पहले की बात थी, किसी जिले में एक जिलाधीश था, जो एक बड़ा कंजूस था, उस के घर में ढेरों में अनाज गले सड़े हुए थे, फिर भी एक दाना भी गरीब लोगों को नहीं देता था। वह इतना मक्खीचूस था कि दूसरों के चमड़े उघाड़कर अपना कपड़ा बनाना भी चाहता है।
जिलाधीश के एक बुद्धिमान नौकर था, नाम था थुदन। वह अकसर अपने स्वामी के हाथ में से कुछ न कुछ खींच कर निकालने के सोच विचार में था। एक दिन, थुदन ने भरी भीड़ में ऐलान कियाः मैं जिलाधीश से आप लोगों के सम्मान में एक भव्य दावत दिलवा सकूंगा, आप लोग धीरज के साथ उस के न्योता का इंतजार करें।
उस की यह बात सुनने पर लोगों ने कहकहा मार कर कहाः अरे, भेया जी, क्या भेड़िया के मुंह में से जरा सा मांस भी ले सकता?धन दौलत पर जान देने वाले जिलाधीश से भी दावत चाहा, तो समझ, अब सूरज पश्चिम में उदित हुआ होगा।
थुदन ने मुस्कान के साथ जवाब किया, काही को विश्वास नहीं करते, कुछ दिन देखने के लिए इंतजार करो।
जिले में पीने के लिए मात्र एक चश्मा था, बड़े अजीब की बात थी कि हर सर्दियों के मौसम में चश्मे में से गर्म गर्म फोवारा निकलता था, पर गर्मियों के दिन बड़ा शीतल पानी बहता था। जिलाधीश ने चश्मे पर अपना अधिकार घोषित किया और यह तर्क देकर दावा किया कि चश्मे का दिव्य पानी भगवान बुद्ध ने उसे दे दिया है।
एक दिन, जिलाधीश नगर के बुर्ज पर टहल रहा था, अनायास उस ने देखा कि थुदन चश्मे के पास एक पेड़ पर चढ़ा और दोनों आंखें टुकूर टुकूर चश्मे की ओर ताकतीं, कभी सिर हिलाता था और कभी कमर झुकाकर किसी से झकड़ा करता हुआ सा दिखता था। बुर्ज पर से उतर कर जिलाधीश थुदन के पास गया और पूछा, तुम यहां जहां तहां इशारा करते हुए क्या कर रहे हो?
वाह वाह, आदरनीय जिलाधीश महोदय, थुदन मुसकराते हुए बोला, यह सर्वविदित है, आप दयालु और दानदार व्यक्ति हैं, आप भगवान बुद्ध की पूजा करते हैं और आम प्रजा को भिक्षा भी देते हैं। कहते कहते उस का तेवर बदला और गुस्से में आकर कहाः लेकिन आज मैं ने इस चश्मे के पानी में एक ड्रैगन तैरते हुए देखा, उस ने महोदय आप के विरूद्ध बुरी तरह खोटी खरी सुनायी और आप पर अनेकों झूठारोप लगाये।
जिलाधीश ने घबराते हुए पूछा, डैगन ने मुझ पर क्या कलंक उछाला है ?
थुदन ने दबी जवाब में कहाः ड्रैगन कहता है कि आप हर साल प्रजा को बेगार में लगाते हैं, लोगों से बेशुमार धन दौलत लूटते हैं, किन्तु आप दूसरों को एक जौ की रोटी भी भिक्षा में नहीं देते हैं। इतना महा मक्खीचूस वाले का अवश्य ही एक न एक दिन समुद्र के पानी में डूबकर भीख मरी की भांति अच्छा अंत नहीं होगा। ड्रैगन की बातों से मुझे बेहद बुरी लगी और क्रोध से कांपकंपी भी छूटी। मैं ने उस का खंडन करते हुए कहा कि हमारे जिलाधीश तुम्हारे के कहने की बिलकुल तरह नहीं हैं, वे रोज दौड़ धूप करते हुए जन कल्याण के लिए मेहनत करते फिरते हैं। जौ की एक रोटी का खाना तो क्या चीज है, यदि उन से प्रजा की सेवा में कुछ दिन दावत देने की मांग करें, तो वे बेहिचकते मंजूरी देंगे।
खुशी के मारे जिलाधीश की बांछें खिल गयीं और हां में सिर हिलाते हुए कहाः ठीक है, ठीक है, तुम ने बहुत ठीक कहा।
थुदन ने आगे कहाः किन्तु ड्रैगन नहीं मानता, उस ने बकरी का सिर जितना बड़ा सोने का एक पिंड निकाल कर दावा किया कि यदि जिलाधीश अपने पैसे देकर प्रजा को खिलाने के लिए दावत देने को तैयार हो, तो वह कई दिन की दावत देकर अपनी उदारता दिखाए। अगर उस की उदारता इस चश्मे के पानी की तरह प्रवाहित रहेगी, तो मैं यह सोने का बड़ा पिंड उसे दे दूंगा।
जल्दी से घर लौटकर जिलाधीश ने अपने गृहस्थी पाल से सलाह ले लिया, गृहस्थी पाल ने कहा कि मेरे मत में दावत दी जा सकती है, क्यों कि ड्रैगन के पास अनाज और मांस नहीं है, उस के अधिकार में सिर्फ बेस्वाद पानी है, इसलिए आप निश्चय ही उस पर विजयी होंगे।
जिलाधीश अभी हिचकता रहा था, जब उसे यह विचार आया कि उन गरीबों को मुफ्त में दावत देने से ढेरों के पैसे खराब हो जाएंगे, तो उस का दिल मसोस कर दर्द हो गया, मानो उस के बदन पर से मांस काट कर निकाला जा रहा हो। पर जब बकरी के सिर जितने बड़े सोने के पिंड का ख्याल आया, तो वह इस कदर उतावला हो उठा कि एक क्षण में ही उस सोने के टुकड़े को अपनी टोली में समेट कर लिया जाए। कई दिन रात दिमाग खपाकर सोच विचार करने के बाद उस ने अखिर में दावत देने का फैसला ले लिया।
जिलाधीश के नौकर थुदन त्योहार का पोशाक पहने दावत में लोगों को मदिरा और भोजन परोसने में व्यस्त रहा, सभी लोगों को खाने का लुत्फ लेते हुए देख कर उस ने पूछा, क्या भेड़िये के मुंह में से मांस खींच कर ले लिया गया कि नहीं ?अब सूरज पश्चिम में निकला है या पूर्व में?सभी लोगों ने अपार खुशी प्रकट कर कहा, सचमुच तुम्हारा वायदा सच निकला है, पर नहीं जानते हैं कि इस का अंत तुम कैसे संभाल सकोगे?
दावत अभी समाप्त नहीं हुआ, जिलाधीश तो बेसब्र ही थुदन से ड्रैगन को दावत में बुलावा देने के लिए जाने को कहा। थुदन ने उसी दिन की ही तरह चश्मे के पास खड़े पेड़ पर चढ़कर देर तक बतियाने का स्वांग रचा, अंत में बड़े निराशे के मूड में जिलाधीश के पास आया और कमर गहरा झुका कर डर सा बोलाः हुजूर, नाश हुआ हो, वह ड्रैगन बड़ा चालक निकला है।
डर के मारे उस की घिग्घी हो गयी। जिलाधीश ने दहाड़ मार चिलायाः क्या बेवकुफ सा दिखा है, जल्दी ही बोलो। बड़े भय का स्वांग करते हुए थुदन ने नीची आवाज में कहाः ड्रैगन ने कहा है कि जिलाधीश के दावत के खर्चे में उस का हिस्सा भी है, दावत में परोसे हुए सभी खाने पानी से बनाये गए हैं, वह पानी ड्रैगन के चश्मे में से बहकर निकला है, जिलाधीश ने सिर्फ अनाज और मांस दे दिया है, ड्रैगन ने पानी का दान किया है, यदि जिलाधीश पानी के बिना दावत दे सकते हो, तो उसे बकरी के सिर जितने बड़े सोने का पिंड दिया जाएगा।
यह देखकर जिलाधीश इस कदर गुस्से व हताश में पड़ा कि उस की आंखें सीधी ठहरी सी रह गयीं और उस की सांसें भी फूल गयी थीं और मुंह का रंग बंदर के बालों की भांति फीका पीला पड़ गया था।
जालिम जमींदारों और सामंती अधिकारियों के खिलाफ आम प्रजा ने अकसर तेज बुद्धिमता और साहस का परिचय किया था, उन की कहानियां लोगों में बहुत लोकप्रिय और सदियों से प्रचलित हो रही है। समय की पाबंदी के कारण आज के इस कार्यक्रम में सिर्फ एक कहानी पढ़ कर सुनायी गयी है। आइंदा, हम जरूर कुछ न कुछ चीनी लोक कथाएं लेकर आप लोगों को मनोरंजन के साथ शिक्षा भी दिलाते हैं।