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छङ तेह में स्थित"लघु पोटाला महल"यानी फूथोचुंगछङ मठ का दौरा
2010-03-16 08:25:01

उत्तर चीन के हपेइ प्रांत के छङतेह शहर में एक मठ स्थित है, जो देखने में बिलकुल पोटाला महल की तरह लगता है, यह है तिब्बती लामा बौद्ध धर्म का मठ फुथो चुंगछङ मठ। इस मठ का पैमाना पोटाला महल से आधा छोटा है, इस तरह स्थानीय लोग उसे लघु पोटाला महल कहलाते हैं । आज के इस कार्यक्रम में आप हमारे साथ चीन के छिंग राजवंश काल में निर्मित इस शाही तिब्बती बौद्ध मठ का दौरा करेंगे और महसूस करेंगे कि हान जाति व तिब्बती जाति की वास्तु कला शैली मिश्रित वाले इस मठ की विशेषता ।

फुथो चुंगछङ मठ दो सौ वर्ष पूर्व छिंग राजवंश के सम्राट छ्यानलुंग के काल में निर्मित हुआ था, जो पहाड़ी ढलान पर खड़ा रहता है । मठ का कुल क्षेत्रफल बीस से ज्यादा हैक्टर है, प्रमुख निर्माण में मुख्य द्वार, स्मारक मंडप, पंच स्तूप द्वार, ग्लाज्ड तोरण, बड़ा लाल मंच तथा सहस्त्र धर्म भवन आदि शामिल हैं ।

तिब्बती भाषा में फुथो चुंगछङ मठ का मतलब पोटाला महल ही है । उस की मूल शैली और समूची रचना तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में स्थित पोटाला महल सरीखी है, लेकिन पोटाला महल की तुलना में वह ज्यादा आलीशान नहीं लगता । लेकिन इस मठ और तिब्बत के पोटाला महल के बीच क्या फर्क है?मठ के प्रबंधन विभाग में कार्यरत सुश्री वेई ने जानकारी देते हुए कहा:

"वह असली पोटाला महल से छोटा है और इस का क्षेत्रफल सिर्फ पोटाला मेहल के आधे के बराबर है । इस के अलावा मठ का प्रमुख निर्माण यानी बड़ा लाल मंच भी पोटाला से भिन्न है, वह मंच पोटाला महल के मंच का जितना शानदार नहीं है । तीसरा भिन्नता यह है कि यह शाही मठ है, इस लिए उस का दर्जा पोटाला मेहल से ऊंचा है ।"

फुथो चुंगछङ मठ आने के बाद मुख्य द्वार से गुज़रकर सर्वप्रथम आँखों के सामने पीले रंग का एक ग्लाज्ड खपरैल वाला एक तोरण नजर आता है। आंखों को चकाचौंध कर देने वाली पीले रंग की यह वास्तु शैली वास्तव में चीन की परंपरागत वास्तु शैली है जिस का उपयोग आम तौर पर शाही और राजकीय निर्माणों पर किया जाता है। इस विशाल तोरण की तीन दरवाजे हैं जो चार पायों पर खड़ा रहता है। उस जमाने में चीन में इस प्रकार की शैली वाले वास्तु निर्माण काफी प्रचलित थे। यह तोरण पेईचिंग के पेई हाय पार्क में पुष्प द्वीप पर निर्मित तोरण के हूबहू है।

तोरण के शीर्ष भाग में सम्राट छयान लुंग के हाथों से लिखा गया चार अक्षर अंकित है, जिसका अर्थ है इस दरवाजे से अन्दर आने के बाद सभी श्रद्धालुयों को बोधिसत्व अवलोकितेश्वर का दर्शन करने की कृपा मिल सकती है। छिंग राजवंश के समय ग्लाज्ड तोरण ऐसा निषिद्ध वास्तु था कि राज्य निर्धारित दर्जे से निम्न स्तरीय पदाधिकारी को इस के सामने अपना कदम रोकना पड़ता था और उन्हें अन्दर जाकर पूजा करने का निषेध था।

कुछ कदम और आगे जाने पर एक पत्थर का मंडप नज़र आता है जिसमें तीन बड़े बड़े पाषाण आलेख स्तंभ हैं तीनों स्तंभों पर इस मंदिर का इतिहास विवरण अंकित है। हमारी गाईड सुश्री रन थिएन ह्वी ने कहा:

"इस मंडप में तीन पत्थर के आलेख स्तंभ है, मध्य में स्थित शिलालेख में फुथो चुंगछङ मठ का इतिहास अंकित है। इसमें इस मठ के निर्माण के कारण और इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का वर्णन किया गया है। चीन के छिंग राजवंश के सम्राट छ्यान लुंग के शासनकाल के छत्तीसवें साल में उनकी आयु साठ साल थी और अगले साल उनकी माताजी की आयु अस्सी साल थी। उस समय तिब्बत, छिंग हाई, सिन च्यांग और मंगोल आदि स्थानों की अल्पसंख्यक जातियों के राजा महाराज छिंग राज्य वंश के ग्रीष्मकाली प्लेस यानी छंग तेह जाकर सम्राट और उनकी माता की दीर्घ आयु के लिए प्रार्थना करना चाहते थे। सम्राट छ्यान लुंग इतनी बड़ी संख्या में लोगों की प्रार्थना गतिविधि को बड़ा महत्व देते थे और उन्हों ने उन में तिब्बती बौद्ध धर्म यानी लामा धर्म की आस्था को ध्यान में रखते हुए पोटाला महल के रूप में एक मठ बनाने की आज्ञा दी थी, जो फुथो चुंगछङ मठ के नाम से जाना जाता है। वास्तव में यह मठ तिब्बत के पोटाला महल से छोटा है, इसलिए इससे लघु पोटाला महल भी कहा जाता है।"

हमारी गाईड आगे कहती हैं कि तीनों शिलालेखों पर अंकित अभिलेख चार लिपियों अर्तात मान, हान, मंगोल और तिब्बती में उत्कीर्ण कर लिखे गये हैं। आगे के अभिलेख पर मान लिपि का प्रयोग किया गया है, दायीं और बायीं तरफ के स्तंभों पर तिब्बती और मंगोल लिपि का प्रयोग किया गया है तथा स्तंभों के पृष्ठ भाग में चीनी हान लिपी का प्रयोग किया गया है। इस प्रकार का समायोजन से चीन के एकीकरण और एकता का प्रतीक है।

कुछ और आगे चलने पर, विभिन्न रूपाकार में परतों वाले पत्थरों की सिढियां आती है जो ऊर्ध्वगामी होती है। आँखों के सामने स्थित विशाल चबूतरा इस मंदिर की आधारशिला है जो दो परतों में विभाजित है सफेद और लाल रंग में है । इस चबूतरे की उँचाई तैंतालिस मीटर है, जो दो भागों में विभाजित है। निचला भाग मंदिर का आधार है, क्योंकि इस भाग का रंग सफेद है इसलिए इससे सफेद मंच के नाम से भी जाना जाता है। लाल रंग वाला भाग, सफेद वाले भाग के उपर स्थित है, मंदिर का मुख्य भाग है। उसे बड़ा लाल मंच बोला जाता है। मठ का मुख्य भवन इसी मंच पर ऊंचा खड़ा हुआ है। विशाल पहाड़ों से घिरे मठ में स्थित लाल और सफेद रंग से युक्त विशाल मंच बेहद मोटा और मजबूत दिखता है। उस की दीवारों पर लाल और सफेद रंग का अलंकार खुल आसमान के नीचे एक अद्भुत सुंदरता का आभास कराता है, जिसकी कलात्मक सौंदर्य शक्ति बहुत आकर्षक है।

लाल रंग वाले मंच में 6 ग्लाज्ड बुद्ध आले बनाये गए है जिन में बुद्ध भगवान की मुर्तियां विराजमान हैं, एक आले में बुद्ध की एक बड़ी मूर्ति जिस का नाम दीर्घ आयु बुद्ध और अन्य आलों में छोटी छोटी मुर्तियाँ हैं। सहस्र धर्म भवन फुथो चुंगछङ मठ का प्रमुख भवन है, जो लाल मंच के बीचोंबीच शान से खड़ा हुआ है। यह भवन मठ के महल समूह में सब से ऊंचा है और चमकीला होता है । भवन के भीतर गंभीर्य व महत्ता का वातावरण छाया रहता है।

सहस्र धर्म भव्य में अहम धार्मिक रस्म आयोजित किया जाता था या छिंग राजवंश के सम्राट द्वारा महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक कबालाई क्षेत्र के राजाओं व मंत्रियों से भेंट की जाती थी । भवन के केंद्र में बैंगनी तांबे वाली मूर्तियां रखी जाती है, जो देखने में बहुत जीती जागती लगती है । इस भवन की छत पर अनोखे सचित्र पाटन बनाया गया है, अन्दर आने के बाद सभी पर्यटक जरूर सिर उठाकर देखते है। गाईड ने कहाः

इस भवन की भीतरी छत पर जो काष्ठ का पाटन बनाया गया है, उस के ऊपर सोने का पानी चढ़ाया गया है। पाटन के चित्र में एक ड्रैगन चमकदार मोती से खेलता नजर आता है । इस का अर्थ है कि सम्राट पूरे संसार का शासक था । पाटन के नीचे एक दरी टंगी हुई जो तत्काल सम्राट छ्यान लुंग द्वारा अपनी माता का जन्म दिवस मनाने के लिए सोने चांदी की धागों से कसीदा करवायी गयी थी। दरी पर कसीदे चित्र में पश्चिम के आनंद लोक का दृश्य है । बौध ग्रंथ के अनुसार पश्चिम में अति आनंद लोक है, वहां पंचरंगों का शुभसूचक बादल छाया रहता है, जमीन पर सोने की परतें, तालाब में विराट आकार वाली कुमुद और पेड़ों पर मोती जैसे फल लटकाए हुए हैं। वहां के निवासियों का जीवन आनंदित और सुखद होता है।

दरी के नीचे एक पीले रंग का सिंहासन रखा जाता है, वह छिंग राजवंश के सम्राट छ्यानलोंग के लिए नहीं था । वह विशेष तौर पर तत्कालीन आठवें दलाई लामा के लिए रखा गया था । उसी समय आठवें दलाई लामा सिर्फ़ 13 साल के थे । छोटी उम्र होने के कारण वह खुद सम्राट के जन्म दिवस मनाने के लिए दूर तिब्बत से छङतेह शहर नहीं आ सकते थे , इस तरह सम्राट छ्यानलोंग ने उन के लिए यह विशेष सिंहासन बनाकर स्थापित किया था ।

सुश्री छन सिंगापुर से आयी है, फूथूचुंगछङ मठ का दौरा करने के लिए यहां आई । वास्तु निर्माण का जोब करने के कारण उसे इस मठ की विशेष निर्माण शैली पर विशेष रूचि पैदा हुई है । उस ने कहा:

"खेद की बात है कि मैं ने पोटाला महल को नहीं देखा । लेकिन इस मठ को देख कर मैं पोताला की कल्पना कर सकती हूँ । अगर मौका मिला, तो में वहां जरूर जाऊंगी । मैं वास्तु निर्माण उद्योग में काम करती हूँ, इस तरह मैं ज्यादा निर्माण संबंधी वस्तुएं देखना चाहती हूँ । मुझे लगता है कि प्राचीन समय के लोग बहुत महान थे, वे हाथों से इस प्रकार का शानदार निर्माण कर सकते थे, बहुत महान है। चाहे छङ तेह हो, या राजधानी पेइचिंह, मुझे चीनियों की महानता पर बहुत गर्व महसूस होता है ।"

दोस्तो, फुथो चुंगछङ मठ का शाही लामा मठ के रूप में अपनी विशेष निर्माण शैली से चीन के विभिन्न मठों में महत्वपूर्ण स्थान होता है, अगर आप को मौका मिलेगा, तो छङतेह आकर इस का दौरा जरूर करेंगे ।

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