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तिब्बत के कीट विशेषज्ञ वांग पोहाई की कहानी
2010-03-09 10:02:59

आज से तीस साल पहले, 20 साल का एक चीनी युवक अपने साथ फ्रांसीसी कीट विशेषज्ञ फर्पुल की रचना कीट वृत्तांत लेकर परिवार जनों से विदा होकर हजारों किलोमीटर दूर तिब्बत में आया। वह है आज के कार्यक्रम का मुख्य पात्र श्री वांग पोहाई। श्री वांग पोहाई ने उस वक्त की याद करते हुए कहाः

"घर से विदाई के समय मैं ने माता जी से कहा कि जहां भी गया, मैं अपनी जन्म भूमि को कभी नहीं भूलूंगा। मैं देश के पश्चिम भाग में स्थित तिब्बत में काम करने जा रहा हूं और अपनी जन्म भूमि को योगदान देने की तरह मैं तिब्बत के निर्माण में भी अपना योगदान दूंगा।"

श्री वांग पोहाई आज तिब्बत कृषि अनुसंधान प्रतिष्ठान के शोधकर्ता हैं , वे तिब्बत में कीट विशेषज्ञ के नाम से बहुत जाने जाते हैं। सितम्बर 2009 में वे चीन के तीसरे सत्र के कृषि योगदान पुरस्कार से सम्मानित किए गए। पिछले 30 सालों में उन के कदमों ने पूरे तिब्बत की भूमि को छान किया और तिब्बत भर के कीड़ा मकोड़ों का खोज-सर्वेक्षण किया और तिब्बती कीटों-पतंगों के संदर्भ में 80 लाख शब्दों के ग्रंथ लिखे। उन्हों ने चीनी राष्ट्रीय वैज्ञानिक प्रगति पुरस्कार के दूसरे स्तर के पुरस्कार तथा राष्ट्रीय प्रकृति विज्ञान के चौथे पुरस्कार आदि अनेक पुरस्कार प्राप्त किए।

वांग पोहाई की पसंदीदा फ्रांसीसी कीट विशेषज्ञ फर्पुल की रचना कीट वृत्तांत में श्री फर्पुल ने लिखा था कि हरेक लोग की अपनी अपनी प्रतिभा और व्यक्तित्व होते हैं। देखने में तो व्यक्तित्व आनुवंशिक होता है। किन्तु व्यक्तित्व के मूल स्रोत का पता लगाना एक अत्यन्त मुश्किल काम है।

कीटों में गहरी रूचि रखने के श्री वांग पोहाई के व्यक्तित्व का जन्म उन के विश्वविद्यालय पढाई के समय यानी आज से तीस साल पहले हुआ था। सन् 1978 में हनान कृषिविश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद श्री वांग पोहाई तिब्बत आया। तिब्बत पहुंचने के कुछ देर बाद वहां की गैहूं फसल में बड़े क्षेत्रफल पर एफिस का प्रकोप हुआ। इस प्रकार के हानिकर कीट का नाश करने के लिए श्री वांग पोहाई ने स्वयं अनुसंधान की जिम्मा उठायी । गैहूं की फसल पर एफिस कीट का नाश किये जाने के बाद वांग पोहाई को ऐसा अनुभव हुआ कि तिब्बत में कृषि हानिकर कीटों का विनाश करने का कुंजीभूत सवाल तिब्बत में कीटों के फैलाव और प्रभाव का साफ साफ पता चलना चाहिए और स्थानीय कीट-पतंगों के फैलाव क्षेत्रों का रेखांकन किया जाना चाहिए। इस पर उन्हों ने कहाः

"यदि तिब्बत में कीट-पतंग की बुनियादी स्थिति का पता नहीं होता, तो स्थानीय कीटों की नस्ल-जाति का भी साफ-साफ पता नहीं सकता और हानिकर और हितकारी कीटों में फर्क नहीं किया जा सकता। तो ऐसे में हानिकर कीटों का विनाश करने के समय हितकारी कीटों का भी सफाया किया जा सकता है।"

तत्कालीन तिब्बत में कीटों की जाति-प्रजातियों पर कोई अनुसंधान नहीं हुआ था। श्री वांग पोहाई ने अनुसंधान की शुरूआत की और 11 सालों के भीतर तिब्बत के 73 जिलों में जीवित कीट-पतंगों का चतुर्मुखी खोज- सर्वेक्षण किया और 60 हजार से ज्यादा नमूने इकट्ठे किए । उन्हों ने स्थानीय विशेषज्ञों के साथ सहयोग कर 4800 प्रजातियों के कीट निश्चित किए जिन में 1260 नस्लों के कीट तिब्बत की अपनी विशेष प्रजाति के होते हैं।

11 सालों के कठोर सर्वेक्षण काम से श्री वांग पोहाई ने ढेर सारी कीट संबंधी आंकड़ा सामग्री जुटाई हैं । उन्हों ने यह विशेष निष्कर्ष निकाला है कि छिंगहाई-तिब्बत पठार एक अलग नया कीट जीवन क्षेत्र है। उन के इस वैज्ञानिक अनुसंधान में देश विदेश के कीट विशेषज्ञों ने बड़ी रुचि दिखाई। इस पर वांग पोहाई ने कहाः

"अतीत में विदेशी विशेषज्ञों समेत विभिन्न विद्वानों में तिब्बत के कीट जीवन क्षेत्र के बारे में भिन्न-भिन्न मत थे। मैं ने अपने 11 सालों के सर्वेक्षण के बाद यह धारणा पेश की है कि तिब्बत विश्व के अन्य छह कीट जीवन क्षेत्रों के साथ बराबर एक सातवां क्षेत्र है। शुरू-शुरू में मेरी यह धारणा विशेषज्ञों में मान्य नहीं हुई, लेकिन धीरे-धीरे तथ्यों के आधार पर उन्हों ने मेरी परिकल्पना स्वीकार कर ली और अब यह माना गया है कि तिब्बत विश्व का सातवां विशेष कीट जीवन क्षेत्र है।"

इस के दौरान वांग पोहाई और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के कृषि विज्ञान संस्थान के अन्य कर्मचारियों के समान प्रयासों से तिब्बत में अपना कीट नमूना संग्रहालय कायम हुआ। तिब्बत कीट अनुसंधान संस्थान के उप शोधकर्ता थान रूई ने कहाः

"अतीत में तिब्बत में कोई भी कीट नमूना नहीं उपलब्ध था। अब यहां सभी नस्लों व प्रजातियों के कीट नमूने बनाये गए। तिब्बत में पंख वाले पतंगों के नमूने विशेष ज्यादा हैं। हम ने कीट नमूना संग्रहालय बनाये और इस तरह चीन के कीट नस्ल बंटवारा विज्ञान के लिए अहम योगदान किया।"

श्री वांग पोहाई की 7 रचनाओं यानी तिब्बत में कीट-पतंगों का बिवरण और तिब्बत में निशाचर पतंगों का वृत्तांत आदि के 45 लाख शब्दों वाले ग्रंथों में दुर्लभ तिब्बती पहाड़ी तितली, मूल्यवान आदिम पहाड़ी पतंग और तिब्बती निशाचर पतंगों का अच्छा वर्णन मिलता है। उन की रचनाओं में सिर्फ अमोल पहाड़ी तितलियों के नमूने ही 400 किस्मों से अधिक है।

सन् 1987 में श्री वांग पोहाई ने तिब्बत में समुद्र सतह से 5000 मीटर ऊंचे हङत्वान पर्वत माले में खोज-सर्वेक्षण का काम किया, ऊंचे पर्वत पर आक्सीजन की कमी और थकान व भूख से वे निहाल होकर जमीन पर बैठ गए, फिर उठ जाने का जी नहीं चाहता।

इसी मौके पर सामने एक सुन्दर पहाड़ी तितली रेशमी कपड़े जैसी पंखे फड़फ़ड़ाते हुए उड़ती नजर आयी, उसे देखते ही वांग पोहाई के देह में तुरंत स्फुर्ति आयी और जहन तेज हो गया और वह उछालकर कीट पकडने का जाल उठाते हुए तितली की ओर दौड़ा, चतुर तितली मानो वांग पोहाई से आंखमिचौली करना चाहती हो, नजदीक आने पर तुरंत दूर उड़ गयी । इस तरह दोनों में छटकने-पीछा करने के अनेक दौर चले, पूरे एक घंटे के बाद वांग ने आखिरकार उस रंगीन तितली को पकड़ने में कामयाबी हासिल की।

5000 मीटर ऊंचे पहाड़ पर एक छोटी सी तितली को पकड़ने के लिए इतनी शक्ति लगानी दूसरों की नजर में शायद अवश्य नहीं है, लेकिन वांग पोहाई का मत अलग हैः

"इस प्रकार की तितली दुर्लभ तिब्बती तितली है । सन् 1982 तक हम ने इस प्रकार के रेशमी पंखों वाली तितली की सिर्फ छह प्रजातियों का पता चला था, अब मालूम हुई उन की किस्में 40 से अधिक हो गयी, जिस ने विश्व की एक रिक्ति भर कर दी गयी है । इस प्रकार की तितली ढूंढकर पाना बहुत मुश्किल काम है।"

निशाचर पतंगों का पता लगाने की तुलना में श्री वांग पोहाई ने तितलियों का खोज-सर्वेक्षण करने में जो दिक्कत का सामना किया, वह बड़ी नहीं कही जा सकती है। वांग पोहाई के सहकर्मी. तिब्बत कृषि विज्ञान प्रतिष्ठान के कीट अनुसंधान संस्थान के उप शोधकर्ता छिरनतोजी ने याद करते हुए कहाः

"निशाचर पतंग रात में बाहर आती है। निशाचर पतंगों के नमूने लेने के लिए श्री वांग पोहाई एक महीने तक घास मैदान में दिन गाड़ी पर सोते थे और रात भर लालटेन की रोशनी के सहारे पतंग पकड़ते रहे और एक रात भी नहीं सोया।"

पिछले 30 सालों में पठारी मौसम की मार से श्री वांग पोहाई की सेहत काफी क्षीण बनायी गयी , उन के बाल पक गए और माथे पर गहरी झुर्रियां पड़ीं। सर्दियों में कीट पतंग शीतकालीन निंद्रा अवस्था में रहते हैं, तभी श्री वांग पोहाई बाहरी मैदान से मकान के अन्दर आ सकते हैं और फीर वे बड़े उत्सुकता से अगले वसंतकाल का इंतजार करते हैं।

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