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तिब्बती जाति की संगीत परम्परा
2010-08-24 15:57:50

तिब्बती जाति के लोग नृत्य-गान के बेहद शौकिन हैं, वे हर खुशगवार मौके पर गाना नाचना करते हैं। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को तिब्बती जाति की संगीत परम्परा के बारे में कुछ बताएंगे।

सर्वप्रथम हम आप को तिब्बत के परम्परागत संगीत के बारे में कुछ बताएंगे।

गत शताब्दी के पचास वाले दशक तक तिब्बत बाहर दुनिया से बंद रहा था, और तिब्बती संगीत में लम्बे समय तक रूढी हुई परम्परागत शैली बरकरार रही थी। आम तौर पर तिब्बती संगीत चार भागों में बंटा हुआ है, यानी कि दरबारी संगीत, लोक संगीत, धार्मिक संगीत और ऑपेरा संगीत।

तिब्बत के परम्परागत संगीत में दरबारी संगीत का स्थान बहुत ऊंचा है, जिस के विषय में बौद्ध धर्म का प्रसार और जीवित बुद्ध का गुणगान शामिल हैं । इस प्रकार का संगीत गत शताब्दी के मध्य में पोताला महल और विभिन्न मठों में प्रचलित है । कहते हैं कि वर्ष 1647 में पांचवें दलाई लामा के काल में तत्कालीन कश्मीर क्षेत्र की रानी अपने संगीतकार और नर्तक लाकर ल्हासा आयी । उन के द्वारा प्रस्तुत संगीत व नृत्य देख कर पांचवें दलाई लामा को बहुत खुशी हुई । इस तरह रानी ने उन संगीतकारों और नर्तकों को उपहार के रूप में पांचवें दलाई लामा को भेंट किया । इस के आधार पर बाद में तिब्बती स्थानीय सरकार के दरबारी संगीत नृत्य की शैली उत्पन्न हुई ।

तिब्बती दरबारी संगीत की तीन किस्में होती हैं । एक का नाम है"गार",यह स्वच्छंद व बुलंद और लम्बे स्वर वाला नृत्य संगीत है । दूसरा है"गालु", यह मधुर व कोमल स्वर का संगीत है । तीसरा है स्वागत सत्कार के लिए उपयोगी बाजा पर बजने वाली हल्की धुन वाला संगीत है । तिब्बती दरबारी संगीत आम तौर पर धार्मिक नेता के भवन में प्रस्तुत किया जाता है, इस तरह इस प्रकार के संगीत की धुन भारी ,लम्बी और गंभीर लगती है ।

पांचवें दलाई लामा के समय कुछ तिब्बती सामंत वर्ग ने चीन के भीतरी इलाके से हान जाति के कुछ संगीत विधान लाए और उसे तिब्बती परंपरी संगीत में मिश्रित किया, जिस से तिब्बती दरबारी संगीत की शैली देश के भीतरी इलाके की शैली से मिली जुड़ी हो गयी ।

तिब्बती धार्मिक संगीतः तिब्बती परम्परागत संगीत में धार्मिक संगीत एक महत्वपूर्ण भाग भी है । तिब्बती लोग तिब्बती बौद्ध धर्म और बोन धर्म के अनुयायी हैं। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व तिब्बत एक राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सत्ता वाला समाज है, यहां के सब लोग धार्मिक विश्वास रखते थे । इस तरह तिब्बती धार्मिक संगीत का तिब्बती समाज में भारी महत्वपूर्ण स्थान होता है, जिस का पर्याप्त विकास भी हुआ ।

तिब्बती धार्मिक संगीत को मठ संगीत भी कहा जाता है, जो बोन धर्म संगीत और तिब्बती बौद्ध धर्म संगीत दो भागों में बंटा हुआ है । धार्मिक संगीत आम तौर पर धार्मिक गतिविधियां चलाने के वक्त बजाया जाता है, इस तरह धार्मिक संगीत धार्मिक अनुष्ठान का एक भाग ही है ।

तिब्बत में बौद्ध मठ जगह जगह देखने को मिलता है और धार्मिक गतिविधियां भी बहुत आयोजित हुआ करती हैं । धार्मिक संगीत धार्मिक गतिविधि के साथ जुड़ा हुआ है, ऐसा कहा जा सकता है कि तिब्बती धार्मिक संगीत लोक संगीत के बाद तिब्बत में बहुत ही व्यापक तौर पर प्रचलित हुआ है ।

तिब्बती लोक संगीतः तिब्बत के परम्परागत संगीत में तिब्बती लोक संगीत का अनुपात ज्यादा है । संगीत की किस्में, संख्या, विषय और दायरे आदि क्षेत्रों से कहा जाए, तो वह तिब्बती संगीत में प्रथम स्थान पर है । तिब्बती लोक संगीत में नृत्य गान, लोक गीत, श्रम गीत, वाचन गीत और वाद्य संगीत आदि शामिल हैं ।

तिब्बत नृत्य गान का सागर कहा जाता है । नृत्य के साथ गीत गाना जरूरी है । नाचते हुए गीत गाना तिब्बती संगीत की एक बड़ी विशेषता है । तिब्बती नृत्य गान गोर्शिए, रेबा, डोइशिय, नांगमा और श्विन्ज़ी आदि दस से ज्याजा किस्मों में बंटा हुआ है ।

गोर्शिए नृत्य गोल लगाने वाला नृत्य है, जो तिब्बत के विभिन्न स्थलों में बहुत लोकप्रिय है । तिब्बती कृषि क्षेत्र में गोर्शिए नृत्य संगीत ज्यादा लोकप्रिय है। विभिन्न तिब्बती बहुल क्षेत्रों में गोर्शिए का अलग-अलग नाम होता है । उत्तरी तिब्बत में इसे"चो"कहा जाता है, जबकि पूर्वी तिब्बत में"क्वोच्वांग"कहा जाता है । अधिकांश क्षेत्रों में वाद्ययंत्र के बिना तिब्बती लोग गोर्शिए नृत्य नाचते हैं । वे नाचते हुए गाते हैं । नेतृत्वकारी नर्तक पहला बोल गाते हैं, इस के बाद सब लोग उन के साथ गीत के शेष शब्द गाते हैं ।

रेबा संगीत दो भागों में बंटा हुआ है । एक है नृत्य के साथ बजाने वाला संगीत और दूसरा है गाने वाला संगीत । रेबा संगीत की धुन रेबा ढोल, घंटी बजाने से पेश की जाती है । डोइशिए संगीत तिब्बत पठार पर प्रचलित एक किस्म वाला लोक नाचगान है । यह संगीत शिकाज़े, आली और ल्हासा आदि क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है । आज तिब्बत के पठार पर तीन किस्मों वाले डोइशिए मौजूद हैं । यानी ल्हासा डोइशिए, लाज़ी डोइशिए और तिंगरी डोइशिए।

इन नृत्य संगीतों के अलावा लोक गीत, श्रम गीत तिब्बती परम्परागत संगीत का महत्वपूर्ण भाग भी है ।

तिब्बती लोक गीत में मदिरा गीत, प्रेम गीत, गुणगान गीत, चरवाही गीत और शादी ब्याह का गीत आदि उपलब्ध है । चरवाही गीत पहाड़ी गीत भी कहा जाता है, जो तिब्बत के छांगतू प्रिफैक्चर, स्छ्वान प्रांत के कानज़ी तिब्बती प्रिफैक्चर, छिंगहाई के यूशू तथा यून्नान प्रांत के दीछिंग तिब्बती प्रिफैक्चर आदि तिब्बती बहुल क्षेत्रों में बहुत लोकप्रिय है । तिब्बती पहाड़ गीत स्वतंत्र रूप से गाया जाता है, चरवाहे पहाड़ी क्षेत्रों, घास मैदान में पशु चराते समय लोग गाते रहते हैं । युद्ध गीत प्राचीन तिब्बत में सैनिकों के रण क्षेत्र जाने के पूर्व और विजय पाने के बाद गाया जाता था । करीब 1300 वर्ष पूर्व तिब्बत के थुबो राज्य में रण संगीत बहुत लोकप्रिय है।

तिब्बती जाति ने श्रम करने के दौरान अनेकों गीत रचे हैं । ये गीत वास्तु निर्माण, कृषि, पशुपालन और परिवहन आदि क्षेत्रों में प्रचलित है । मकान निर्माण करने के वक्त तिब्बती लोग लकड़ी काटने वाला गीत, दीवार की भित्ति मजबूत पीटने वाला गीत आदि गाते हैं । कृषि का काम करने के वक्त लोग खेती से संबंधित गीत, घास काटने वाला गीत, फ़सल गीत आदि गाते हैं । पशुपालन करते समय तिब्बती लोग चरवाही गीत गाते हैं । श्रम करते समय तिब्बती लोग अनेक गीत गाते हैं, इस से देखा जा सकता है कि तिब्बती लोग सचमुच गाने में निपुण हैं और गीत गाना बहुत पसंदा करते हैं ।

तिब्बती कथा वाचन संगीतः तिब्बती परम्परागत संगीत में कथा वाचन गीत एक प्राचीन किस्म वाला संगीत है और उस की जबरदस्त जीवन शक्ति मौजूद है । कथा वाचन संगीत में राजा गैसर से जुड़ा हुआ संगीत और लामा मनी आदि शामिल हैं ।

तिब्बती वीर महाकाव्य《राजा गैसर》कथा वाचन संगीत का सब से मशहूर गाथा है, इस महाकाव्य का इतिहास हज़ार वर्ष पुराना है । जिस में मुख्य तौर पर राजा गैसर की कहानी कही जाती है । राजा गैसर की कहानी आज तक व्यापक जनजीवन में एक लोक काव्य के रुप में मौखिक रुप से प्रचलित रही है, इस का श्रेय तिब्बती लोक वाचकों को जाता है । वे इधर उधर घूमते हुए गैसर की कहानियों को तिब्बती बहुल क्षेत्रों में प्रसारित करते हैं ।

महाकाव्य《राजा गैसर》प्राचीन समय में तिब्बती लोक संस्कृति की सब से उच्च स्तरीय निधि मानी जाती है । अब तक 150 किस्मों की प्रतियां सुरक्षित रखी हुई हैं । सारे महाकाव्य में एक करोड़ पचास लाख अक्षर हैं । यह महाकाव्य प्राचीन यूनान के महाकाव्य《इलियड》और भारत के《महाभारत》से दस गुने से भी ज्यादा लम्बा है । "वर्तमान विश्व में एकमात्र सब से लम्बा जीवित महाकाव्य"माने जाने वाला महाकाव्य《राजा गैसर》बोलने व गाने, तिब्बती ऑपेरा तथा चित्र के रूप में तिब्बती और मंगोल जाति बहुल क्षेत्रों में प्रसिद्ध है ।

लामा तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु है । मानी का मतलब तिब्बती बौद्ध सूत्र के छह स्ल्लाबल प्रार्थनाएं यानी ओम मानी पद-में हम है । लामा मानी का अर्थ है कि तिब्बती बौद्ध धर्म के भिक्षु द्वारा बौद्ध धर्म की कहानी के आधार पर कथा वाचन कला ही है । पहले इस किस्म वाला संगीत मुख्य तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में प्रचलित है । एक भिक्षु लकड़ी लाते हुए बुद्ध भवन में रखे हुए थांगखा चित्र की ओर इशारा करते हुए भिक्षुओं को थांगखा चित्र में वर्णित बौद्धिक कहानी गाकर सुनाता है । बाद में इस प्रकार का कथा वाचन लोक जगत में प्रवेश हुआ, तिब्बती लोक कलाकारों ने लामा मानी के विषय को विस्तृत किया

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