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《तिब्बती ज्ञान कोष》: तिब्बत का खेलकूद(2)
2009-12-08 15:00:10
निशानेबाजी का खेल

छिंगहाई तिब्बत पठार पर बसी तिब्बती जनता अनेक किस्मों के खेल व्यायाम पसंद करती है। ये खेल व्यायाम उन के जीवन वातावरण और जीवन के तौर तरीके से जुड़े हुए हैं,जो तिब्बती जाति की संस्कृति का एक भाग है।

तिब्बती जाति में परंपरागत निशानेबाजी की दो किस्में हैं यानी तीरंदाजी और शूटिंग ।

तीरंदाजी तिब्बती जाति का एक व्यापक लोकप्रिय खेल है, तिब्बती जाति के वीर गाथा《राजा गैसर》आदि पुस्तकों से पता चल सकता है कि घुड़सवारी दौड़ की भांति तीरंदाजी का मैच भी त्यौहार पर्व की मुख्य कार्यलाहियों में से एक था। 《राजा गैसर 》में तीरंदाजी के बारे में बेशुमार स्तुति वाक्य मिलते हैं और बड़ी संख्या में कुशल तीरंदाजों के नाम लिखे गए हैं । ल्हासा के पोताला महल के भित्ती चित्रों में तीरंदाजी संबंधी चित्र देखने को मिलते हैं, जिस में लोग जमीन पर खड़े कमान तानते हुए, दौड़ते घोड़े पर सवार लोग मार्ग के किनारे पर बनाये गए निशाने पर तीर छोड़ते हुए दिखाई देता है। इस से साबित हुआ है कि घुड़सवारी दौड़ और तीरंदाजी का खेल आम तौर पर एक साथ मिल कर खेला जाता था।

आज के तिब्बत में बहुत से स्थानों में बड़े पैमाने पर वसंतकालीन तीरंदाजी प्रतियोगिता आयोजित होती है। जो बहुत आकर्षक होता है। प्रतियोगिता में आम तौर पर बैल के सिंग और लकड़ी के फलक और बैल के सूखे नस से निर्मित परंपरागत बाण-धनुष प्रयोग किया जाता है। तीर आम तौर पर बांस , लकड़ी के डंड , बाज के पंखे तथा लोहे के बाण से बनाये गए हैं। इस के अलावा पुश्यू नाम का तीर भी होता है,जिस का पूंच्छ पंखे का नहीं है ,बल्कि शंकु आकार का सीटि लगता है ,जिसे छोड़ने पर आवाज बजती है।

तिब्बत क्षेत्र में शूटिंग में प्रयुक्त बंदूक आम बंदूक नहीं है, बल्कि पक्षी मारने वाला बंदूक है ,जिस में आगे की नाली से गोली भरी जाती है और पीछे भाग से फायर किया जाता है। इस प्रकार का बंदूक छिंग राजवंश के काल में व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जाता था । तिब्बती किस्म के इस प्रकार के बंदूक से लोग आत्मरक्षा और शिकार करते हैं। इसलिए इस के कुशल प्रयोग पर ज्यादा महत्व दिया जाता है। शूटिंग प्रतियोगिता तीरंगादी की तरह स्थिर खड़े निशाने पर या घोड़ पर निशानेबाजी दो प्रकार की है। पोताला महल के भित्ति चित्रों में इस प्रकार की प्रतियोगिता का चितरण मिलता है , जिस में खिलाड़ी तेज दौड़ते हुए घोड़े पर सवार होकर निशाने के नजदीक आने पर पीठ पर से पक्षी मारक बंदूक उतार कर लक्ष्य साधते हुए दिखाई देता है।

बल आजमाइश खेल

तिब्बती जाति के परंपरागत खेलों में शक्ति का आजमाइश करने वाला खेल भी होता है,जिस में हाथों से पत्थर उठाना, चमड़े का बैग ऊपर उठाना और रस्साकशी का खेल शामिल हैं।

हाथों से पत्थर उठाने का खेल तिब्बत में बहुत पुराना है , सांये मठ और पोताला महल के भित्ती चित्रों में प्राचीन काल में पत्थर उठाने की खेल प्रतियोगिता का सजीव चित्रण मिलता है । एक चित्र में चार पहलवान युवक मैच करते हुए दिखाई देता है, जिन में से एक ने विशाल पत्थर जमीन से अभी अभी थोड़ा ऊपर उठाए, एक ने पेट तक उठाया, एक ने वृक्ष तक तथा एक ने कंधे पर उठा कर रख दिया । बगल में दो निमायक खड़े हुए थे।

वर्तमान में पत्थर उठाने का मैच आम तौर पर तिब्बती कलैंडर के आठवें माह में आयोजित होता है। प्रतियोगिता में लोग एक गोलाकार पत्थर उठाते हैं। पत्थर का वजन 100 किलोग्राम से लेकर 150 किलोग्राम तक है। पत्थर पर घी का तेल लगा हुआ। प्रतियोगी दोनों हाथों से पत्थर उठा कर पेट से कंधे पर रख देता है या कांख से कंधे पर उठाकर रख देता है। इस के बाद उसे निर्धारित लाइन से चक्कर लगाना चाहिए ,जिस ने सब से ज्यादा गोलाकार लाइन लगायी है, उसे विजेता घोषित किया जाता है। इस प्रकार का मैच भी होता है, जिस में प्रतियोगी पत्थर को आगे या पीछे की और से फेंक देता है, जो सब से दूर फेंका गया, वही विजेता है।

तिब्बत में चमड़े का बैग ऊपर उठाने का मैच भी होता है। बैग में रेत भरा हुआ है। मैच में प्रतियोगी बैग को सिर से ऊपर उठाता है। तिब्बत के ऐतिहासिक उल्लेख के मुताबिक कुशल प्रतियोगी रेतों से पूरा भरा बैग ऊपर उठाकर चक्कर लगाकर नाच सकता है । आज भी यह खेल तिब्बत में बहुत लोकप्रिय है।

तिब्बती शैली का रस्साकशी खेल हाथी का रस्साकशी कहलाता है। आम रस्साकशी से अलग होकर तिब्बती लोग गर्दन से रस्सा खींच लेते हैं। मैच में मैदान की जमीन पर दो समानांतर लाइनें लगायी गयीं, दोनों के बीच एक सीमा रेखा खींची गयी, चार मीटर लम्बे रस्से के दोनों छोरों पर गांठ बांधी गयी जिसे एक एक प्रतियोगी के गर्दन पर लगाया गया । मैच इन्ही दोनों में होता है। वे एक दूसरे को पीठ देता है और रस्से को वृक्ष स्थल से जांघों के बीच गुजराया जाता है। फिर दोनों जोर से रस्सा खींच लेता है। रस्साकशी की भी कई शैलियां हैं। प्रतियोगी जमीन पर बैठे भी खींच लेते हैं और दर्शक हर्षोल्लास कर दाद देते हैं।

तलवारबाजी और फेंक खेल

तिब्बत के परंपरागत खेलों में से अनेक खेल उत्पादन और सैन्य कार्यवाहियों के दौरान संपन्न हुए थे । तलवारबाजी और फेंक का खेल इनमें से दो है,जिस का इतिहास7  से 9 वीं शताब्दी तक के तिब्बती जाति के थुबो राज्य के समय तक गिना जा सकता है।

तिब्बत में तलवारबाजी का खेल व्यापक तात्यपर्य का होता है। ऐतिहासिक ग्रंथ के अनुसार थुबो राज्य के समय तिब्बत क्षेत्र में लोग युद्ध और रणकौशल पर महत्व देते थे। शांति के समय भी वे अपने पास तलवार रखते थे और तलवार से लड़ने का कौशल उन्नत करते थे। इसलिए तलवारबाजी पुरूषों का लोकप्रिय खेल बन गया, जो अब तक बरकरार रहा । वर्तमान काल में भी तिब्बती युवक अपने पास तलवार रखना पसंद करते हैं।

तिब्बत में प्रचलित फेंक का खेल दो रूपों में होता है। एक का नाम क्वोख और दूसरा है पत्थर फेंकना।

क्वोख कूत्ता मार कर भगाने का दूसरा नाम है। इस खेल में रस्सी और लोह डंडा प्रयोग किया जाता है। रस्सी डंडे पर बांध दी गयी और लोहे का डंडा 10 सेंटीमीटर लम्बा और 2 सेंटीमीटर मोटा है। आदि काल में लोग इस का इस्तेमाल कर जानवरों से आत्म रक्षा करते थे।

पत्थर फेंकना भी आदि काल में आत्म रक्षा का तरीका था। साथ ही वह पशु चराने का साधन भी था। पत्थर ऊनी चाबूक से फेंका जाता था , ऊनी चाबूक तिब्बती भाषा में वु थ्यु कहलाता है। ऊनी चाबूक के एक छोर पर रिंग बंधा है जो उंगली पर लगाया जा सकता है ,दूसरा छोर बैल व बकरे के ऊन से बनाया गया है ,बीचोंबीच एक हथेली जितना बड़ा टुक़ड़ा बुना गया है, जिस पर पत्थर रखा जा सकता है। फेंकने के समय चाबूक के दोनों छोर घूमा कर पत्थर फेंका जाता है। जिस से पत्थर तेज गति से दूर दसियों मीटर या सौ मीटर तक दागा जा सकता है और पत्थर की शक्ति तेज और जबरजस्त होती है।

पोलो,  शतरंज और तिब्बती प्राणायाम

पोलो का खेल अब भी तिब्बत क्षेत्र का लोकप्रिय खेल है। ऐतिहासिक उल्लख के मुताबिक 7 से 9 वीं शताब्दी तक थुबो राज्य में घुड़सवारी दौड़ और पोलो का विकास हुआ। पोलो के लिए उच्च स्तरीय कौशल और कड़ी ट्रेनिंग की जरूरत है। पोलो के गैंद रंगीन है और डंडा अर्ध चंद्रकार का है। पोलो तिब्बत में प्रतियोगिता और मनोरंजन दोनों के लिए आयोजित होता है।

तिब्बत में प्रचलित शतरंज चीन के भीतरी इलाके से भिन्न किस्म का है । इसलिए वह तिब्बती शतरंज कहलाता है। शतरंज के खेल तरीके भी अनेक है । तिब्बत में आज भी लोग शतरंज पसंद करते हैं ,खास कर गर्मियों के अवकाश समय गांव वासी खेल ज्यादा करते हैं।

तिब्बती बौद्ध धर्म में तपस्या करने में अनेक शरीर तपाने के तरीके होते हैं। मोटी तौर पर वह तिब्बती प्राणायाम कहलाता है। प्राणायाम से लोग स्वास्थ्य मजबूत करते हैं और शरीर की निहित शक्ति विकसित करते हैं और रोगों का निवारण करते है।

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