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तिब्बती जाति का उत्पति स्थान—लोका
2010-08-03 08:38:20

तिब्बत पठार पर यालुचांगबू नदी के मध्य व निचले भाग में स्थित लोका क्षेत्र तिब्बत का सब से समृद्ध और सब से पुराना सांस्कृतिक इतिहास रखने वाला इलाका है, जो तिब्बती जाति की संस्कृति व सभ्यता का उत्पति स्थल है जोकि तिब्बती लोगों के दिलों में सर्वप्रथम पवित्र स्थान है। आज का तिब्बत कार्यक्रम में आप को तिब्बती जाति के जन्म स्थान लोका के बारे में एक रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।

तिब्बत में यह दंतकथा प्रचलित है कि तिब्बती जाति का आदि पुर्वज तपस्या कर रहा एक दिव्य वानर था, वह तिब्बत के लोका क्षेत्र में रहता था। इसलिए लोका की राजधानी त्सेतांग का तिब्बती भाषा में अर्थ है बंदर का खेल-क्रीड़ा स्थान।

लोका क्षेत्र का लम्बा पुराना इतिहास है, तिब्बत के इतिहास और सांस्कृतिक विकास में लोका का अत्यन्त अहम सथान रहा है। लोका यालोंग नदी के घाटी क्षेत्र में आबाद है, इसलिए अतीत में यह जगह यालोंग के नाम से भी मशहूर थी। लोक कथाओं और बेशुमार पुरातत्वीय सर्वेक्षण से यह साबित हो गया है कि आज से लोखों साल पहले तिब्बती जाति के पूर्वज यालोंग नदी के घाटी क्षेत्र में जन्मे थे और पले-बढे थे।

लोका क्षेत्र में सब से मशहूर ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अवशेष योम्बूल्हाखांग महल और मठ-मंदिर हैं। योम्बूल्हाखांग महल तिब्बत के इतिहास में प्रथम राज्य महल था, जिस का निर्माण ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में हुआ, जोकि तिब्बत के प्रथम राजा न्येछिचानपू का महल था। तिब्बत के इतिहास में सब से प्रसिद्ध राजा सोंगचांकान्बू और उस की रानी राजकुमारी वुनछङ इस महल में रह चुके थे। ल्हासा में पोताला महल का निर्माण पूरा होने के बाद सोंगचांकान्बू और वुनछङ वहां से स्थानांतरित हुए, इस के बाद योम्बूल्हाखांग महल को बौद्ध मंदिर का रूप दिया गया । लोका प्रिफेक्चर के पर्यटन ब्यूरो के प्रधान छ्वो लिन ने परिचय देते हुए कहाः

तिब्बती भाषा में योम्बूल्हाखांग का अर्थ है हिरनी की पिछली टांग का महल, यह नाम वहां के पहाड़ के रूपाकार के आधार पर लिया गया था, योम्बूल्हाखांग महल के सामने खड़े पहाड़ पर उस की ओर देखा जाए, तो योम्बूल्हाखांग एक पद चलती हिरनी सी लगती है, जबकि योम्बूल्हाखांग महल ठीक हिरनी की पीछे की टांग पर स्थित है, इसलिए महल को हिरनी की पिछली टांग अर्थात योम्बूल्हाखांग का नाम दिया गया।

इस मठ में बड़ी संख्या में सुन्दर भित्ति चित्र सुरक्षित है, जिन में प्रथम तिब्बती राजा न्येछिचानपू की जीवनी, तिब्बत के प्रथम महल और प्रथम खेत आदि के बारे में ऐतिहासिक कथाएं सचित्र बतायी गयी है। वर्तमान में योम्बूल्हाखांग तिब्बती लोगों के दिल में एक पूज्य तीर्थ स्थल है, लोका आने के बाद वे सर्वप्रथम योम्बूल्हाखांग देखने जाते हैं। तिब्बती युवक छिरिंगनिमा ने कहाः

योम्बूल्हाखांग तिब्बती जाति का प्रथम राज्य महल है, इस के बाद वहां प्रथम खेत जोतकर विकसित किया गया था, फिर प्रथम गांव, प्रथम धार्मिक सूत्रों की पुस्तक प्रकाश में आए। महल के निर्माण के बाद तिब्बत का प्रथम राजा भी पैदा हुआ। तिब्बत के अतिरिक्त चीन के छिंगहाई, युन्नान, कांसू और सछ्वान आदि प्रांतों से भी तिब्बती भक्त दूर से लोका आकर योम्बूल्हाखांग की पूजा करते हैं। इस मठ में अब भगवान बुद्ध की मुर्ति विराजमान है और बहुत से ऐतिहासिक अवेशष उपलब्ध हैं।

लम्बे पुराने इतिहास के अलावा योम्बूल्हाखांग महल की वास्तु शैली भी अद्भुत है। उस में पत्थरों से खड़ा किया गया किलानुमा बुर्ग सब से आकर्षक है। चौकोना बुर्ग योम्बूल्हाखांग की आलीशानता को और शोभा देता है और लोगों को अभेद्य होने का अनुभव देता है। देश के भीतरी इलाके से भिन्न होकर लोका क्षेत्र में सभी वास्तु निर्माण पक्के पत्थरों से बनाये गए हैं यानी पत्थर को उस के प्राकृतिक रूप में इस्तेमाल में लगाया गया है। दो हजार साल गुजरने के बाद भी आज योम्बूल्हाखांग पूरी तरह अच्छे सुरक्षित हुआ है। इस वास्तु निर्माण ने तिब्बत के अन्य निर्माणों पर गहरा प्रभाव डाला है। इस के बारे में लोका पर्यटन ब्यूरो के प्रधान छ्वो लिन ने कहाः

अपनी विशेष अनोखा और विशेष स्थल होने के कारण योम्बूल्हाखांग महल तिब्बत के इतिहास में खासा बड़ा महत्व रखता है। वास्तुनिर्माण के रूप में वह तिब्बत की प्रथम इमारत है और तिब्बती समाज के पशु चरने से खेती करने के जीवन में बदलने का एक प्रतीक है। योम्बूल्हाखांग का ढांचा भी विशेष प्रकार का है, उस की छत सीढिनुमा होती है, जो बहुत ही मजबूत है। इस विशेषता का तिब्बत के उत्तरवर्ती वास्तुओं पर बड़ा प्रभाव पड़ा। पोताला महल भी उस की शैली पर बनाया गया है।

योम्बूल्हाखांग के अलावा लोका की ज़ानांग काउंटी में निर्मित मिनद्रोलिंग मठ भी एक विशेष बौद्ध मंदिर है। मिनद्रोलिंग मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के निन्मा संप्रदाय का मुख्य मंदिर है जो 17वीं शताब्दी के मध्य में बनाया गया था। इस मठ के भिक्षुगण खगोल विज्ञान, चिकित्सा और लिपि कला पर बहुत ही महत्व देते हैं, उन के लेखन बहुत खूबसूरत और सुप्रसिद्ध है। नियमों के मुताबिक मिनद्रोलिंग मठ पोताला महल में धार्मिक आचार्य के पद पर अपने वरिष्ठ भिक्षु भेजता आया है। मठ के दूसरे भिक्षुगण खगोल और पंचांग शास्त्र पर अध्ययन करते हैं और तिब्बती पंचांग बनाते हैं। दूसरे संप्रदायों से अलग मिनद्रोलिंग मठ के भिक्षु शादी कर सकते हैं। मठाधीश के स्वर्गवास होने के बाद उस के बेटे या दामाद मठाधीश के लिए नियुक्त होता है।

मिनद्रोलिंग मठ पूर्व की ओर मुख करते हुए खड़ा हुआ है, जो चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहां का पर्यावरण सुन्दर और सुहावना है । मठ का क्षेत्रफल एक लाख वर्गमीटर है, और चारों ओर से दीवारों से घिरा है, मठ के परिसर में दरवाजों, छज्जों तथा भवनों की दीवारों पर धर्म पाल देवताओं की तस्वीरें अंकित की गयी हैं। ये देव चित्र सभी बहु बाहुओं और बहुसिरों के रूप में है, जो देखने में अत्यन्त भयानक दिखते हैं। तिब्बती बौद्ध धर्म के मतों के अनुसार क्रोधाजनक मुद्रा में चित्रित ये धर्मपाल देवता मठों के रक्षक हैं जो राक्षसों और पिशाचों से मठ की रक्षा करते हैं, इसलिए वे धर्मपालक देव कहलाते हैं। अतिरंजित आकृति वाला इस प्रकार की देव तस्वीर तिब्बती बौद्ध धर्म के तंत्र संप्रदाय की विशेषता है।

मिनद्रोलिंग मठ के मठाधीश जाम्पेल ने कहा कि हर साल तिब्बत के अहम त्योहारों के समय देश के विभिन्न देशों से तिब्बती जाति के लोग तीर्थ यात्रा के लिए यहां आते हैं । वे भी मठ में विभिन्न तीर्य यात्रियों का स्वागत करते हैं और उन्हें मठ व तिब्बती बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी देते हैं। उन्हों ने कहाः

मिनद्रोलिंग मठ तिब्बती बौद्ध धर्म के निन्मा संप्रदाय का मुख्य मठ है, हम देश विदेश के यात्रियों का हमारे मठ का दौरा करने तथा पूजा अर्चना करने आने के लिए हार्दिक स्वागत करते हैं।

वर्तमान में लोका क्षेत्र के सुन्दर दृश्य विश्व के विभिन्न क्षेत्रों के पर्यटकों को अपनी ओर खींचते है। देश के छिंगहाई, कांसू, युन्नान और सछ्वान आदि के तिब्बती लोग भी पूर्वजों की पूजा करने यहां आते हैं । तिब्बती युवक छिरिंग निमा ने कहाः

लोका और योम्बूल्हाखांग आने के बाद हमें तिब्बत की यांलोंग संस्कृति की उत्पति के बारे में विस्तृत जानकारी मिली है और मालूम हुआ है कि मानव किसी तरह कपिमानव से विकसित होकर बन गया है। तिब्बती जाति की संतान होने के नाते हमें यालोंग सभ्यता में निर्मित इन वास्तु निर्माण देखने का मौका मिला है. हमें अपने तिब्बती होने पर बहुत गर्व महसूस हुआ है।

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