Web  hindi.cri.cn
तिब्बती व्यंजन
2010-12-21 15:56:52

आप जानते होंगे कि एक पुराना इतिहास वाली तिब्बती जाति के खानपान में भी अपनी विशेषता है, तिब्बती व्यंजन की अनेक शाखाएं ही नहीं हैं, उस की किस्में भी कम नहीं है।

तिब्बती व्यंजनों का चार स्वादों में भेद होता है। एकः अली और नाछ्यु क्षेत्र के व्यंजन को छ्यांग क्षेत्रीय खाना कहलाता है। दोः ल्हासा, शिकाजे और लोको के व्यंजन को ल्हासा क्षेत्रीय खाना कहा जा सकता है। तीनः लिनची, मोथ्वो और चीमु के व्यंजन को रोंग क्षेत्रीय खाना तथा राजा, कुलीन व सरकारी संस्था के व्यंजन को दरबारी खाना कहलाते है।

छ्यांग क्षेत्रीय भोजन कड़ी सर्दी वाले चरगाहों में खाया जाने वाला भोजन है जिस की विशेषता मूल स्वाद बनाए रखती है यानी शुद्ध नमकीन, मीठा, ताजा, खट्टा या खुशबू बनाए रखती है जो सर्दियों के मौसम के अनुरूप है। छ्यांग व्यंजन में पनीर, बैल के खूर, दही, घी आदि मुख्य कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होते हैं।

ल्हासा क्षेत्रीय व्यंजन जो ल्हासा, लोको और शिकाजे में प्रचलित है। वह कृषि और अर्ध कृषि व अर्ध चरगाह क्षेत्र का खाना है । इस व्यंजन की सामग्री विविधतापूर्ण है जिस में दुध के उत्पादों व बैल बकरी के मांस के अलावा फसलों की उपजें भी हैं। मांसाकारी और शाहाकारी दोनों के हैं, स्वाद नमकीन, हल्का मीठा है और उबालने, भुनने, तलने और भाप में पकाने के अनेक तरीके अपनाये जाते हैं।

रोंग व्यंजन समुद्री सतह से कम ऊंचाई पर स्थित तिब्बत के दक्षिण पूर्व भाग का भोजन है। खाना बनाने की सामग्री पहाड़ और जंगल से लायी जाती है और कुकुमरत्ता वाली साग सब्जी प्रमुख है और खाना बनाने का तौर तरीका भी आदिम काल के ढंग का है और स्वाद ताजा होता है।

दरबारी व्यंजन बारीकी से बनाने तथा सूक्ष्म कच्चा माल चुनने के कारण रंग में ताजा और खूबसूरत होता है। यह तिब्बती व्यंजन में सर्वश्रेष्ठ है और तिब्बत के हर क्षेत्र में लोकप्रिय है।

तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भोजन जैसा कि फुलान का निवु शोरबा, लोको का अंडा, यातुंग की मछली, ल्हासा का चांपा, लिनची का मुर्गा कुकुमरत्ता, छांगतु का शहद चटनी भी बहुत मशहूर है ।

तिब्बती व्यंजन में बहुत से कच्चे माल औषधि की क्षमता रखते हैं जो मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है। उदाहरणार्थ, तिब्बती जौ तिब्बती चिकित्सा ग्रंथ《 चिनजू जड़ी-बूटी》में एक अहम औषधि मानी जाती है। इस के प्रयोग से अनेक रोगों का निवारण हो सकता है। अधिकारिक संस्था के आंकड़ों के अनुसार तिब्बत में जोड़ों में दर्द और मधुमेह की दर सिर्फ 0.01 प्रतिशत है, जिस का श्रेय तिब्बती जौ के आटे से बने चांपा को जाता है। जौ में टॉनिक क्षमता का व्यापक पता चला है और चांपा भी और अधिक लोकप्रिय हो गया है।

घी दुध से परिशुद्धित तेल है। वह संजीवन तेल या तेल का अमृत कहलाता है । घी पठार पर रहने वाले लोगों का जरूरी खाद्य तेल है। अलग किस्म के घी की अलग कार्यक्षमता है । बैल और बकरी के दुध से निकलने वाला घी बुखार को दूर कर सकता है और याक व भेड़ से उत्पादित घी जुकाम को दूर कर सकता है।

इन के अतिरिक्त तिब्बत में सौंफ, जीरा, जंगली प्याज जैसे मसाले भी हैं और तिब्बती जड़ी-बूटी भी है। इन मसालों से बनाया गया व्यंजन जायकेदार है और स्वास्थ्य लाभद भी देता है।

तिब्बती लोगों में खानपान की अनेक प्रथाएं पायी जातीं है।

चांपा, घी, चाय और बीफ-बाटन तिब्बती खानपान की चार निधि मानी जाती है। चांपा तिब्बती जाति की सब से अच्छी निधि है, वह पके पकाए तिब्बती जौ के आटे से बनाया गया है जो छ्योछ्यो से मिलता जुलता है ।

तिब्बती जौ जौ की एक प्रजाति है। मुख्यतः तिब्बती पठार के ठंडे इलाके में उगता है। तिब्बती जौ को आंच से पकाने का काम एक तकनीकी काम है। जौ में से बढ़िया वाला चुन कर एक विशाल कड़ाहे में भुना जाता है । जौ भुन कर पकाने से पहले जौ को उचित मात्रा में रेतों के साथ मिला कर तेज आंच पर भुना जाता है। रेत तप जाने के बाद जौ को पानी से भिगोया जाता है। जौ भुनने वाला एक लकड़ी का औजार कडा़हे के भीतर जौ चलाता रहा, तभी जौ और रेत आपस में टक्कर जाने से पॉम्पो की तरह फूल जाता है। हल्के से फूले हुए जौ खुद ऊपर बाहर आ निकलते हैं और भारी वाले रेत नीचे रह जाते हैं।

भुने गए जौ को पीस कर पाउडर बनाया जाता है, इसतरह तिब्बती जाति का सब से पसंदीदा खाना चांपा तैयार हो गया। नया बनाया गया चांपा खाने में स्वादिष्ठ और सुगंधित लगता है। तिब्बती जाति में चांपा खाने के अनेक तरीके हैं। लोकप्रिय परंपरागत तरीके में लोग कटोरे में थोड़ा घी का तेल ,चाय का पानी या दुध डालते हैं, फिर कुछ चांपा उस में डाल कर ऊंगली से मिलाते हैं, चांपा और घी को अच्छी तरह मिलाने के बाद उसे हाथों से गोल गोल टुकड़ी बना कर खा लेते हैं। चांपा, घी ,चाय और दुध से मिश्रित इस आहार में प्रचुर पोषक तत्व हैं, जो अच्छी ऊर्जा प्रदान करता है और सर्दी वाले तिब्बत क्षेत्र के लिए अनुकूल है। चांपा खाने में सरल है और ले जाने में भी आसान है जो घुमंतू जीवन के अनुरूप है। तिब्बती चरवाहे दूर जगह जाते समय अवश्य एक थैली का चांपा साथ ले जाते है । जब भूख लगी , तो काष्ठ कटोरे में कुछ चांपा, घी और नमक मिला कर हाथ से उठा कर खाते हैं।

घी तिब्बती खाद्य पदार्थ की उत्तम चीज है। वह मक्खन जैसी वस्तु है। तिब्बती लोग याक के दुध से बना घी पसंद करते हैं, वह ताजा पीला और महकदार और जायकेदार है। बकरी के दुध का घी सफेद, चमकदार और पोषक है, लेकिन गाय के दुध से बना घी कम पोषक है। घी बहुत पोषक और पठार पर रहने वाले लोगों की शारीरिक आवश्यकता पूरा कर सकता है।

घी खाने के अनेक तरीके हैं, मुख्यतः घी का चाय बनाया जाता है। इस के अलावा चांपा में मिला कर खाया जाता है। त्यौहार और खुशी के दिन लोग दुध के पकवान बनाते है, जिस में घी का प्रयोग होता है। अब तिब्बत में ताजा फल खूब मिलता है। लेकिन अतीत में वहां फल नहीं मिलता था, इसलिए सब्जी और फल की जगह तिब्बती लोग मांस और घी का लाभ लेते थे।

तिब्बत क्षेत्र में गाय बकरी की बहुलता है और दुध के खाद्यपदार्थ भी विविध और ज्यादा होते हैं। जिन में से दही और दुध का कचरा अधिक लोकप्रिय है।

तिब्बती दही दो प्रकार के होते हैं। एक है परिशुद्ध घी से बनाया गया और दूसरा है सामान्य दुध से बनाया गया है। दोनों के कच्चे माल अलग अलग है, लेकिन बनाने का तरीका एक जैसा है। दुध को उबाल कर लकड़ी की बाल्टी या अन्य पात्र में डाला जाए, जब तापमान 30-40 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंचा, तो उस में थोड़ी सी दही खमीर के रूप में मिलाया जाए, इस तरह खमीर उठने के बाद पूरी बाल्टी के दुध ने सफेद दही का रूप ले लिया।

दही प्यास बुझाती है और नींद दिलाने में मदद देती है। और आंत के भीतर विषाणु का सफाया कर देती है। उसे पीने से मोटापा कम हो जाएगा, मुख का रंग निखार दिया जाएगा और स्वास्थ्य को मजबूत किया जाएगा।

शुद्ध ताजा दुध से घी निकालने के बाद जो कचरा रह जाता है, उसे उबाल कर दुध-कचरा बन जाता है। दुध-कचरे से रोटी और अन्य पकवान बनाया जा सकता है। दुध उबालने में जो मलाई निकली है, वह बहुत पोषक और जायकेदार है। ताजा फल कम होने वाले तिब्बत में लोग दुध-कचरा और मलाई को बच्चों को खिलाते हैं और लोग बाहर जाने के समय साथ भी ले जाते हैं।

दुध-कचरा खाने के अनेक तरीके हैं, उसे उचित मात्रा में चांपा, घी, चीनी मिला कर हाथ से दबाने से पुख्ता चौकोण केक बनाया जाता है। उसे पानी , मांस की पतली टुकड़ी, आटा, सूखा मिर्च और नमक के साथ मिला कर चांपा के सहायक खाने के रूप में खाया जाता है। दुध-कचरा भुना जा सकता है और तला भी जा सकता है और तरकारी के रूप में ले लिया जा सकता है और मुख्य व हल्के आहार के रूप में भी ले सकता है।

तिब्बत ऊंचे पठार पर है, समुद्री सतह से बहुत ऊंचा है और औक्सीजन कम है। इस प्रकार की भौगोलिक स्थिति से यह निश्चित हुआ है कि ठंड और ओक्सीजन की कमी का सामना करने में उपयोगी खाद्यान्न बहुत महत्वपूर्ण है। बीफ और बाटन तिब्बती लोगों के खाने में अहम कच्चा माल और भोजन बन गए।

तिब्बत में बीफ मुख्यतया याक का मांस है, याक का मांस लाल लाल ताजा है, कोमल और स्वादिष्ट है, उस में कम चर्बी और अधिक प्रोटिन है। बाटन ज्यादातर भेड़ का मांस है । तिब्बती लोग बकरे का मांस नहीं खाते हैं ,वे मानते हैं कि बकरे के मांस से गुर्दे को नुकसान पहुंचता है। कुत्ते का मांस एकदम वर्जित है और मछली भी तिब्बती लोग नहीं खाते हैं, क्योंकि वे मानते हैं कि मछली ड्रैगन या जल देवता का अवतार है।

तिब्बती जाति में पशु का वध सर्दियों के आरंभिक समय में ज्यादा होता है। इस मौसम में पशु मोटा और हृष्टपुष्ठ है और वध किये जाने के बाद सर्दियों के मौसम में अच्छी तरह सुरक्षित भी किया जा सकता है।

संदर्भ आलेख
आप की राय लिखें
सूचनापट्ट
• वेबसाइट का नया संस्करण आएगा
• ऑनलाइन खेल :रेलगाड़ी से ल्हासा तक यात्रा
• दस सर्वश्रेष्ठ श्रोता क्लबों का चयन
विस्तृत>>
श्रोता क्लब
• विशेष पुरस्कार विजेता की चीन यात्रा (दूसरा भाग)
विस्तृत>>
मत सर्वेक्षण
निम्न लिखित भारतीय नृत्यों में से आप को कौन कौन सा पसंद है?
कत्थक
मणिपुरी
भरत नाट्यम
ओड़िसी
लोक नृत्य
बॉलिवूड डांस


  
Stop Play
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040