंडर के अनुसार साल के 12वें महीने की 29वीं तारीख को रात में प्रेत-प्रेतात्मा भगाने के लिए कुथू नाम का एक विशेष पकवान खाने की प्रथा चलती है। तिब्बती भाषा में कुथू का अर्थ है आटे के पिंड। यानी गूंधे हुए आटे के छोटे छोटे पिंडों में कुछ छोटी चीजें समेटी जाती है और उसे पानी में पका कर खाया जाता है।
ल्हासा में हम लोगों को भी तिब्बती बंधुओं के घर में तिब्बती प्रथा का अनुसरण करते हुए कुथू खिलाया गया। तिब्बती गृहस्वामिनी ने आटे के पिंडों के भीतर कुछ चीजें डालकर समेट दिए। यदि घर वाले को किसी कुथू में कोई चीज खाने को हाथ लगी, तो तुरंत गृहस्वामिनी को सूचित किया जाता है। यदि कुथू में से ऊन मिली, तो इस का मतलब है कि वह शख्स सहृदय हो, यदि लाल मिर्च निकला, अर्थात घर का वह सदस्य तेज मिजाजी हो, यदि मटर बरामदा हुआ, तो माना जाता है कि वह सदस्य पवित्र चरित्र का हो। इस तरह विभिन्न चीजों से शकुन रचा जाता है। इस प्रकार का शकुन एक प्रकार की भविष्यवाणी भी है और घरवालों में मनोद-क्रीड़ा भी है। इस मौके पर पारिवारिक माहौल बड़ा उल्लासपूर्ण और आनंदमय है। कभी कभी घर मालिकन कुथू को छोटी मानव आकृति का रूप भी देती है, सिर बहुत छोटा और पेट बड़ा बड़ा। जो लोग उसे शोरबे में से बाहर निकाल लेता है, उसे सजा दी जाती है, उसे गधे या कुत्ते की आवाज की नकल करनी पड़ती है और नौ चमचों का शोरबा पीना होगा, असमर्थ कहने पर उसे मुंह में जबरन पिलाया जाता है।
आम तौर पर नव वर्ष के पहले दिन, तिब्बती लोग सबेरे सबेरे ही उठ जाते हैं, कुछ लोग पूर्वसंध्या की रात भर जागते हैं। लेकिन इस समय घर का द्वार नहीं खोला जा सकता है। जब पूर्वी क्षितिज पर शुक्र तारा उदित हुआ, और तिब्बती लोक कलाकार चेगा सड़क पर खड़े हुए ऊंची आवाज में जाचील पुकारने लगे, तभी लोग खुशी खुशी से द्वार खोल कर बाहर आने लगे। चेगा का अर्थ है सफेद बालों का वृद्ध। कहा जाता है कि प्राचीन काल में जब कभी युद्ध में विजय हुई या शिकार में कुछ मिला, तो कोई एक चरित्रवान् वृद्ध व्यक्ति अवश्य बधाई व प्रशस्ति के कुछ शब्द बोलते थे, इसी प्रथा का अनुसरण करते हुए बाद में वाचन गायन की एक विशेष कला संपन्न हुई। वे नव वर्ष के पहले दिन की सुबह जाचील यानी जय देव की आवाज देने का कर्तव्य निभाते हैं। लेकिन आज के ल्हासा में निवासियों की संख्या बहुत ज्यादा होने के कारण चेगा नामक लोक कलाकारों की संख्या अपर्याप्त साबित हुई, इसलिए इन सालों में टेपरिकार्डर से प्रशस्ति के संदेश प्रसारित होता है और टीवी पर विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत होता है।
तिब्बती नव वर्ष के पहले दिन, सभी परिवार अपने पहले से उगाकर तैयार हुए जौ के पौधे, बकरी के सिर और अनाज से भरा कुंडा और नाना प्रकार की मिठाइयां आले या अलमारी पर रखकर सजाते हैं। परिवार के सभी सदस्य नये पोशाक में नयी ऊनी गद्दी पर बैठे हुए जिनसेंग फ्रूट, घी और चीनी के साथ बनाया गया शुभवाचक चावल का खाना खाते हैं। भोजन के बाद परिवार के पूर्वज सदस्य अनाज से भरा कुंडा ला रखते हैं, परिवार सदस्य क्रमशः उस में से कुछ दाने निकाल कर आकाश में छिड़का देते हैं और इस तरह भगवान से दुआ करते हैं। फिर वे कुछ दाने अपने मुंह में रख देते हैं। इस मौके पर पूर्वज सदस्य सभी लोगों को जाशितले कहकर आशीर्वाद देते हैं और जवाब में अन्य सदस्य कहते हैं कि आप स्वस्थ रहें और दीर्घआयु रहें।
नव वर्ष त्योहार तिब्बती जाति के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है, बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाले तिब्बती लोग त्योहार के अवसर भगवान बुद्ध को नहीं भूलते है और उसे खुश करने का आष्ठान करते हैं। नव वर्ष के तीसरे दिन घर घर की छतों में विशेष प्रकार की रंगबिरंगी धार्मिक झंडियां फरहायी जाती हैं, इस काम के बाद तिब्बती लोग निकटस्थ धार्मिक स्थल जाकर बुद्ध और बौधिसत्व की पूजा करने जाते हैं। ल्हासा में तिब्बती लोग दलों में बांटकर पूर्वी उपनगर में स्थित पवित्र कलश पहाड़ या पश्चिमी उपनगर में स्थित भैषज राजा पर्वत पर जाकर गिरि देवता और जल देवता की पूजा अर्चना करते हैं।
इन आम प्रथाओं के अलावा नववर्ष में तिब्बती लोग विभिन्न सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियां तथा खेल प्रतियोगिता भी करते हैं। अहम धार्मिक गतिविधि के रूप में नव वर्ष के चौथे दिन से लेकर 25वें दिवस तक मोलांगछिंगबो यानी बौद्ध दीक्षा परीक्षा सभा आयोजित होती है। इस धार्मिक सभा में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलूग संप्रदाय के सूत्राचार्यों से धार्मिक शास्त्र की सर्वोच्च डिग्री गेसी के लिए परीक्षा ली जाती है। गेसी डिग्री की परीक्षा खुली तौर पर होती है, परीक्षा देने वाले भिक्षुओं में धार्मिक दर्शनशास्त्र के बारे में खुली जबरदस्त बहस होती है, मौके पर वाद-विवाद का गर्मागर्म माहौल देखते ही बनता है। गेसी डिग्री की परीक्षा में बहुत कम भिक्षु पास हो सकते हैं, जब एक बार किसी भिक्षु को इस डिग्री से सम्मानित किया गया, तो वह धुरंधर धार्मिक आचार्य माना जाता है और उसे बड़ा सम्मान हासिल होता है।
धार्मिक गतिविधियों के अतिरिक्त नव वर्ष त्योहार के दौरान रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं, खासकर तिब्बती जाति के परंपरागत ओपेरा और तथा वाचन प्रोग्राम बहुत लोकप्रिय है, तिब्बत की राजधानी ल्हासा और अन्य विभिन्न स्थानों में तिब्बती ओपेरा और तिब्बती कथा वाचन कार्यक्रम बड़े जोश-खरोश से प्रस्तुत होते हैं और लोग खूब आनंद लेते हैं। नव वर्ष के दौरान तिब्बती लोगों में खेल की प्रतियोगिता एक प्रकार का अनिवार्य कार्यक्रम होता है। खेल प्रतियोगिता में ज्यादा कुश्ती, भारोतोल्लन, घुड़सवारी और पत्थर उठाने के मैच होते हैं। पत्थर उठाने का मैच बहुत मजेदार होता है, पत्थर पर अकसर तेल लगाया जाता है, जिस से वह बहुत चिकना बनता है और उसे उठाने में बड़ी दिक्कत होती है, अकसर प्रतियोगी पांव फिसल कर गिर जाता है और उस पर तमाशा देखने वाले लोग कहकही मार कर हंसते हैं।
तिब्बती नव वर्ष के 15वें दिन, त्योहार का माहौल बहुत रौनक और जोशीला होता है। उसी दिन, धार्मिक दीक्षा परीक्षा सभा में जोरदार होड़ का वक्त आया और परीक्षार्थियों में बहस भी चरमे पर पहुंचती है। उसी दिन की रात ल्हासा की प्रमुख सड़क बाक्कोर और उस के पास खड़े जोखांग मठ में शानदार घी दीपावली का आयोजन होता है। चीन के अन्य स्थानों से भिन्न तिब्बती जाति के दीपावली पर्व में जलायी गई बत्तियां घी से बनायी गयी है और विभिन्न आकृतियों में वे रंगीन बनायी जाती हैं और जिन में विभिन्न धार्मिक कहानियों व पौराणिक कथाओं का वर्णन भी होता है। चीन के अन्य स्थानों में दीपावली पर्व पर आटे, कागज और कांचे से बनायी गयी बत्तियां प्रज्ज्वलित की जाती है।
तिब्बती नव वर्ष प्रायः सर्दियों के अंत और वसंत के शुरू में पड़ता है। सर्दियों में तिब्बती पठार का प्राकृतिक दृश्य बहुत मोहक और आकर्षक है। नव वर्ष के दिनों, हिमाच्छादित पहाड़ों पर रंगबिरंगी झंडियां फहराती हुई दिखाई देती हैं, जो एक विरल मनोहरता का समां बांधती है। हवा में फहराती हुई रंगीन झंडियां त्योहार के दृश्य को और शोभा देती हैं।
यदि आप को मौका मिले, तो जरूर सर्दियों के मौसम में तिब्बत की यात्रा करने आएंगे, आप को जरूर अलग ढंग का लुत्फ प्राप्त होगा।