पेइचिंग आनजङ अस्पताल के सर्जरी विभाग की इमारत की चार मंजिल पर दस वर्षीय तिब्बती लड़की तेन्ज़िन चोन्यी गलियारे में अपनी मां के साथ खेल रही है । गत वर्ष के दिसम्बर माह में डाक्टर कूहोंग ने लड़की का प्रथम बार हृदय ऑपरेशन किया । इस वर्ष के जून माह में तान्ज़िन चोन्यी मां के साथ पेइचिंग आनजङ अस्पताल आईं । विस्तृत जांच करने के बाद डाक्टर कूहोंग ने इसी महीने लड़की के हृदय रोग का पूरी तरह इलाज करने का फैसला किया । तिब्बती लड़की तेन्ज़िन चोन्यी की मां लामू डाक्टर कूहोंग की आभारी हैं । उस ने कहा:
"मैं डाक्टर कूहोंग की आभारी हूँ । उन के ऑपरेशन की तकनीक बहुत श्रेष्ठ है । इस के साथ वे बहुत दयालु व्यक्ति भी हैं । ऑपरेशन करने के बाद मेरी बेटी की स्थिति अच्छी हो गई है। पहले एक या दो किलोमीटर चलने के बाद ही उस की सांस फूल जाती थी, और वह आगे नहीं चल पाती थी। और हमें उसे पीठ पर लाद कर ले जाना पड़ता था । लेकिन ऑपरेशन के बाद उस की स्थिति अच्छी हो रही है और वह अब खेल भी सकती है ।"
वास्तव में तिब्बती लड़की तेन्ज़िन चोन्यी उन 140 तिब्बती बच्चों में से एक है, जिन्हें डाक्टर कूहोंग ने तिब्बत से पेइचिंग पहुंचाया । चीन में हृदय रोग से ग्रस्त बच्चों की दर 0.6 प्रतिशत से एक प्रतिशत तक है, लेकिन तिब्बत स्वायत्त प्रदेश पठार पर स्थित है, जहां ऑक्सिजन कम है, इस तरह वहां हृदय रोग से पीड़ित बच्चों की दर 1.8 प्रतिशत तक पहुंच गई है।
वर्ष 2004 में डाक्टर कूहोंग जापान और अमरीका में अपनी पढ़ाई समाप्त कर और वहां का रोज़गार छोड़कर पेइचिंग आनजङ अस्पताल वापस लौटीं। स्वदेश लौटने के बाद उन्होंने अपना ध्यान मुख्य तौर पर हृदय रोग से पीड़ित तिब्बती बच्चों पर लगाया। कूहोंग ने अपने साथियों ने कई बार तिब्बत के विभिन्न स्थलों में जाकर तिब्बती बच्चों के हृदय की जांच की है । अब तक उन्होंने सात बार तिब्बत जाकर करीब दस हज़ार तिब्बती बच्चों के हृदय की जांच की है और 140 तिब्बती बच्चों को ओपरेशन के लिए पेइचिंग पहुंचाया है। इस के अलावा, खुद उन्होंने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के जन अस्पताल में हृदय रोग से पीड़ित 20 से अधिक बच्चों का ऑपरेशन किया है। कभी-कभी एक ही दिन में डाक्टर कूहोंग ने छह ऑपरेशन तक किए हैं। इस की चर्चा में डाक्टर कूहोंग ने कहा:
"3700 मीटर की ऊंचाई वाले पठार पर, ऑक्सिजन कम होने की स्थिति में एक महिला डाक्टर के द्वारा एक ही दिन में छः ऑपरेशन करना एक बड़ी बात है। तीसरा ऑपरेशन करने के बाद स्वायत्त प्रदेश के जन अस्पताल के नेता ने मुझ से अगले दिन बाकी ऑपरेशन करने की राय दी । लेकिन मेरा विचार है अगर संभव हो, तो बाकी ऑपरेशन पूरे करूंगी । मुझे लगता है कि यदि कहीं रोगी है,तो वहां जाकर मुझे उसे देखना चाहिए और उस का ऑपरेशन करना चाहिए। यह एक डाक्टर का दायित्व है ।"
उस दिन के बारे में डाक्टर कूहोंग के साथ ऑपरेशन करने वाले डाक्टर ली छ्यांगछयांग की याद आज तक भी ताज़ा है । उन्होंने याद करते हुए कहा:
"उसी दिन डाक्टर कूहोंग ने सुबह नौ बजे से ऑपरेशन करना शुरू किया था, और शाम को सात व आठ बजे तक काम पूरा किया । दोपहर उन्होंने थोड़ा सा कुछ खाया । मुझे लगता है कि डाक्चर कूहोंग बच्चों को विशेष प्यार करती हैं ।"
डाक्टर कूहोंग एक जिम्मेदार व्यक्ति ही नहीं, ऑपरेशन करने में भी बहुत निपुण है । वर्ष 1984 में पेइचिंग राजधानी के मेडिकल विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद वे पेइचंग आन जङ़ अस्पताल में एक डाक्टर बन गईं । इस के बाद वे आनजङ अस्पताल से पी.एच.डी की डिग्री करने के लिए जापान गईं। जापान में उन्होंने दो बार बाल हृदय रोग संघ द्वारा प्रदत्त"युवा अनुसंधान पुरस्कार"हासिल किए, जो जापान में जापानी विद्वानों के लिए हासिल करना भी मुश्किल है । डाक्टर कूहोंग न सिर्फ़ यह पुरस्कार हासिल करने वाली प्रथम विदेशी हैं, बल्कि प्रथम महिला भी हैं । जापान में पी.एच.डी. डिग्री पाने के बाद कूहोंग आगे अनुसंधान करने के लिए अमरीका गईं ।
विदेशों में पढ़ने के दौरान कुहोंग और पेइचिंग आनजङ अस्पताल के बीच संपर्क कभी नहीं टूटा । पहले उन का विचार अमरीका में काम करने का था। लेकिन वर्ष 2003 में एक घटना हुई, जिस से अमरीका में उन के काम करने व जीवन बिताने का उन का विचार बदल गया, वे आज से दस गुना ज्यादा आमदनी को छोड़ कर स्वदेश वापस लौटीं । इस की चर्चा में डाक्टर कूहोंग ने कहा:
"जापान में काम करने के दस साल में मैं स्थानीय अस्पताल के बाल हृदय रोग विभाग के नेताओं के साथ विचारों का आदान-प्रदान या अनुसंधान करने के लिए कभी कभार स्वदेश लौटती थी । आनजङ अस्पताल के साथ मेरा संपर्क कभी नहीं टूटा । स्वदेश लौटने का सब से बड़ा कारण है कि मेरे पिता जी गंभीर रूप से बीमार हो गए । लेकिन माता-पिता ने मुझ से स्वदेस लौटने की बात कभी नहीं कही। उस समय मैंने आन जङ अस्पताल के प्रधान से कहा कि मैं शायद स्वदेश वापस लौटूंगी । उन्होंने कहा कि आप को जल्दी ही वापस लौटना चाहिए, हम आप का हार्दिक स्वागत करते हैं।"
कूहोंग के स्वटेश लौटने की खबर सुन कर अमरीका में उन के बॉस ने उन का वेतन बढ़ाने की बात कही, वे चाहते थे कि कूहोंग अमरीका में ही ठहरें। लेकिन माता-पिता के प्रति गहरे प्यार के कारण कूहोंग का स्वटेश लौटने का संकल्प बहुत दृढ़ था । इस तरह अमरीका में अच्छे रोज़गार को छोड़ कर वे माता-पिता के पास वौपस लौट आईं ।
स्वदेश लौटने के बाद डाक्चर कूहोंग अनेक विशेषज्ञ डाक्टरों का नेतृत्व करते हुए तिब्बत गईं, जहां गंभीर पठारीय स्थितियों को झेलना पड़ता है, सिर में लगातार दर्द होने के कारण वे रात भर सो नहीं पातीं । लेकिन डाक्टर कूहोंग सभी मुश्किलों को दूर कर तिब्बत में स्वयं सेवा करने पर डटी रहीं । उन के दफ्टर में अनेक सफेद शुभ सूचक हाता और काम की मेज़ पर अनेक बाल रोगियों द्वारा प्रदत्त खिलौने रखे हुए हैं । 12 वर्षीय तिब्बती लड़की न्गोड्रप वांगमो डाक्टर कूहोंग के इलाज से स्वस्थ हो गईं। उस के माता पिता ने उन को धन्यवाद देने के लिए प्रशंसा पत्र प्रदान किया । तिब्बती लोगों के साथ रहने का अनुभव बताते हुए डाक्टर कूहोंग ने कहा:
"हमारे बीच का संबंध बहुत सामंजस्पूर्ण है । तिब्बती बच्चे कभी कभार मुझे मां कहते हैं । मा दिवस पर वे मुझे ताज़ा फूल प्रदान करते हैं । हम एक दूसरे पर विश्वास करते हैं । तिब्बती लड़की न्गोड्रप वांगमो इलाज के पूर्व और इलाज के बाद बिलकुल बदल गईं । पेइचिंग आने के वक्त उस के माता पिता मुझे देखने आए । उन्होंने अपनी बच्ची का फोटो दिखाया और कहा कि डाक्टक कूहोंग जीवित बुद्ध ही हैं ।"
इस वर्ष के अगस्त माह में डाक्टर कूहोंग एक बार फिर अस्पताल के साथियों के साथ तिब्बत गईं । उन्होंने कहा कि अगस्त माह में तिब्बत में पर्याप्त ऑक्सिजन रहती है, यह वक्त बाल हृदय रोगियों के इलाज का सब से अच्छा समय है ।डाक्टर कूहोंग तिब्बत पठार में व्यस्त हैं, जिस से और ज्यादा बच्चे नया जीवन पा सकेंगे।