श्री नाइमा त्सेरिंग एक मशहूर तिब्बती चित्रकार हैं, वे पश्चिम चीन के सछ्वान प्रांत के तिब्बती आबादी बहुल क्षेत्र में रहते हैं। वे चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के सदस्य और सछ्वान प्रांत के संस्कृति व इतिहास अध्ययन संस्थान के उपाध्यक्ष हैं। वे हमेशा चीन के अल्पसंख्यक जाति बहुल क्षेत्रों के निर्माण व विकास कार्य पर ध्यान देते हैं और जातीय ललित कला व सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण, विरासत में ग्रहण और विकास के लिए दौड़-धूप करते रहते हैं। अपने चित्रों के माध्यम से दुनिया को तिब्बती जाति की संस्कृति से अवगत कराना उन की हमेशा की कोशिश रहा है।
मार्च के एक दिन, सीआरआई संवाददाता ने चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के वार्षिक सम्मेलन के आयोजन के दौरान पेइचिंग में श्री नाइमा त्सेरिंग से इंटरव्यू लिया। उन्हों ने तिब्बती जाति की संस्कृति के विकास के बारे में अपना विचार जताया।
प्रसिद्ध चित्रकार के नाते श्री नाइमा त्सेरिंग लगातार चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के तीन सत्रों के सदस्य रह चुके हैं। इस साल सलाहकार सम्मेलन की राष्ट्रीय कमेटी के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए वे 13वीं बार पेइचिंग आए हैं। हर साल के वार्षिक सम्मेलन में नाइमा त्सेरिंग जातीय आबादी क्षेत्रों के जन समुदाय की रायें ले आकर सम्मेलन में पेश करते रहते हैं। बहुत सी रायों पर संबंधित सरकारी विभागों ने उच्च महत्व दिया। इस साल के वार्षिक सम्मेलन के लिए श्री नाइमा त्सेरिंग ने जो प्रस्ताव पेश किया है, वह है अल्पसंख्यक जातियों के लोक कला के संरक्षण पर ध्यान दिया जाए और प्राकृतिक विपत्ति के बाद पुनर्निर्माण में वाणिज्यिक मुनाफे के लिए ज्यादा प्रयास पर रोक लगायी जाए। श्री त्सेरिंग ने कहा कि 2008 में सछ्वान प्रांत में वुनछ्वान भूकंप आने के बाद चल रहे पुनर्निर्माण, खासकर बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के दौरान अल्पसंख्यक जातियों की लोक संस्कृति की अच्छी तरह रक्षा की जानी चाहिए। इस के बारे में उन्हों ने कहाः
नए वास्तु समूह के निर्माण में अवश्य अल्पसंख्यक जातियों के लोक कला के संरक्षण पर ध्यान दिया जाना चाहिए। जैसा कि वास्तु निर्माण की शैली अपनायी जाने के समय न केवल उस के व्यवहारिक प्रयोग पर महत्व दिया जाना चाहिए, बल्कि वहां के सदियों से प्रचलित स्थानीय सौंदर्य बौध और प्रथा पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए।
अपने प्रस्ताव में श्री नाईमा त्सेरिंग ने इस बार फिर जातीय कला और जातीय संस्कृति के विकास पर जोर केन्द्रित किया, जिस का संबंध उन के अपने कला जीवन के चमत्कारी इतिहास से जुड़ा हुआ है।
बहुत पहले यानी 1982 में आयोजित प्रथम चीनी अल्पसंख्यक जातीय चित्र प्रदर्शनी में श्री नाईमा त्सेरिंग के चित्र राजा गेसर को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया । तत्काल दसवें पंचन लामा अर्डेनी चोस्की ग्यालत्सेन ने उन की भूरि भूरि प्रशंसा की और उन्हें पंचन लामा के चित्रकार की उपाधि प्रदान की। तिब्बती चित्रकारों के लिए यह उपाधि सब से ऊंचा सम्मान मानी जाती है। दसवें पंचन लामा के साथ बातचीत की याद करते हुए श्री नाईमा त्सेरिंग ने भावविभोर होकर कहाः
पंचन लामा ने कहा था कि डराने की बात यह नहीं है कि कोई जाति पिछड़ी हुई है, डराने की बात यह है कि उस की कोई संस्कृति नहीं है। तिब्बती जाति को हान जाति से सीखना चाहिए जिस में अन्य जातियों के श्रेष्ठ सांस्कृतिक तत्व शामिल हैं, इस से अपनी जाति की संस्कृति को समृद्ध व विकसित करना चाहिए। उन्हों ने मुझ से कहा कि आप ने हान जाति की संस्कृति और पश्चिम की चित्रण कला सीखी है, इसतरह आप को इस क्षेत्र की कार्यक्षमता प्राप्त हुई है, तो आप अवश्य ही चित्र कला से तिब्बती जाति के ऐतिहासिक रीति रिवाजों को अभिव्यक्त करें और तिब्बती सौंदर्य बौध को प्रतिबिंबित करें।
दसवें पंचन लामा की बातों का नाईमा त्सेरिंग पर दूरगामी गहरा प्रभाव पड़ा, तत्पश्चात वे अपनी पूरी जिन्दगी में जातीय संस्कृति का विकास व प्रचार करने की अथक कोशिश करते रहे। 1993 के शरत काल में उन्हों ने पहली बार अमरीका में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगायी, जिस में उन की मूल कृतियां महाचार्य पद्मसंभव, ध्रुव स्थल की सपना और हिम-प्रदेश आदि दसियों चित्र हैं। श्री नाईमा त्सेरिंग की चित्र प्रदर्शनी ने वाशिंगटन में बड़ी धूम मचायी, अमरीका के सरकार, प्रेस जगत और संस्कृति जगत के 200 से अधिक लोगों ने प्रदर्शनी के उद्घाटन रस्म में भाग लिया। तत्कालीन अमरीका स्थित चीनी राजदूत, वर्तमान चीनी विदेश मंत्री यांग चेछी ने खुद चित्र प्रदर्शनी के उद्घाटन की अध्यक्षता की । वाइस आफ अमरीका आदि अनेक मीडिया संस्थाओं ने श्री नाईमा त्सेरिंग से साक्षात्कार किया। उस समय की स्थिति की याद अभी उन के दिमाग में ताजा बनी रही है। इस पर उन्हों ने कहाः
अमरीकन विशेषकर जानना चाहते हैं कि तिब्बतियों के विचार कैसे है। वाइस आफ अमरीका के संवाददाता सीधे दौड़कर मेरे सामने आये, उन्हों ने अनेक तीखे संवेदनशील सवाल पूछे, जिन में दलाई लामा के बारे में सवाल शामिल है। मैं दलाई लामा के मतों का दृढ विरोधी हूं । आज से 700 साल पहले ही तिब्बती जाति के धार्मिक नेताओं ने निश्चित किया था कि तिब्बती जाति को देश के मध्य भाग के साथ मिलजुल कर रहना और विकसित होना होगा, उन का यह निर्णय विवेकतापूर्ण है।
अमरीका के बाद श्री नाईमा त्सेरिंग ने विश्व के पांच महाद्वीपों के विभिन्न देशों में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगायी और ललित कला के जरिए कला की भाषा में दुनिया को तिब्बत से अवगत कराया। 2009 के वसंत काल में श्री नाईमा त्सेरिंग ने चेक आदि पूर्वी यूरोपीय देशों का दौरा किया, वहां के स्थानीय प्राकृतिक सौंदर्य और सीधी सादा जातीय प्रथाओं ने उन पर गहरी छाप छोड़ी। इस के बारे में उन्हों ने कहाः
ये देश बहुत ही सुन्दर है, वहां के सूरज, वास्तु निर्माण और प्राचीन संस्कृति बेहद मोहक है। मेरी भी उम्मीद है कि विश्व के विभिन्न देशों की जनता को भी चीन का दौरा करने आने का मौका मिलेगा, चीन में वे न केवल लम्बी दीवार देखें, ल्हासा में पोताला महल देखने भी आएं। किसी एक जाति को जानने समझने से ज्ञान संवर्द्धित होगा और सभी लोग एकसाथ अमनचैन से रह सकेंगे।
इस साल के दो वार्षिक सम्मेलनों की चर्चा में श्री नाईमा त्सेरिंग ने कहा कि प्रधान मंत्री वन चापाओ की सरकारी कार्य रिपोर्ट से वे बहुत प्रभावित हुए हैं। उन्हों ने कहाः
प्रधान मंत्री वन चापाओ ने बहुत अच्छा कहा है कि संस्कृति एक राष्ट्र की मनोभावना और आत्मा होती है और एक राष्ट्र के सचे माइने में शक्तिशाली होने के निर्णयात्मक कारक होती है। समग्र स्थिति के मुताबिक देश को विशेष कर जातीय संस्कृतियों के विकास को समर्थन देना चाहिए, अल्पसंख्यक जातियों को देश की सहायता के अलावा खुद भी अपनी कला का विकास करने की कोशिश करनी चाहिए।
श्री नाईमा त्सेरिंग ने कहा कि नाईमा का अर्थ तिब्बती भाषा में सुर्य है। उन के दिल में कला शाश्वत सूरज है। किसी भी समय और किसी भी स्थान पर मातृभूमि का मान प्रतिष्ठा और गौरव उन के जीवन से भी महत्वपूर्ण है। एक चीनी नागरिक, एक तिब्बती चित्रकार और एक अल्पसंख्यक जाति के सलाहकार सम्मलेन के सदस्य होने के नाते वे जिन्दगी भर जातीय संस्कृति के संरक्षण, विरासत में ग्रहण और विकास के कार्य में जुटे रहेंगे और तिब्बती संस्कृति को सारी दुनिया में फैलने देंगे।