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तिब्बती माल विनिमय मेला
2011-02-16 09:07:34

आप देखेंगे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोको प्रिफैक्चर में यालुंग नदी के पास आयोजित तिब्बती माल आदान प्रदान मेले के बारे में एक रिपोर्ट।

तिब्बती युवा रेनछिन तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लोको प्रिफेक्चर की जानांग काउंटी के तिब्बती ऊनी दरी मिल के एक डायरेक्टर है। सर्दियों के आरंभिक समय में ही उन्हों ने यालुंग नदी के पास आयोजित होने वाले तिब्बती माल मेले के आयोजन के लिए तैयारी शुरू की। उन की योजना है कि इस मेले के जरिए अपने कंबल मिल के उत्पाद ज्यादा से ज्यादा बेचे जाएं। यालुंग नदी लोको क्षेत्र में बहती गुजरती एक बड़ी नदी है, लोको का वार्षिक तिब्बती माल आदान प्रदान मेला नदी के किनारे पर आयोजित होने के कारण मेले का नाम यालुंग मेला रखा गया है।

श्री रेनछिन ने परिचय देते हुए कहा कि पहले, हमारे यहां का परिवहन उद्योग इतना पिछड़ा था कि जो अतिरिक्त चीजें उत्पादित हुई हैं, उन्हें बाहर नहीं ले जायी जा सकती या बेच कर पैसा नहीं कमाया जा सकता है। जब तिब्बती माल विनिमय मेले की व्यवस्था कायम हुई, तभी स्थानीय लोग अपने उत्पादों को मेले में बेच देते है और व्यापार का नौबत प्राप्त हुआ है। श्री रेनछिन हर साल अपनी मिल के उत्पाद मेले में लाते हैं। वर्ष 1981 में तिब्बती माल विनिमय मेले में रेनछिन के स्टोल का रकबा सिर्फ पांच वर्ग मीटर था, वह अपने घर के उत्पादित ऊनी दरी और तिब्बती पोशाक बेचते थे। लेकिन इस साल के मेले में उस के स्टोल का रकबा 30 वर्गमीटर से अधिक है और दर्जन किस्मों की चीजें बिकती हैं। पिछले तीस सालों में रेनछिन के पारिवारिक वर्कशाप ने विकसित हो कर एक अच्छे ढंग की कंबल मिल का रूप ले लिया है। मिल का व्यापार भी लगातार विस्तृत होता गया और वार्षिक आय दस लाख य्वान तक पहुंची। इस की चर्चा में उन्होंने कहाः

शुरू शुरू में मेले में मैं मात्र तिब्बती ऊनी दरी और पोशाक बेचता था, लेकिन अब मैं 20 से ज्यादा किस्मों के उत्पाद लाता हूं, मेले में प्रदर्शित चीजों की संख्या शुरूआती समय से कहीं अधिक बढ़ी है।

अतीत में तिब्बत के लोको क्षेत्र में किसानों और चरवाहों के बीच माल द्वारा माल का सौदा होता था और मालों का विनिमय आम तौर पर गांव में होता था। किसानों और चरवाहों के बीच मालों का विनिमय होने से प्रत्यक्ष आर्थिक आय नहीं मिलती थी और उन्हें नगदी पैसा नहीं मिल सकता था। उस जमाने में गांवों के बीच मालों का व्यापार नहीं था और किसानों और चरवाहों के लिए उत्पादन और जीवन के जरूरी चीजें खरीदना बहुत मुश्किल था।

इधर के सालों में तिब्बत के लोको क्षेत्र में कृषि उत्पादन और पशुपालन वैज्ञानिक तकनीकी विकास के बल पर तेजी से विकसित हुए और किसानों व चरवाहों की आय और जीवन स्तर तेज गति से बढ़ता गया। 1981 से लेकर अब तक स्थानीय सरकार के नेतृत्व में हर साल एक बार माल विनिमय मेला आयोजित होता आया है। मेले में शरीक किसानों और चरवाहों के लिए कर मुफ्त उदार नीति लागू होती है और व्यापक किसानों व चरवाहों को मालों का आदान प्रदान मंच मुहैया किया गया है। तिब्बती माल विनिमय मेला हर दिसम्बर के शुरू में आयोजित होता है, जो सात दिन तक चलता है। वर्तमान में यह मेला तिब्बत के लोको प्रिफेक्चर का सब से बड़ा व्यापार मेला बन गया है। मेले के व्यापार से व्यापक किसानों और चरवाहों में तिजारती माल खरीदने की मांग पूरी हो जाती है और किसानों और चरवाहों की आय भी लगातार बढ़ती गयी है।

लोको माल विनिमय मेले की स्थापना के बाद उस का पैमाना साल ब साल विस्तृत हो गया। मेले में बेचे जाने वाली चीजों की किस्में और मात्रा भी अधिक से अधिक हो गयी। इस साल के तिब्बती माल विनिमय मेले में स्टोलों में भरमार चीजों से हजारों किसान और चरवाह आकृष्ट हो गए, पूरे मेले में त्योहार जैसा चहल पहल छाया रहता है। 6 हजार से अधिक स्टोलों के सामने चीजें खरीदने आए लोगों की भीड़ है, वे अपने अपने पसंदीदा माल चुनते खरीदते हैं।

इस साल, 81 वर्षीय गांववासी लाबाच्वुमा पिछले 30 सालों से चले मेले का एक साक्षी हैं, उन्हों ने मेले में चिलमची और मसाला आदि चीजें खरीदीं। लाबाच्वुमा ने संवाददाता को बताया कि शुरूआती मेलों में चीजें इतनी ज्यादा नहीं थीं. हमारे घर में पैसा ज्यादा भी नहीं था, इसलिए हम केवल घर में जरूरी उपयोगी चीजें खरीदते थे। लेकिन अब हम किसानों और चरवाहों का जीवन पहले से कहीं अधिक बेहतर हो गया है। हमारे परिवार की आय भी पहले से बहुत अधिक बढ़ी है. मेले में हर प्रकार की चीजें मिलती हैं, हम हर बार मेले में आते हैं, जो पसंद आया, उसे खरीद कर घर ले जाते हैं। इसपर उन्हों ने कहाः

वर्तमान माल मेले में चीजों की किस्में प्रचुर हैं, हम हर साल आते हैं और घर के लिए अपनी मनपसंद वस्तुएं वापस ले जाते हैं।

यालुंग के वार्षिक माल विनिमय मेले में लोको क्षेत्र की विभिन्न काउंटियों में उत्पादित पशुओं के उत्पाद काफी आकर्षक हैं। किसान और चरवाह उत्साह के साथ मेले में भाग लेते हैं, वे बारीकी से अपने स्टोल को सुसज्जित करते हैं और मेले के जरिए अपने उत्पादों को अधिकाधिक बेच देने तथा अपनी आर्थिक आय बढ़ाने की उम्मीद करते हैं। इस के अलावा वे अपने उत्पादन व जीवन की जरूरी वस्तुएं खरीद कर वापस लेते हैं।

इस साल के मेले में लुंगची काउंटी के माल प्रदर्शनी मंडप में मुख्यतः कृषि व पशुपालन के उत्पाद और जातीय विशेषता वाली कारीगरी चीजें बिकती हैं। काउंटी के जिलाधीश सोलांगबाचू के अनुसार लुंगची काउंटी से इस बार 230 व्यापार परिवार आये हैं, जिन की कुल जनसंख्या 300 से अधिक है। इस पर उन्हों ने कहाः

स्थानीय लोग बड़ी सरगर्मी के साथ मेले में भाग लेते हैं, उन की आय भी उल्लेखनीय है। हमारी काउंटी के व्यापार की रकम आम तौर पर दस लाख य्वान से अधिक दर्ज होती है।

छ्वोमे काउंटी के माल प्रदर्शनी मंडप में अधिकांश स्टोलों पर याक, बकरी और बैल के मांस, बकरी के चमड़े, घी और दुध-मलाई जैसी पशु के उत्पाद बिकते हैं। छ्वोमे काउंटी कृषि व पशुपालन प्रधान जिला है, जिले के तहत दो टाउनशिप तथा दो कस्बे हैं, जिन में एक टाउनशिप और एक कस्बे की अर्थव्यवस्था पशुपालन पर आधारित है और वहां प्रचुर मात्रा में पशु के उत्पाद मिलते हैं। छ्वोमे काउंटी के निवासी तावा ने परिचय देते हुए कहा कि पशुपालन पर आश्रित किसान और चरवाह हर साल आयोजित लोको माल विनिमय मेले पर बड़ी आशा बांधते हैं। उन्होंने कहाः

हम अपनी एक साल में उत्पादित चीजें मेले में लाते हैं और सौदा- व्यापार करते हैं, कभी मालों का विनिमय करते हैं और कभी बेचकर पैसा कमाते हैं। इस के बाद मेले में से अपने लिए एक साल के जरूरी अनाज, खाद्यतेल और उत्पादन साधन वापस ले जाते हैं।

छ्वोमे काउंटी के चेकु कस्बे के निवासी बानच्वु को मेले में भाग लिए 20 से अधिक साल हो चुका है। इस साल उन्होंने याक के मांस और दुध का कचरा और ऊनी धागे लाए हैं, जिस का कुल मूल्य 60 हजार य्वान बनता है। मेले के पहले दिन में ही उन के उत्पाद आधे से अधिक बिक चुके हैं। उन्हों ने बड़ी खुशी से कहाः

मेरे उत्पादों का आधा भाग बिक चुका है, अपने सभी उत्पाद बेचने के बाद मैं कुछ घरेलू विद्युत यंत्र, फर्नीचर और अन्य रोजमर्रा की चीजें खरीदता हूं।

गांवनिवासी पुबूदोची ने इस बार घर केलिए बड़ी मात्रा में चावल, बिस्तर, याक के मांस, बकरी के मांस व स्थानीय जड़ी-बूटी और अन्य रोजमर्रा की चीजें खरीदीं, उन्होंने कहाः

मैं ने घर के लिए जरूरी बहुत सी चीजें खरीदी हैं, चावल, आटा और दुध के उत्पाद आदि। अब सरकार की नीति अच्छी है, हम हर साल के मेले में आना चाहते हैं।

यालुंग तिब्बती माल विनिमय मेले से ग्रामीण उपजों के आदान प्रदान को बढ़ावा मिला है तथा किसानों और चरवाहों की आय बढ़ायी गयी है। इस प्रकार का मेला लोक सांस्कृतिक आदान प्रदान का समारोह भी समझा जाता है। इस साल के मेले में जाछा काउंटी के उत्पादों में लकड़ी के कटोरा और पत्थर की कड़ाही बड़ी मात्रा में है, ये दोनों चीजें तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल की गयी हैं। जाछा काउंटी के उप जिलाधीश श्री लाबारेनछी ने परिचय देते हुए कहाः

मेले में लकड़ी के कटोरे ज्यादा बिकते हैं, बड़े वाले का दाम दस हजार य्वान तक पहुंच सकता है। जाछा के लकड़ी कटोरा पूरे प्रदेश में मशहूर है, क्योंकि वह तिब्बती लोक शिल्प कला की लोकप्रिय कृति है।

पिछले 30 सालों के विकास के परिणामस्वरूप यालुंग तिब्बती माल विनिमय मेला विकसित होकर एक मालों के सौदा, आर्थिक प्रचलन तथा सांस्कृतिक आदान प्रदान मिश्रित बहुमुखी मेला बन गया है। लोको प्रिफेक्चर के उप उच्चयुक्त श्री हू चुंगहाई ने कहाः

यालुंग मेले के माध्यम से किसानों और चरवाहों को अपने उत्पादों को बेचने और अपनी जरूरी चीजें खरीदने का एक अच्छा स्थल मिला है, जिस से ग्रामीण व शहरी बाजार को रौनक बनाया गया है और सांस्कृतिक आदान प्रदान भी प्रेरित किया गया है।

यालुंग तिब्बती माल विनिमय मेला अब तक 30 बार आयोजित हुआ है, यह इस बात का प्रतीक है कि तिब्बत में बड़ा आर्थिक व सांस्कृतिक विकास हुआ है और लोगों की आय बहुत बढ़ी है।

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