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चीनी तिब्बती विदों के प्रतिनिधियों ने कीनिया की यात्रा की
2009-09-08 10:54:43

चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के उप कुलपति प्रोफेसर शेरपन्यिमा के नेतृत्व वाले चीनी तिब्बती विदों के प्रतिनिधि मंडल ने 24 अगस्त को नेरोबी में कीनिया के उच्च स्तरीय शिक्षा और विज्ञान व तकनीक मंत्रालय के उप मंत्री किलेमी म्विरिया के साथ वार्ता की । दोनों पक्षों ने तिब्बती शास्त्र के अनुसंधान, जातीय एकता तथा शिक्षा सहयोग आदि विषयों पर विस्तार से विचारों का आदान-प्रदान किया ।

प्रतिनिधि मंडल के अध्यक्ष श्री शेरपन्यिमा ने सर्वप्रथम श्री किलेमीम्विरिया को चीन की जातीय क्षेत्रीय स्वाशासन नीति और जातीय एकता की नीति से अवगत कराया और कहा कि चीन में एक अरब 30 करोड़ जन संख्या है और 56 जातियां एक साथ मेल मिलाप से रहती हैं । इस का श्रेय चीन में लागू जातीय क्षेत्रीय स्वशासन नीति को जाता है । चीन इस क्षेत्र में कीनिया समेत व्यापक अफ्रीकी देशों के साथ विचारों का आदान-प्रदान करने को तैयार है । उन्होंने कहा:

"चीन एक बहुजातीय देश है । इस प्रकार के देश में जातीय क्षेत्रीय निर्माण करना एक बड़ा विषय है । वर्तमान में चीन में पांच बड़े अल्पसंख्यक जातीय क्षेत्रीय स्वाशासन क्षेत्र हैं । तिब्बत उन में से एक है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में जातीय क्षेत्रीय स्वशासन व्यवस्था लागू है, तिब्बती जाति स्वायत्त प्रदेस की प्रमुख जाति है । इस स्वायत्त प्रदेश के नेता तिब्बती हैं और यहां मुख्य तौर पर तिब्बती भाषा का प्रयोग किया जाता है । इस तरह जातीय संबंध और जातीय एकता के क्षेत्र में हम एक दूसरे से सीख सकते हैं । कहा जा सकता है कि इधर के वर्षों में चीन में लागू जातीय क्षेत्रीय स्वाशासन व्यवस्था फलप्रद रही है ।"

श्री शेरप न्यिमा ने कहा कि शिक्षा क्षेत्र में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के विद्यार्थियों के द्वारा अपनी जातीय भाषा व संस्कृति का अध्ययन अनुसंधान करने पर जोर देने के साथ-साथ वे चीनी हान भाषा व संस्कृति के अध्ययन को भी महत्व देते हैं । इस का मकसद विभिन्न जातियों के बीच एक दूसरे के बारे में समझ व जातीय एकता को बढ़ाना है । पेइचिंग स्थित चीनी केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय देश में एक मात्र अल्पसंख्यक जातीय विद्यार्थियों को दाखिला देने वाला उच्च स्तरीय विद्यालय है, जिस का मकसद देश के विभिन्न स्थलों से आए भिन्न-भिन्न जातियों के विद्यार्थियों के बीच आपसी समझ तथा एक दूसरे की संस्कृति सीखने का मंच प्रदान करना और सांस्कृतिक विविधता को बनाए रखना तथा विभिन्न प्रकार की संस्कृतियों का मेल मिलाप करना है । श्री शेरप न्यिमा ने आशा जतायी कि बहुजातीय कीनिया के विशेषज्ञों व विद्वानों के साथ संबंधित सवालों को लेकर विचारों का आदान-प्रदान करेंगे । इस के अलावा उन्होंने तिब्बत में शिक्षा की स्थिति का परिचय दिया । उन का कहना है :

"कहा जा सकता है कि वर्ष 1951 के पूर्व तिब्बत में एक भी आधुनिक प्राइमरी स्कूल नहीं था । लेकिन आज वहां 880 प्राइमरी स्कूल और छः विश्वविद्यालय हैं । इन स्कूलों में पढ़ने वाले विद्यार्थी अपनी जातीय भाषा सीखने के साथ-साथ दूसरी भाषाएं भी सीखते हैं । इस तरह मुझे लगता है कि इस क्षेत्र में हमारे दोनों देशों के बीच समानताएं हैं, हम विचारों का ज्यादा आदान-प्रदान कर सकेंगे ।"

कीनिया के उच्च स्तरीय शिक्षा और विज्ञान व तकनीक मंत्रालय के उप मंत्री श्री किलेमी म्विरिया ने कहा कि कीनिया की विभिन्न जातियों के बीच मौजूदा अंतरविरोध देश के विकास में बाधा डालने वाला कारणों में से एक है । कीनिया जातीय एकता के क्षेत्र में चीन के अनुभव से सीखेगा, ताकि अपने देश में जातीय सुलह की प्राप्ति कर सके । उन्होंने कहा:

"वर्तमान में कीनिया के सामने मौजूद सब से बड़ी चुनौती जातीय मुठभेड़ है । हमें मालूम हुआ है कि गत वर्ष देश में हुई मुठभेड़ की जड़ विभिन्न जातियों के बीच मौजूद अंतरविरोध है । इस तरह चीन और कीनिया को एक अनुसंधान परियोजना शुरू करनी चाहिए, ताकि समान रूप से विभिन्न जातियों के बीच सामंजस्यपूर्ण सहअस्तित्व को साकार किया जा सके । हम चीन के अनुभव से सीख सकते हैं और एक एकजुट सामंजस्यपूर्ण देश की स्थापना की कोशिश करने को तैयार हैं ।"

श्री किलेमी ने दोनों देशों के शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न स्तरीय आदान-प्रदान व सहयोग को मज़बूत करने का सुझाव पेश किया और चीनी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र कीनियाई उच्च विद्यालयों के साथ संपर्क स्थापित करने की आशा जतायी । उन्होंने कहा:

"हम चीन से अनेक क्षेत्रों में सीख सकते हैं । मेरा विचार है कि अफ्रीका युरोप संबंध और अफ्रीका अमरीका संबंध की तुलना में अफ्रीका चीन संबंध ज्यादा घनिष्ठ हैं । हम चीन से सवाल पूछना चाहते हैं कि चीन कैसे विकास कर रहा है? क्यों इतनी जल्दी विकास कर रहा है?चीन और अफ्रीका के बीच बड़ी नीहित शक्ति मौजूद है, जिस में अधिकांश भाग सांस्कृतिक नीहित शक्ति का है । हमें इस प्रकार की निहित शक्ति की खोज करनी चाहिए । मसलन् वर्ष 2006 में नेरोबी कंफ्युशियस कालेज की स्थापना की गई । चीन और कीनिया के अनेक लोग एक दूसरे की संस्कृति के बारे में जानना चाहते हैं, तो कंफ्युशियस कालेज यानी तिब्बती शास्त्र अनुसंधान केंद्र एक ऐसा मंच प्रदान कर रहा है ।"

इस दिन की वार्ता में चीनी तिब्बती विदों के प्रतिनिधियों ने कीनिया में रह रहे चीनी मूल के व्यक्तियों और प्रवासी चीनियों के साथ संगोष्ठी की, और उन्हें तिब्बत के इतिहास व वर्तमान स्थिति से अवगत कराया । 26 अगस्त को तिब्बती विदों के प्रतिनिधियों ने कीनियाई राष्ट्रीय असेम्बली के सासंदों तथा अन्य सरकारी उच्च स्तरीय अधिकारियों के साथ मुलाकात की ।

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