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तिब्बती ओपेरा
2010-08-17 09:36:04

आप को मालूम हुआ होगा कि तिब्बती ओपेरा विश्व में भी बेहद मशहूर है। वास्तव में तिब्बती ओपेरा तिब्बती जाति आबादी क्षेत्रों में व्यापक तौर पर प्रचलित ओपेरा है, जिस का अब तक 600 साल से अधिक लम्बा इतिहास रहा है। इसलिए वह तिब्बती संस्कृति की मूल्यवान निधि है। चीन की अल्पसंख्यक जातियों के लम्बे पुराने इतिहास वाले ओपेरों में से एक होने के नाते 2006 में तिब्बती ओपेरा चीन के प्रथम जत्थे के गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया।

तिब्बती भाषा में तिब्बती ओपेरा का नाम आजिराम है, जिस का अर्थ है अप्सरा सखियां। कहा जाता है कि तिब्बती ओपेरा शुरू शुरू में सात तिब्बती बहनों द्वारा प्रस्तुत किया जाता था, ओपेरा के अधिकांश कथानक बौद्ध धर्म की पौराणिक कथाओं पर आधारित थे, इसलिए तिब्बती ओपेरा का नाम अप्सरा सखियां रखा गया। तिब्बती ओपेरा का जन्म आठवीं शताब्दी की तिब्बती धार्मिक कला के रूप में हुआ था। 17वीं शताब्दी में वह तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में आयोजित धार्मिक अनुष्ठान से अलग होकर एक विशेष सांस्कृतिक कला बन गया, जिस में मुख्यतः गायन के साथ वाचन व नृत्य की प्रस्तुति से आम जीवन के बारे में अभिनय किया जाता है।

दोस्तो, अभी आप ने सुना है तिब्बत विश्वविद्यालय के कला कालेज के छात्रों द्वारा पेश तिब्बती ओपेरा का एक अंश है। तिब्बती ओपेरा को और अच्छी तरह विरासत में ले लेने तथा उसे विकसित करने के लिए 2008 में तिब्बत विश्वविद्यालय के कला कालेज ने विशेष तौर पर तिब्बती ओपेरा कक्षा खोली। उच्च शिक्षा के रूप में तिब्बती ओपेरा को सुव्यवस्थित और मानकीकृत बनाने तथा तिब्बती ओपेरा के विकास के लिए और अधिक संख्या में उत्तराधिकारी प्रशिक्षित करने की यह एक नयी कोशिश है। इस के बारे में परिचय देते हुए तिब्बती विश्वविद्यालय के कला कालेज के कुलपति श्री लोसांगछ्वुनी ने कहाः

तिब्बती ओपेरा की कक्षा चीन के शिक्षा इतिहास में तिब्बती ओपेरा की प्रथम कक्षा है, कहा जा सकता है कि इस मुद्दे पर हमारा तिब्बत विश्वविद्यालय अद्वितीय है और प्रवर्तक भी है। अतीत में तिब्बती ओपेरा की शिक्षा गुरू द्वारा शिष्यों को दी जाती थी। ओपेरा सीखने में लम्बा समय लगता था । अब हमारे विश्वविद्यलय ने अन्डर ग्रेजुएड शिक्षा के लिए छात्र दाखिला किए हैं, हालांकि शुरूआती समय में पाठ्यसामग्री, शिक्षक और पढ़ाई की सुविधा की दृष्टि से अभी बहुत सी खामियां मौजूद हैं, लेकिन हम प्रदेश के मानव संसाधन की श्रेष्ठता का लाभ उठाकर शिक्षा संसाधन का साझा करने के आधार पर तिब्बती ओपेरा के लिए उत्तराधिकारियों को प्रशिक्षित करने में जरूर सफल होंगे।

तिब्बती ओपेरा का गाना आम तौर पर कलाकारों की व्यक्तिगत विशेषता पर आधारित है, हरेक गायन का साथ देते हुए पार्श्व गायक उपलब्ध होता है और वादन के लिए सिर्फ एक ढोल और एक झांझा है। तिब्बती ओपेरा के 13 परम्परागत नाटक प्रमुख है। जिनमें राजकुमारी वनछङ, लांगसावुनपांग, धार्मिक गुरू नोसांग. च्वोवासांगमु आदि आठ तिब्बती ओपेरा ज्यादा रंगमंच पर प्रस्तुत होते हैं। तिब्बती ओपेरा सीखने वाले शिष्यों के लिए कड़ी शर्तें और मांग होती हैं, उन्हें तिब्बती ओपेरा पर अभिनय, गायन और आंगिक मुद्रा जैसे बुनियादी कौशल प्राप्त होना जरूरी है। तिब्बत विश्वविद्यालय के कला कालेज के तिब्बती ओपेरा विभाग के अध्यापक छिरनलोबू ने परिचय देते हुए कहाः

तिब्बती ओपेरा में पारंग होने के लिए ऊंची शर्त और मांग होती है। कलाकारों की आवाज इतनी अच्छी होनी चाहिए कि वह गायन शिक्षा विभाग की मांगों पर पहुंच हो, आंगिक मुद्रा नृत्य कलाकार की भांति होनी चाहिए और अभिनय कौशल नाटक कलाकार के बराबर होना चाहिए।

सोलांगयोंगचुंग तिब्बत विश्वविद्यालय के कला कालेज के तिब्बती ओपेरा विभाग की अन्दर ग्रेजुएड छात्रा है। दो साल पहले वह सिर्फ एक मासूम पोप गायिका थी। तिब्बती ओपेरा विभाग में दो साल पढ़ने के बाद अब उसे इस विशेष प्राचीन ओपेरा कला के संदर्भ में अच्छा ज्ञान हासिल हुआ और नयी समझ प्राप्त हो गयी है। उन्होंने कहाः

मुझे यहां पढ़ते हुए दो साल हो गए हैं। हम इस पाठ्य विषय को अधिकाधिक पसंद करते जा रहे हैं। तिब्बती ओपेरा उच्च शिक्षा के लिए एक बिलकुल नया विषय है। इस के लिए गायन की कला अवश्यक है, गायन कलाकार का स्तर प्राप्त होना जरूरी है. इस में नृत्य कला की जरूरत है, सभी विषयों के लिए विशेषज्ञ के स्तर की जरूरत है, साथ ही उस की अपनी विशेषता और अपनी पहचान होती है, तिब्बती ओपेरा की विशेषता स्पष्ट होती है। इस में महारत हासिल करने के लिए हमें पूरी कोशिश करनी है। ये विशेषताएं कला प्रेमी छात्रों का स्तर बढ़ाने में बहुत मददगार होती हैं। केवल नाचना जानने से तिब्बती ओपेरा का नृत्य पेश करने में असमर्थ होगा।

सोलांगयोंगचुंग वर्तमान में हर हफ्ते सांस्कृतिक ज्ञान के अलावा छह क्लास की गायन शिक्षा, चार कक्षाओं की आंगिक अभिनय व मुद्रा-कला सीखती है, इन के अलावा वह नाटक और नृत्य के अनेक बुनियादी विषयों का भी अध्ययन करती है। हालांकि पढ़ाई बहुत ही व्यस्त है, लेकिन रोज प्रगति मिलती है और नयी नयी उपलब्धि हासिल होती है।

तिब्बत विश्वविद्यालय के कला कालेज के कुलपति लोसांगछ्वुनी ने परिचय देते हुए कहा कि यद्यपि अपने जन्म से लेकर अब तक तिब्बती ओपेरा हमेशा लोकप्रिय रहा है, लेकिन श्रवणगत शिक्षा के जरिए तिब्बती ओपेरा सिखाने के तरीके का प्रभाव कमजोर था। औपचारिक शिक्षा माध्यम से तिब्बती ओपेरा को विरासत में लेते हुए उसे विकसित करना बहुत जरूरी है, केवल आधुनिक तरीके से इस दुर्लभ प्राचीन कला को बढावा दिया जा सकता है। उन्हों ने कहाः

हमारी मातृभूमि का लम्बा पुराना सांस्कृतिक इतिहास रहा है, हमें फर्ज है कि देश की विभिन्न जातियों की संस्कृति को संरक्षित कर आगे विकसित किया जाए। तिब्बत विश्वविद्यालय के कला कालेज में तिब्बती ओपेरा कक्षा खोली जाने से हमारी तिब्बत जाति की शानदार संस्कृति का विकास करने में मददगार सिद्ध होगा। इस के अलावा तिब्बती ओपेरा के पुरानी पीढी के कलाकारों की उम्र सभी बड़ी हो चुकी है, यदि नयी पीढी के कलाकारों को नहीं प्रशिक्षित किया जाए, तो मातृभूमि की इस कला निधि के उत्तराधिकारी खत्म हो जाएंगे । इसलिए हमें लगातार नये नये उत्तराधिकारियों को प्रशिक्षित करना चाहिए।

तिब्बती ओपेरा कक्षा के युवा छात्र और छात्राएं परवान चढ़ने के जीवन काल में हैं, वे सभी जोशपूर्ण और जिज्ञासी हैं, हो सकता है कि अभी उन्हें तिब्बती ओपेरा सीखने के गहन गर्भित महत्व को साफ साफ नहीं मालूम है , लेकिन हमें पक्का विश्वास है कि आगे वे जरूर परवान चढ़कर तिब्बती ओपेरा कार्य को और अधिक शोभा देंगे।

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