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ऊसर जमीन पर उभरा नया गांव
2011-01-15 19:47:34

चीन के पश्चिम क्षेत्र में जोरदार विकास की नीति लागू होने के बाद पश्चिम चीन के अन्य क्षेत्रों की भांति तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के आर्थिक व सामाजिक विकास को भी बड़ा बढ़ावा मिला है। इधर के सालों में तिब्बत के विभिन्न स्थानों में शहरों, कस्बों और गांवों की सूरत काफी बदली है, जिन में तिंगछिंगमाई कस्बे का शिएमाई गांव एक अच्छा उदाहरण है। आज के इस कार्यक्रम में आप देखिये एक रिपोर्ट ऊसर जमीन पर उभरे नये गांव के बारे में ।

तिब्बत के दूर दराज इलाके में आबाद तिंगछिंगमाई कस्बे की शिएमाई गांव की जगह पहले एक बंजर भूमि थी, लेकिन अब यहां एक बिलकुल नया गांव दिखाई देता है, यदि आप इस गांव में आये, तो आप की आंखों के सामने पंक्ति में निर्मित नये नए रिहाइशी मकान नजर आएंगे। अतीत में यह सपने में भी नहीं आ सकता था कि दूर दराज इस ऊसर जमीन पर भी इतना खूबसूरत नया गांव उत्पन्न हो। किन्तु पिछले दस से थोड़े अधिक सालों के भीतर तिब्बत के अन्य स्थानों की ही तरह तिंगछिंगमाई कस्बे में भी भारी परिवर्तन आया और पहले के गरीब क्षेत्र का कायापलट हो गया है।

तिंगछिंगमाई 1960 में तिब्बत के एक प्रिफैक्चर के रूप में कायम हुआ था, 1988 के बाद उस के तहत शिए शोंग, शिए त्वे, श्या ला, शिए माई और ल्यांहथुंग पांच गांव आये।

शिए माई गांव तिब्बत के एक अहम राजमार्ग के पास स्थित है, राजमार्ग तिब्बत की राजधानी ल्हासा और छिंगहाई प्रांत को जाने वाला प्रमुख रास्ता है। ऐसे अच्छे स्थल पर स्थित होने के कारण शिए माई गांव के विकास को बड़ी मदद मिली है। इन सालों में तिब्बत में जोरदार रूप से आवास योजना लागू की जा रही है और तिंगछिंगमाई प्रिफैक्चर में आर्थिक व सामाजिक प्रगति में भी छलांग लगा है। इस का सुफल शिएमाई गांव में देखने को मिला है। परिणामस्वरूप अतीत की ऊसर भूमि पर अब नए नए तिब्बती मकान खड़े किए गए है, जो नयानाभिराम कर देता है। ये नए रिहाईशी मकान तिब्बत के नए गांव, नए किसान घर और नये जीवन के गवाह हैं।

सच है कि सिर्फ कुछ ही दशकों में शिए माई की सूरत एकदम बदली है, अब गांव में पंक्तिबद्ध मकान बनाए गए हैं, सुविधापूर्ण ग्रामीण मार्गों का ताना बाना बिछा है, गांव वासियों के चेहरे पर मीठी मुस्कान खिली है। इस साल 80 वर्षीय गांववासी चेगारेनछिंग ने इस भारी परिवर्तन को खुद आंखों देखा है।

उन्हों ने याद करते हुए बताया कि पुराने तिब्बत में शिएमाई की जगह एक निर्जन और बंजर भूमि थी और जगह जगह जंगली घास झाड़ी उगती थी। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले, शिएमाई गांव में एक ढंग का मकान भी नहीं था, यहां केवल तीन किसान परिवार थे और टूटी-फूटी झोपड़ी में रहते थे। शिए माई गांव गारेछांग नामक जागीरदार की भूमि थी, चेगारेनछिंग उस समय जागीरदार का दास था और जागीरदार के लिए खेती करता था और घोड़ा चराता था। कभी कभी वह जागीरदार के साथ व्यापार के लिए ल्हासा, युन्नान प्रांत और नेपाल भी जाता था। नेपाल में अपनी आपबीती की याद करते हुए वृद्ध चेगारेनछिंग ने कहा कि एक साल था, मैं जागीरदार के साथ नेपाल गयी था, रास्ते में पूरे नौ महीनों का समय लगा, मैं दस घोड़ों की देखरेख का काम करता था, जरा भी गलती हुई, तो मेरी खूब मरम्मत की जाती थी, घोड़ों को भर पेट खिलाने या पिलाने के बाद मुझे झपकी लेने का हिम्मत हो सकती थी। उस जमाने में मेरा जीवन घोड़े से भी दुभर था।

1950 में तिब्बत के छांगतू इलाके की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद चेगारेनछिंग की जिन्दगी भी बदली, पिछले 60 सालों में वह स्वावलंबन का जीवन बिताते हैं। 2004 में प्रिफैक्चर में वृद्ध सदन स्थापित हुआ, स्थानीय सरकार की मदद में वृद्ध चेगारेनछिंग वृद्ध सदन में रहने लगा और खुशहाल जीवन बिताने लगा।

वृद्ध चेगारेनछिंग ने कहा कि पुराने जमाने में मैं जागीरदार के घर में नौकरी करता था, न खाने का पर्याप्त आहार था, न ही पहनने के लिए कपड़े। मुझे अकसर अमानुषिक यातनाएं झेलनी पड़ती थी। अब हालत एकदम बदल गयी है, मैं वृद्ध सदन में वृद्धावस्था का जीवन बीता हूं, स्थानीय सरकर हमें चावल, आटा, घी और मांस मुहैया करती है और सर्दियों में गर्म रूईदार कपड़े और गर्मियों में पतली शीतल कमीज देती है। अब मेरे लिए न खाने की समस्या है, न ही पहनने की, जीवन बहुत मीठा होता है।

वृद्ध सदन के आंगन में कतारों में लगाए गए सौर चूल्हे बहुत ध्यानाकर्षक हैं, वृद्ध लोग वहां धार्मिक चक्का घूमाते हैं और माला जपते हैं और चेहरों में मुसकान खिलती है।

शिएमाई गांव में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो अतीत में अत्यन्त गरीब थे, आवारा का जीवन बिताते थे या जागीरदारों के गुलाम होते थे। अब वे वहां के धने लोग बन गए हैं। लोया उन में से एक है, जो पहले कुलीन वर्ग के दास थे और कुत्ते की भांति गरीब जीवन बिताते थे। जीविका चलाने के लिए वह अकसर बौद्ध मठ से अनाज उधार लेते थे, लेकिन वापसी के लिए तीन गुना देना पड़ता था। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद सभी गरीब लोगों की ही तरह वह भी दलित जीवन से निजात हो गये और उन्हें खेत, बैल, भेड़ और मकान बांटे गए। जनवादी सुधार और सुधार की नीति लागू होने के बाद उन के परिवार का जीवन और अधिक खुशहाल हो गया।

लोया की पत्नी का नौ साल पहले देहांत हुआ था, छह बच्चों का पालन पोषण करने का बोझ अकेले उन के कंधे पर पड़ा था। स्थानीय सरकार ने उन के परिवार को निम्नतम सामाजिक बीमा व्यवस्था में शामिल किया है, जिस से उन के जीवन की गारंटी प्राप्त हुई है। उन्हों ने कहा कि इसकेलिए वे पार्टी व सरकार का हमेशा एहसानमंद हूं। अब उन के पुत्र पुत्री बड़े हुए हैं और सभी अपने रोजगार और जीवन में व्यस्थ हैं। गांव में आवास योजना लागू होने के बाद लोया ने दो ट्रक खरीदे और दोनों बेटे परिवहन के काम में लग गए, उन की बेटी चीनी जड़ी-बूटी बीनने का काम करती है, परिवार की सालाना आय एक लाख य्वान से भी अधिक है। 2009 में उन्हों ने 4 लाख य्वान में 300 वर्ग मीटर वाली दो मंजिली इमारत बनायी, अपने आवास के अलावा शेष भाग किराये पर दिया जाता है और मासिक किराया 1200 य्वान प्राप्त होता है। सरकार की अच्छी नीति के चलते पहले गरीब लोग भी अब अमीर बने हैं।

तिंगछिंगमाई में लोया की भांति समृद्धि की राह पर चले लोगों की संख्या बहुत ज्यादा है। अब गांव वासी अपने गांव को एक समृद्ध व सभ्य गांव के रूप में बनाने की कोशिश कर रहे हैं। सभ्य गांव की मांग के अनुसार गांव वासियों का लोकाचार शिष्ट, भद्र और सभ्य होना है, गांव साफ सूथरा हो और सभी काम सुव्यवस्थित हो। इसे अंजाम देने के लिए मजबूत आर्थिक आधार की जरूरत है। गांव वासियों ने ग्राम वासी कमेटी के आह्वान में पहले पक्की सड़कें बनायीं, जो शाकांग, शिए श्योंग और तिंगछिंग आदि कस्बों के साथ जुड़ती है। गांव ने नदी पर पुल भी खड़ा किया है, जिस से आवागमन और सुगम हो गया है।

गांव वासियों ने आय बढ़ाने के लिए स्थानीय कीमती जड़ी-बूटी बीनने के व्यवसाय का विकास किया, इससे बड़ी आमदनी प्राप्त होती है। इस के अलावा अन्य प्रकार के कुटीर उद्योग का विकास भी किया है और काऊंटी केन्द्र में वास्तु निर्माण दल और श्रम सेवा भेजे हैं। 2009 में गांव वासियों की औसत प्रति व्यक्ति के हिस्से में आय 5000 य्वान तक पहुंची है। इसतरह शिएमाई गावं सचे माइने में पठार पर एक नवोदित गांव बन गया है।

अतीत में इस बंजर भूमि पर सिर्फ 221 किसान परिवार थे, अब बढ़कर 1679 परिवार हो गए, सभी लोग नए मकान में रहते हैं। गांव में नए नए मकान बनाए भी जा रहे हैं। दूर से अन्य जगह के लोग भी गांव में आ बसे हैं। शिएमाई गांव अब आधुनिक गांव का रूप लेने जा रहा है।

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