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तिब्बती अनुसंधानकर्ता गेसांग चोमा और उन का सपना
2009-11-03 10:33:08
सुश्री गेसांग चोमा को मालूम नहीं है क वह कितनी बार तिब्बत वापस लौटी हैं । वे चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र के सामाजिक अर्थतंत्र अनुसंधान विभाग की एक अनुसंधानकर्ता हैं । हालांकि बचपन से ही वह पेइचिंग में पढ़ी-बढ़ीं, लेकिन अपने जन्मस्थान तिब्बत को वह कभी नहीं भुला पाईं । हर वर्ष वह तिब्बत वापस लौटती हैं। उन्हें याद है कि वर्ष 1977 में अपने माता पिता के साथ तिब्बत से रवाना होकर पेइचिंग आईं थीं । उस समय गेसांग चोमा एक बच्ची थी , राजधानी पेइचिंग उस के लिए आश्चर्य जनक जगह थी और यहां आने की जिज्ञासा थी। लेकिन तिब्बत में रहने वाले परिवार के रिश्तेदारों का विचार नन्ही गेसांग चोमा से अलग है । उन्हें बड़ी चिंता थी । इस की चर्चा में गेसांग चोमा ने कहा:
"हमारे परिवर के अधिक रिश्तेदारों ने हमारा यहां आने का विरोध किया था । उस समय उन्हें लगता था कि तिब्बत और पेइचिंग के बीच की दूरी बहुत ज्यादा है, यातायात असुविधापूर्ण है। उस समय विमान की उड़ान आज जैसी नहीं थी । एक हफ्ते में सिर्फ़ एक या दो उड़ानें हीं थीं । उस समय विमान यात्रा साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता, इस तरह बाहर के लोगों के साथ संपर्क करना कठिन था । उस समय हमारे रिश्तेदारों ने कहा कि अगर आप लोग दूर जाएं, तो बाद में हमारी मुलाकात कम होगी ।"
जन्म स्थान से रवाना होकर पेइचिंग में गोसांग चोमा एक बिलकुल अलग व नया जीवन बिताने लगी । अध्यापकों व सहपाठियों की मदद से उसे शीघ्र ही नए वातावरण की आदत हो गई । पिता जी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय में पढ़ाते थे, इस तरह हर साल गेसांग चोमा ने अनेक तिब्बती छात्रों को पढ़ने के लिए विश्वविद्यालय आते देखा। इस की याद करते हुए गेसांग चोमा ने कहा:
"गत शताब्दी के सत्तर व अस्सी वाले दशक में वे तिब्बती छात्र पेइचिंग कभी नहीं आते । वे पहली बार रेल गाड़ी या विमान की सवारी करते थे और प्रथम बार राजधानी आते थे और प्रथम बार सब वे का प्रयोग करते थे । केंद्रीय जातीय विश्विद्यालय में दाखिल होने के बाद अन्य सहपाठियों व अध्यापकों की सहायता के जरिए उन्हें शीघ्र ही नए वातावरण की आदत पड़ गयी ।"
पेइचिंग में नया जीवन बिताते समय गेसांग चोमा का अपने जन्मस्थान तिब्बत के साथ संपर्क नहीं टूटा । उस समय दूर संचार की सुविधा कम थी , तिब्बती रिश्तेदारों के साथ मात्र पत्र के जरिए संपर्क बनाये रखा जा सकता था । वर्ष 1986 में तिब्बत से विदा लेने के बाद 9 वर्ष बाद वे प्रथम बार अपने जन्मस्थान वापिस लौटीं । तत्कालीन ल्हासा की स्थिति की याद करते हुए गेसांग चोमा ने कहा:
"उस समय पेइचिंग की जीवन स्थिति अच्छी थी, बिजली पर्याप्त थी। लेकिन वर्ष 1986 में ल्हासा में बिजली अपर्याप्त थी, ल्हासा वासियों को कभी कभार मोमबत्तियों का प्रयोग भी करना पड़ता था । रात को इधर-उधर अंधेरा होता था । बिजली के अभाव के कारण ल्हासा शहर एक छोटा सा गांव लगता था ।"
वर्ष 1959 के पूर्व तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था लागू थी, इस तरह आर्थिक बुनियाद कमज़ोर थी । तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद आर्थिक स्थिति कदम ब कदम बदल गई । इस की चर्चा में गेसांग चोमा ने कहा:
"शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद तिब्बत में उद्योग व्यवस्था स्थापित हुई, कृषि का स्तर लगातार उन्नत हो रहा है । इस के साथ ही उपकरण निर्माण व जातीय हस्त उद्योग का तेज़ विकास किया जा रहा था।"
विश्वविद्यालय में गेसांग चोमा जातीय अर्थतंत्र का अध्ययन करती थीं, इस लिए उन्होंने तिब्बत के आर्थक विकास का ज्यादा अनुसंधान किया । वर्ष 1992 में एम.ए. डिग्री के पेपर के लिए वे छिंगहाई प्रात के तिब्बती बहुल क्षेत्र आईं । निरीक्षण दौरे के दौरान उन्होंने देखा कि तिब्बती बहुल क्षेत्र में तिब्बती जनता का जीवन चुपचाप परिवर्तित हो रहा है । गेसांग चोमा ने कहा:
"तिब्बती चरवाहों का पशु पालन का तरीका बदल गया । उन के पास पशु पालन के नए साधन आ गए । पशु पालन के लिए परम्परागत तरीका घोड़े का प्रयोग किया जाता था, लेकिन आज वे मोटर साइकिल का प्रयोग कर पशु पालन करते हैं । अनेक चरवाहों के घर में ट्रक भी है ।"
इस बार की यात्रा से गेसांग चोमा को तिब्बती बहुल क्षेत्र में हो रहा वास्तविक परिवर्तन महसूस हुआ । उन्होंने कहा कि इस परिवर्तन में सब से उल्लेखनीय यातायात है । अब अनुसंधान के लिए कहीं भी जाना हो, चाहे दूर या नज़दीक का स्थान, यातायात बहुत सुविधापूर्ण है ।
वर्ष 1999 में गेसांग चोमा अनुसंधान के लिए एक बार फिर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के लिनची प्रिफैक्चर गईं । इस बार वे तिब्बती बंधु के घर में ठहरीं, और नज़दीक से तिब्बती बंधुओं के जीवन की बुनियादी स्थिति को देखा । उन्होंने कहा:
"उस समय मेरी कल्पना में नहीं था कि तिब्बती बंधुओं के लिए नए-नए मकानों का निर्माण किया गया है। पहले तिब्बती लोगों का मकान दो मंजिला होता था, पहली मंजिल पर पशु रहते थे और दूसरी मंजिल पर लोग रहते थे। यह बहुत परम्परागत व प्राचीन निवास शैली थी । लेकिन इस बार हम वहां गए और देखा कि तिब्बती बंधुओं के निवास स्थान में रसोई घर और मुख्य कमरा अलग-अलग है। इस तरह खाना पकाने का तेल व धुएं से सोने का कमरा गंदा नहीं होता है । इस के अलावा तिब्बती लोग आंगन के बाहर एक कमरा बनाकर विशेष तौर पर पशु पालते हैं । इस तरह रिहाएशी मकान बहुत स्वच्छ रहता है । वर्तमान में चीन की केंद्र सरकार तिब्बत में सुरक्षा मकान परियोजना का निर्माण कर रही है , जिस का मकसद नए और स्वस्थ व और स्वच्छ वातावरण बनाना और तिब्बती लोगों की जीवन स्थिति व गुणवत्ता को उन्नत करना है । "
अब तिब्बत स्वायत्त प्रदेश का नया रूप सामने आया है। इस के प्रति पेइचिंग और तिब्बत के बीच आती जाती गेसांग चोमा और गहरेपन से इस परिवर्तन को महसूस करती है । उन्होंने कहा:
"पहले मेरे माता पिता ज्यादा चीज़ें खरीद कर जन्मस्थान तिब्बत वापस लौटते थे । यहां तक कि वे सब्ज़ी भी बाहर से तिब्बत में ले जाते थे, क्योंकि उस समय वहां ताज़ा सब्ज़ियां कम थीं और दाम बहुत महंगा था । लेकिन आज तिब्बत वापस लौटने के वक्त हमें पता नहीं चलता कि क्या चीज साथ ले जाएं। क्योंकि अब तिब्बत में सभी जगहों पर हर चीज़ मिलती है । इस तरह वर्तमान में जन्मस्थान वापस लौटने के वक्त रिश्तेदारों को उपहार देना मुश्किल हो गया है ।"
सुश्री गेसांग चोमा ने कहा कि उन्होंने इस लिए जातीय अर्थतंत्र का कोर्स करने का और तिब्बत के आर्थिक व सामाजिक अनुसंधान करने का रास्ता चुना कि वे अपनी कोशिशों व खोज़ों के जरिए तिब्बत के आर्थिक विकास के लिए अपना योगदान व शक्ति दे सकेंगी । यह उन का सपना है ।
अपने सपने को मूर्त रूप देने के लिए गेसांग चोमा अथक प्रयास कर रही हैं। पेइचिंग से तिब्बत तक वे गहरे रूप से अनुसंधान में लगी हुई हैं । तिब्बती बहुल क्षेत्रों से पेइचिंग तक वे अनुसंधान के परिणामों को नीति बनाने की सहायक सामग्री के रूप में संबंधित विभागों को देती हैं । उन्होंने कहा कि तिब्बत और पेइचिंग उन के दो घर हैं, और वे इन दोनों घरों को गहरे रुप से प्यार करती हैं ।
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