चीन की राजधानी पेइचिंग में अनेक तिब्बती बंधु रहते हैं, वे भीतरी इलाके के अन्य जातियों के व्यक्तियों के साथ राजधानी में रहते हैं, उन के प्रतिनिधित्व वाली तिब्बती संस्कृति और अन्य जातियों की संस्कृतियां भूमंडलीकरण परीक्षा का सामना कर रही है । आधुनिक शहर में वे कैसे अपनी सांस्कृतिक विशेषता को बनाए रखेंगे?उन की जीवन स्थिति कैसी है?और पेइचिंग में उन के अनुभव क्या हैं?तो आज के कार्यक्रम में आप मेरे साथ पेइचिंग में अपना सपना खोजने वाले तिब्बती बंधु के साथ संपर्क करेंगे, और मैं आप को दूंगी माक्ये आमे नामक संगीत दल के सदस्य पासांग दावा और उन के दोस्त का परिचय ।
गीत के बोल है:"ल्हासा कहां पर स्थित है?वह समुद्र पर स्थित है?शांगरिला कहां पर स्थित है?वह समुद्र के पास स्थित है ।"
पेइचिंग में एक माक्ये आमे तिब्बती रेस्तरां है, जिस में पांसांग दावा और उस के दोस्त गाते नाचते अभिनय कर रहे हैं । इस रेस्तरां में प्रवेश करके आप को महसूस नहीं होगा कि आप पेइचिंग में है, तिब्बती शैली की लालटेनों में कोमल रोशनी दिखाई पड़ती है, शुद्ध तिब्बती पकवान और घी की खुशबू हवा में फैली हुई है, नाचते हुए तिब्बती युवा आनंद के साथ मदिरा गीत गा रहे हैं और मेहमानों को सफेद हादा प्रदान कर रहे हैं , मानो आप मेहमाननवाजी तिब्बती बंधु के घर में आए हों ।
वास्तव में पासांग और उन के दोस्तों के लिए यह घर के बराबर है । वर्तमान में तिब्बत की यात्रा करने के दौरान पर्यटक तिब्बती बंधु के घर जाकर नाचगान देखते हैं और तिब्बती पकवान खाते हैं । तत्काल पासांग भी पर्यटकों के लिए मदिरा गीत गाता था । दस साल पूर्व पासांग घर से अपने सपने की खोज में पेइचिंग आया । उस ने कहा:
"शुरू में मैंने एक दोस्त के साथ गाना नाचना सीखा । उस ने मुझ से कहा कि मुझे पर्याप्त संस्कृतियों वाले स्थल पर जाकर सीखना चाहिए, ताकि और ज्यादा जानकारी पा सकूं ।"
तिब्बतियों में एक ऐसी कहावत है कि जन्म होने के बाद तिब्बती लोग गा सकते हैं, चलना आता है, तो नाच सकते हैं । पासांग के गाने की आवाज़ अच्छी है । दोस्त की सलाह सुनकर वह कुछ और सीखने के लिए पेइचिंग आया और चीनी केंद्रीय संगीत कालेज के अध्यापक हू से सांस लेना सीखा।
"पहले मुझे मालूम नहीं था कि गाते समय कैसे सांस ली जाती है । अध्यापक हू ने मुझे सिखाया । इस के बाद गाते समय मुझे पहले से ज्यादा हल्का लगता है ।"
वर्तमान में पासांग माक्ये आमे रेस्तरां में कार्यरत है । शुरू में पेइचिंग में उस का जीवन आसान नहीं था । उस समय पेइचिंग में उस का कोई मित्र भी नहीं था, यहां तक कि रहने का कोई स्थल भी नहीं था । शुरू में पासांग ने एक छोटे से रेस्तरां में तीन महीने तक बर्तन धोने का काम किया , इस के बाद इन्टरनेट के जरिए मोसो जातीय रेस्तरां में चार महीने तक नाच गान किया । अंत में वह माक्ये आमे रेस्तरां आया और अपने जन्मस्थान शांगरिला वासी गेरोंग से मिला, जो तिब्बती वाद्य यंत्र श्वानज़ी बजाता है । गेरोंग की उम्र ज्यादा नहीं होने के बावजूद श्वानज़ी बजाने का दस से अधिक साल का उसे अनुभव है । उस ने कहा कि जन्मस्थान में उस ने तिब्बती बूढ़ों से श्वानज़ी बजाना सीखा था, उस का वाद्ययंत्र श्वानज़ी पिता ने उस के लिए बनाया था। तिब्बती बंधु गेरोंग ने कहा:
"पहले मैं जन्मस्थान में बूढ़ों द्वारा बजाई गई श्वानज़ी सुनता था, बाद में मेरे पिता ने मेरे लिए श्वान ज़ी वाद्य यंत्र बनाया । उन्होंने पहाड़ से एक मोटी बांसुरी लाकर सुखायी, श्वानज़ी वाद्ययंत्र की स्ट्रिंग घोड़े की पूंछ से बनी हुई है ।"
गेरोंग अच्छी तरह चीनी हान भाषा नहीं बोल सकता, इस तरह वह कम बातचीत करता है । लेकिन अपने पसंदीदा वाद्य यंत्र श्वानज़ी की चर्चा में वह काफी बोल रहा है । उस ने बताया कि श्यानज़ी दो प्रकार के हैं । पाथांग श्वानज़ी और देहछिंग श्वानज़ी । पाथांग श्वानज़ी की गति धीमी है और आवाज़ नीची है । जबकि देहछिंग श्वानज़ी की गति तेज़ है और आवाज़ ऊंची । गेरोंग ने कहा कि तिब्बती लोगों को समुद्री सतह से तीन चार हज़ार मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ी गीत गाना पसंद है ।
पेइचिंग बहुसंस्कृतियों वाला स्थल है, जो तिब्बती क्षेत्र से बिलकुल अलग है । पेइचिंग में जीवन की गति तेज़ है और उन्हें तरह-तरह के व्यक्तियों के साथ संपर्क करना पड़ता है । तिब्बती बंधु गेरोंग ने कहा कि पेइचिंग मआने के शुरू में संस्कृति और जीवन तरीके के फ़र्क के कारण उन्हें कुछ सवालों का सामना करना पड़ता था । गेरोंग ने कहा:
"तिब्बती लोग सीधे सादे हैं । भीतरी इलाके के लोगों को मज़ाक करना पसंद है । पहले हमें आदत नहीं थी और कभी-कभार हमारे बीच गलतफ़हमी पैदा हो जाती थी । अगर अपने तिब्बती दोस्तों के साथ दूसरे रेस्तरां में खाना खा रहे हैं,तो एक साथ गाते हैं, तो बहुत अच्छा लगता है । लेकिन दूसरे लोगों के साथ रहने की आदत नहीं पड़ी ।"
जीवन वातावरण में हुए परिवर्तन से पासांग और गेरोंग आदि तिब्बती बंधुओं की धार्मिक आदत बरकरार रही । हर रोज़ वे सूत्र पढ़ते हैं । सुबह घी की चाय पीने के वक्त एक कटोरा घी चाय बुद्ध मूर्ति के सामने रखते हैं । तिब्बती पंचांग के अनुसार हर माह के 15वें दिन वे पेइचिंग में मशहूर तिब्बती लामा मंदिर योंग होगोंग भवन जाकर पूजा करते हैं । पांसांग ने कहा कि बौद्ध धर्म हमारा एक सदिच्छापूर्ण व दयालु व्यक्ति बनने की दिशा में मार्गदर्शन करता है । जीवन व वातावरण में कैसा भी परिवर्तन हो, हमारा धार्मिक विश्वास नहीं बदलेगा ।
दोस्तो, तिब्बती बंधुओं के दिल में पोटाला महल एक अत्यंत पवित्र स्थल है । जिंदगी भर एक बार पोटाला महल जाना हर तिब्बती के दिल का सपना है । अनेक तिब्बतियों के लिए पोटाला महल जाना मुश्किल है । लेकिन पांसांग के दोस्त प्यानपा त्सेरिंग के लिए पाटाला महल बचपन में हर रोज़ जाने का स्थल है ।
माक्ये आमे रेस्तरां में कार्यरत प्यापा त्सेरिन का जन्म तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में हुआ । छुटपन से ही वह हर दिन दादी जी के साथ पोटाला महल जाकर पूजा करता था । प्यानपा त्सेरिन ने कहा:
"कभी कभार मैं दादी जी के साथ पोटाला महल में सूत्र पढ़ते हुए चक्कर लगाता था । लेकिन दादी जी हर दिन जरूर वहां सूत्र चक्कर लगाती हैं । इस के बाद वह बाज़ार जाकर कुछ खरीदती हैं । कभी-कभी मैं दादी की मदद करता था । इस तरह हर दिन वह मेरे साथ वहां जाना पसंद करती थी ।"
प्यानपा त्सेरिन ने कहा कि अब दादी संधिशोथ रोग से पीड़ित हैं, पैदल चलना सुविधापूर्ण नहीं है । लेकिन हर दिन वह व्हीलचेयर पर बैठकर पोटाला महल जा कर सूत्र चक्कर लगाती है । प्यानपा त्सेरिन ने कहा कि जब वह घर वापस लौटता है, तो दादी के साथ पोटाला महल जा कर सूत्र चक्कर लगाता है ।
पेइचिंग में कई साल बीत चुके हैं । पासांग और उस के दोस्त कभी घर वापस नहीं लौटते । लेकिन हर बार घर वापस लौटने के बाद जन्मस्थान में आए भारी परिवर्तन को देख कर उन्हें आश्चर्य होता है । पासांग का जन्मस्थान शांगरिला के सोंगहो गांव में स्थित है, जिस की ऊंचाई समुद्री सतह से 2700 मीटर से ज्यादा है । वर्ष 1999 में स्थानीय कस्बे के बस स्टेशन से अपने घर तक तीन या चार घंटे लगते थे, उस समय गांव से स्थानीय कस्बे जाकर कुछ कृषि उत्पाद बेचने के लिए उन्हें अस्सी या सौ से ज्यादा चीज़ों को पीठ पर लाद कर चार या पांच घंटे वाला पहाड़ी रास्ता चलना पड़ता था । लेकिन कई साल बाद पासांग के गांव में मार्ग खुल गया । तो पासांग के लिए बाहर से घर वापस लौटना सुविधापूर्ण हो गया ।
जन्मस्थान से दूर राजधानी पेइचिंग में रह रहे पासांग के परिवारजनों को कभी कभार उस की याद सताती है । लेकिन उन्होंने पासांग का हमेशा समर्थन किया है । हर बार माता पिता के फोन आने के वक्त उन का पहला वाक्य ज्यादा सीखो और ज्यादा पढ़ो है । इस की चर्चा में पासांग ने कहा:
"अब हमारे घर की स्थिति अच्छी हो गई है, खाने की पर्याप्त चीज़ें हैं । हम यहां की कमाई परिजनों को भेजते हैं । उन की आशा है कि हम अच्छी तरह अपनी देखभाल करेंगे और ज्यादा सीखेंगे ।"
पेइचिंग एक बहुत बड़ा मंच है, जो पासांग और उस के दोस्तों के लिए सीखने का मौका प्रदान करता है । वे मंगोल जातीय संगीत सुनते हैं और म्याओ जातीय गीत सीखते हैं । इस के साथ ही वे कभी-कभार विदेशी संगीत का अध्ययन भी करते हैं । तीनों तिब्बती युवाओं का सपना है कि सीखने के बाद घर वापस लौट कर अपनी जानकारी के अनुभवों के जरिए जन्मस्थान के जातीय संगीत विकास के लिए योगदान करेंगे । पासांग का कहना है कि वह अपने द्वारा गाए गए गीतों का संग्रहण कर एक एलबम बना कर तिब्बती संगीत का प्रसार प्रचार करना चाहता है । प्यापा त्सेरिन कंप्यूटर सीखना चाहता है, उस की इच्छा है कि ल्हासा वापस लौटने के बाद एक संगीत रूम खोल कर तिब्बती जातीय गीतों का संग्रहण करेगा, ताकि और अधिक लोग तिब्बती जातीय गीत सुन सकें । गेरोंग की योजना है कि घर वापस लौटने के बाद बच्चों को श्वानज़ी वाद्ययंत्र बजाना सिखाएगा । तिब्बती बंधु गेरोंग ने कहा:
"मैं अपने सपने को मूर्त रूप देने के लिए जरूर कोशश करूंगा । अगर अंत में कोई परिणाम नहीं निकलेगा, तो कोई बात नहीं । लेकिन हम कोशिश करेंगे।"
माक्ये आमे ने पासांग और उस के दोस्तों के सपने को मूर्त रूप देने के लिए एक खिड़की प्रदान की । यह तिब्बती संस्कृति को प्रदर्शित करने वाला स्थल है ,और पासांग और उस के दोस्त अन्य मित्रों से परिचय करने की खिड़की भी है । उन्होंने कहा कि माक्ये आमे उन का घर है, यहां आने वाला हर व्यक्ति गपशप करता है, शराब पीता है और एक साथ मदिरा गीत गाता है ।