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तिब्बती लोक कथा---7
2011-01-26 19:53:01

तिब्बती जाति समृद्ध सांस्कृतिक विरासत वाली जाति है। उस के पास लोक गाना, लोक नृत्य और लोक कथाओं की धनी खजाना है। तिब्बत के बारे में कार्यक्रम में हम सिर्फ कुछ लोकप्रिय कथाएं चुन कर प्रसारित करते हैं, उम्मीद है कि आप को इन्हें देखकर मनोरंजन के साथ थोड़ी शिक्षा अवश्य मिलेगी। यदि ऐसा हुआ, तो हमारी यह कोशिश नाकाम नहीं रहेगी। तो अब देखिए, आज की पहली तिब्बती लोक कथा, नाम है जीवित बुद्ध अवतार व्यवस्था की कहानी।

तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्ध अवतार व्यवस्था लागू होती है। इस जीवित बुद्ध अवतार व्यवस्था के संस्थापक सुप्रसिद्ध धार्मिक आचार्य गेमापोसी थे, वे एक प्रकांड बौद्ध भिक्षु थे और बौध सूत्रों के अतूल्य ज्ञानी थे। इसलिए चीन के य्वान राजवंश के सम्राटों के दिल में उस का ऊंचा स्थान और बड़ी प्रतिष्ठा थी। गेमापोसी को कुबले खान के भाई अलीबुगो से काली किनारों वाली टोपी के पुरस्कार से नवाजा दिया गया था। उन की यह काली टोपी अभी भी सुरक्षित रखी हुई है। सन् 1283 में गेमापोसी का छुबो मठ में निर्वाण हुआ, जो अस्सी साल के थे। निर्वाण के वक्त उस ने अपने शिष्य वोजनपा को बताया था कि उस के निधन के बाद सुदूर लात्वी जगह पर जरूर काली टोपी और तांत्रिक संप्रदाय का उत्तराधिकारी पैदा होगा। महानिर्वाण के तुरंत बाद गेमापोसी स्वर्ग में बौद्धिसत्व मैत्रेय की जगह पहुंचे। आठ दिन बाद उसे अपने शिष्यों की याद आयी, उन से मिलने के उद्देश्य में उस ने अपनी आत्मा को पुनः शरीर में वापस समाया और उस की आत्मा ने जब पाया कि शिष्यगण उस के स्वर्गवास पर गहरी दुख के कारण विलाप कर रहे हैं, तो उस का मन भी तड़प गया और असीम दया व करूणा पनपी। गेमापोसी ने यह निश्चय किया था कि अवतार योग के माध्यम से वह अवतारित हो जाएगा और जगलोक में जन साधारण को शिक्षा देकर उद्धारना जारी रखेगा। एक दिन, ल्हासा के उत्तर पश्चिम में स्थित त्वोलुंग पोछांग गांव में एक बूढ़ा दंपति का 13 साल का बेटा असमय मर गया, वहां ऊपर उठती प्रार्थना की धुआं देखकर गेमापोसी ने शव के पास पहुंच कर अपनी आत्मा को बच्चे के शव में समाया, इस तरह मृत हुए बच्चे की आंखों में फिर ज्योति आयी, इस प्रकार का अजीबोगरीब दृश्य देखकर बूढा दंपति अत्यन्त डर हुआ, वे समझते थे कि जरूर कोई प्रेतात्मा अपने बच्चे के शरीर में घुस आयी हो, सो उस ने चूल्हे में से कुछ भस्म निकाल कर बच्चे की आंखों में फेंक डाला और सुई से आंखों की पुतलियों को भेदन करके खराब कर दिया।

तिब्बती रीति रिवाज के अनुसार मानव के शरीर पर भस्म फेंक देना भूत-प्रेतों को भगाने का एक परंपरागत तरीका है। बूढा दंपति ने इसी ख्याल से भूत भगाने का तरीका अपनाया था कि उस के बच्चे के शरीर पर प्रेतात्मा सवार हो गयी है। लेकिन उन्हें यह सोच भी नहीं हो सकी थी कि इस ने गेमापोसी के अवतारित होने की कोशिश विफल कर दिया। लाचार हो कर गेमापोसी ने अपनी आत्मा को शव में से बाहर निकाल कर अवतार के लिए दूसरा उपाय खोजा। अंत में गेमापोसी ने अपनी आत्मा को उत्तरी तिब्बत के लात्वी में रहने वाली एक गर्भवर्ती महिला तोजी के कोख में स्थानांतरित कर दिया। तोजी के बच्चे के जन्म के साथ साथ गेमापोसी का अवतार सफल हुआ, जो जीवित बुद्ध के रूप में तिब्बती बौद्ध धर्म में व्यापक माना जाता है। जीवित बुद्ध चयन के नियम के अन्तर्गत किसी जीवित बुद्ध का अवतार बच्चा उस के निर्वाण के दिन पैदा हुए बच्चों में से चुना जाता है। नतीजातः तिब्बती बौद्ध धर्म में जीवित बुद्ध अवतार व्यवस्था कायम हुई, जो निरंतक आज तक भी लागू होती है।

अभी आप ने जीवित बुद्ध अवतार व्यवस्था की उत्पति के बारे में कहानी सुनी है, जिस से आप को तिब्बत में जीवित बुद्ध अवतार प्रणाली के बारे में जानकारी मिली है। अब सुनिए दूसरी कथा, पत्थर शेर की आंखों में से खून बहने की कहानी

बहुत पहले की बात थी, एक राजा के घर में एक भिक्षु पाला जाता था। वह बौद्ध भिक्षु कुछ दिव्य शक्ति रखता था और शकुन से भविष्य फल जानता था। एक दिन, भिक्षु ने राजा से कहाः महाराज, मुझे आप को एक डरावनी बात बताने की अनुमति दे दें, इस नगर में जल्द ही बाढ़ आएगी, जिस से आप और आप के अधिकारीगण व प्रजा सभी मछली की तरह जलमग्न हो जाएंगे। इस आफत से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि आप हर रोज अपने कर्मचारी को बाजार पर अवस्थित प्रस्तर शेर पर गौर करने भेजें, यदि शेर की आंखों में से खून बहने लगा, तो सात दिन के भीतर बाढ़ आ जाएगी। यह कहने के बाद बिना राजा की अनुमति लिए ही भिक्षु अपनी बोरिया लपेट करके चले गया।

रजा को भिक्षु की चैतावनी पर विश्वास हुआ, वह प्रति दिन अपनी तीन बेटियां बाजार में मांस खरीदने भेजता था, उस का असली मकसद यह देखना था कि पाषाण शेर की आंखों में खून आया हो या नहीं। मांस बेचने के पांच तेज दिमाग वाले दुकानदार थे, जब उन्होंने पाया कि राजा की बेटियां रोज मांस खरीदने आती हैं, तो उन्हें बड़ा ताजुब हुआ। आपस में विचार विमर्श हुआः बड़ी अजीब की बात हो, राजा के हजारों आदमी और नौकरियां हैं, क्यों अपनी राजकुमारी मांस खरीदने भेजता है?एक दिन, उन्हों ने अपनी यह आशंका छोटी राजकुमारी के सामने पेश रखी, छोटी राजकुमारी ने बाईंदाईं झांककर देखा कि कोई दूसरा आदमी नहीं है, तो दबी आवाज में पत्थर के शेर की आंखों में से खून बहने का रहस्य बताया।

राजकुमारी के चले जाने के बाद पांच दुकानदारों ने आपस में सलाह ली और इस महा रहस्य से लाभ उठाकर अनाप शनाप धनराशि कमाने की साजिश रची। रात को उन्हों ने बैल बकरी का रक्त पत्थर शेर की आंखों में डाल कर लगाया। दूसरे दिन, जब बड़ी राजकुमारी बाजार आयी, तो उस ने देखा कि शेर की दोनों आंखें खून से सनी हुई हैं, तो घबरा कर मांस खरीदने के बजाए दौड़ दौड़ वापस गयी और राजा को सूचित की। राजा ने जल्द ही सभी मंत्रियों और अधिकारियों को बुलावा भेजकर इकट्ठे किया और यह डरावनी खबर सुनायी। उन्हों ने सस्ते दाम पर राजमहल की सभी संपत्ति बेची और अधिकारियों व प्रजा को लेकर पहाड़ों पर पनाह लेने चले गए।

मात्र पांच दुकानदार नहीं गए, उन्हें दबी हंसी भी आयी। असल में उन्हों ने केवल थोड़े पैसे पर अनगिनत धन दौलत और मकान जायदाद पर अधिकार कर लिया था। अपनी सफलता और चालाकी की खुशी मनाने के लिए पांचों बारी बारी से दावत देने लगे और मुक्त जबान से गोश्त खाते रहे और शराब पीते रहे। वे रातोंरात शहर के सब से धनी लोग बन गए थे। जब वे भोग विलास में अंधे मस्त हो रहे थे, तब प्रस्तर शेर की आंखों में सचमुच खून निकल कर बहने लगा, किन्तु आंखों पर बैल व बकरी का खून सना होने के कारण दुकानदारों को सच झूठ नहीं सूझ सका और उन का जरा भी ध्यान भी नहीं जागा। सातवें दिन, भयानक बाढ़ आयी, उसने पूरे शहर को अपनी लपेट में ले लिया, पांचों दुकानदार और उन की सारी संपत्तियां उफानती हुई लहरों में लिपटकर न जाने कहां के कहां बहायी गयीं। यही चालाक और लोभी आदमी का शर्मनाक अंत था।

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