छिंग हाई तिब्बत पठार पर रहने वाली तिब्बती जाति के लोगों ने अपनी बुद्धिमता और मेहनत से तिब्बती जाति का विशेष खगोल विज्ञान और पंचांग शास्त्र का विकास किया जिन में नक्षत्र विज्ञान, भूगोल, चिकित्सा व औषधि तथा कृषि उत्पादन के बारे में विज्ञान शामिल है। तिब्बती खगोल और पंचांग विज्ञान में अपनी विशिष्ठ विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए वह तिब्बत का ज्ञान कोष कहा जा सकता है। आइए, आज के इस कार्यक्रम में इस के बारे में एक रिपोर्ट सुनिए।
तिब्बती चिकित्सा अस्पताल का एक विभाग मनचिखांग कहलाता है, जिस का तिब्बती भाषा में अर्थ है तिब्बती चिकित्सा औषधि और खगोल व पंचांग का काम करने वाली संस्था। तिब्बती चिकित्सा अस्पताल के खगोल व पंचांग अनुसंधान प्रतिष्ठान के उप प्रधान श्री छितो ने परिचय देते हुए कहाः
मन का अर्थ है तिब्बती चिकित्सा व औषधि, चि का तात्पर्य है खगोल व पंचांग और खांग का अभिप्राय है संस्था।
मनचिखांग प्रतिष्ठान में प्रशिक्षण का विषय सभी व्यापक तिब्बती ग्रामीण क्षेत्रों में खेतीबारी के लिए लाभ देने वाला ज्ञान है जो कृषि उत्पादन में निर्देशक भूमिका निभा सकता है। हर साल बड़ी संख्या में तिब्बती किसान और चरवाह ल्हासा में ज्ञान सीखने के लिए आते हैं। इन शौकिया छात्रों से प्रतिष्ठान पढ़ाने के लिए एक कोड़ी भी नहीं लेता है। अब तक करीब 500 लोगों को व्यवहारिक काम के लिए प्रशिक्षित किया गया है। गैरसरकारी संगठनों के अलावा तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सरकार भी तिब्बती खगोल व पंचांग विज्ञान के बारे में प्रशिक्षण के काम पर बड़ा ध्यान देती है। 2007 से सरकार ने प्रदेशी तिब्बती चिकित्सा अस्पताल के भीतर खगोल व पंचांग प्रशिक्षण कक्षाएं खोलीं और अनुसंधान के लिए सुयोग्य व्यक्तियों को दाखिला करा दिया, 2009 तक उच्च शिक्षा डिग्री व व्यवसायी स्तर रखने वाले 42 श्रेष्ठ छात्रों को प्रशिक्षित कर चुका है। श्री छितो ने कहाः
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के तिब्बती मेडिकल कालेज से अनेक सालों से छात्र स्नातक हो चुके हैं, विभिन्न स्थानों में भी तिब्बती चिकित्सा अस्पताल स्थापित हुए हैं। ये स्नातक पिछले तीन सालों में हम द्वारा प्रशिक्षित श्रेष्ठ छात्र थे। वे उच्च शिक्षा प्राप्त हुए हैं और खगोल व पंचांग विज्ञान में ज्ञानी हैं, वे जवान हैं और बीस साल से थोड़े बड़े हैं और व्यवसायी ज्ञान से लैस हैं, वे सभी श्रेष्ठ निकले हैं और तीन चार तो सर्वश्रेष्ठ हैं।
तिब्बती पंचांग में मध्य चीन के क्षेत्र और भारत के पंचांग ज्ञान का समावेश हुआ और इस का करीब एक हजार साल पुराना हो गया है। पंचांग में वर्ष, माह और दिन की गणित के तरीके है और जिस से ग्रहों की गति, मौसम के विकासक्रम और प्राकृतिक विपत्तियों की भविष्यवाणी की जा सकती है और विभिन्न स्थानों को खेतीबारी और पशुपालन का विशेष निर्देशन दिया जा सकता है, विभिन्न ऋतुओं में सैकड़ों किस्मों की जड़ी-बुटियां बीन ली जा सकती है और तिब्बती औषधियों की जानकारी मिल सकती है। इस पंचांग में साल के बारह महीनों में मानव की नाड़ी की गति में आने वाले परिवर्तनों के बारे में नियम भी लिखित हुए हैं।
तिब्बती खगोल व पंचांग अनुसंधान संस्थान का मुख्य कार्य हर साल के खगोल व ऋतु के संदर्भ में पंचांग बनाना है, पंचांग में अनेक व्यवसायों और विभिन्न पहलुओं के विषय शामिल है, इस के अलावा हर साल जलवायु परिवर्तन के नियम और पांच ग्रहों की गति के नियम भी अंकित है। श्री छितो ने इस के बारे में परिचय देते हुए कहाः
खगोल और पंचांग की सब से बड़ी विशेषता है कि वह व्यापक किसानों और चरवाहों को निर्देशन दे सकता है जैसा कि कब जुताई, बुवाई और कटाई होगी, पशुपालन के अच्छे अवसर कब मिलेंगे, चरवाहों के स्थानांतरण के लिए कौन सा समय अच्छा होगा तथा जड़ी-बूटी तोड़ने बीनने के कौन से मौसम ठीक होंगे इत्यादि।
तिब्बती खगोल, ऋतु व पंचांग नामक पुस्तक तिब्बती खगोल व पंचांग शास्त्र का एक अहम भाग है। वह जटिल गणित क्रिया के जरिए एक कोड ग्रुप निकाला जाता है और कोड पुस्तिका से मिलान करके उसे तिब्बती भाषा में अनुदित किया जाता है, इस तरह तिब्बती लोग पढ़ने में बहुत सुविधापूर्ण होंगे।
इस पेचीदा गणित प्रक्रिया में बड़ी मात्रा में लेखन के साधन की बड़ी जरूरत है, इस समस्या को हल करने के लिए बुद्धिमान तिब्बती पूर्वजनों ने साशङमू यानी सेंड टेबल जैसा गणित साधन का आविष्कार किया, इस का रूपाकार अखरोट की लकड़ी से निर्मित एक आयताकार बोक्स जैसा है। श्री छितो ने कहाः
हम इसी साधन पर सभी आंकड़ों का लेखाजोखा करते हैं, असल में उस का गिनतारा का काम आता है, वह हमारा कम्प्युटर भी है । हम सेंड टेबल पर महीन रेतों की परत फैला देते हैं और समतल बनाकर उस पर लोग लोह तार से अक्षर खींच देते हैं। इस तरीके से कागज की पूरी किफायत हुई है और हर जगह रेत भी मिल सकता है। गणित का काम बहुत जटिल है, इस की प्रक्रिया में गणना करने के बाद रेत की परत झाड़कर फिर समतल बनाते हैं और उस पर फिर रेखाएं खींच कर गणित करते हैं। अन्त में इस का परणाम निकलता है। दरअसल तिब्बती पूर्वजों ने कागज की किफायत के ख्याल से सेंड टेबल का आविष्कार किया था।
विज्ञान के तेज विकास वाले आधुनिक युग में मानव ने कम्प्युटर का आविष्कार किया है, जिस से तेज और सटीक रूप से खगोल व पंचांग के आंकड़ों का हिसाब किताब किया जा सकता है, बेशक सेंड टेबल की तुलना में कम्प्युटर का भविष्यफल ज्यादा सटीक है। इस पर खगोल व पंचांग अनुसंधान संस्थान के सहायक शौधकर्ता श्री गेतो ने कहाः
अब हम ने यह तरीका अपनाया है कि पहले सेंड टेबल से गणित की जाएगी, इस के बात कम्प्युटर से की जाएगी, अंत में दोनों परिणामों की तुलनात्मक विश्लेषण किया जाएगा। सेंड टेबल से गणित एक व्यक्ति के द्वारा नहीं, बल्कि तीन चार व्यक्तियों के द्वारा मिलान किया जाएगा और अंत में सही परिणाम निकाला जाएगा। सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के लिए गणित करने का काम बेहद पेचीदा है। पिछले साल 22 दिसम्बर को हुए सूर्यग्रहण की भविष्यवाणी खगोल पंचांग के मुताबिक की गयी थी और नदीजा शतप्रतिशत सही निकला था।
खगोल पंचांग पुस्तक तैयार होने के बाद उन्हें कॉपिबद्ध किया जाएगा, हर साल 3 लाख कापियां बेची जाती हैं। यह पुस्तक तिब्बत के अलावा सछ्वान, छिंगहाई, युन्नान और कांसू आदि तिब्बती आबादी क्षेत्रों में भी वितरित की जाती है, नेपाल, भूतान और म्योंमार में भी बिकती है।
खगोल पंचांग पुस्तक के निर्माण के अलावा अब तिब्बती खगोल व पंचांग अनुसंधान संस्थान पर और एक अहम काम का भार भी दिया गया, यानी पोताला महल में सुरक्षित मूल्यवान खगोल व पंचांग के प्राचीन ग्रंथों का संकलन व संपादन किया जाता है। बहुत से ग्रंथ तिब्बत में सिर्फ एकमात्र रह गया और कुछ मूल्यवान ग्रंथों में आलेख सोने के पानी से लिखे गए थे। वे दुर्लभ अमोल अवशेष है। अब संस्थान के कर्मचारियों ने स्केनर से एक लाख 20 हजार पृष्ठों वाले प्राचीन पंचांग ग्रंथों का ई-संस्करण बनाया और पाठकों के सामने पढ़ने के लिए पेश किया गया है। सूत्रों के अनुसार इन ग्रंथों के पुनः संकलन व संपादन के बाद 25 सचित्र पुस्तकाएं तैयार की जा सकेंगी।
खगोल व पंचांग अनुसंधान संस्थान के शौधकर्ता श्री कुंगकारेनजङ राष्ट्रीय स्तर के गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहर तिब्बती खगोल पंचांग शास्त्र के तिब्बती उत्तराधिकारी है और तिब्बती पंचांग में पारंगत विद्वान और तिब्बती खगोल व पंचांग पुस्तक के संपादकों में एक विशेषज्ञ हैं। वे तिब्बती खगोल व पंचांग शास्त्र के धूरंधर व अधिकारिक विशेषज्ञ हैं। बीते दसियों सालों की आपबिती की याद करते हुए उन्हों ने कहा कि तिब्बत की श्रेष्ठ सांस्कृतिक परंपरा धीरे धीरे लुप्त होन के बजाए और अच्छी तरह विरासत में ग्रहण किया गया है और संरक्षित किया गया है। उन्हों ने कहाः
मैं छुटपन से खगोल और पंचांग का ज्ञान सीखने लगा था, पढ़ाई पूरी होने के बाद अपनी जन्म भूमि लौटना पड़ा था, उस जमाने में आज की जैसी अच्छी स्थिति नहीं थी। अब पार्टी व सरकार खगोल व पंचांग विज्ञान पर बड़ा ध्यान देती हैं और उस के विकास पर महत्व देती है। 2006 में स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने एक बार 4 लाख य्वान का विशेष अनुदान दिया और इस के बाद हर साल खगोल व पंचांग पर अनुसंधान के लिए एक लाख य्वान का विशेष अनुदान देती रहती है।