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तिब्बती राजाओं के मकबरों का रहस्योद्घाटन
2010-07-13 08:31:29

दोस्तो, चीन की तिब्बती जाति का लम्बा पुराना इतिहास रहा है। तिब्बत पठार पर रहते हुए उन्हों ने शानदार और रहस्यमय संस्कृति रची थी। तिब्बत राजवंश तिब्बत के इतिहास में एक शक्तिशाली राज्य रहा था, जिस के विभिन्न राजाओं के शव तिब्बत के लोका क्षेत्र में स्थित तिब्बती राज मकबरे में दफनाए गए हैं।

तिब्बत के लोका क्षेत्र के मुख्यालय नगर ज्ये तांग कस्बे से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में प्राचीन तिब्बत राजवंश के विभिन्न राजाओं के मकबरे स्थित हैं, यह समाधि समूह तिब्बत में अब तक सुरक्षित सब से बड़ा मकबरा समूह है। मकबरा लोका प्रिफेक्चर की च्वोंग च्ये काउंटी के सामने प्यी-ए पहाड़ पर अवस्थित है, जहां भूमि समतल और विशाल है, जलवायु सुहावना है, जमीन उर्वर है और प्राकृतिक दृश्य मोहक और सुन्दर है। प्राचीन काल में यह क्षेत्र तिब्बती जाति की उत्पत्ति का स्थान था। लोका प्रिफेक्चर के पर्यटन ब्यूरो के प्रधान छ्यो लिन ने परिचय देते हुए कहाः

यहां तिब्बत राजवंश के विभिन्न राजाओं का मकबरा समूह है, जिस में सातवीं से नौवीं शताब्दी तक 29वें राजा से लेकर 42 वें राजा तक की समाधियों के अलावा उन की रानियों तथा मंत्रियों को भी दफनाया गया है। समूचा मकबरा समूह 305 वर्गकिलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। ऐतिहासिक उल्लेखों के मुताबिक इस समूह में कुल 21 मकबरे हैं, लेकिन अब तक केवल 18 मकबरों का पता लगाया गया जिन में से 9 मकबरों में दफनाए गए मृतकों की पहचान की गयी है।

तिब्बत राजवंश चीन के इतिहास में एक उल्लेखनीय शानदार राजवंश था, विभिन्न राजकालों में राजाओं ने बेशुमार संपत्तियां जुटायीं, भव्य महलों, मठों और मकबरों का निर्माण किया । अब इन मकबरों के भू-सतही निर्माण लगभग सब नष्ट हो चुके हैं। दूर से मकबरे की ओर देखने पर केवल ऐसे कुछ भूरे रंग की मिट्टी के टीले दिखाई देते हैं जो पहाड़ों के ढलान पर श्रृंखलाबद्ध हैं। हजार वर्ष गुजरने के बाद भी अब ये मकबरे आने वाली पीढियों के लिए पूज्य व दर्शनीय बने रहे हैं। श्री छ्यो लिन ने कहाः

सातवीं शताब्दी से लेकर नौवीं शताब्दी तक का ऐतिहासिक काल तिब्बत के इतिहास में एक विशेष राज काल था, इस काल में तिब्बत राजवंश का स्वर्ण-युग आया और तिब्बत ने पूरी तरह देश के हान जाति के तांग राजवंश की संस्कृति गृहित की, जिस में खेतीबाड़ी से लेकर मानव के अंतिम संस्कार की सभी प्रथाएं शामिल हैं। ये साधारण मिट्टी के टीलों को तिब्बती राजाओं के मकबरे कहलाने के क्या सबूत है. इस की चर्चा करते हुए श्री छ्यो लिन ने कहा कि इस के बारे में ऐतिहासिक उल्लेख मिलते हैं। दूसरा सबूत यह है कि यहां की पुरातत्वीय खुदाई से तीन समाधि-स्तंभ प्राप्त हुए है, जो चीन के तांग राजवंश काल के शिलाभिलेख माने जाते हैं।

ऐतिहासिक उल्लेखों के मुताबिक हरेक तिब्बती राज मकबरे में बड़ी मात्रा में मूल्यवान चीजें और स्वर्ण-चांदी के बर्तन व रत्न-मणि दफनाए गए हैं, वे सभी तिब्बत राजवंश के इतिहास व संस्कृति के अध्ययन के लिए अमोल धरोहर हैं। खुशकिस्मत की बात है कि अब तक यहां के अधिकांश मकबरों की चोरी नहीं की गयी और मानवीय तबाही से भी बच गए, इस का श्रेय मकबरा समूह की रक्षा करने वालों को जाता है।

मकबरा समूह में तिब्बत राजवंश के सब से महान राजा सोंगत्सान का मकबरा सब से बड़ा है, उस के पास एक छोटा सा मंदिर है, जिस में तिब्बत के इतिहास में महानतम राजा सोंगत्सान और उन की रानी वुनछङ व भृकुटी की मूर्तियां रखी गयी हैं। वर्तमान में इस मंदिर में पांच भिक्षु रहते हैं जो मकबरों की रक्षा करने के जिम्मेदार हैं।

इस साल 43 वर्षीय भिक्षु छिमी. यीसिडोजी को कमबरा रक्षक के रूप में काम करते हुए दस से अधिक साल हो चुके हैं, वे हमेशा मंदिर के मुख्य भवन के पास एक कोने में रहते हैं और विश्व भर से आए भक्तों तथा पर्यटकों को तिब्बती राजाओं की कहानी बताते हैं। यीसिडोजी ने कहा कि वे रोज चार पांच घंटे का समय निकालकर मकबरा समूह का एक चक्कर लगाते हैं और मानवीय व प्राकृतिक तोड़फोड़ का पता लगाते हैं और रोक देते हैं। इस पर उन्हों ने हमें बतायाः

मैं रोज तिब्बती आबादी क्षेत्रों से आए तीर्थ यात्रियों का स्वागत-सत्कार करता हूं और समय समय पर मंदिर में साफ-सफाई का काम भी करता हूं। भिक्षु होने के नाते मैं रोज सूत्र भी पढ़ता हूं। इन सब के अलावा मैं मकबरे की रक्षा करने के जिम्मेदार भी हूं। यहां अनेकों राजाओं के मकबरे मौजूद हैं, इसलिए मेरे कंधे पर मकबरों की रक्षा करने का भारी कार्यभार है और मैं मकबरों को तबाही पहुंचाने से रोकने की हर संभव कोशिश करता हूं । सरकार इन ऐतिहासिक अवशेषों पर बड़ा महत्व देती है, अंततः मुझे उन की अच्छी तरह रक्षा करने का कर्तव्य है।

अतीत में मकबरे के रक्षक तिब्बती राजाओं के सेवकों में से चुने गए थे, जो सेवक इस चौकीदारी के लिए चुने गए, वे खुद और उन के परिवार अपने को बहुत गौरवमय समझते थे। लेकिन वास्तव में मकबरा चौकीदार का जीवन बहुत निरस और मुश्किल था, उन का बाह्य दुनिया से संपर्क भी टूट गया था। बाद में तिब्बत राजवंश का पतन होने के साथ साथ मकबरा रक्षा व्यवस्था भी खत्म हो गयी।

श्री यिसीडोजी का जन्म तिब्बती राज मकबरा समूह के सामने स्थित छ्योंग ज्ये काऊंटी में हुआ, उन के मामा भी मकबरा चौकीदार रह चुके थे। मामा के संतान नहीं होने के कारण यिसीडोजी उन की जगह मकबरा चौकीदार बना। इस पर उन्होंने कहाः

यहां 21 मकबरे हैं, मकबरा रक्षक के रूप में मैं यहां दस साल तक रह चुका हूं । 1997 से पहले यहां दूसरे चौकीदार भी थे। मकबरा चौकीदार वंश-परंपरागत नहीं है। मैं सोचता हूं कि शायद मैं जिन्दगी भर चौकीदारी के लिए यहां रहूंगा।

अधिकांश तिब्बतियों के लिए तिब्बती राज मकबरा एक पवित्र और मर्यादापूर्ण स्थान है, यह तिब्बती जाति की संस्कृति का जन्म स्थल है और तिब्बती जाति के मनोभाव का स्रोत भी है। हर साल हजारों तिब्बती लोग तिब्बत के अन्य स्थानों, छिंगहाई, कांसू, युन्नान तथा सछ्वान प्रांतों से आते हैं और अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं। ल्हासा से आए तिब्बती युवक सोरांगछिरन उन में से एक है। उन्हों ने हमें बतायाः

तिब्बती जाति की संतान होने के नाते मैं यहां आने तथा इन आलीशान वास्तु निर्माण देखने तथा संबंधित इतिहास जानने पर बहुत गर्व महसूस करता हूं।

आधुनिक सभ्यता की दृष्टि में दूर से देखने पर यह मकबरा समूह थोड़ा सा निर्जन और वीरान लगता है, लेकिन ये मौन सुप्त मकबरे मानो हजार वर्ष पहले की रौनक और समृद्धि बयां करते हैं और एक महान जाति का इतिहास बताते हैं। यिसीडोजी ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अधिक से अधिक चीनी और विदेशी पर्यटक तिब्बत के इतिहास की जानकारी लेने यहां आएं। उन्होंने कहाः

हम देशी विदेशी पर्यटकों का तिब्बती राज मकबरे का दौरा करने आने के लिए हार्दिक स्वागत करते हैं। मकबरा चौकीदार होने के नाते मैं अपेक्षा करता हूं कि और ज्यादा लोग यहां तिब्बत का इतिहास जानने आएं।

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