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तिब्बती लोक कथा—4
2010-11-01 10:47:47

चीन के तिब्बत प्रदेश में बड़ी संख्या में लोक कथाएं प्रचलित हो रही हैं और वे तिब्बती लोगों में अत्यन्त लोकप्रिय भी हो रही है। पिछले कार्यक्रमों में हम आप को तिब्बत की कुछ लोक कथाएं पढ़कर देखायी थीं। यकीन है कि आप लोगों को पसंद आयी होगी। तो देखिए पहली तिब्बती लोक कथा, नाम है तिब्बत के स्नान उत्सव की कहानी।

हर साल की गर्मियों के अंत और शरद के प्रारंभिक काल की रात में ल्हासा के दक्षिण पूर्व आकाश में एक नया रोशनीदार तार चमकता हुए निकलता है। इसी रात से तिब्बती जाति का स्नान उत्सव आरंभ होता है। इस चमकदार तार मात्र सात रातों तक मौजूद होने के कारण तिब्बत का स्नान उत्सव भी सात दिन मनाया जाता है। इस प्रथा के पीछे एक कहानी प्रचलित है।

कहा जाता है कि बहुत बहुत पहले, तिब्बती घास मैदान में एक मशहूर वैद्य था, उस का नाम युथ्वो. युनतांगकुंगबू । चिकित्सा और औषध में पारंगत होने की वजह से वह किसी भी कठिन व जटिल बीमारियों का इलाज करने में दक्ष था। यही कारण था कि तिब्बती राजा ने भी उसे राजमहल में बुलवाकर राजसी चिकित्सक बनाया, जो विशेष तौर पर राजा और रानियों को चिकित्सीय सेवा देता था। लेकिन राजमहल में आने पर भी युथ्वो. युनतांकुंगबू के दिल में जन साधारण की याद रहती थी। वह अकसर जड़ी-बूटी तोड़ने व बीनने के मौके का फायदा उठाकर राजमहल से बाहर जाकर आम लोगों के रोगों का उपचार करता था। एक साल, घास मैदान में भयानक महामारी फैली, बेशुमार किसान और चरवाह बीमारी के कारण पलंग से नहीं उठ सकते, और कुछ लोगों की जान भी चली गयी।

चिंतित होकर वैद्य युथ्वो. युनतांकुंगबू ने दौड़े दौड़े विशाल घास मैदान में जाकर बीमारी से पीड़ित किसानों और चरवाहों का इलाज करता फिरता था। उस ने हिमच्छादित पहाड़ों और घने जंगलों में भांति भांति की जड़ी-बूटियां तोड़ बीन कर रामावण औषधियां तैयार कीं, जिन के सेवन से रोगी जल्द ही चंगे हो गए। उस की मेहरबानी से न जाने कितने मौत से जूझा रहे रोगी काल से बच गए और पुनः स्वस्थ हो गए। इसतरह युथ्वो. युनतांकुंगबू की ख्याति-प्रसिद्धि जगजग फैल गयी, और वह वैद्य-राजा के नाम से संबोधित किया गया। लेकिन दुर्भाग्य की बात थी कि वैद्य युथ्वो का भी स्वर्गवास हो गया। उस के देहांत के बाद घास मैदान में फिर एक बार महामारी पनपी, जिस ने पहले की महामारी से भी भयानक रूप ले लिया था।

बेशुमार बीमारी से जान गंवाए। रोग के शैय्या पर छटछपा रहे लोगों ने जमीन पर गिरकर स्वर्ग से उन की रक्षा करने की प्रार्थना की। संयोग की बात मानी, न मानी, एक दिन रोग से बुरी तरह पीड़ित एक नारी ने सपना में देखा कि वैद्य युथ्वो. युनतांकुंगबू ने उस के पास आकर बताया:" कल की रात, जब दक्षिण पूर्व के आकाश में एक चमकदार तारा उदित हो उठा, तो तुम ची छु नदी में जाकर पानी से नहा लो, इस से तुम बीमारी से पिंड छूटेगी।"सपना सच में आया, चीछु नदी में स्नान करने के बाद उस नारी की बीमारी खत्म हुई, वह चंगी हो गयी और पीली, पतली दुबली रोगी नदी के पानी से नहाने के बाद तुरंत सेहतमंद हुई और चेहरा चमकने लगा। खबरी कानोंकान फैली, सभी रोगी नदी में नहाने चले गए। नदी में नहाने के बाद वे सभी भी सेहतमंद हुए और एक बिलकुल स्वस्थ लोग बन गए। लोग कहते थे कि आकाश में चमकता हुआ वह तारा वैद्य योथ्वो का अवतार है।

स्वर्ग लोक में जब युथ्वो ने देखा कि नीचे धरती पर प्रजा महामारी से पीड़ित रही है, और वे खुद नीचे नहीं आ पाए, तो उस ने अपने को एक तारा के रूप में बदला और दिव्य आलोक शक्ति से नदी के पानी को औषध जल में परिवर्तित किया। और लोगों को बीमारी से छुटकारा पाने के लिए लोग नदी में पानी नहाने का संदेश भेजा। स्वर्ग राजा ने युथ्वो को केवल सात दिन का समय दिया, इसलिए यह तारा आकाश में सिर्फ सात रात में दृष्टिगोचर रहा। इस के बाद तिब्बती जनता ने इन सात दिनों को स्नान उत्सव घोषित किया। हर साल के इन सात दिनों में तिब्बत के विभिन्न स्थानों में तिब्बती जनता आसपास के नदी में जाकर नहाती है । माना जाता है कि नदी में स्नान करने के बाद लोग स्वस्थ और प्रसन्न हो उठते हैं और बीमारी नहीं लगती है।

अभी आप ने तिब्बत के स्नान उत्सव के बारे में कहानी देखी है, आगे आप देखेगी दूसरी तिब्बती कथा, नाम हैः दो बहनें और एक भाई।

बहुत पहले की बात थी। च्येच्युन नाम की जगह पर दो बहनें और एक भाई रहते थे। उन के मां बाप चल बसे थे। दो बहनें अपने से छोटे भाई का लालन-पालन करती थी। बड़ी बहन खूबसूरत और लावण निकली, किन्तु दिल में वह जालिम और क्रूर थी, उसे आदमी का मांस खाने की लत पड़ गयी थी, जान पड़ता था कि उस के शरीर में राक्षस छिपा हुआ हो। दूसरी बहन सहृदय और दयालु थी और बड़ी बहन का सम्मान तथा छोटे भाई को प्यार करती थी। वह अपने भाई को दिल का टुकड़ा और आंखों की पुतली समझती थी। छोटा भाई परवान चढ़ते हुए बहुत प्यारा और कोमल दिखा। उसे देखकर बड़ी बहन के मुंह में लार टपकती थी। वह उसे कच्चा खाने की ताक में थी।

एक दिन, बड़ी बहन ने अपनी बहन से बकरी चराने को कहा, कहती थी कि वह घर में ठहरते खाना पकाएगी और भाई की देखभाल करेगी। पर दूसरी बहन को बड़ी बहन की कुत्सिक नीयत भांक आयी। वह भाई को अकेले घर में छोड़कर कही कतई नहीं जाएगी। उस ने कहा, बहन जी, तुम पहले की तरह बकरी चराने जाए। मैं घर में आप के लिए बड़े कडाही का पसंदीदा मांस पकाऊंगी। नाखुश होकर बड़ी बहन चली गयी।

दूसरी बहन ने बाड़े से एक बकरी पकड़कर वध किया। बड़ी बहन के घर लौटते वक्त भाई को कहीं सुरक्षित छिपाया। बड़ी बहन के लौटने के बाद उस ने पका पकाया मांस लाकर बड़ी बहन को खाने के लिए परोसा और कहा, खा जाए, बहन जी, यह भाई का मांस है। सुन कर बड़ी बहन की बांछें खिल उठीं और हाथ पांव नाचे हुए। उस ने चाव से मांस खाया। लेकिन खाने के बाद उसे मालूम हुआ कि यह आदमी का मांस नहीं है। फिर भी मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। दूसरे दिन, बड़ी बहन ने दूसरी बहन से चराने जाने को भेजा, इस बार दूसरी बहन के पास घर ठहरने के लिए कोई बहाना नहीं रह गया। विवश होकर छोटे भाई को छिपाने के बाद वह बाहर चली गयी।

शाम को दूसरी बहन घर लौटी, बड़ी बहन ने भाई की एक उंगली निकालकर उस से कहा, तुम ने कल मुझे धोखा दी थी, आज मैं ने भाई का वधकर खाया है, यह लो, तुम्हारे लिए एक ऊंगली बची है। बात सुनकर दूसरी बहन को असह्य दुख हुई और अपार आक्रोश हुआ। परन्तु बड़ी बहन पर वह कुछ नहीं कर पाती। असीम पीड़ा सहते हुए वह बड़ी दुख से रो रही थी और भाई की ऊंगली थामे पहाड़ के पास एक स्तूप बनाया और ऊंगली को स्तूप के अन्दर रखी। वह बार बार पूजा-अर्चना करती रही और भाई की आत्म के शांत होने की दुआ करती रही।

दूसरे दिन, दूसरी बहन बकरी चराने पहाड़ पर गयी. वहां उस ने पाया कि स्तूप एक छोटे मंदिर के रूप में बदला। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ, देखते देखते ही हवा की एक तेज झोंका आयी, जिस से उस की गोद में रखी ऊंनी तौलिया बाहर निकलकर हवा के साथ मंदिर के भीतर चली गयी। तौलिया का पीछा करते हुए दूसरी बहन भी मंदिर के अन्दर पहुंची। मंदिर में लाल पीला रंग का चोगा पहने एक भिक्षु उस के आगे आया और उस ने बहन को ढेरों रत्न-मणि और मोती जेवर भेंट किए।

खूबसूरत जौहर आभूषण लेकर दूसरी बहन घर लौटी, उस के हाथों में इन सुन्दर कीमती चीजें देखकर बड़ी बहन को बड़ा लालच हुआ, उस ने ऐसी चीजों के आने का रहस्य पूछा। ईमानदार दूसरी बहन ने उसे सच सच बताया।

फिर दिन आया, बड़ी बहन अपनी बहन की नकल पर गोद में ऊनी तौलिया लिए मंदिर के सामने गयी। वहां पहुंचने के बाद हवा की कई झोंकें आयीं, लेकिन उस की गोद से तौलिया नहीं हिला, लाचार होकर बड़ी बहन ने तौलिया को मंदिर की छत पर फेंका। वह खुद मंदिर के भीतर गयी, कल के उस भिक्षु ने उस का आवभगत किया और उस के सिर और गर्दन पर अनेकों रत्न मणि और जौहर मोती पहन दिए। अनंत प्रसन्नता केसाथ बड़ी बहन घर की ओर चली गयी।

राक्षस जैसी बड़ी बहन तब एक हरीभरी झील के पास पहुंची, वह यह देखना चाहती थी कि पानी में सुन्दर आभूषण पहनी उस की परछाई कैसी है। किन्तु झील के पानी में अपनी परछाई देखकर भय आतंक के मारे वह अथाह झील में गिरकर काल के मुंह में चली गयी। दरअसल, उसने अपनी परछाई पर जो पहनी हुई चीजें देखी थीं, वह कोई रत्न पन्ने और जौहर नहीं थे, वो उस के सिर माथे पर कुंडली मारे बैठे जहरीले सांप और गर्दन छाती पर रेंगते विषाक्त कीड़े मकोड़े थे।

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