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पहाड़ के बाहर आ रहे शर्बा जाति के लोग
2009-12-29 10:11:03

छिंगहाई तिब्बत पठार पर स्थित हिमालय पर्वत का प्राकृतिक दृश्य बहुत सुन्दर है, पर्वत की दक्षिण तलहटी पर शर्बा जाति के लोग रहते हैं, जिस के बारे में बाहर के लोगों को कम ही जानकारी है । शायद चुमुलांमा चोटी पर चढ़ने वाले पर्वतारोही इन के बारे में जानते हैं । क्योंकि शर्बा लोग पीढ़ी दर पीढ़ी पर्वतारोहियों के लिए गाईड और कुली रहे हैं। लेकिन आज उन के जीवन में जमीन आसमान का परिवर्तन आ गया है, शर्बा लोग धीरे-धीरे पहाड़ के बाहर आ रहे हैं और स्थानीय तिब्बतियों, हान जाति के व्यक्तियों तथा नेपाली लोगों के साथ मेल मिलाप से रहने लगे हैं । मेहमाननवाज़ और जोश से भरे शर्बा लोगों को यहां आने वाला हर व्यक्ति कभी नहीं भूल सकेगा। अब आप का परिचय किया जाएगा, पहाड़ों में रहने वाले शर्बा लोगों से।

हम ने पांग छुन गांव में प्रवेश किया, जो चीन व नेपाल के सीमांत क्षेत्र में है । गांव में 260 परिवार रहते हैं और जनसंख्या सिर्फ़ पांच सौ है। गत शताब्दी के साठ वाले दशक में सत्तर शर्बा लोगों ने इस गांव की स्थापना की और इसे पांगछुन नाम दिया । उस समय वे पहाड़ों में रहते थे ।

तिब्बती भाषा में शर्बा लोगों का मतलब है"पूर्व से आए लोग"। चीन के भीतर शर्बा लोगों की संख्या तीन हज़ार से कम है, जो मुख्य तौर पर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की न्यलामू कांउटी स्थित चांगमू कस्बे व तिंग चे कांउटी के छंगथांग कस्बे में रहते हैं, जो हिमालय पर्वत की घाटी में स्थित है ।

तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व शर्बा लोग आम तौर पर पहाड़ों में रहते थे । वे अपनी पीठ पर सामान लाद कर कमाए पैसों से जीवन बिताते थे । इस तरह उन्हें"हिमालय पर्वत का कुली"कहा जाता था। पांगछुन गांव वासी भी पहले इसी प्रकार का जीवन बिताते थे । वे रस्सी से माल को अपनी पीठ पर लाद कर पहाड़ पर चढ़ते थे । इस दौरान उन्हें बड़ा होशियार रहना पड़ता था, ज़रा सी भी गलती से खाई में गिरने का खतरा हो सकता था । त्सेरिन पांगछुन गांव के वर्तमान उप प्रधान हैं । उन्होंने कहा क तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद शर्बा लोग पहाड़ के बाहर आने लगे और उन के जीवन तरीके भी बदल गए । इसी आधार पर पांगछुन गांव वासियों ने अमीरी का नया रास्ता खोजा । त्सेरिन ने कहा:

"पहले गांव वासी मुख्य तौर पर खेती का काम करते थे, साथ ही कुछ लोग पहाड़ पर शिकार भी करते थे और कुछ लोग पहाड़ों से लड़की काट कर सरल फ़र्नीचर बनाकर बेचते थे। कई साल पूर्व हमारा गांव औपचारिक तौर पर बाहरी व्यक्तियों के लिए खुल गया, जिस से हर दिन तीन या चार हज़ार य्वान की आय प्राप्त होने लगी है । व्यापार अच्छा होने के वक्त रोज हमें दस हज़ार य्वान की आय हो जाती है ।"

पांगछुन गांव में प्रवेश करते ही हम ने एक तीन मंजिला लोहे की बनी इमारत देखी, यह छुट्टी गांव का प्रमुख निर्माण है । उस के आसपास एक स्वीमिंग पूल और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ट्रेनिंग संस्थाएं निर्मित हुई हैं। शर्बा लोगों के जीवन स्तर को उन्नत करने के लिए वर्ष 2008 के शुरू में स्थानीय सरकार ने दस लाख य्वान लगाए, और साथ ही गांव ने बैंक से बीस लाख य्वान तथा गांव वासियों के दस लाख साठ हज़ार य्वान को मिला कर इस छुट्टी गांव की स्थापना की । त्सेरिन ने कहा कि छुट्टी गांव से प्राप्त आय के एक भाग का प्रयोग बैंक के ऋण और गांव वासियों की पूंजी वापस करने में लगता है, इस के अलावा बाकी राशि का इस्तेमाल पांगछुन गांव के निर्माण में किया जा रहा है । पांगछुन गांव की इस प्रकार की कोशिश बहुत सफल रही है, इस से प्राप्त अनुभव से गांव वासियों को भविष्य के प्रति और विश्वास पैदा हुआ है। तिब्बत के शर्बा व्यक्ति त्सेरिन ने कहा:

"वर्तमान में हम छुट्टी गांव में विशेष व्यंजन वाली सेवा प्रदान करने को तैयार हैं, इस से यहां आने वाले पर्यटक हमारा विशेष शर्बा खाने का मज़ा ले सकते हैं । भविष्य में हमारी योजना है कि छुट्टी गांव के पास और कमरों का निर्माण करेंगे, ताकि ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों का सत्कार किया जा सके। अब हमें मालूम हुआ है कि पर्यटन से गांव में अधिक से अधिक आय प्राप्त होगी।"

पांगछुन गांव में छुट्टी गांव की सफल मिसाल शर्बा लोगों के पहाड़ के बाहर जाकर बाहरी दुनिया के साथ ज्यादा संपर्क करने का मार्गदर्शन बन गयी है। इस के साथ ही नयी पीढ़ी वाले शर्बा युवाओं को भी बाहरी दुनिया की ज्यादा जानकारी पाने की जिज्ञासा है । वे बाहरी दुनिया देखना चाहते हैं, और घूमना भी चाहते हैं ।

24 वर्षीय त्सेरिन पुन्त्सोक का जन्म पांगछुन गांव में हुआ, परिवार के सदस्य मुख्य तौर पर पशुपालन का काम करते हैं । चार साल पूर्व उस का दाखिला भीतरी इलाके के हूपेइ प्रांत की राजधानी वूहान स्थित मध्य दक्षिण जातीय कॉलेज में हुआ । स्नातक होने के बाद उसे तिब्बत की राजधानी ल्हासा में अपनी पसंदीदा नौकरी मिली । त्सेरिन पुन्त्सोक ने कहा कि गांव में उस की तरह विश्व की छत से नीचे जा कर भीतरी इलाके के विभिन्न स्थलों में स्थिति विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले शर्बा लोगों की संख्या बीस से ज्यादा है। इधर के वर्षों में गांव में ज्यादा से ज्यादा शर्बा युवा अपने मां बाप की तरह परम्परागत कृषि का काम नही करना चाहते । वे चाहते हैं कि पहाड़ के बाहर जाकर काम करें । त्सेरिन पुन्त्सोक ने कहा:

"मेरे घर में छह सदस्य हैं । बड़े भाई स्वायत्त प्रदेश के लिनची प्रिफैक्चर की लिनची कांउटी में काम करते हैं, छोड़ी बहन चांगमू कांउटी के एक शिशु शाला में पढ़ाती है और छोटा भाई तिब्बती पर्वतारोहण टीम में खाना बनाने का काम करता है ।"

ज्यादा से ज्यादा शर्बा लोगों के पहाड़ से बाहर आने के कारण स्थानीय तिब्बती व हान जातीय व्यक्तियों को उन के बारे में काफी जानकारी है, वे मेल मिलाप के साथ रहते हैं । तिब्बती बंधु फूर्बु चांगमू कांउटी के शहरी प्रबंधन कार्य का जिम्मेदार है, इस तरह वह स्थानीय चार गांवों में रहने वाले शर्बा लोगों के साथ ज्यादा संपर्क रखता है । फूर्बु की नज़र में शर्बा लोग बहुत जोशीले बर्फीले पहाड़ी मेहमान हैं । तिब्बती बंधु फूर्बु ने कहा:

"शर्बा लोग बहुत सीधे सादे और जोशीले हैं । हम तिब्बती लोग घी पीते हैं, शर्बा लोग मेहमान का सत्कार करने के लिए घी पिलाते हैं । सिर्फ़ मेहमानों के लिए ही वे उन्हें विशेष तौर पर घी व मीठी चाय पिलाते हैं ।"

प्राचीन काल से आज तक पहाड़ में रहने वाले शर्बा लोग अपने जोश के कारण मशहूर हैं । बर्फीले पहाड़ पर सामान लादने का काम करने के वक्त वे सक्रियता से पर्वतारोहियों को मुफ्त निवास स्थान व मिठाई देते हैं । आज ज्यादा से ज्यादा शर्बा लोग पहाड़ों से बाहर आ रहे हैं, वे अपनी इस प्रकार की जातीय विशेषता पर डटे हुए हैं । शर्बा लोग और खुले तौर पर व्यापक तिब्बती व हान जातीय व्यक्तियों के साथ संपर्क करते हैं और आवाजाही करते हैं ।

अच्छा दोस्तो, आज का यह कार्यक्रम यहीं समाप्त हुआ । आज आप ने सुनी"पहाड़ के बाहर आ रहे शर्बा लोग"नामक एक रिपोर्ट । अब आज्ञा दें, नमस्कार ।

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