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तिब्बती लोक कथा-1
2010-09-14 09:13:27

तिब्बती जाति की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा है जिस के अन्तर्गत तिब्बती लोक कथाएं भी विश्वविख्यात और लोकप्रिय रही हैं। आज के इस कार्यक्रम में हम आप की सेवा में दो तिब्बती लोक कथाएं प्रस्तुत करेंगे, आशा है कि आप को पसंद आएगी और इस से कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य मिलेगी।

पहले सुनिए राजकुमारी वुनछङ के विवाह हेतु बुद्धि-परीक्षा की कहानीः

सातवीं शताब्दी की बात थी, चीन के केन्द्रीय भाग में थांग राजवंश का राज्य था और तिब्बत में थुबो राजवंश का शासन। जब तिब्बती थुबो राज्य के राजा सोंगजान गाम्बो गद्दी पर बैठे, उस के सुशासन में तिब्बत की शक्ति बहुत बढ़ी और राजा सोंगजान गाम्बो थांग राजवंश के सम्राट से उस की पुत्री का हाथ मांगने के लिए अपना एक दूत थांग दरबार में भेजा। तिब्बती राजदूत का नाम गोलतुंगजान था, जो प्रकांड बुद्धिमता से देश भर में प्रसिद्ध था। थांग राजवंश के सम्राट ने अपनी पुत्री देने की शर्त पर पांच पहेलियां परीक्षा हेतु पेश कीं, जिस देश के दूत इन पहेलियों को हल करने में सफल हुए हो, तो सम्राट उसी राज्य को अपनी पुत्री देने को मंजूर होगा।

थांग सम्राट ने बुद्धि-परीक्षा के लिए जो पहली पहेली दी, वह थी कि पतले महीन रेशमी धागे को एक नौ मोड़ों वाले मोती के अन्दर से गुजार कर जोड़ दे। मोती के अन्दर नौ मोड़ों का छेद था, नर्म पतले धागे को उस के अन्दर घुसेड़कर निकालना कांटे का काम था, अन्य सभी राज्यों के दूतों को हार मानना पड़ा। लेकिन तिब्बती दूत गोलतुंगजान असाधारण बुद्धिमान था, उस ने धागे को एक छोटी चिउटी की कमर में बांधा और उसे मोती के छेद पर रखा और उस पर हल्की सांस का एक फूंक मारा, तो चिउटी धीरे धीरे मोती के अन्दर घुसकर दूसरे छोर से बाहर निकला, इस तरह मोती से धागा जोड़ने की पहेली हल हो गयी।

दूसरी बुद्धि की परीक्षा थी कि सभी राज्यों के दूतों को सौ सौ बकरी तथा सौ सौ जार शराब दिए गए और सौ बकरियों का वधकर उन्हें शराब के साथ खा डालने का हुक्म दिया गया। अन्य सभी दूत सौ बकरी और सौ जार शरीब खाने में असमर्थ साबित हुए और जल्दी ही शराब से चूर हो गए। तिब्बती दूत गोलतुंगजान ने अपने मातहतों को छोटे प्याले से धीमी गति से शराब पीते हुए बकरी का वधकर चमड़ा उतारने तथा पकाकर खाने को कहा। अंत में सम्राट का दिया काम अच्छा पूरा किया गया।

तीसरी परीक्षा थी कि सौ मादा घोड़ों और सौ बछेड़ों का संबंध पहचाना जाएगा। गोलतुंगजान ने सौ बछेड़ों को मादा घोड़ों से अलग कर बाड़ों में एक रात बन्द करवाया और उन्हें भूखे रहने दिया गया। दूसरे दिन, जब उन्हें बाहर छोड़ा गया, तो भूखे बछेड़ा अपनी अपनी मातृ घोड़े के पास दौड़ कर जा पहुंचा और मादा घोड़े का दूध पीने लगा, इस तरह सौ मादा घोड़ों और सौ बछेड़ों का रिश्ता साफ हो गया।

चौथी परीक्षा केलिए थांग सम्राट ने सौ लकड़ी के डंडे सामने रखवाए, दूतों को डंडों के अग्र भाग और पिछड़े भाग में फर्क करने का हुक्म दिया गया। गोलतुंगजान ने लकड़ी के डंडों को पानी में उड़ेल करवाया, लकड़ी के डंडे का अग्र भाग भारी था और पीछे का भाग हल्का, पानी में भारी भाग पानी के नीचे डूबा और हल्का भाग ऊपर निकला। अंततः तिब्बती दूत ने फिर परीक्षा पारित की।

अंतिम परीक्षा ज्यादा कठिन थी, थांग सम्राट ने अपनी पुत्री राजकुमारी वुनछङ को समान वस्त्र पहनी तीन सौ सुन्दरियों की भीड़ में खड़ा कराया और सभी दूतों से उसे अलग पहचाने को कहा। गोलतुंगजान ने राजकुमारी वुनछङ की एक बूढ़ी पूर्व सेविका से राजकुमारी की शक्ल सूरत पूछी और मालूम हुआ कि राजकुमारी के माथे पर भौंहों के बीच एक लाल मसा है। बूढी सेविका के रहस्योद्घाटन के मुताबिक तिब्बती दूत राजकुमारी वुनछङ को पहचाने में सफलता प्राप्त की।

अपनी अद्भुत बुद्धिमता से तिब्बती दूत गोलतुंगजान ने सभी परीक्षाओं में जीत ली और थांग सम्राट ने अपनी पुत्री को तिब्बत के थुबो राजा सोंगजान गाम्बो के साथ विवाह करने की सहमति दी और असंख्य संपत्तियों के साथ राजकुमारी को तिब्बत भेजा। तिब्बत में राजकुमारी वुनछङ ने वहां के विकास तथा बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए योगदान दिया था और अब तक उसे तिब्बती जनता के दिल में सम्मानित किया जाता है।

अब आप सुनिए दूसरी तिब्बती लोक कथा, शीर्षक हैः नीली लोमड़ी नकली राजा बनी

एक लोभी खाऊ लोमड़ी थी, वह गांव के सभी घरों में खाने की चीजों की चोरी करने जाया करती थी। एक दिन, वह रंगसाज के घर में घुस गयी, असावधानी के कारण वह एक नील के बड़े बड़े मग में जा गिरा और उस का पूरा शरीर नील के रंग से सना हुआ। मग से बाहर निकलने के बाद लोमड़ी का देह एकदम बेरूप हो गया, नील के रंग को नहाकर धोने के लिए लोमड़ी जल्दबाजी से नदी में कूद पड़ी । लेकिन नदी में नहाने के बाद जब वह तट पर आयी, तो पाया कि सूर्य की किरणों में उस का नीला शरीर चमकीला दिखाई देता है और बिलकुल नीलमणि की भांति प्रतीत हुआ है। उसे देखकर दूसरी लोमड़ी बड़ी आश्चर्यचकित हुईं और कुतुहल से पूछा:"तुम कौन हो?"" मैं काच्वो हूं"लोमड़ी ने जवाब दिया। तिब्बती भाषा में काच्वो का अर्थ है इंद्र होने वाला । इसलिए स्वर्ग में इंद्र ने सुना कि इस लोमड़ी का नाम इंद्र से नाते-रिश्ते का है, तो उस ने तुरंत लोमड़ी को जानवरों का राजा घोषित किया। नीली लोमड़ी बहुत खुश हुई और उस ने लोमड़ियों को उसे दूसरे जंगली जानवरों से परिचित करने की हुक्म दी।

दूसरे जानवरों ने भी लोमड़ी के इस प्रकार के नील रंग को कभी नहीं देखा और उन्हें बड़ा ताज्जुब हुआ । अचंभे में आकर सभी जानवरों ने नीली लोमड़ी को राजा माना और उससे हाथी की पीठ पर बैठे घूमने का सुझाव दिया। इस के बाद हर शुभा यात्रा के वक्त आगे आगे शेर, शेर के पीछे बाघ और बाघ के पीछे अन्य जंगली जानवर रास्ता बनाते थे और उन के पीछे पीछे लोमड़ी हाथी पर शान से बैठे इतराते हुए चल रही थी।

नीली लोमड़ी की मां भी जीवित थी, वह एक दूसरी पहाड़ी गुफा में रहती थी। नीली लोमड़ी ने अपनी माता के नाम पत्र लिखकर उसे भी शुभा-यात्रा में शामिल होने का निमंत्रण दिया। लोमड़ी के संदेश वाहक के हाथों से पत्र माता लोमड़ी को पहुंचाया गया। पत्र में लिखा गया था:"पूज्य माता जी, तुम्हरा पुत्र अब राजा बन गया है, कृपया आप मेरे पास आएं और एक साथ सुखमय जीवन का साझा करें।"माता लोमड़ी ने संदेश वाहक से पूछा :"राजा लोमड़ी के मातहत कौन कौन हैं?"तो जवाब मिला:" हमारी लोमड़ियों के अलावा शेर, बाघ और हाथी आदि भी हैं।"सुनकर माता लोमड़ी बड़ी घबराते हुए बोली:"यह कोई खुशखबरी नहीं है, मैं नहीं जाऊंगी। "संदेश वाहक खाली हाथ लौटा और जंगली जानवरों के बीच घूमते हुए चिल्लाया:"गजब की बात है, हमारा राजा असल में एक लोमड़ी है, मैं अभी अभी उस की माता से मिल कर लौटा हूं। मैं ने खुद आंखों से देखा है कि वह असली लोमड़ी है।"अन्य लोमड़ियों ने संदेश वाहक की बातें सुनने के बाद असलियत जानना चाहा और एक साथ ऊंची आवाज में चिल्लाए:" तुम असलियत बताओ, नहीं तो हम तुम्हारे शरीर के रंग को झाड़कर साफ करेंगे।"फिर भी नीली लोमड़ी धैर्य का स्वांग करती रही, किन्तु हाथी की पीठ पर बैठे हुए नाराजगी की वजह से उस के मुंह से लोमड़ी की ची ची ची जैसी ध्वनि निकली, इस तरह उस का पोल एकदम खुल गया। हाथी को बड़ा अपमानित होने का महसूस हुआ और वह आगबबुला होकर बोला :"तु लोमड़ी है, कैसे मेरी पीठ पर बैठने का साहस हुआ हो!"उस ने लोमड़ी को पकड़ कर जोर से जमीन पर पटका दिया, फिर अपने एक मजबूत बड़े बड़े पांव को लोमड़ी पर दबाकर उसे जान से मारा।

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