तिब्बती इतिहास ग्रंथ तिब्बती राजा वृत्तांत में यह दंतकथा लिपिबद्ध हैः
नापुथो पहाड़ पर अवलोकितेश्वर ने बोधित्सव से रूपांतरित एक बंदर को शील पालन की दीक्षा दी थी और उसे दक्षिण सागर से तिब्बत पठार पर तपस्या करने भेजा। वह बंदर तिब्बत पठार पर बहती यालुंग नदी के घाटी क्षेत्र में एक पहाड़ी गुफा में रहने लगा और तनमन से तपस्या करना शुरू किया। बंदर कठोर तपस्या करने में जुटा हुआ था, तभी पहाड़ पर रहने वाली एक राक्षसी उस से अनुराग हो गयी और उस में कामलिप्सा भी हुई। राक्षसी ने सीधे बंदर के पास पहुंचकर कहा कि मैं चाहती हूं कि हम दोनों का सहवास हो। जवाब में बंदर ने कहाः" मैं अवलोकितेश्वर का चेला हूं और बोधित्सव के आदेशानुसार यहां तप रहा हूं । यदि तुम्हारे साथ सहवास हुआ, तो मेरा शील भंग हो जाएगा। राक्षसी ने बड़ी मीठी आवाज में कहाः अगर तुम मेरे साथ कामवासना नहीं करोगे, तो मुझे आत्महत्या करना पड़ेगा। क्योंकि पिछले जन्म के कर्म फल से मैं ने इस जन्म में राक्षसी का रूप ले लिया और मेरे भाग्य में तुम्हारे साथ संग होने का लिखा हुआ है। आज मैं विशेष तौर पर तुम्हारे पास आयी हूं और प्रेम के सूत्र में बंधने को तैयार हूं। यदि हम दोनों का सहवास नहीं हो पाया, तो भविष्य में मैं राक्षस की पत्नी बन जाऊंगी और लाखों प्राणों का अंत कर दूंगी और हजारों छोटे राक्षस पैदा करूंगी। ऐसे में तिब्बत पठार राक्षसों की दुनिया बनेगी तथा बेशुमार प्राणों का विनाश किया जाएगा। इसलिए तुम मेरी मांग को पूरा करने की कोशिश करे।" राक्षसी की ऐसी बातें सुनने के बाद बंदर के दिल में उधेड़-बुन हुआ, सोचा कि मैं बोधित्सव के आदेशानुसार जग में आया हूं। यदि मैं इस राक्षसी के साथ विवाह करूंगा, तो मेरा शील पालन भंग होगा, यदि नहीं करूंगा, तो जग लोक में भारी उत्पात मचेगी। फिर क्या करूं। सोचते ही बंदर एक छलांग मार कर बोधित्सव की खोज में नापुथो पहाड़ पर पहुंचा और उस ने समाधान का उपाय मांगा। अवलोकितेश्वर ने जरा सोच करने के बाद मुंह खोलाः"यह भगवान की उम्मीद है और शुभ का कर्म होगा। यदि तुम और वह पति पत्नी बने, तो इस तिब्बत पठार पर मनुष्य का वंशवर्द्धन होगा जो असाधारण कल्याण का काम होगा। बोधित्सव होने के नाते तुम को लोक कल्याण के लिए साहस का परिचय देना चाहिए, जल्दी करो, तुरंत राक्षसी के पास जाकर उस के साथ शादी करो।" इसतरह बंदर और राक्षसी का ब्याह हुआ, दोनों ने लगातार छह बंदर बच्चों का जन्म किया, छह बंदर बच्चों की अपनी अपनी रूचियां और अलग अलग व्यक्तित्व मिले थे। बोधित्सव से अवतारित बंदर ने अपने छह बच्चों को फलदार पेड़ों के जंगल में लेकर छोड़े और वे अब स्वतंत्र रूप से वहां जीविका चलाने लगे।
तीन साल बाद, बंदर पिता जंगल में अपनी संतान से मिलने गया, तो पाया कि छह बंदरों से पांच सौ संतानें पैदा हुईं, नतीजातः पेड़ों पर फल अपर्याप्त हो गए और खत्म होने जा रहे थे। वृद्ध बंदर से मिलने पर बंदर बच्चों ने बड़ी चिंता की आवाज में कहा, "देखिए, अब फल खत्म हो रहे हैं और जीने के लिए हम क्या खाएंगे।" बड़ा नाचार होने की मुद्रा में वे दुख की फरियाद कर रहे थे और बड़े असहाय प्रतीत होते थे। वृद्ध बंदर ने यह हालत देखकर स्वतः बुदबुदायाः" अवलोकितेश्वर के निर्देश पर मैं ने इतनी ज्यादा संतान पैदा की है, किन्तु अब यह काम बहुत निरर्थ हो गया, जिस से मेरा बड़ा सिर दर्द हुआ है। बेहतर है कि मैं अवलोकितेश्वर के पास जाकर उस से मदद मांगूं।" सोचते ही बंदर नापुथो पहाड़ पर जा पहुंचा। अवलोकितेश्वर ने बतायाः "तुम्हारी संतान का पेट मैं भरा कर सकूंगा।" अवलोकितेश्वर के आदेशानुसार बंदर सुमेर पर्वत पर जाकर विभिन्न प्रकार के अन्न के बीज लेकर लौटा और उन्हें जमीन पर फेंककर बिछाया, यालुंग नदी की घाटी की विशाल भूमि पर तरह तरह के अनाज उग गए। यह काम पूरा करने के बाद वृद्ध बंदर अपनी संतान से विदा होकर अपनी गुफा में लौट गया। पर्याप्त खाद्यन्न प्राप्त होने के कारण बंदर के दुम धीरे धीरे छोटे होते गए और वे मनुष्य के स्वर में बोलने लगे, कालांतर में वे मनुष्य बन गए जो तिब्बत पठार पर रहने वाले लोगों के पूर्वज थे।
यह ही है कि बंदर की मनुष्य में तबदीली की कहानी, जो तिब्बती लोगों में व्यापक तौर पर प्रचलित है और तिब्बत के प्राचीन ग्रंथों में भी लिखी गयी है, यहां तक पोताला महल और लोपुलिनका उद्यान के भित्ति चित्रों में भी इस कहानी पर आधारित चित्र देखने को मिलता है। कहा जाता है कि बंदर की गुफा च्येतान शहर के निकट खड़े कुंगबू पहाड़ पर स्थित है और च्येतान का तिब्बती भाषा में अर्थ है बंदरों का क्रीड़ा स्थल । इसी लोककथा के आधार पर यह नाम रखा गया था।
अभी आप ने तिब्बती जाति के पूर्वज के बारे में एक लोककथा देखी है, अब तिब्बती जाति की एक दूसरी रूचिकर लोक कथा देखिए, नाम है विवाह के शराब का पान ।
खरगोश हरे भरे घास मैदान पर सुहावना धूप में लेटा विश्राम कर रहा था। अचानक दूर से एक बड़ा भेड़िया और लोमड़ी पास आ धमके। अपने लम्बे लम्बे दांत दिखा कर भेड़िया ने धमकी देते हुए कहाः "अबे, तुच्छ खरगोश, भूखमारी से मेरे पेट में चूहा कूद रहा है, तुम यहां बड़े आराम से धूप सेंक रहे हो, क्या अन्याय है, जल्दी आओ, हमारी भूख को शांत करने के लिए आहार बन जाओ, ठीक है ना ?"
यह सुनकर खरगोश अत्यन्त घबराया,उस ने कायर आवाज में याचना की कि हुजूर, आप देखिए, मैं इतना कदर दुबला पतला हूं कि बच्चे का मुक्का भी मुझ से बड़ा हो।
लोमड़ी ने अपना पंजा खरगोश के पीठ पर रखकर हंसते हुए कहा, "खरगोश जी, तकल्लुफ न कीजिएगा । लोकोक्ति कहती है कि खरगोश छोटा तो सही, पर मांस गजब का जायकेदार है। भेड़िया भैया, चाय गर्म होने पर पीता है और गोश्त ताजा होने पर खाता है, जल्दी करें, हम यह काम जल्द ही आरंभ करें।"
"ठहरो, जरा ठहरो।"खरगोश जोर का एक छलांग मार कर पास की झाड़ियों में घूस गया और बोलाः"भेड़िया बापू और लोमड़ी बहन जी, आज की रात गांव में विवाह समारोह होगा, मुझे भी विवाह का शराब पीने के लिए आमंत्रित किया गया है। मुझे विवाह समारोह में जाने दीजिए, इस के उपरांत मुझे अपना ग्रास बनाये, तो आप के लिए ज्यादा लाभ होगा।"
"अखिर विवाह का शराब क्या चीज है?"भेड़िया और लोमड़ी दोनों ने अपना पंजा वापस खींचकर एक साथ पूछा। क्योंकी खरगोश की बातें उन दोनों के लिए बड़ी अजीबोगरीब है।
"विवाह का शराब है," खरगोश धीरे धीरे झाड़ियों में से बाहर निकल कर बोला, वह मिट्टी के एक छोटे ढेर पर उकड़ूं बैठे बड़ी घमडी मुद्रा में समझा रहा था कि विवाह का शराब अर्थात विवाह समारोह में शराब का पान करना है। समारोह में गाना नाचना भी है, शराब पीने के साथ साथ मांस भी खाने को परसता है, बड़ा मजा आएगा।
भेड़िया और लोमड़ी ने आपस में सलाह मशविरा किया और इस पर मंजूर हो गए कि अगले दिन खरगोश को अपना भोजन बनाये। इस दिन की रात खरगोश के साथ विवाह का शराब पीने जाएंगे। खरगोश ने खुशी के साथ हामी भरी।
रात में, खरगोश भेड़िया और लोमड़ी को साथ लेकर गांव में शादी ब्याह का समारोह करने वाले घर गया। वे तीनों पानी की नाली के मार्ग से आंगन में घुसे, फिर तिब्बती जौ और शराब व मांस के गोदाम में प्रवेश कर गए। तीनों पंक्ति में खिड़की पर बैठे और आंगन में झांकने लगे, आंगन में रोशनीदार लालटेन चमचमाते थे, लोगों की भीड़ लगी थी, लोग दुल्हे और दुल्हन को शुभ सूचक सफेद हाता पहन रहे थे और आशीर्वाद के लिए जाम पेश करते थे। कुछ लोग गाते नाचते भी थे और तिब्बती ओपेरा भी हो रहा था, माहौल अत्यन्त रौनक और उत्साहित था।
खरगोश ने सुझाव रखा,"तमाशा देखने से ज्यादा मज़ा नहीं होगा. उन की नकल पर हम भी शादी की रस्म रचेंगे तो बड़ी खुशी होगी। कैसे विवाह की रस्म की जाए, भेड़िया और लोमड़ी ने पूछा। ऐसा करें, रोबदार बापू भेड़िया दुल्हे तथा खूबसूरत बहन लोमड़ी दुल्हन के रूप में शादी करें और तुच्छ वाला मैं रस्म आयोजक का काम संभालेगा।" भेड़िया और लोमड़ी दोनों खरगोश के सुझाव पर प्रसन्न और संतुष्ट हुए। खरगोश ने एक फटी हुई छांटनी ढूंढ कर भेड़िया के सिर पर टोपी के रूप में पहन लिया और एक बड़ी रोटी को दांतों से काट कर बीच में एक बड़ा छेद बनाया और उसे स्वर्ण–हार के रूप में लोमड़ी के गर्दन में लगाया और खुद अपने कान पर एक पूरी चिपका कर कनबाली के रूप में लगाकर रस्म आयोजक की नकल की ।
विवाह रस्म के बाद खरगोश ने ऐलान कियाः अब हम मुक्त कंठ से शराब पीएंगे। उस ने शराब कुंडे का छादन हटाकर दुल्हे और दुल्हन को शराब पिलाया। भेड़िया और लोमड़ी को ऐसी मजेदार चीज पीने को पहले कभी नहीं मिली थी, दोनों अपने सिर को कुंडे के अन्दर घुसेड़ कर गटगट से पीने लगे। एक कुंडा शराब खत्म होने पर दोनों चूर चूर होकर लड़खड़ा हो उठे। समादर के लिए खरगोश ने अपनी दाढी को शराब की छींटें फेंक कर तर कर दिया।
शराब पान के बाद खरगोश ने गाना गाने का सुझाव भी रखा, वह पहलेपहल "ची ची ची" के स्वर में गाने लगा, भेड़िया गोदाम के भीतर दौड़ता कूदता दहाड़ मारता रहा और गांड़ से बदबू हवा छोड़ रही थी जिस से माहौल एकदम प्रदूषित हो गया।
आंगन में विवाह समारोह में उपस्थित लोगों को भांप हुआ कि गोदाम में हंगामा मच रहा है, तो जायजा लेने के लिए वे वहां गए, भेड़िया और लोमड़ी को मकान के अन्दर उत्पात मचाते हुए पाकर लोगों ने डंडे और तलवार उठाए गोदाम को घेर लिया। स्थिति को बिगड़ी हुई देखकर खरगोश खिड़की से बाहर कूद कर नौ दो ग्यारह हो गया। भेड़िया और लोमड़ी भी छलांग मार कर खिड़की पर चढ़े, लेकिन सिर पर छांवनी और गर्दन पर रोटी पहनने के कारण दोनों बाधित होकर वहीं पर अटक गए और लोगों के डंडों व तलवारों के वार से जिन्दा मारा गया।