मार्च 2010 में आयोजित चीनी राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के वार्षिक सम्मेलन में चीनी प्रधान मंत्री वन चापाओ ने सरकारी कार्य रिपोर्ट में कहा कि अल्प संख्यक जातियों के सांस्कृतिक धरोहरों की अच्छी तरह रक्षा की जानी चाहिए। चीन एक बहु जातीय देश है, जहां अल्पसंख्यक जातियों की सांस्कृतिक इतिहास लम्वा और विशेष है। चीन के बहुत से अल्पसंख्यक जातीय सांस्कृतिक अवशेषों को युनेस्को की गैर भौतिक सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया है। तिब्बती जाति का महाकाव्य राजा गेसर जिन में से एक है।
तिब्बती राजा गेसर सदियों से तिब्बती जाति के दिलों में वीर के रूप में जीवित रहा है । इस महाकाव्य का चीन में और विश्व में व्यापक तौर पर प्रचार प्रसार हो रहा है । महाकाव्य《राजा गेसर》को विश्व में सब से लम्बे महाकाव्य के रूप में चीन सरकार ने प्रथम राष्ट्र स्तरीय गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेष नामसूचि में शामिल किया है। महाकाव्य राजा गेसर के विषयों में पौराणिक कथा, काव्य तथा लोककथा आदि शामिल हैं । इस महाकाव्य में प्राचीन तिब्बत में दसियों स्थानीय राज्यों के बीच जटिल संबंधों व घमासान लड़ाइयों का वर्णन किया गया है, जिस से प्राचीन तिब्बती जाति का जीवन अभिव्यक्त होता है । इस महाकाव्य से अन्याय पर न्याय की विजय तथा तिब्बती जाति के शांतिपूर्ण व सुखमय जीवन की खोज करने की अभिलाषा तथा तिब्बती और हान जाति व अन्य जातियों के बीच घनिष्ठ संपर्क भी जाहिर होता है ।
महाकाव्य राजा गेसर विश्व में सब से लम्बी और सब से व्यापक रूप से प्रचलित वीरगाथा है, इस के 120 खंड, 10 लाख पद और 2 करोड़ शब्द हैं, जो विश्व में मशहूर कई प्राचीन काव्यों की कुल शब्द संख्या से भी ज्यादा है। वह प्राचीन तिब्बती जाति की लोक संस्कृति और मौखिक कथा वाचन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि है और प्राचीन तिब्बती जाति के समाज, इतिहास, जातीय आवाजाही, मान्यता तथा रीति रिवाजों के बारे में एक विश्व कोष का रूप धारण कर लिया है। इधर के सालों में चीन सरकार ने तिब्बत की लोक संस्कृति के संरक्षण व विकास में और अधिक निवेश किया और महाकाव्य राजा गेसर की रक्षा में अधिक शक्ति लगायी । मार्च 2010 में आयोजित राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा के वार्षिक सम्मेलन में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के जन प्रतिनिधियों ने सरकार के सामने अल्पसंख्यक जाति की संस्कृति के संरक्षण पर ज्यादा ध्यान देने का सुझाव पेश किया । तिब्बती जन प्रतिनिधि स्येजू ने कहाः
चीन सरकार ने अल्पसंख्यक जातियों की संस्कृति के विकास में करोड़ों य्वान की राशि लगायी है और हर साल सांस्कृतिक अवशेषों का जीर्णोद्धार किया और संरक्षण किया है। राजा गेसर जैसे ऐतिहासिक धरोहरों की अच्छी तरह रक्षा की गयी है।
चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी के अल्पसंख्यक जातीय साहित्य अनुसंधान संस्थान के शौधकर्ता, राजा गेसर नेतृत्व कार्य दल के उप प्रधान तथा राजा गेसर अध्ययन केन्द्र के प्रधान 72 वर्षीय श्री चांगब्यानजाछ्वु ने महाकाव्य गेसर के संकलन व संपादन में बड़ा योगदान किया । वे अब भी हर साल तिब्बती आबादी क्षेत्रों में महाकाव्य गेसर के सर्वेक्षण के लिए जाया करते हैं। उन्हों ने कहा कि सरकार ने महाकाव्य के संरक्षण पर बड़ा महत्व दिया और 1979 में विशेष संस्था कायम कर महाकाव्य को बचाने का काम शुरू किया और उसे प्रमुख वैज्ञानिक अध्ययन मुद्दों में शामिल किया तथा भारी धन राशि लगायी। उन्हों ने कहाः
पेइचिंग, तिब्बत, छिंगहाई, सछवान, कांसू, युन्नान और सिन्चांग व भीतरी मंगोलिया में महाकाव्य गेसर अध्ययन संस्थाएं स्थापित हुई हैं। यह एक बड़ी विशाल व्यवस्था है जिस पर सरकार ने खास महत्व दिया है । हमारा काम चीन के आधे भाग पर फैला है, जो चीन में एकमात्र है और विश्व में भी कम देखने को मिलता है।
राजा गेसर की कहानी आज तक व्यापक जनजीवन में एक लोक काव्य के रुप में मौखिक रुप से चल रही है, इस का श्रेय तिब्बती लोक वाचकों को जाता है । वे इधर उधर घूमते हुए गेसर की कहानियों को तिब्बती बहुल क्षेत्रों में प्रसारित करते हैं । लम्बे अर्से से पीढ़ी दर पीढ़ी तिब्बती वाचकों ने राजा गेसर की कहानी का प्रचार किया है और समय बीतने के साथ-साथ इस में नए-नए विषय भी शामिल किए गए हैं । आज भी इस महाकाव्य का विस्तार जारी है ।
सूत्रों के अनुसार इन तिब्बती लोक वाचकों में एक प्रकार के वाचक को"भगवान दीक्षित कथा वाचक"कहा जाता है । वे अपनी अद्भुत यादगारी शक्ति के बल पर महाकाव्य के दसियों खंड को गा सकते हैं। चीन के स्छ्वान प्रांत के कान्ची तिब्बती प्रिफैक्चर की त्हेगी कांउटी में एक मशहूर तिब्बती लोक वाचक हैं । उन का नाम है आनी, कहते हैं कि वे राजा गेसर महाकाव्य के पचास से ज्यादा खंड की याद कर सकते है । श्री आनी ने कहा :
"मैं 15 वर्ष की उम्र से महाकाव्य राजा गेसर का प्रसार कार्य करता आया हूँ । मेरी आशा है कि जिन्दगी भर में राजा गेसर की कहानी का प्रसार-प्रचार करता रहूंगा ।"
दोस्तो, तिब्बती कथा वाचक आनी का जन्म 1949में त्हेगी कांउटी में हुआ । उन के मामा भी एक वाचक हैं । उन्होंने एक दिन सपने में राजा गेसर को देखा था, जिस में गेसर ने उसे बताया कि बड़ा होकर आनी एक वाचक बनेगा । सपने से जागने पर उसे पता चला था कि उसे खुद ब खुद महाकाव्य का वाचन करने की कला आ गयी है ।
उसी दिन से आनी ने महाकाव्य राजा गेसर गाने और उस का प्रसार करने को अपनी जिन्दगी का मिशन बना लिया ।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के जाति अनुसंधान केंद्र के उप निदेशक श्री त्सेरिन फिंगत्सो ने जानकारी देते हुए कहा:
"तिब्बती लोक वाचक आम तौर पर गरीब किसान व चरवाहे परिवार से आते थे। नए चीन की स्थापना के पूर्व उन में से कुछ लोक कथा के गायन वाचन से जीवन बिताते थे और इधर-उधर घूमा करते थे । उन का सामाजिक स्थान बहुत नीचा था । विशाल घास मैदान में वे घूमंतु जीवन बिताते हुए गायन का काम करते थे । इस प्रकार के वाचक प्राचीन यूनान में होमर महाकाव्य गाने वाले वाचकों के समान थे।
नए चीन की स्थापना के बाद वे कथा वाचक राष्ट्रीय स्तर के हस्ती बन गए। वे देश में बड़े सम्मानीय बन गए। वे महाकाव्य राजा गेसर की कहानी का वाचन करते हैं और महाकाव्य के संकलन संपादन के काम में भी हाथ बांटते हैं। कथा वाचक श्री आनी ने कहाः
"राजा गेसर हमारी तिब्बती जाति के वीर होने के साथ ही तमाम चीनियों के वीर भी थे, वे सारी दुनिया की जनता के वीर भी माने जाने चाहिए । अब हमारे देश की नीति बहुत अच्छी है । मैं ने कई किताबों का संपादन किया है और कुछ पुस्तकें प्रकाशित करूंगा ।"
तिब्बती कथा वाचक आनी के अनुसार एक महाकाव्य राजा गेसर में 200 से ज्यादा किस्मों की गायन शैलियां प्रयोग में आयी हैं, हर एक किस्म की शैली पर कथा गाने में लगभग दस मिनट लगते हैं। लघु वाला गाने में भी चार पांच मिनट लगते हैं और सब से लम्बे गाने में 14 मिनट लगते हैं ।
वर्ष 1979 से ही स्छ्वान प्रांत के रेडियो स्टेशन के निमंत्रण पर आनी ने महाकाव्य राजा गेसर की《हो लिंग लड़ाई》और《घोड़ा प्रतियोगिता से राजा बन गया》नामक कथाएं गायीं और उन के कैसेट टेप भी बनवायें । वर्ष 1984 में आनी ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा में आयोजित राष्ट्र स्तरीय राजा गेसर गायन सभा में भाग लिया और दर्शकों की वाहवाही लूटी । वर्ष 1990 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के छांगतु प्रिफैक्चर की मुक्ति की 40वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित गायन प्रतियोगिता में आनी ने अच्छी कामयाबी हासिल की । वर्ष 2000 के जुलाई माह में स्छ्वान प्रांत के कान्ची तिब्बती प्रिफैक्चर में आयोजित गायन प्रदर्शनी में उन्होंने श्रेष्ठ उपलब्धि प्राप्त की । वर्ष 2004 में उन्होंने छिंगहाई प्रांत में आयोजित राजा गेसर की सहस्राब्दी स्मृति सभा में भाग लिया और गायन प्रस्तुत किया ।
कुछ साल पहले तिब्बती लोक वाचक आनी ने एक अन्य सत्तर वर्षीय लोक वाचक के साथ राजा गेसर की कहानी के प्रथम तीन भाग के टेप बनवाये। तीर्थ यात्रा के लिए वे भारत, नेपाल और तिब्बत स्वायत्त प्रदेस व छिंगहाई प्रांत में गए । यात्रा के दौरान आनी ने विस्तार से राजा गेसर की कहानी का प्रचार प्रसार किया। इसकी याद करते हुए श्री आनी ने रहाः
महाकाव्य《राजा गेसर》एक मशहूर विश्व गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहर है, जो बहुत से क्षेत्रों में प्रचलित है। चीन के पश्चिमी भाग के हिमालय सांस्कृतिक दायरे में ही नहीं, भारत व नेपाल में बसे तिब्बतियों के बीच भी वर्षों से प्रचलित है। आज"वर्तमान विश्व में एकमात्र सब से लम्बा जीवित महाकाव्य"माने जाने वाला महाकाव्य《राजा गेसर》की कहानी तिब्बती ऑपेरा तथा चित्र के रूप में तिब्बती जाति और मंगोल जाति बहुल क्षेत्रों में प्रसिद्ध है । वर्तमान में एक सौ से ज्यादा राजा गेसर के लोक वाचक कार्यरत हैं, जिन में तिब्बती वाचकों की संख्या नब्बे से ज्यादा है, चालीस से ज्यादा मंगोल जाति के वाचक है और कुछ थू जातीय वाचक भी हैं ।
श्री चांगब्यानजाछ्वु ने भारत में भारतीय इंदिरा गांधी कोष के विशेषज्ञों के साथ दक्षिण हिमालय में भारतीय सांस्कृतिक आदान प्रदान और उत्तर हिमालय में राजा गेसर के प्रचार प्रसार के बारे में विचारों का आदान प्रदान किया। इस पर उन्हों ने कहाः
राजा गेसर एक वीरगाथा है जो समूचे हिमालय क्षेत्र में प्रचलित है, हिमालय पहाड़ के दक्षिणी भाग में भी वह लोकप्रिय रहा है। नेपाल और हिमालय के दक्षिण में स्थित भारत के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र में बड़ी संख्या में तिब्बती लोग रहते हैं, वे बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं और तिब्बती भाषा बोलते हैं और उन में राजा गेसर की कहानी बहुत लोकप्रिय है।
एक महाकाव्य के रूप में राजा गेसर चीन के पश्चिमी भाग के पठारी इलाके में व्यापक ग्रामीण व पशुपालन क्षेत्रों में हजार वर्ष से चलता आया है। जिस से पूर्ण रूप से तिब्बती जाति और संबंधित अन्य जातियों के इतिहास, समाज, धर्म, रीतिरिवाज, मान्यता व संस्कृति अभिव्यक्त हुई है जो उन्हें एकता के सूत्र में बांध देने का काम आता है। इधर के वर्षों में चीन ने तिब्बती लोक संस्कृति के विकास में बहुत धन राशि लगायी है। वर्तमान आधुनिक संस्कृति दिन ब दिन समृद्ध होने के साथ-साथ महाकाव्य《राजा गेसर》जैसी परम्परागत लोक संस्कृति का अच्छी तरह संरक्षण किया जा रहा है और विकास किया जा रहा है। तिब्बती वाचक आनी की तरह महाकाव्य राजा गेसर सुनाने वाले अन्य वाचक भी राष्ट्र स्तरीय मूल्यवान व्यक्ति माने जाते हैं। सरकार, विशेषज्ञों, विद्वानों और कथा वाचकों के समान प्रयासों से राजा गेसर महाकाव्य जैसी अल्पसंख्यक जातियों की परम्परागत संस्कृति और विकसित होकर शानदार बनेगी।