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तिब्बत पठार पर पर्यटन उद्योग के विकास से तिब्बती लोग लाभान्वित
2010-07-20 17:01:32

चीन का तिब्बत प्रदेश विभिन्न पर्यटकों के दिल में एक तीर्थ स्थल है। वहां के पठार, हिमाच्छादित पर्वत और तिब्बती जाति के अनोखे रीति रिवाज हमेशा देश विदेश के पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। अब पर्यटन उद्योग तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का प्रमुख उद्योग बन गया है, जिस से स्थानीय किसानों और चरवाहों के जीवन में भारी परिवर्तन आया है। पीढियों से परम्परागत कृषि व पशुपालन के काम में लगे तिब्बती लोग आज पारिवारिक होटल के मालिक बने और पर्यटन सेवा शुरू की। पर्यटन उद्योग के तेज विकास से तिब्बती जाति की संस्कृति विश्व भर के लोगों के सामने प्रदर्शित हुई, साथ ही तिब्बती लोगों का जीवन स्तर भी काफी उन्नत हो गयी।

नामछ्वो तिब्बती भाषा में स्वर्ग-झील है, नामछ्वो झील तिब्बत की राजधानी ल्हासा के अधीन तांगशङ काउंटी के भीतर है जो ल्हासा से कोई सौ किलोमीटर दूर। नामछ्वो चीन की दूसरी बड़ी खारी पानी वाली झील है और विश्व में समुद्र-तल से सब से ऊंची जगह पर स्थित खारी झील भी है। वह यांगच्वोयाङछ्वो और मापांगयाङछ्वो के साथ तिब्बत की तीन बड़ी तीर्थ झील मानी जाता है।

इस साल 25 वर्षीय तिब्बती युवक कुंगा का घर सुन्दर नामछवो झील के किनारे पर स्थित है, उन के परिवार के चार सदस्य हैं जो सभी पहले पशु चराने का काम करते हैं। वे पीढियों से इस पवित्र झील के पास रहते आए हैं, रोज शांत और स्वच्छ झील के पानी देख सकते हैं और झील की लहरों की आवाज सुन सकते हैं। उन के दिल में इस झील के प्रति असीम आस्था संजोए हुई है। श्री कुंगा ने कहाः

तिब्बती जाति में नामछ्वो के प्रति असीम आस्था है, नामछ्वो तिब्बती जाति की जिन्दगी है। वे रोज वहां आकर प्रार्थना अर्चना करते हैं। इस प्रार्थना से मानस में असाधारण पवित्र उम्मीदें उत्पन्न हो सकती हैं।

नामछ्वो की खूबसूरती और तिब्बती जाति की अनूठी संस्कृति से देश विदेश के पर्यटक आकृष्ट होते हैं। लेकिन अतीत में यहां रहने वाले तिब्बती किसानों और चरवाहों का जीवन समृद्ध नहीं था, कृषि प्रधान स्थानीय उद्योग आम तौर पर मौसम पर आश्रित होता था, उन की आय बहुत कम थी। खराब मौसम होने के समय कुंगा परिवार की सालाना आय सिर्फ 2000 य्वान तक सीमित थी।

किन्तु नामछ्वो दर्शनीय क्षेत्र के विकास के बाद कुंगा परिवार की स्थिति में भारी परिवर्तन आया। स्थानीय सरकार के संगठन में वहां के तिब्बती परिवार बारी बारी से अपने अपने घर के याक, घोड़े तथा तिब्बती कुत्ते को सुन्दर सुसज्जित कर झील के किनारे पर ले जाते हैं, पर्यटक याक और घोड़े पर सवार होकर नामछ्वो झील का परिक्रमा करते है और इन तिब्बती विशेष जानवरों के साथ फोटो खींचते हैं । कुंगा का कहना है कि एक फोटो खींचने के लिए 10 य्वान लिया जाता है और याक पर झील का एक परिक्रमा करने से 20 य्वान का खर्च होता है। इस तरह पर्यटन के व्यस्त सीजन में एक दिन ही स्थानीय परिवार को कई सौ य्वान की आय मिल सकती है। कुंगा ने कहाः

आम दिनों हम पशु चराते हैं, कभी कभी छोटा मोटा व्यापार भी करते हैं। अब मैं झील के पास याक चराता हूं । बहुत से पर्यटक आकर याक के साथ फोटो खींचते हैं, जिस से रोज मुझे मोटी आय भी हो सकती है।

नामछ्वो झील का दृश्य बहुत सुन्दर है, वह तिब्बती लोगों के दिल में असाधारण पवित्र स्थान रखती है। हर साल तिब्बत के अन्य स्थानों, छिंगहाई, सछ्वान, कांसू और युन्नान प्रांतों से बहुत से तिब्बती बौध धर्म के अनुयायी दूर दूर से आते हैं और कठिन तीर्थ यात्रा के बाद झील के पास आते हैं और उस का परिक्रमा करते हैं। वे मानते हैं कि इस से आत्मा पवित्र होगी और मोझ मिलेगा। तिब्बती युवक निमा त्सेरिंग ने समझाते हुए कहाः

हर साल बड़ी संख्या में तीर्थ यात्री नामछ्वो झील आते हैं, खासकर तिब्बती कलेंडर के मुताबिक बकरी वर्ष के समय झील का परिक्रमा करने की प्रथा होती है, बेशुमार तीर्थ यात्री आते हैं। युवा लोगों के लिए झील का पूरा चक्कर लगाने में 7 से 10 दिन तक का समय लगता है, जबकि वृद्ध लोगों को एक चक्कर में पन्दरह दिन की आवश्यकता है। तिब्बती धर्मालंबी तीर्थ यात्रा के दौरान षष्ठांग लेटकर नतमस्तक करते हुए अपनी आस्था प्रकट करते हैं, पैदल से लम्बी सफर करना भी तीर्थ यात्रा का एक भाग है। पवित्र झील का परिक्रमा करना तिब्बती बौद्ध धर्म की एक सर्वमान्य प्रथा है।

इन अद्भुत रीति रिवाजों के अलावा नामछ्वो झील के सुन्दर दृश्य ने भी बेशुमार पर्यटकों को अपनी ओर खींचा है। झील की जल राशि विशाल है, एक तरफ घास मैदार फैला हुआ है, दूसरी तरफ हिमाच्छादित पहाड़ों से घिरी हुई है, जलराशि की दूर दूर क्षतिज पर पानी और आकाश एक में समाविष्ठ हुए दिखाई देते हैं, पानी साफ और पारदर्शी है, किनारों पर घास पौधे तरोताजा है। मानो लोग पौराणिक लोक में रहते हों। निमा त्सेरिंग ने कहा कि हर ऋतु काल में नामछ्वो की सुन्दरता अलग अलग होती है। इस की चर्चा में उन्हों ने कहाः

नामछ्वो में हर ऋतु काल में पानी का रंग अलग अलग होता है। सब से सुन्दर दृश्य जून के माह में मिलता है। यदि किस्मत साथ देता हो , तो दिन में चार प्रकार के प्राकृतिक दृश्य देखने को मिलते है। बारिश, हिमबारी, ओला पड़ने के दृश्य एक ही दिन में होते हैं। ऊपर हिम का पर्वत, नीचे घास का मैदान, पानी नीला है आकाश भी नीला, पारदर्शी है और बादल भी पारदर्शी दिखता है।

इधर के सालों में तांगशङ काउंटी की सरकार ने नामछ्वो झील के दर्शनीय क्षेत्र के संरक्षण पर बड़ा ध्यान दिया है और दर्शनीय क्षेत्रों के प्रबंधन को कड़ा कर दिया। जिलाधीश निमा ने हमें बताया कि नामछ्वो पर्यटन विकास में स्थानीय किसानों व चरवाहों की भागीदारी पर महत्व दिया गया है, ताकि पर्यटन उद्योग से कृषि व पशुपालन उत्पादन को बढ़ावा मिल सके और स्थानीय लोगों का जीवन भी अधिक सुधर हो सके। उन्होंने कहाः

अब हम स्थानीय लोगों को दर्शनीय क्षेत्र के विकास में भाग लेने के लिए संगठित करते हैं। नामछ्वो झील के पास घोड़ा और याक लेकर पर्यटन सेवा देने वाले सभी लोग स्थानीय आम निवासी हैं, इस तरह वे पर्यटन उद्योग में भाग लेते हैं और पैसा कमाते हैं। इस के अलावा दर्शनीय क्षेत्र को प्राप्त आय में से भी अधिकांश भाग निकालकर स्थानीय निवासियों के जीवन को सुधारा जाता है।

वर्तमान तिब्बत में कुंगा की भांति बहुत से तिब्बती लोग सक्रिय रूप से पर्यटन सेवा में लग रहे हैं। उत्तरी तिब्बत के घास मैदान पर चरवाहे तंबू में होटल खोलते हैं और पर्यटकों को शुद्ध मैदानी खाद्य खिलाते हैं और पर्यटकों को घोड़े पर सवार कराके सैर सपाट करवाते हैं । ल्हासा नदी के घाटी क्षेत्र में स्थानीय किसान ग्रामीण होटल खोल कर पर्यटकों का स्वागत-सत्कार करते हैं।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के पर्यटन ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2009 में तिब्बत में पूरे साल 5 करोड़ से अधिक देश विदेश के पर्यटक आये थे, जिस से प्राप्त आय रिकोर्ड के 5 अरब 20 करोड़ य्वान तक पहुंची। तिब्बत के ग्रामीण पर्यटन उद्योग का तेज विकास हुआ, सारे प्रदेश में 40 हजार से ज्यादा किसान व चरवाहे पर्यटन सेवा में सक्रिय रहें।

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के स्थाई उपाध्यक्ष श्री वु इंग च्ये ने कहा कि भविष्य में तिब्बत व्यापक किसानों और चरवाहों को पर्यटन सेवा में लगाएगा और उन्हें तकनीकी प्रशिक्षण देने पर जोर देगा और मुख्यतः श्रेष्ठ पर्यटन संसाधन रखने वाले विशेष कृषि व पशुपालन क्षेत्रों के पर्यटन उद्योग के विकास को समर्थन देगा। 2015 तक प्रदेश में पर्यटन उद्योग में कार्यरत किसानों व चरवाहों की संख्या एक लाख 50 हजार तक पहुंचाने की कोशिश की जाएगी।

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