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तिब्बती बौद्ध धर्म के तहत दीक्षा की डिग्री पद्धति
2010-06-22 10:41:28

आज हम आप को तिब्बती बौद्ध धर्म की दीक्षा डिग्री पद्धति के बारे में कुछ बताएंगे।

इस साल के मार्च माह में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में स्थित जोखांग मठ में बौद्ध धर्म की दीक्षा परीक्षा आयोजित हुई, सेरा, ड्रेपुंग, गांडन, रेडोई और जोखांग मठों से आए दो सौ भिक्षु शाक्यमुनि भवन में इकट्ठे हुए धार्मिक सूत्र जपा रहे थे।

तिब्बती बौद्ध धर्म के नियमों के मुताबिक 21 मार्च को वर्ष 2010 की तिब्बती बौद्ध धर्म की दीक्षा की डिग्री के लिए परीक्षा यानी गेशि उपाधि की परीक्षा और प्रमाण पत्र जारी करने की गतिविधि जोखांग मठ में धूमधाम के साथ आयोजित हुई।

गेशि का तिब्बती भाषा में मतलब ज्ञानसुलभ है। गेशि डिग्री पद्धति तिब्बती बौद्ध धर्म की शिक्षा स्तर प्रमाण व्यवस्था है, जिस के कुल चार स्तर होते हैं। गेशि की उपाधि इस में सब से ऊंचा है, जो आधुनिक युग के डाक्टरी डिग्री के बराबर है। गेशि का पूरा नाम ल्हाराम्बा गेशि है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलूग संप्रदाय में प्रकारण शासन शास्त्र की सर्वोच्च स्तर की डिग्री होती है। चीनी बौध धर्म संघ की तिब्बती शाखा के उपाध्यक्ष, जीवित बुद्ध लोसांगबा चिलाइकुसांग ने गेशि के बारे में परिचय देते हुए कहा कि तिब्बती बौद्ध धर्म के हरेक भिक्षु के लिए गेशि की डिग्री पाना एक उच्चतम लक्ष्य है। उन्हों ने कहाः

ल्हाराम्बा गेशि गेलूग संप्रदाय के भिक्षुओं के लिए दीक्षा-शिक्षा की सर्वोच्च डिग्री है और उन के जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य भी है। गेशि डिग्री पाने के लिए प्रकारण शासन शास्त्र के पांच धार्मिक ग्रंथों के सिद्धांतों पर अधिकार करने की जरूरत है। इस प्रकार की डिग्री पाने के बाद उन की साख-प्रतिष्ठा और प्राप्त सुविधा उन्नत हो जाती है और वे एक दिक्षित शिष्य से एक गुरू बन जाते हैं।

हर साल गेशि डिग्री की परीक्षा में भाग लेने वाले भिक्षु को पूर्व परीक्षा में भाग लेना चाहिए, इस साल पूर्व परीक्षा फाइनल परीक्षा से आधा साल पहले ल्हासा के सेरा मठ में आयोजित हुई। परीक्षा में पास होने के बाद परीक्षार्थी अंतिम परीक्षा में भाग लेने के हकदार बने हैं। इस साल सेरा, ड्रेपुंग, गान्डेन और जाशिलुंपो मठ समेत गेलूग संप्रदाय के 9 बड़े बड़े मठों के नौ भिक्षुओं को अंतिम परीक्षा में हिस्सा लेने का अधिकार प्राप्त हुआ है और उन्हों ने 21 मार्च को हुई परीक्षा में भाग लिया।

नौ भिक्षुओं ने बारी बारी से परीक्षा में उपस्थित विभिन्न भिक्षुओं द्वारा प्रकारण शासन शास्त्र के बारे में पूछ गए सभी प्रश्नों के उत्तर दिए। सभी परीक्षार्थियों ने होशियारी और तेजस्वी के साथ प्रश्नों के सही उत्तर दिए। दो घंटों की तीव्र बहस के बाद तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की विशेष परीक्षा कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि सभी नौ भिक्षु परीक्षार्थियों ने परीक्षा पास कर गेशि डिग्री नसीब कर ली है, जिन में से ड्रेपुंग मठ से आए परीक्षार्थी आवांडेंतान सर्वश्रेष्ठ प्रश्नोत्तर से प्रथम स्थान पर आए।

चीनी बौद्ध धर्म संघ की तिब्बती शाखा के अध्यक्षा, जीबित बुद्ध दुप्खांग. तुप्डान, केदुप ने मौके पर कहा कि इस साल आयोजित यह परीक्षा 2004 में गेशि डिग्री परीक्षा बहाल होने के बाद हुई छठी परीक्षा है। अब अधिक से अधिक भिक्षु इस में भाग लेने लगे हैं। जीवित बुद्ध केदुप ने कहाः

मौजूदा डिग्री परीक्षा की यह विशेषता देखने को मिली है, यानिकी गेशि डिग्री के लिए परीक्षा देने वाले मठों की संख्या अधिक है, परीक्षार्थियों का शास्त्रीय स्तर ऊंचा है और परीक्षा में स्पर्धा तीव्र है। खासकर विभिन्न स्थानों से आए परीक्षार्थी भिक्षुओं ने श्रेष्ठ दिखाया है।

तिब्बत में गेशि डिग्री परीक्षा निरंतर होती रहती है, सिर्फ चंद कुछ सालों में वह स्थगित हुई। 2004 में वह फिर से शुरू हुई, इस की जांच पुष्टि के लिए तिब्बत में तिब्बती बौद्ध धर्म के सुप्रसिद्ध जीवित बुद्धों, वरिष्ठ भिक्षुओं और विशेषज्ञों से एक परीक्षा समिति गठित हुई। चीनी बौद्ध धर्म संघ की तिब्बती शाखा के उपाध्यक्ष, जीवित बुद्ध लोसांगबा चिलाइकुसांग ने कहा कि अधिक से अधिक भिक्षुओं को यह उपाधि हासिल हुई है,जिस से प्रेरित होकर तिब्बत के विभिन्न मठों में धार्मिक सूत्रों का अध्ययन करने का उत्साह बढ़ गया है। इस पर उन्हों ने कहाः

गेशि डिग्री परीक्षा बहाल होने के बाद अब तक 31 भिक्षुओं को इस उपाधि से सम्मानित किया गया है। इस साल फिर नौ भिक्षुओं ने यह डिग्री प्राप्त की। पिछले 6 सालों में कुल 40 भिक्षुओं ने गेशि डिग्री हासिल की है।

तिब्बत में जनवादी सुधार लागू होने के बाद धार्मिक गतिविधियां लगातार स्वस्थ रूप से चल रही हैं, व्यापक धार्मिक लोगों और भक्तों की मांग को पूरा करने के लिए तिब्बत में साक्यादावा उत्सव आदि 40 से अधिक परम्परागत धार्मिक उत्सव बहाल किए गए, इस तरह वहां के लोगों की धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता अच्छी तरह संरक्षित की गयी है।

हर रोज सुबह, जब पो भी नहीं फटा है, तभी जोखांग मठ के सामने धुपबत्तियों की धुंए उठने लगती हैं, भक्त लोगों को मठ के मुख्य द्वार के आगे षष्ठांग बैठ कर नतमस्तक करते नजर आते हैं। शहर में तीर्थ परिक्रमा करने वाली पांत और शानदार और प्रभावकारी दिखती है।

श्री कोनजो ल्हासा शहर के तहत तांगशुङ जिले का एक साधारण नागरिक है, हर शीतकालीन अवकाश समय में वे जरूर ल्हासा आकर पूजा करते हैं और तीर्थ परिक्रमा करते हैं। उन्हों ने संवाददाता को बतायाः

ल्हासा में जोखांग मठ और पोताला महल जैसे मशहूर मंदिर और भवन निर्माण है, मैं यहां आकर घी का दान करता हूं, ताकि घी बत्तियां जलाने को काफी तेल मिल जाए और संसार के जन साधारण केलिए शांति व सुख की प्रार्थना की जाए। मेरे लिए यह बहुत अहम कार्यवाही है और किसी भी साल में नहीं रूकी है।

तिब्बत में कोनजो की भांति करीब सभी तिब्बती धर्मालंबियों के घर में सूत्र कक्षा और बुद्धमुर्ति आला उपलब्ध हैं। खाली समय मिलने पर भक्त लोग विभिन्न स्थानों से ल्हासा आकर पूजा अर्चना करते हैं और तीर्थ परिक्रमा करते हैं। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अध्यक्ष श्री पैमाछिलिन ने जानकारी देते हुए कहा कि हर साल ल्हासा में पूजा अर्चना करने आने वाले धर्मालंबियों की संख्या दस लाख से अधिक पहुंच जाती है, उन की सामान्य धार्मिक गतिविधियों की देश के संविधान और कानून कायदे से रक्षा की जाती है, वर्तमान में तिब्बत में स्थापित धार्मिक कार्य स्थल भिक्षुओं और धार्मिक अनुयायियों की मांग को पूरा कर सकते हैं। इस पर पैमाछिलिन ने कहाः

अब तक तिब्बत में 1700 से अधिक मठ और मंदिर मिलते हैं, जिन में 46 हजार भिक्षु रहते हैं । तिब्बत में धार्मिक कार्य स्थल और धार्मिक कर्मचारी धार्मिक अनुयायियों की धार्मिक कार्यवाही की जरूरत को पूरा कर सकते हैं। मठ मंदिर समाज का एक भाग है। तिब्बत में चल रहे नए ग्रामीण निर्माण की योजना के तहत मठ मंदिर के 60 साल से अधिक उम्र वाले भिक्षुओं को भी सामाजिक बीमा में शामिल किया गया है, ताकि उन की वृद्धावस्था के जीवन की गारंटी हो सके। नव गांव की ही तरह मठ मंदिरों के लिए भी सड़क बिछायी गयी और उन में कलपानी और बिजली की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है।

तिब्बत में धर्मालंबियों की सामान्य धार्मिक कार्यवाही की जरूरत को पूरा करने के लिए 20वीं शताब्दी के अस्सी वाले दशक से लेकर अब तक केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत में मठ मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए 70 करोड़ य्वान की राशि प्रदान की है, पोताला महल, सेरा मठ और साक्या मठ आदि विभिन्न मशहूर धार्मिक स्थलों को देश के प्रमुख संरक्षित ऐतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है।

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