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वांगशी चोमा की कहानी
2009-11-10 12:04:12

चीन की राजधानी पेइचिंग में एक ऐसी तिब्बती लड़की है, जो तिब्बती बहुल क्षेत्र में नहीं रहती और चीनी हान भाषा तिब्बती भाषा से अच्छी तरह बोलती है । चालीस वर्ष की उम्र में वे अचानक कानून से संबंधित कार्य को छोड़कर चीन के दक्षिण पश्चिमी जातीय विश्वविद्यालय जाकर तिब्बती शास्त्र का अनुसंधान करने लगी । यही है तिब्बती युवा वांगशी चोमा।

वांगशी चोमा शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के थ्येनशान पर्वत की तलहटी में स्थित एक फ़ार्म में पली-बढ़ी । बचपन में उस के सभी दोस्त कज्ज़ाकिस्तानी जातीय बच्चे थे । कज्ज़ाकिस्तानी जातीय संस्कृति में रहने वाली नन्ही वांगशी चोमा को कज्ज़ाकी भाषा आती है । लेकिन माता पिता और आसपास के लोगों के तिब्बती भाषा बोलने से तथा आम दिनों में तिब्बती परम्परागत रीति रिवाज़ के वातावरण में उसे मालूम हुआ कि वह आस पड़ोस के कज्ज़ाकिस्तानी बच्चों से वह अलग है, वह तिब्बती जातीय लड़की है । इस तरह वांगशी चोमा की अपनी जातीय संस्कृति व इतिहास जानने की जिज्ञासा बढ़ी । इस की चर्चा में उन्होंने कहा:

"मेरा जन्म तिब्बती जातीय परिवार में हुआ । हालांकि मैं तिब्बती बहुल क्षेत्र में नहीं पली-बढ़ी, लेकिन तिब्बती संस्कृति का प्रभाव रोज़मर्रा के जीवन में पड़ता रहा । इस तरह मेरी तिब्बती संस्कृति में रूचि बढ़ी । दूसरी तरफ़ क्योंकि मैं तिब्बत बहुल क्षेत्र में पली-बढ़ी नहीं थी, इस लिए इस क्षेत्र में ज्यादा जानकारी पाने की मेरी जिज्ञासा और बढ़ी ।"

वर्ष 1985 के सितम्बर माह में वांगशी चोमा ने चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय में दाखिला ले कर और विधिवत सीखना शुरू किया । विश्वविद्यालय में उन्होंने तिब्बती बहुल क्षेत्रों से आए अनेक विद्यार्थियों से मुलाकात की, जिस से तिब्बती जाति के प्रति उन की समझ और बढ़ी । विश्वविद्यालय में वह अन्य तिब्बती विद्यार्थियों के साथ तिब्बती पंचांग के त्योहारों को मनाती थी, कोर्चोम नृत्य नाचती थी । विश्वविद्यलय में पढ़ने के दौरान वांगशी चोमा ने तिब्बती भाषा सीखना शुरू किया और तिब्बती जाति के इतिहास व संस्कृति से जुड़ी किताबें पढ़ीं । वर्ष 1989 में स्नातक होने के बाद वांगशी चोमा शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश में वापस लौटी और वर्ष 2004 तक कानून से संबंधित काम किया । वर्ष 1998 में उन्होंने नानचिन विश्ववद्यालय में एम.ए की डिग्री ली, और तिब्बती शास्त्र से संबंधित अनुसंधान किया । इसी दौरान उन्होंने भविष्य में पेशेवर रूप से तिब्बती शास्त्र का अनुसंधान करने का फैसला किया । उन्होंने कहा:

"वर्ष 2001 में मैं ने पेइचिंग अंतरराष्ट्रीय तिब्बती शास्त्र सम्मेलन में भाग लिया । इस क्षेत्र के अनेक विद्वान व विशेषज्ञ सम्मेलन में उपस्थित हुए थे । मुझे लगता है कि मेरा अनुसंधान कम था । लेकिन तिब्बती शास्त्र में मेरी रूचि है, इस तरह मैं ने और कोशिश करने का फैसला किया ।"

इस फैसले से वांगशी चोमा स्छ्वान प्रांत की राजधानी छंङतु स्थित दक्षिण पश्चिमी जातीय विश्वविद्यालय के जातीय शास्त्र विभाग के प्रथम खेप वाले डाक्टरों में से एक बन गयी । लेकिन उस समय ऐसा संकल्प करना वांगशी चोमा के लिए मुश्किल बात थी । वह चालीस साल की हो चुकी थीं और उस का पहला रोज़गार अच्छा था। उन्हें शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश के श्रेष्ठ कानून कर्मचारी के रुप में सम्मानित किया गया । डॉक्टर की डिग्री प्राप्त करने का मकसद पूर्व के रोज़गार को छोड़ कर शुरू से काम करना था । इस की चर्चा में वांगशी चोमा ने कहा:

"कानून के क्षेत्र में मैं अनेक साल काम कर चुकी हूँ । मेरा रोज़गार अच्छा था, इस तरह एक बार फिर विद्यार्थी बनना आर्थिक जीवन के लिए मुश्किल होगा । एक डॉक्टर विद्यार्थी को एक माह में वेतन सिर्फ़ 240 य्वान मिलता था , दूसरा सरकारी वेतन नहीं प्राप्त किया जा सकता था । इस तरह मेरे जीवन में आर्थिक गारंटी नहीं थी । लेकिन मेरा विचार है कि अगर तिब्बती शास्त्र का और अध्ययन करना चाहूंगी, तो कठिनाइयों को दूर करना चाहिए ।"

पहले तिब्बत के इतिहास व संस्कृति के प्रति ज्यादा जानकारी न होने और उम्र चालीस होने के कारण वांगशी चोमा को लगता था कि उस के पास समय बहुत कम है । इस तरह उस ने दूसरों से ज्यादा मेहनत की । उन्होंने कहा:

"हर दिन बुनियादी जानकारी वाली कक्षाएं ज्यादा हहोने के कारण शुरू में मैं रोज़ सिर्फ़ चार घंटे सोती थी । रात को दो बजे तक पढ़ती थी और सुबह छः बजे उठती थी ।"

अपनी मेहनत के कारण वांगशी चोमा ने अपने अध्यापक की मान्यता हासिल की और तिब्बत जाकर अनुसंधान करना का मौका प्राप्त किया । वर्ष 2005 के अगस्त माह में वह तिब्बत की राजधानी ल्हासा आई, जहां की सुन्दरता ने वांगशी चोमा को प्रभावित किया । उन का कहना है:

"ल्हासा पहुंचने के बाद मैं ने गहरी सांस ली । वहां का नीला आसमान और सफेद बादल, वायु बहुत स्वच्छ है । ल्हासा बहुत सुन्दर तीर्थ स्थल है । कार से मैं पोटाला महल से गुज़री थी और मुझे उसे अंदर जाकर देखने की बड़ी जिज्ञासा थी । चित्रों में मैं ने पोटाला महल को देखा था, लेकिन वास्तविक पोटाला महल कभी नहीं देखा । अब मैं उस के सामने हूँ, तो दिल में गहरा एहसास होता है । सच कहूं, ल्हासा बहुत सुन्दर है ।"

ल्हासा में वांगशी चोमा की अनुसंधान दिशा तिब्बत का पर्यटन उद्योग है। इधर के वर्षों में तिब्बत का पर्यटन उद्योग तेज़ी से विकास कर रहा है और स्वायत्त प्रदेश का स्तंभ कारोबार बन गया है। अब तिब्बत में पर्यटन विकास कदम ब कदम गांवों में प्रवेश कर रहा है, 81 प्रतिशत तिब्बती ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यटन उद्योग के विकास से किसानों के जीवन में भारी परिवर्तन आया है। लेकिन मानव विज्ञान की दृष्टि से पर्यटन उद्योग द्वारा सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्र में लाए गए परिवर्तन से जुड़े अनुसंधान कम हैं । इस तरह वांगशी चोमा ने इस अनुसंधान दिशा को चुना । ल्हासा के त्वेलुंग देहछिंग कांउटी के दो गावों में उस ने निरीक्षण किया । सेरांमा गांव में बाहरी व्यापारियों व गांववासियों के साथ पर्यटन उद्योग का विकास हुआ है और दूसरा गांव छङक्वान जिले का त्सेचोलिन गांव है, जहां गांव वासी अपने आप पर्यटन परियोजना का विकास कर रहे हैं । वांगशी चोमा ने कहा:

"मैं अलग नमूने के जरिए अनुसंधान करना चाहती थी। मैं इस क्षेत्र में खोज रही थी कि तिब्बत के गांवों में पर्यटन के लिए कौन सा नमूना अधिक अच्छा होगा?जिस से विकास के लिए और लाभ मिले, स्थानीय लोगों को ज्यादा वास्तविक लाभ मिले, व्यापारियों को आर्थिक फायदा मिलने के साथ-साथ तिब्बत के पर्यटन उद्योग के विकास का संवर्द्धन किया जा सके?"

दस महीनों के अनुसंधान के बाद वांगशी चोमा ने《पर्यटन और तिब्बती गांव का परिवर्तन—सेरानमा गांव और त्सेचोलिन गांव का उदाहरण 》शीर्षक निबंध प्रकाशित किया, जिस पर अंतरारष्ट्रीय तिब्बती शास्त्र जगत का ध्यान केंद्रित हुआ । वांगशी चोमा को जर्मन के बॉन शहर में आयोजित ग्यारहवें अंतरराष्ट्रीय तिब्बती शास्त्र संगोष्ठी में भागीदारी का निमंत्रण मिला ।

वांगशी चोमा ने कहा कि तिब्बत जाकर उन्होंने तिब्बती बंधुओं का सीधा सादा जीवन और स्नेह गहन रूप से महसूस किया । अनुसंधान कार्य करने के दौरान वह कभी कभार तिब्बती बंधुओं के घर में रहीं । कुछ तिब्बती बंधुओं ने उन्हें लाखांग में बुलाया, जो तिब्बती परिवार में सूत्र भवन के सामने है । यह तिब्बती परिवार में सब से उच्च स्तरीय व्यवहार माना जाता है । वांगशी चोमा ने कहा:

"तिब्बती बंधु कहते हैं कि आप डाक्टर डिग्री के लिए पढ़ती हैं । हमारी तिब्बती जाति ज्ञान-वृद्ध व्यक्तियों का सम्मान करती है । तिब्बती बौद्ध धर्म प्रणाली में इसे गेशी डिग्री कहा जाता है । तिब्बती लोगों के विचार में डॉक्टर डिग्री के लिए पढ़ना गौरव की बात है ।"

वर्ष 2007 में डॉक्टर की डिग्री प्राप्त करने के बाद वांगशी चोमा पेइचिंग स्थित तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र में काम करने लगी । यहां उन्हें और बड़ा मंच मिला । वे अनेक साथियों के साथ तिब्बती शास्त्र का अनुसंधान करती हैं । उन्होंने कहा:

"तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र में प्रवेश करना मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। यहां मैं तिब्बती शास्त्र अनुसंधान क्षेत्र में और गहन रूप से अध्ययन कर सकती हूँ और विश्व के विभिन्न स्थलों में तिब्बती शास्त्र अनुसंधान की स्थिति जान सकती हूँ । मुझे लगता है कि हमारा देश विकसित हो गया है और जनता का जीवन स्तर उन्नत हुआ है, तो हम अपनी रूचि वाला कार्य कर सकते हैं ।"

वांगशी चोमा ने कहा कि इस वर्ष वे तिब्बती चरवाहों के जीवन में आया परिवर्तन देखने के लिए तिब्बत की एक बार फिर यात्रा करेंगी । उन्होंने कहा कि वे अपने जन्मस्थान छिंगहाई प्रांत का दौरा भी करेंगी और अनुसंधान करेंगी कि सान च्यांगय्वान क्षेत्र में पारिस्थितिकी आप्रवासी चरवाहों के जीवन की क्या स्थिति है। उन की आशा है कि अपने अनुसंधान के जरिए तिब्बती किसान व चरवाहों के विकास के लिए अनुचित सुझाव पेश कर सकेंगी, ताकि वे सुखी जीवन बिता सकें, पारिस्थितिकी संरक्षण किया जा सके और तिब्बती बहुल क्षेत्र में समृद्धि व विकास हो सके ।

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